लड़की की बात वीसी सुन लेते तो क्या इतना बड़ा ववाल होता ?


बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में गर्ल्स स्टूडेंट्स पर किए गए लाठीचार्ज के मामले की जांच रिपोर्ट आ गई है जिसमें जांचकर्ता कमिश्नर ने यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन को जिम्मेदार बताया है वहीं, वाइस चांसलर (वीसी) ने कैम्पस में हुए लाठीचार्ज की बात को झूठा करार दिया है.आपस मे बातचीत नहीं रहने अथवा संवादहीनता तथा निर्णय लेने में अदूरदर्शिता के क्या दुष्परिणाम निकल सकते हैं यह बीएचयू की घटना से अपने आप सिद्व हो जाता है  परिसर के भीतर लड़कियों से छेडख़ानी की घटना की अनदेखी की गई उससे तो लगता है यह यहां आम बात है तथा अपरिपक्व प्रशासनिक अक्षमता का नतीजा भी. इस घटना के बाद इस विश्वविद्यालय की तानाशाही के कई और सबूत भी सामने आये हैं जिसमें छात्राओं की स्वतंत्रता और उनके मूल अधिकारों का हनन जैसी बातें भी है.  बीएचयू की बच्चियों ने महज अपनी सुरक्षा की मांग ही तो की थी, यही कहा था कि परिसर में, खासतौर से उन जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए जाएं, जहां से निकलने में उनको असुरक्षा का बोध होता है. उन्हें लगा कि कैमरे लगने से शायद परिसर में छेड़खानी रूके  और अराजकता पर अंकुश लग जाए. इस मामले में  वे गलत भी नहीं थीं असल में छात्राएं बेखटके घूमने की आजादी चाह रही थीं. शाम होते ही उनपर बाहर न निकलने की बंदिशें न थोपी जाएं तथा  कुछ गलत होने पर  शिकायत करने का अवसर उनके पास हो. वे चाहती थीं कि उनकी बातें संवेदना के साथ सुने किन्तु प्रशासन की अडियल नीति ने इतना बड़ा बवण्डर पैदा कर दिया कि पूरे देश में इसकी गूंज सुनाइ्र्र देने लगी. प्रधानमंत्री तक को हस्तक्षेप करना पड़ा और मुख्यमंत्री योगी ने छात्राओं पर डंडे बरसाने वाले पुलिस के कुछ अफसरों को इधर से उधर भी किया. संपूर्ण मामले पर अब जो जांच रिपोर्ट कमिश्रर ने दी है उसमें यूनिवर्सिटी प्रशासन को पूर्णत: दोषी ठहराया है. सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि देशभर में जब महिलाओं के यौन उत्पीडन की घटनाएं बढ़ रही है तब किसी विश्वविद्यालय से जब छात्राओं की सुरक्षा पर सवाल उठा तो शिक्षा जगत में बैठे विद्वानों ने इसे क्यों अनदेखा किया और उनकी मांगों पर मिल बैठकर समाधान निकालने की जगह आग में घी डालने का ही काम किया. पूरे मामले के विश£ेषण से ऐसे लगा जैसे   इस विश्वविद्यालय को चलाने वालों के लिये छात्राओं की यह मांग कोई नई नहीं थी क्येांकि शायद यह उनके हिसाब से  एक आम बात रही हो. विश्वविद्यालय में तो ऐसा होता ही रहता है? सबसे दुर्भाग्यजनक स्थिति जो सुनने में आई वह यह कि विश्वविद्यालय के कुलपति से जब अपनी बात रखने के लिये छात्राओं ने मार्च निकाला तो उसे पुलिस ने रोका. इतना बड़ा आंदोलन चला लेकिन पुलिस व्यवस्था पर यह प्रशन भी उठता है कि यहां महिलाओं को काबू में करने के लिये महिला पुलिस को क्यों नहीं लगाया और कार्यवाही क्यों पुरूष पुलिस वालों से कराई गई? हम समझते हैं विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ=साथ वाराणसी का प्रशासन भी इस मामले में दोषी है. साथ ही विश्वविद्यालय के कुलपति का अडियल रवैया भी इस पूरे मामले को तूल देने का कारण बना. यूनिवर्सिटी में आर्ट्स फैकेलिटी की एक लड़की ने उसके साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया था उसका कहना है कि गुरुवार रात बीएचयू कैंपस में उसके साथ तीन लड़कों ने छेड़छाड़ की थी. शोर मचाने पर भी 20 मीटर दूर खड़े सिक्युरिटी गार्ड्स ने कोई मदद नहीं की वार्डेन और चीफ प्रॉक्टर से शिकायत करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. क्यों इस शिकायत को अनदेखा किया गया?  इसके विरोध में यूनिवर्सिटी की लड़कियां शुक्रवार से धरने पर बैठी तब भी न विश्वविद्यालय प्रशासन ने और न ही वाराणसी प्रशासन हरकत में आया. बातचीत से हल निकालने की जगह शनिवार देर रात धरना दे रहे स्टूडेंट्स पर लाठीचार्ज किया गया स्वाभाविक था कि इसके बाद स्टूडेंट्स आक्र ोशित होते उन्होंने  कैम्पस में जमकर बवाल मचराया. .विश्वविद्यालय सिर्फ अध्ययन नहीं, वैचारिक आदान-प्रदान के मंच भी होते हैं. इन परिसरों में कई संस्कृतियां मिलती हैं ऐसे में, छात्र छात्राओं  को खुले व सुरक्षित माहौल की भी दरकार होती है। बीएचयू  विचारों के आदान-प्रदान के मामले में खासा उदार रहा है यहां का माहौल भी प्राय: ऐसी खबरों से सुर्खियों में नहीं रहा लेकिन हालिया सच यही है कि माहौल बदला है और असुरक्षा बोध छात्राओं की चिंता में शामिल हो चुका है- गड़बड़ यह भी हुई है कि यहां के प्रशासनिक तंत्र में सख्त, लेकिन छात्र-छात्राओं में स्वीकार्य व्यक्तित्व की कमी होती गई है. इस पूरे मामले में एक गंभीर बात यह हुई कि करीब एक हजार छात्र छात्राओं पर पुलिस ने कार्यवाही कर डन्हें अब अदालतों के चक्कर लगाने हेतु बाध्य कर दिया है.प्रशासन और पुलिस दोनों को इस मामले भी थोड़ा संवदेनशील होने की जरूरत है कि  शरारती तत्वों के के बीच किसी निर्दोष छात्र की जिंदगी न खराब हो.सवाल यह भी है कि क्या एक लड़की की शिकायत पर वीसी कार्रवाही का सिर्फ आश्वासन ही दे देते तो इतना बड़ा बवाल उठता?





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