अब जुड़ेंगी नदियां एक दूसरे से,देर हुई मगर लाभ होगा!




भारत की सारी बड़ी नदियों को आपस में जोडऩे का प्रस्ताव पहली बार इंजीनियर सर आर्थर कॉटन ने 1858 में दिया था.  कॉटन इससे पहले कावेरी, कृष्णा और गोदावरी पर कई डैम और प्रोजेक्ट बना चुके थे लेकिन तब के संसाधनों के बूते से बाहर होने के चलते यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी.1970 में तब इरिगेशन मिनिस्टर रहे केएल राव ने फिंर देश की नदियों को एक दूसरे से जोडऩे का प्रस्ताव दिया - वे चाहते थे कि एक नेशनल वॉटर ग्रिड बने ताकि गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में जहां ज्यादा पानी रहता है वह  मध्य और दक्षिण भारत के इलाकों में पानी की कमी को पूरा करें. अगर उस समय से यह योजना क्रियान्वित कर दी जाती तो आज देश की खुशहाली इतनी बढ जाती कि देश देखता रह जाता. एक अंदाज लगाइये उस समय से लेकर अब तक देश के उपयोग में लाया जा सकने वाला कितना पानी अब तक बह गया होगा.बहरहाल राव चाहते थे कि उत्तर भारत का अतिरिक्त पानी मध्य और दक्षिण भारत तक पहुंचाया जाए केंद्रीय जल आयोग ने उनकी इस योजना को तकनीकी रूप से अव्यावहारिक बताते हुए खारिज कर दिया.इसके बाद नदी जोड़ परियोजना की चर्चा 1980 में हुई. एचआरडी मिनिस्ट्री ने एक रिपोर्ट तैयार की थी.नेशनल परस्पेक्टिव फॉर वॉटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट नामक इस रिपोर्ट में नदी जोड़ परियोजना को दो हिस्सों में बांटा गया था- हिमालयी और दक्षिण भारत का क्षेत्र .1982 में इस मुद्दे पर नेशनल वॉटर डेवलपमेंट एजेंसी के रूप में एक्सपर्ट्स का एक ऑर्गनाइजेशन बनाया गया. इसका काम यह स्टडी करना था कि पेनिन्सुला की नदियों और दूसरे जल संसाधनों को जोडऩे का काम कितना प्रैक्टीकल है. एजेंसी ने कई रिपोर्ट्स दीं, लेकिन बात वहीं की वहीं अटकी रही. 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने देश की नदियों को जोड़े जाने का प्रस्ताव रखा था, इससे पूर्व भी समाजवादी पार्टी से जुड़े बडे नेता और जलबचाओं के लिये आंदोलनरत लोगों की इस मांग को सरकारें अस्वीकार करती रही किन्तु अब इस प्रस्ताव के साकार होने के आसार दिख रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठोस पहल की है उन्होनेे देश की नदियों को जोडऩे के लिए क दम उठा दिया है.इस योजना को क्रियान्वित करने के लिये 87 बिलियन डॉलर (करीब 5 लाख करोड़ रुपए) का प्रोजेक्ट हाथ में लिया है. एक महीने के भीतर इसपर काम भी शुरू हो जाएगा. योजना एक अच्छे मकसद को लेकर हाथ में ली गई है- इस प्रोजेक्ट का मकसद देश को बाढ़ और सूखे से निजात दिलाना है. 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने देश की नदियों को जोड़े जाने का प्रस्ताव रखा था तब  इसके असर को जानने के लिए एक कार्यदल का गठन किया गया था - अब नई सराकर बनने के बाद इसमें काम त्वरित गति से शुरू हुआ है और  योजना के पहले फेज को मोदी ने मंजूरी दे दी हैं प्लान के तहत गंगा समेत देश की 60 नदियों को इस कार्यक्रम के तहत एक दूसरे से जोड़ा जाएगा. इस योजना के बारे में उत्सुक प्राय: लोग यह उम्मीद करते हंै कि इससे किसानों की मानसून पर निर्भरता कम हो जाएगी और लाखों हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो सकेगी.बीते दो सालों से मानसून की स्थिति अच्छी नहीं रही है. भारत के कुछ हिस्सों समेत बांग्लादेश और नेपाल बाढ़ से खासे प्रभावित रहे हैं. इस साल भी मानसून या कहे कि पूरा क्लाइमेट ही अस्त व्यस्त है तथा कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति हैं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में तो भूमि का जलस्तर भी काफी कम हो गया है फसल भी पानी के अभाव में नष्ट होने लगी है.  नदियों को जोडऩे से खेतो को तो लाभ होगा ही  हजारों मेगावॉट बिजली पैदा होगी तथा उद्योगों को चलाने में भी गति मिलेगी.योजना के तहत फिलहाल केन नदी पर एक डैम बनाया जाएगा. 22 किमी लंबी नहर के जरिए केन को बेतवा से जोड़ा जाएगा. केन-बेतवा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एक बड़े हिस्से को कवर करती हैं. केन-बेतवा लिंक सरकार की प्रायोरिटी में है. पार-तापी को नर्मदा और दमन गंगा के साथ जोडऩे की तैयारी भी हो रही है. ज्यादा पानी वाली नदियों मसलन गंगा, गोदावरी और महानदी को दूसरी नदियों से जोड़ा जाएगा इसके लिए इन नदियों पर डैम बनाए जाएंगे और नहरों द्वारा दूसरी नदियों को जोड़ा जाएगा. वास्तविकता यह है कि सूखे और  बाढ़ पर कंट्रोल करने के लिए देश के पास इस समय यही एकमात्र रास्ता है. व्यवहारिक रूप से नदियों को जोडऩे  के प्लान में हमें कोई खामी नजर नहीं आती. इसमें अरबों डॉलर का खर्च आएगा काफी पानी वेस्ट भी होगा इसके लिये हमें सबसे पहले वॉटर कंजरवेशन पर जोर देना होगा.वहीं फॉरेस्ट रिजर्व के पास केन पर डैम बनाने से पर्यावरण को काफी नुकसान होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता. इससे भयंकर बाढ़ आ सकता है जिससे जंगल पर असर पड़ेगा लेकिन योजनाकार इसे नकारते हैं वे कहते हैं कि बाघों, वन्य जीवों और गिद्धों की सुरक्षा को ध्यान रखा गया है.


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