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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

क्या जनहित पर लिये गये निर्णयों से जनता को फायदा हो रहा?

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इसमें दो मत नहीं कि नोट बंदी के बाद ही इस बात के कयास लगने शुरू हो गये थे कि इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत पड़ सकता है.आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के बाद यह लगभग स्पष्ट हो गया कि नोटबंदी का फायदा उतना नहीं हुआ जितनी कि सरकार ने उम्मीद की थी इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि आधे से ज्यादा ब्लेक मनी रखने वालों ने निजी और सहकारी बैंकों के जरिये अपने कालेधन को सफेद कर लिया. यह बात सरकार के छापों के बाद स्पष्ट भी हुई है. भ्रष्टाचार और कालेधन पर किये गये नोट बंदी प्रहार ने बहुत हद तक जमा कालाधन तो बाहर निकाला लेकिन जितनी उम्मीद थी उतना नहीं निकला.वास्तविकता यही है कि बंद किये नोट का एक बड़ा हिस्सा बैंको में जमा ही नहीं हुआ. हालाकि नोटंबदी के शुरूआती दौर में कुछ कु छ फायदा जरूर देखने को मिला लेकिन धीरे-धीरे जीडीपी में जो कमी आती गई उसने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह झकजोर कर रख दिया. सरकार ने ईधन के दाम को  कंट्रोल करने के लिये दैनिक दाम तय करने की नीति अपनाई कुछ समय तक पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए किन्तु अचानक  ही इसमें भारी तेजी आने लगी. एक्साइज ड्यूटी और वेट के भार ने आम लोगो के ल

लड़की की बात वीसी सुन लेते तो क्या इतना बड़ा ववाल होता ?

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बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) में गर्ल्स स्टूडेंट्स पर किए गए लाठीचार्ज के मामले की जांच रिपोर्ट आ गई है जिसमें जांचकर्ता कमिश्नर ने यूनिवर्सिटी एडमिनिस्ट्रेशन को जिम्मेदार बताया है वहीं, वाइस चांसलर (वीसी) ने कैम्पस में हुए लाठीचार्ज की बात को झूठा करार दिया है.आपस मे बातचीत नहीं रहने अथवा संवादहीनता तथा निर्णय लेने में अदूरदर्शिता के क्या दुष्परिणाम निकल सकते हैं यह बीएचयू की घटना से अपने आप सिद्व हो जाता है  परिसर के भीतर लड़कियों से छेडख़ानी की घटना की अनदेखी की गई उससे तो लगता है यह यहां आम बात है तथा अपरिपक्व प्रशासनिक अक्षमता का नतीजा भी. इस घटना के बाद इस विश्वविद्यालय की तानाशाही के कई और सबूत भी सामने आये हैं जिसमें छात्राओं की स्वतंत्रता और उनके मूल अधिकारों का हनन जैसी बातें भी है.  बीएचयू की बच्चियों ने महज अपनी सुरक्षा की मांग ही तो की थी, यही कहा था कि परिसर में, खासतौर से उन जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगवा दिए जाएं, जहां से निकलने में उनको असुरक्षा का बोध होता है. उन्हें लगा कि कैमरे लगने से शायद परिसर में छेड़खानी रूके  और अराजकता पर अंकुश लग जाए. इस मामले में  वे

गरीबी हटाने का लक्ष्य अभी कोसो दूर!

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भारत छोड़ो आंदोलन की 75 वीं वर्षगांठ पर संसद में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा था 1991 के बाद हर सरकार के दौर मे प्रगति हुई है प्रगति की दर बढ़ी है. गरीबी भी कम हुई है और जन-जीवन का स्तर भी लेकिन देश की सबसे बड़ी चुनौती गरीबी आज भी है.1991 के बाद नई सरकार ने रास्ता बदलने की कोशिश जरूर की लेकिन गरीबी हटाने का लक्ष्य अभी कोसो दूर है.जन-जीवन का स्तर सुधरा है. किन्तु आज भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो गरीबी रेखा से नीचे हैं. बड़ी आवश्यकता देश के  संसाधन बढ़े और जहां विकास नहीं हो रहा, उसके लिए काम करें. जिस वर्ग की बात अरूण जेठली ने की थी वह बड़ा वर्ग ऐसा है जो अशिक्षित है ऐसा व्यक्ति काम की कमी के कारण कुछ कार्य नहीं कर पाता उसके दिमाग में कुछ और ही घूमता रहता है.अधिकांश अपराधी प्रवृति की ओर बढ़ते हैं. दूसरा कारण विकास योजनाओं में कमी एवं उदासीनता है जिसके चलते भ्रष्टाचार की स्थिति बनती है .बाल मज़दूरी और दास प्रथा को समाप्त करने कानून जरूर बने लेकिन अमल कितना हुआ?गरीबी का एक बड़ा कारण जो हम देखते हैं वह है कृषी का पिछड़ा होना. उद्योगों को बढ़ावा देने के चक्कर में हम अपने अन्नदाताओ को भूल

ब्रांडेड दवाओं से तेरह गुना तक सस्ती दवा के खिलाफ कौन सी साजिश?

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ब्रांडेड दवाओं से तेरह गुना तक सस्ती दवा के खिलाफ कौन सी साजिश? जैनरिक दवाओं के मामले में भारत की गिनती दुनिया के बेहतरीन देशों में होती है. इस समय भारत  दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जैनरिक दवाओं  के उत्पादक  वाला देश है किन्तु कितने चिकित्सक ऐसे हैं जो अपनी पर्ची में जैविक दवा लिखते है ? भारत से हर वर्ष करीब बयालीस हजार करोड़ रुपए की जैनरिक दवाएं बाहर दूसरे देशों में जाती है.यूनिसेफ अपनी जरूरत की पचास फीसदी जैनरिक दवाइयां भारत से ही मंगाता है. भारत से कई अफ्रीकी देशों में सस्ती जैनरिक दवाइयां भेजी जाती है तथा आ भी  रही है. इससे यह बात तो साफ है कि भारत में आम जनता के लिए सस्ती जैनरिक दवाइयां आसानी से बनाई व बेची जा सकती हैं किन्तु ऐसा सही ढंग से हो नहीं रहा.जैनरिक दवाओं  पार आम लोगों का विश्वास बढ़ाने और जैविक दवा के इस्तेमाल के लिये प्रेरित करने के लिये यह जरूरी है कि शासन स्तर पर चलाये जाने वाले अस्पताल ये दवाएं अपने मरीजों को मुफ्त में दें तथा प्रायवेट चिकित्सक अपनी पर्ची में कुछ नहीं तो कम से कम एक दवा जरूर लिखे और मरीज के परिवार को भी समझाये कि इससे क्या फायदे हैँ. बहुत से लोग

क्यों बन गये हैं भारत के लिए रोहिग्या सिरदर्द?

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एक सरदर्द हमारे ऊपर उस इंटेलिजेंस रिपोर्ट के बाद और बढ़ गया जिसमें कहा गया है कि भारत-म्यांमार बॉर्डर पर कड़ी सुरक्षा के बीच रोहिंग्या मुसलमान पेशेवर तस्करों की मदद से समुद्र के रास्ते देश में घुसपैठ कर सकते हैं. रोहिंग्या मुसलमान स्थानीय एजेंसियों द्वारा उत्पीडऩ और स्थानीय बौद्ध आबादी के साथ उनके विवाद के बाद 2012 से म्यांमार भाग रहे हैं.यहां तक तो ठीक है किन्तु आतंकवादी संगठन इसका फायदा उठाने की कोशिश में लगे हैं. बंगलादेश  शरणार्थियों को झेल चुके भारत के लिये और शरणार्थियों को झेल पाना कठिन ही नहीं सभव भी नहीं है. यूं ही आबादी का बोझ हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है वहीं आंतकवादी गतिविधियों को हम न केवल सीमा पर झेल रहे हैं बल्कि यह हमारी एक आंतरिक समस्या भी बनी हुई है.आज की स्थिति यह है कि 40 हजार रोहिंग्या असम, वेस्ट बंगाल, जम्मू, यूपी और दिल्ली के कैंप में रह रहे हैं.जबकि रोहिंग्या बंगाल जैसे क्षेत्रों से घुसपैठ करने की हर संभव कोशिश में लगे हैें. इसमें यह पहचानना कठिन है कि कौन सही शरणार्थी है और कौन आंतक के खेमे से आकर शामिल हुआ है अत: हमें क्या किसी भी दूसरे देश को

रफतार की नई तकनालाजी...लो आ गई बुलेट ट्रेन!

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रफतार की नई तकनालाजी...लो आ गई बुलेट ट्रेन! भारत में इस गुरूवार को जापान और भारत के बीच रफतार की एक नई तकनालाजी का उदय हुआ है. इसमें दो मत नहीं कि जब भी हमारे देश में कुछ इस तरह की तकनालाजी या संस्कृति कदम रखती है तो उसका पहले विरोध होता है जैसा पहले टीवी, कम्पयूटर का हुआ. हाल ही ड्रायवर लेस कार ने ऐसे विरोध को हवा दी. परिवहन मंत्री ने तो यह तक कह दिया कि हम इस कार को भारत की धरती पर कदम रखने नहीं देंगे. इसी कड़ी में अब तेज रफतार से दौडऩे वाली बुलेट ट्रेन भी कई लोगों को रास नहीं आ रही है. इसके पीछे छिपे कुछ कारण भी है जिसपर गौर करने की जरूरत है. भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवा होने के बावजूद सुविधाओं, सुरक्षा और किराये के मामले में सदैव आलोचना का शिकार रही है. ऐसे में हाल के कुछ दिनों में आम जनता को लेकर जाने वाली ट्रेनों का बेपटरी होना भी इस नई आधुनिकता को निशाने पर ले रहा है. अहमदाबाद और मुम्बई के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन का फायदा आम जनता को कितना मिलेगा यह अपने आप में प्रश्र है वहीं इसपर खर्च होने वाली राशि पर लगने वाला ब्याज भी किसी को रास नहीं आ रहा है. हम अपने द

न्याय में देर है अंधेर नहीं...देरी अब चुभने लगी है!

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घिनौने और क्रूर अपराधों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है. इसमें दो मत नहीं कि देश के कानून ने क्रूरतम अपराधों में लिप्त लोगों को बख्शा भी नहीं किन्तु न्याय प्राप्ति में देर अब भी एक समस्या बनी हुई है इसके पीछे मौजूद कारण बताने की जरूरत नहीं. न्यायधीशों की कमी और ज्यादा मामले इसके पीछे एक कारण रहा है. अब धीरे धीरे इस समस्या का समाधान जरूर हो रहा है किन्तु अभी भी अपराध की गति में कोई कमी न आना चिंता का विषय है शायद इसके पीछे एक कारण यह भी है कि हमारा कानून अन्य देशों की बनस्बत कुछ रहम दिल है इसका फायदा उठाकर अपराधी जघन्य अपराध करने से भी नहीं चूकते. बीते वर्षो में कुछेक ऐसे मामले हुए जो मानवता को शर्र्मसार करने वाली थी जिसमें से अधिकांश में आरोपियों को सख्त से सख्त सजा भी मिली. कुछ को तो फांसी पर भी लटकाया गया लेकिन इसके बाद भी अपराधों का ग्राफ कम न होना चिंता का विषय है. इंडियन नेवी के अधिकारी के दो बच्चों गीता चोपड़ा साढ़े16 वर्ष और संजय चोपड़ा 14 वर्ष का 28 अगस्त 1978 को अपहरण और बलात्कार के बाद हत्या हुई- दो अपराधी बिल्ला और रंगा पकड़े गये मुकदमा चला तथा करीब चार साल बाद 31 जनवरी 1982 को

अब जुड़ेंगी नदियां एक दूसरे से,देर हुई मगर लाभ होगा!

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भारत की सारी बड़ी नदियों को आपस में जोडऩे का प्रस्ताव पहली बार इंजीनियर सर आर्थर कॉटन ने 1858 में दिया था.  कॉटन इससे पहले कावेरी, कृष्णा और गोदावरी पर कई डैम और प्रोजेक्ट बना चुके थे लेकिन तब के संसाधनों के बूते से बाहर होने के चलते यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी.1970 में तब इरिगेशन मिनिस्टर रहे केएल राव ने फिंर देश की नदियों को एक दूसरे से जोडऩे का प्रस्ताव दिया - वे चाहते थे कि एक नेशनल वॉटर ग्रिड बने ताकि गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में जहां ज्यादा पानी रहता है वह  मध्य और दक्षिण भारत के इलाकों में पानी की कमी को पूरा करें. अगर उस समय से यह योजना क्रियान्वित कर दी जाती तो आज देश की खुशहाली इतनी बढ जाती कि देश देखता रह जाता. एक अंदाज लगाइये उस समय से लेकर अब तक देश के उपयोग में लाया जा सकने वाला कितना पानी अब तक बह गया होगा.बहरहाल राव चाहते थे कि उत्तर भारत का अतिरिक्त पानी मध्य और दक्षिण भारत तक पहुंचाया जाए केंद्रीय जल आयोग ने उनकी इस योजना को तकनीकी रूप से अव्यावहारिक बताते हुए खारिज कर दिया.इसके बाद नदी जोड़ परियोजना की चर्चा 1980 में हुई. एचआरडी मिनिस्ट्री ने एक रिपोर्ट तै

पेट्रोल,डीजल की कीमतों में कमी ही हमारी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लायेगी

 यू.एस. सहित कुछ देशों में इन्वैंट्री बढऩे और वल्र्ड मार्के ट में सप्लाई बढऩे से 1 महीने में क्रूड 10 प्रतिशत से ज्यादा सस्ता हुआ है इस सप्ताह गुरूवार को क्रूड 49 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया जो पिछले 4 हफ्तों का लो लैवल है, दूसरी ओर इराक ने साफ  कर दिया है कि वह आगे क्रूड प्रोडक्शन बढ़ाने जा रहा है इससे भी कच्चा तेल सस्ता होने से 1 मई को होने वाली तेल मार्कीटिंग कम्पनियों की पाक्षिक समीक्षा के दौरान पैट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम कम होने  की संभावना व्यक्त की जा रही है. कुछ और ओपेक देशों के भी ईराक की राह पर चलने से इंकार नहीं किया जा सकता. फिलहाल जो स्थिति बनी है वल्र्ड मार्केट में क्रूड सस्ता होने का फायदा इंडियन कंज्यूमर्स को मिलेगा. आगे क्रू्रड और सस्ता होता है तो सरकार पैट्रोल-डीजल की कीमतों को और कम कर सकती है यह जनता की सरकार से उम्मीद भी है.हमारे देश  में शुरू से अर्थव्यवस्था एक तरह से तेल के भावों पर ही निर्भर रहता है. तेल के भाव बढऩे के साथ साथ वस्तुओं के भावों में भी वृद्वि होना शुरू हो जाती है इसमें कुछ वजह तो लोग कृत्रिम रूप  से भी बना लेते हैं जिसका बहाना भी पेट्रोल डीज

डोकाला विवाद के बाद क्या सब कुछ ठीक!

डोकाला विवाद के बाद क्या सब कुछ ठीक! यह एक अच्छी खबर इस सप्ताह के शुरू में मिली कि चीन और भारत के बीच डोकाल मामले पर तनाव खत्म हो गया है ओैर दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने का निर्णय लिया है. दोनों देश खासतौर से एशिया व अफ्रीका में अपने ढांचेगत संपर्क को बढ़ाने में जुटे हैं. सवाल यह है कि ऐसे कदमों को क्या हम हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ ही देखेंगे? डोका ला विवाद सुलझाने में चीन ने जैसा रवैया दिखाया है और पड़ोसी देशों से जुड़े हमारे संबंध व हितों को लेकर अपनी थोड़ी परिपक्वता का परिचय दिया है, उससे भरोसा होता  है कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ सकती है. इस सप्ताह की शुरूआत में जब भारतीय  विदेश मंत्रालय की तरफ से यह बयान आया कि डोका ला से भारत व चीन, दोनों देशों की सेनाएं लौट रही हैं, तो उसके चंद घंटों पहले ही यह खबर भी आई थी कि गुरमीत राम रहीम के बहाने डोका ला विवाद को लेकर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर तंज कसा है. ग्लोबल टाइम्स  का रुख यही बता रहा था कि चीन अंत तक भारत पर अपनी सेना वापस लौटाने का दबाव बनाता रहा, मगर भारत ने भी अपनी स्थिति साफ कर दी थी कि

मैरिटल रेप: केन्द्र की दलील मे दम तो है...

मैरिटल रेप: केन्द्र की दलील मे दम तो है... केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार को अपराध करार देने के लिए दायर की गई याचिका के खिलाफ़ कहा कि इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है. केन्द्र की दलील में दम है. सरकार ने कहा है कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं करार दिया जा सकता है, ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है तथा पतियों को सताने के लिए पत्नी के पास ये एक आसान औजार हो सकता है.भारतीय दंड विधान या आईपीसी की धारा 375 के तहत कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ अगर इन छह परिस्थितियों में यौन संबन्ध बनाता है तो कहा जाएगा कि रेप किया गया.1. महिला की इच्छा के विरुद्ध 2. महिला की मर्जी के बिना 3. महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति उसे मौत या नुक़सान पहुंचाने या उसके किसी करीबी व्यक्ति के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर हासिल की गई हो. 4. महिला की सहमति से, लेकिन महिला ने ये सहमति उस व्यक्ति की ब्याहता होने के भ्रम में दी हो. 5. महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति देते वक्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो या फिर उस पर किसी नशीले पदार्थ का प्रभाव हो और लड़की कं

ईधन की बढ़ती कीमतें! बर्दाश्त से बाहर..

गुरुवार से पेट्रोल की कीमत में 1.23 रुपये प्रति लीटर तथा डीजल की कीमत में 89 पैसा प्रति लीटर का इजाफा हो गया. पिछली बार पेट्रोल की कीमत में 1 पैसा प्रति लीटर और डीजल की कीमत में 44 पैसा प्रति लीटर की वृद्धि हुई थी. इससे पहले 16 अप्रैल को पेट्रोल के दाम में 1.39 रुपये प्रति लीटर और डीजल के दाम में 1.04 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हुई थी. इस समय आम आदमी की एक बड़ी परेशानी यही है. दाम लगातार बढ़ रहे हैं.इसके बावजूद कि अमरीका और अरब देशों से क्रूड आइल के मामले में समझौते हुए हैं.इस बीच धर्मेन्द्र प्रधान का यह बयान की टैक्स में कोई कमी नहीं होगी लोगो के गुस्से को और बढ़ा रहा है.  जुलाई से अब तक पेट्रोल के मूल्योंं में 6 रुपये की बढौत्तरी हो चुकी है  इस समय पेट्रोल की दर तीन साल के अपने उच्च स्तर पर है. पेट्रोल कीमतों में प्रतिदिन मामूली संशोधन होता है. जो बढ़कर आज उच्च स्तर पर पहुंच रहा है. सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों के आंकड़ों के अनुसार जुलाई की शुरुआत से डीजल की कीमतों में 3.67 रुपये लीटर की बढ़ोतरी हुई है. इस समय डीजल  अपने चार महीने के उच्च स्तर पर है. 16 जून के बाद से सि