गरीब-मध्यम के हाथ से फिसल रहा गैस-तैल!




शनै शनै हम कुछ ऐसी वस्तुओ पर आश्रित होते जा रहे हंै जो हमारे लिए जरूरी तो है किन्तु हमारी आर्थिक क्षमता अब उसे स्वीकार करने लायक नही रह पा रही है, इसमे सबसे महत्व की बात तो यह है कि जिन्हें हमारे लिए इसका प्रबंध करना है वे ही इससे या तो मुँह मोड़ रहे हैं या जिद पर अड़े हुए हैं.वर्तमान हालात मे ईंधन जिसमे पेट्रोल, डीजल, गैस सब शामिल है जो हरेक व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता  है सारी मुसीबत की जड़ बन गया है.घर मे चूल्हे से लेकर दफ्तर ओर एक शहर से दूसरे शहर तक की दूरी  को तय करने के लिये पेट्रोल, डीजल, गैस तीनों महत्वपूर्ण कड़ी है.ईधन की भूमिका जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गई है पेट्रोल, डीजल औऱ गैस के भाव बढ़ते है तो ऐसा  लगता है जैसे हमारी पीठ पर कोई प्रहार कर रहा है दाम बढ़ते हैं तो यह न केवल व्यक्तिगत रूप से लोगो की परेशानी का सबब बन रहा है बल्कि संपूर्ण देश की अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रहा ह.ै पिछले कुछ वर्षों से शुरू के महीने में तो पेट्रोल और डीजल के दाम में एक मामूली सी स्थिरता थी जो आगे चलकर एक आम समस्या के रूप में बदल गई लोगों का दैनिक जीवन इससे प्रभावित होने लगा क्योंकि पेट्रोल और डीजल दोनों ही आज उसी प्रकार से लोगों के जीवन का अंग बना हुआ है जैसे मोबाइल के बिना लोगों का  रहना मुश्किल हो जाता है. पिछले कुछ समय से सरकार ने तेल कंपनियों पर से नियंत्रण हटा लिया है इसका कंपनी जमकर फायदा उठा रहे हैं लेकिन जेब ढीली हो रही है उपभोक्ताओं की. तेल गैस में बढ़ोतरी का प्रभाव उन लोगों पर पड़ा है जो गरीब व मध्यम वर्ग के हैं,उपभोक्ता किससे अपनी शिकायत करे और कौन उसकी मदद के लिए तैयार है यही देखने में अपना समय व्यतीत कर रहा है. पेट्रोल पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बहुत ज्यादा बढ़ गया है और लोगों के लिए यह असहनीय भी बन गया .नई सरकार ने सत्ता संभालते वक्त  वादा किया था कि वह  पेट्रोल के भाव में कमी करेगी -कमी की बात तो दूर पेट्रोल डीजल अब इतना महंगा होता जा रहा है कि इससे अब लोग दूर रहने की सोचने लगे हैं राजधानी दिल्ली जैसे शहर में जब पेट्रोल 70 -75 के पार निकल सकता है तो उन राज्यों की स्थिति का अंदाज लगाया जा सकता है जहां जीएसटी व सेवा कर लगाकर पेट्रोल डीजल बेचा जा रहा है. जब भी पेट्रोल डीजल के भाव में वृद्धि की बात आती है तो उसमें देर नहीं की जाती  किंतु जब भी घटाने की बारी आती है तब कोई न कोई बहाना बनाकर कंपनियां और सरकार दोनों ही हीला हवाला करती है, हाल के दिनों में यह बात कही जा रही है कि पेट्रोल डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाया जाएगा अगर जी एस टी में लाना ही है तो देरी क्यो? यह तो ठीक वैसा ही हो रहा है जैसा पहले कई वस्तहुओ को 28 प्रतिशत के दायरे में लाकर 18 प्रतिशत किया गया जो पैसा उपभोक्ता से सरकार ज्यादा वसूल करती है वह उसे ऐसी स्थिति में वापस लौटने का प्रबंध क्यो नही करती ?आज की स्थिति में पेट्रोल डीजल के भाव रोज उतार चढ़ाव पर हैं किंतु पिछले कुछ दिनों से लगातार इसमें हो रही  वृद्धि चिंता का विषय है क्योंकि पेट्रोल की कीमत इससे पहले कभी 70-75  से ऊपर तक नहीं गया,कच्चे तेल के भाव भी इतना नहीं चढ़ा है जो देश में तेल के भावों को वृद्वि करें. लोगों की निगाह सरकार पर है कि वह अगर पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाती है तो कितना फायदा आम लोगों को होगा किंतु जिस ढंग से पेट्रोल के भाव को कंपनियां सो रुपए तक ले जाने का प्रयास कर रही है तो उससे तो ऐसा  लगता है  कि आगे इसे उस मुकाम तक पहुंकरकर कम किया जाएगा ताकि कंपनियों का इसका फायदा मिले  जीएसटी के दायरे में होने के बावजूद भी आम आदमी को इससे कोई फायदा होगा होता लगता. स्टेट सर्विस टैक्स मुंह बाये खड़ी है. आगे भी खाई पीछे भी खाई. अगर केंद्र की सख्ती पर राज्य सर्विस टैक्स खत्म कर देते है तभी इसका फायदा आम लोगो मिलेगा  इन परिस्थितियों में हम इस बात का स्पष्ट संकेत दे सकते हैं कि  आगे आने वाले वर्षों में भी अगर भाव कम हुआ तो भी  इतना कम नहीं होगा  जितनी हम कल्पना कर बैठे हैं.





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