नन्हीं बच्चियों की चीख .... कानून कब तक यूं अंधा बहरा बना रहेगा?



इज्जत किसे प्यारी नहीं होती...किसी महिला की इज्जत उसकी जिंदगी होती है और कोई अगर इसी को लूट ले तो फिर उसके जीने का मकसद ही खत्म हो जाता है. कुछ अपवादों को छोड़कर हमारे समाज में महिलाएं पुरूषों के मुकाबले बहुत कमजोर होती है जबकि समाज ने झांसी की रानी दुर्गावती जैसी  सिंहनियों को भी देखा है मगर सारी महिलाएं वैसे नहीं हो सकती. उनमें से कइयों पर जो अत्याचार होते हैं उसकी निंदा करने वाले, उनको मुआवजा देने वाले तो बहुत सामने आ जाते हैं लेकिन समाज का एक बड़ा तबका ऐसा भी तो हैं जो हम सबके ऊपर सारे अत्याचारों को अपनी आंखों से देखता है,सुनता है और निर्णय करने की क्षमता रखता है. यह वर्ग ऐसे कानून भी  बना सकता है जो अबलाओं पर अत्याचार को रोकने में सक्षम है फिर उनके सामने कौन सी मजबूरी है जो वो समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को यह कहकर संरक्षण नहीं दे पा रहा जिसके कारण छोटी- छोटी  बच्चियां तक असुरक्षित हो गई. आज बड़ी बड़ी बाते करने वाली हमारी सरकारों की नाक के नीचे एक छोटी सी बच्ची मसल दी जाती है उसे खरोच डाला जाता है फिर भी  हमारा कानून ऐसे जालिमों को वह सजा नहीं दे पाता जिसके वे वास्तव में हकदार हैं.नतीजतन आज स्थिति ऐसे आ गई है कि बच्चियां अपने ऊपर होने वाले अत्याचार से तंग आकर शरीर को आग के हवाले कर देती है या फिर किसी ऊंची मंजिल से कूदकर जान दे दती है या फिर जहर खाकर खुदकुशी कर लेती है अथवा अपने कपड़े के किसी अंग को खीचकर गले में बांधकर अपनी इंहलीला खत्म कर देती है फिर भी हमारे चुने हुए लोग अपने पौराणिक घटिया कानून को संवारकर उसकी ही दुहाई देते हैं कि वह कमजोर है. दुख इस बात का है कि लोग आज इतने असहनशील हो गये हैं कि उनपर न मध्यप्रदेश की ग्यारह साल की बच्ची के साथ हुए यौन अपराध का कोई प्रभाव पड़ता है और न महासमुन्द के पिरदा की उस विवाहिता महिला की चीख सुनाई देती है जिसे दुष्कर्मी उसके घर से उठाकर ले जाकर जंगल में उसके साथ मुंह काला करते हैं.हम इस बात का दावा जरूरत करते हैं कि हमारे देश की आबादी एक अरब बीस करोड़ से ज्यादा है.इस आबादी में मुटठीभर लोग ऐसे हैं जो किसी बच्ची का यौन शोषण करने के आरोपी है, कुछ ही ऐसे हैं जो दुराचारी की श्रेणी में आते हंै इन दस में से दो को भी ऐसे दुष्कर्म के बाद बीच चोराहे पर लटकाकर इस दुनिया से रूकसत कर दिया जाये तो किसी दूसरे दुष्कर्मी की हिम्मत नहीं पड़ेगी कि वह किसी अबला को घूर कर भी देख सके. हर अमन पंसद व्यक्ति की आंखे भर आई होंगी जब उसने सुना कि  मध्य प्रदेश के इटारसी में गैंगरेप की शिकार एक 11 साल की बच्ची ने जेल से छूटे आरोपी के डर से खुद पर केरोसिन उडेलकर आग लगा ली. बच्ची को अधजली हालत में पिता मोटर साइकिल पर 10 किमी दूर इटारसी अस्पताल लेकर पहुंचे .... करीब 40 परसेंट जल चुकी बच्ची ने जो बताया वह भी हमारे कानून की खामियां गिनाता है-कहती है- एक आरोपी जेल से छूट चुका है, दूसरा भी छूट जाएगा मुझे हमेशा डर रहता है कि वे मुझे मार देंगे.छठवीं की स्टूडेंट् कितनी बड़ी होती है उससे 8 महीने पहले खेत में गैंगरेप हुआ था. आरोपी गांव के ही कम उमर के लड़के हैं. क्या ऐसे लोगों को इस समाज में जीने का अधिकार है? अगर हम रोज होने वाली वीभत्स घिनौनी घटनाओं का जिक्र करें तो आंखे भर आयेंगी.उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक परिवार की महिला सदस्यों के साथ सरे आम गेंग रेप की घटना की स्याही अभी सूखी भी नहीं कि महासमुन्द की उस विवाहिता का क्या कसूर था कि दुष्कर्मियो ने उसे उसके घर से उठाकर कहीं का न छोड़ा. दुष्कर्म के बाद उसका वीडियों बनाया ओर उसके प्रायवेट पार्टस को लहूलुहान कर दिया. एक राष्ट्रीय पार्टी का पदाधिकारी इस मामले में लिप्त है शक नहीं कि उसके पूरे प्रभाव का इस्तेमाल होगा और पतली  गली से निकलकर फिर उसी तरह धमायेगा जिस तरह इटारसी की बच्ची के साथ हुआ. हरियाणा रोहतक में भी ऐसा हुआ था. हम अपने वेतन बढ़ाने में कोई देर नहीं करते फिर ऐसे पुराने कानून को बदलने में देर क्यों करते हैं? जो लोग पिंजरे में रहने के आदी होते हैं उन्हें जिंदगीभर पिंजरें में ही रखने का कानून बनाया जाये और जो इसके बाद भी नहीं माने उसे जेल में पूर्ण ऐशोआराम देने की जगह रस्सी पर टांग दिया जाये. समाज में किसी के भी अपनों के साथ  ऐसी घटना हो सकती है जो लोग हमेशा बंदूकधारियों की सुरक्षा में घिरे रहते हैं उनकी बात छोड़ दीजिये उनको  कोई खतरा नहीं  लेकिन आम आदमी जिसे सुरक्षा चाहिये उसे अब सामने आना ही होगा.

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