किस्मत बदलती है,दाना अब खुशहाल लेकिन...!




मनुष्य जीवन के बारे में बहुत सी बाते कहीं गई हैं-कहा जाता है कि इंसान पैदा होते ही अपने कर्मो का सारा फल अपने साथ लेकर आता है. यह भी कहा जाता है कि जिसके किस्मत में जो हैं उसे मिलकर ही रहेगा. यह भी कहा गया है कि मनुष्य को अपने कर्मो का फल भी इसी जन्म में भोगना पड़ता है.हम जब ऐसी बातों को  सुनते हैं तो लगता है कि कोई हमें उपदेश दे रहा है या फिर ज्ञान बांट रहा है, किन्तु जब हम इसे अपने जीवन में ही अपनी आंखों से देखते व सुनते हैं तो आश्चर्य तो होता ही है कि वास्तव में कुछ तो है जो सबकुछ देखता सुनता और निर्णय लेता है. यह बाते हम उस व्यक्ति के बारे में कह रहे हैं जिसने पिछले साल पैसे न होने के चलते अपनी पत्नी की लाश को 10 किलोमीटर तक पैदल अपने कंधे पर ढोने के बाद अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में प्रमुख स्थान प्राप्त किया था. ओडिशा के गरीब आदिवासी दाना मांझी की जिंदगी साल भर में अब पूरी तरह बदल चुकी है. उसकी गरीबी अब उसका पीछा छोड़ चुकी है.इसी सप्ताह मंगलवार पांच तारीख को मांझी कालाहांडी जिले के भवानीपटना से अपने घर तक उस होन्डा  बाइक पर सफर करता हुआ पहुंचा ,जिसे उसने शो रुम से 65 हजार रुपये मेे खरीदा.जिस सड़क से वह पहुंचा यह वही सड़क थी ,जिस पर पिछले साल इस उस समय  के  गरीब मांझी ने अपनी बेटी के साथ पैदल कंधे पर अपनी पत्नी अमांग देई का कपड़े में लिपटा शव लेकर पैदल 10 किलोमीटर चलकर घर आया था ,क्योंकि उसके पास गाड़ी वालों को देने के लिए पैसे नहीं थे. दुर्भाग्य यह भी कि ओडिशा के जिस जिला अस्पताल में देई का इलाज चल रहा था उसमें एम्बुलेंस की सुविधा तक नहीं थी.तब के गरीब की उस तस्वीर के सामने आने के बाद पूरी दुनिया उसे देखकर सन्न रह गई जिसके बाद बहरीन के प्रधानमंत्री समेत दुनियाभर से मांझी के लिए तिजोरी खोली गई .पैसों की बरसात  के बाद मांझी की गरीबी अब उससे काफी पीछे छूट गई है.मांझी को प्रिंस खलीफा बिन सलमान अल-खलीफा की तरफ से 9 लाख रुपये दिए गए.दिल्ली के फाइव स्टार होटल अशोका में दाना मांझी को लेकर कलिंगा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज नाम की एनजीओ के लोग पहुंचे थे, तब वह उन्हीं कपड़ों में था जैसा  उसे तस्वीरों में देखा गया था, लेकिन अब दाना मांझी के बच्चों को कलिंगा इंस्टीट्यूट एनजीओ ने अपने संस्थान में पढ़ाने का फैसला किया है. मांझी के तीन बच्चे 13 साल की चांदनी, 7 साल की सोनई और 4 साल की प्रमिला है. उन्हें शिक्षण संस्थान की तरफ से मुफ्त पढ़ाई के ऑफर के बाद मांझी की तीनों बेटियां भुवनेश्वर के रेसिडेंशियल स्कूल में पढ़ रही हैं. दाना मांझी ओडिशा के उस इलाके का रहने वाला हैं जहां पर बारिश काफी कम होती है और अकाल और सूखे के चलते जंगल और जमीन से वंचित आदिवासियों का बुरा हाल है. जिस मांझी के पास एक बैंक अकाउंट तक नहीं था उसके पास आज काफी पैसे फिक्स्ड डिपॉजिट में हैं, जो पांच साल बाद मैच्योर होंगे. यहां तक कि जिस प्रशासन पर अक्सर लोग अनदेखी का आरोप लगाते हैं उसकी तरफ से भी मदद का हाथ बढ़ा और मांझी को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत घर का आवंटन किया गया. इस वक्त घर का निर्माण चल रहा है और मांझी आंगनबाड़ी विलेज सेंटर में रह रहा है. इस दौरान मांझी ने दोबारा शादी भी कर ली. मांझी की नई पत्नी  अलामति देई इस वक्त गर्भवती है. बहरहाल सभी को इस खबर से खुश होना चाहिये कि एक गरीब परिवार की जिंदगी बन गई ,लेकिन सवाल यह भी उठता है कि मांझी की तरह ऐसे कितने लोग है जो आज भी इसी तरह या इसी हाल में जिंदगी बसर करते हैं जब मांझी के इस हाल की खबर प्रसारित हुई थी उस समय संवेदनशीलता और सिस्टम के नक्कारेपन पर खूब बहस हुई और सरकार को कोसा गया. सही भी था किन्तु हमारे आसपास रहने वाले ऐसे लोगों के लिये क्यों अपने ही लोग सामने नहीं आते?  प्रिंस खलीफा ने जब दाना मांझी के बारे में पढ़ा तो उन्हें बेहद दुख हुआ.वे इस देश के नहीं होने के बाद भी हमारे देश के ऐसे हाल पर दुखी हुए किन्तु उनसे भी ज्यादा या उनके समान कितने ही अमीर लोग हमारेे देश में रहते हैं. क्या उन्हें यह सब नहीं दिखता? देश के एक-एक ऐसे गरीब को भी एक-एक लाख  उनके खजाने से निकालकर दें तो क्या मांझी की तरह वे भी हमारे देश के सम्माननीय व पैसे वाले नागरिक नहीं बन सकते? दाना मांझी के यह शब्द आज भी लोगों के कानों में गूंज रहे हैं कि हॉस्पिटल ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया था और उनके पास बस यही एक चारा था कि वह पत्नी की लाश को खुद ही उठा कर अपने गांव की ओर चल पड़े .....!


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