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ं शिक्षा के मंदिर में बड़े पुजारी की तानाशाही...क्यों सिस्टम फैल है यहां?

ं शिक्षा के मंदिर में बड़े पुजारी की तानाशाही...क्यों सिस्टम फैल है यहां? बहुमत नहीं तो सरकार नहीं चल सकती- डेमोक्रेटिक कंट्री में ऐसा होता है लेकिन डेमोके्रेटिक कंट्री के सिस्टम में ऐसा नहीं हो रहा. सिस्टम को चला रहे कतिपय लोगों के खिलाफ सारी प्रजा एक भी हो जाये तो सिस्टम उसे बनाये रखने में ही अपनी शेखी समझता है. अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से कुछ किलोमीटर दूर आदिवासी कांकेर जिले के गढ़ पिछवाड़ी सरस्वती शिशु मंदिर को ही लीजिये यहां का पूरा जनसमुदाय अर्थात इस शैक्षणिक मंदिर में पढऩे वाले बच्चे वहां का स्टाफ और शिक्षक सभी एक स्वर से मांग कर रहे हैं कि इस शिक्षा मंदिर के बड़े पुजारी अर्थात प्राचार्य को हटाया जाये लेकिन प्रशासन और सरकार दोनों कान में रूई डालकर छात्र-शिक्षकों और स्टाफ को मजबूर कर रहा है कि वे आंदोलन करें. कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे एक व्यक्ति को किसी पद से हटा देने से वहां पहाड़ टूटकर गिर जायेगा. अगर बहुमत यह मांग कर रहा है तो उसे हटाने में क्यों देरी की जाती है. एक व्यक्ति अगर सारी व्यवस्था के लिये बोझ बनता है तो क्या हमारे देश में दूसरा कोई नौजवान नहीं है जो इस

आखिर सरकार को डिब्बा बंद सामान की याद तो आई!

आखिर सरकार को डिब्बा बंद सामान की याद तो आई! कहतेे है न 'बेटर लेट देन नेवरÓ अर्थात देर आये दुरूस्त आये- सरकार ने देर से ही सही  डिब्बा बंद सामग्रियों के बारे में संज्ञान तो लिया. डिब्बा बंद सामग्रियों की मनमर्जी अब बंद होनी चाहिये यह आम लोगों की मांग है. जिस प्रकार खाद्य सामग्रियों व अन्य दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर कं पनिया मनमर्जी चलाती है उसपर रोक लागने के लिये सरकार ने अब अपना पंजा फैला दिया है. डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों पर ब्योरा पढऩे लायक हो- पहली बार इसपर गौर किया गया है. दूसरा और तीसरा कदम इसके बाद उठ सकता है, जिसमें डिब्बा बंद सामग्रियों की  क्वालिटी कैसी है, सही बजन है या नहीं इसको बनाने में कौन कौन सी  सामग्रियों का उपयोग किया गया है. इसकी कीमत अन्य प्रोडक्टस की  तुलना में कितना बेहतर है आदि तय करने की जिम्मेदारी भी सरकार को तय करना है.फिलहाल सरकार की योजना है कि 2011 के पैकेजिंग नियमों में संशोधन किया जाये इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों का पूरा ब्योरा स्पष्ट और पढऩे लायक हो साथ ही सरकार नकली सामानों से ग्राहकों के हितों के संरक्षण के लिये

इतना पैसा रखकर भी हम अपने खिलाडियों को क्यों नहीं सवार पाते?

इतना पैसा रखकर भी हम अपने खिलाडियों को क्यों  नहीं सवार पाते? किसी को इस बात पर कोई जलन या अफसोस नहीं होना चािहये कि रियो ओलंपिक में जीतने वाली  सिंधु और साक्षी पर इनामों की बौछार हो रही है,किसी को इस बात का भी अफसोस नहीं होना चािहये कि पीवी सिंधु को तेलंगाना सरकार ने पांच करोड़, आंध्र प्रदेश सरकार ने तीन करोड़, दिल्ली सरकार ने दो करोड़, मध्यप्रदेश सरकार ने पचास लाख के अलावा तीन करोड़ रुपये और अन्य खेल संगठनों ने भी पैसा देने का ऐलान किया है. किसी को इस बात का भी कोई मलेह नहीं होना चाहिये कि आंध्र सरकार ने भी उन्हें एक हजार वर्ग गज जमीन और ए-ग्रेड सरकारी नौकरी  देने का फैसला किया है. दूसरी रेसलर साक्षी मलिक जिसने कुश्ती में एक पदक जीत हासिल की  को भी  हरियाणा सरकार ने 2.5 करोड़, दिल्ली सरकार ने एक करोड़ और तेलंगाना सरकार ने  एक करोड़  रुपये देने का फैसला लिया-साक्षी को रेलवे 50 लाख और पदोन्नति देगा जबकि उनके पिता का भी प्रमोशन होगा.ऐसा होना चाहिये लेकिन यह प्रोत्साहन जीतने के बाद ही क्यों? उससे पहले प्रतिभाओं को क्येंा दबोचकर रखा जाता है? काश! खिलाडिय़ों को संवारने पर भी देश की संस्

मंहगाई के दौर में नई आशाओं के साथ आये उर्जित पटेल!

उर्जित पटेल होंगे रिजर्व बैंक आफ इंडिया के नये गवर्नर. रघुराम राजन  के बाद नया गवर्नर  कौन होगा इसकी चर्चा उसी समय शुरू हो गया थी जब स्वामी विवाद के बाद रघुराम राजन ने आगे अपना कार्यकाल जारी रखने से अनिच्छा प्रकट कर दी थी. भारी ऊहापोह के बाद अंतत: भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल को आरबीआई का 24वां गवर्नर घोषित कर दिया गया. रघुराम राजन  चार सितंबर को पदमुक्त होंगे इसके बाद पटेल उनका  स्थान लेंगे. भारतीय रिजर्व बैंक में गवर्नर  नियुक्ति को  लेेकर इतनी ऊहा पोह शायद इससे पहले कभी देखने को नहीं मिली. शायद रिजर्व बैंक के इतिहास  में यह पहला अवसर भी है जब इसमें गवर्नर की नियुक्ति को लेकर राजनीति ने भी अपना असर दिखाया. बहरहाल  52 वर्षीय उर्जित पटेल का अनुभव रिजर्व बैंक की कार्यप्रणाली से पूर्व से रहा है इसलि येभी इस पद पर नियुक्ति मामले में कोई नये विवाद की गुंजाइश नहीं दिखती.पटेल 11 जनवरी 2013 को रिजर्व बैंक में डिप्टी गवर्नर नियुक्त किये गये थे और इस साल जनवरी में उन्हें सेवा विस्तार दिया गया अर्थात यह भी कहा जा सकता है कि उन्हें अपने कामों के लिये प्रमोशन मिला हैं. रिजर्व

जनता के बीच के लोग...लेकिन जनता से कई आगे!

राजा महाराजाओं के दिन लद गये लेकिन हमारी व्यवस्था ने कई ऐसे महाराजा तैयार कर दिये जिनकी लाइफ स्टाइल किसी भी आम आदमी से कही ऊंची है-येह लोग अब भी प्राप्त सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं उन्हेें जनता की सेवा के लिये और पैसे चाहिये. यह चाहे वेतन में बढौत्तरी के रूप में हो, चाहे भत्ते के रूप में जबकि भारत की गरीब जनता जिनकी बदौलत यह सेवक बनकर ऊंची कुर्सियों पर विराजमान हैं उनमें से कइयों को तो कपड़े लत्ते और मकान की बात छोडिय़ें एक समय का खाना भी मुश्किल से नसीब होता है.उनके बच्चों की शिक्षा  के लिये कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं? और उनके बीमार पडऩे पर उन्हें क्या  क्या बेचना पड़ता है यह किसी  से छिपा नहीं है- आप  मौजूदा उच्च सदन की बात को ही ले लीजिये -442 माननीय करोड़पति बताए जाते हैं. एक माननीय की संपत्ति 683 करोड़ भी है. वहीं एक माननीय ऐसे भी है जिसकी संपत्ति मात्र 34 हजार रुपये है. ठीक हैं यह कम वेतन पाने वाले माननीय अपने वेतन और सुविधाओं में और वृद्वि की मांग कर सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है- सभी मांग कर रहे हैं कि वेतन बढ़ाया जाये. निचले सदन में इसी जून में 57 नए माननीय और जुड गये,

ओलंपिक खेलों में हमारी शर्मनाक स्थिति..साई कितना सही?

ओलंंपिक खेलों में हमारी शर्मनाक स्थिति के लिये आखिर हम किसे दोष दें.?खिलाडिय़ों को, व्यवस्था को हमारी परंपरा को,हमारी राजनीतिक व्यवस्था को या खेलों के प्रति युवाओं में उत्साह की कमी को? कारण इससे भी ज्यादा हो सकते हैं लेकिन मोटे तौर पर  जो कारण दिखाई देते हैं वह यह ही है जिसके चलते हम अपने दावे पर खरे नहीं उतर सके. 19 मेडल जीतने का था दावा, दस दिनों  बाद भी खाली हाथ हाकी की टीम सहित 37 से ज्यादा एथलीटस बाहर हो गये हैं. रही सही उम्मीद जिमनास्ट दीपा की पराजय के साथ पूरी हो गई. मेडल जीतने में वह भी कामयाब नहीं रही.भारतीय हाकी टीम  बेलजियम के हाथो पराजित होने के बाद ओलंपिक खेलों से बाहर हो गई. भारत से 119 प्लेयर्स 15 गेम्स में हिस्सा लेने गए थे आधे  से ज्यादा  का सफर बिना मेडल जीते खत्म हो गया,जबकि स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) ने ओलिंपिक की शुरुआत से पहले सरकार को भेजी रिपोर्ट में दावा किया था कि 19 मेडल जीते जा सकते हैं. भारत के खराब परफॉर्मेंस पर हालकि अधिकारिक तौर पर किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन चीन ने हमारी आलंपिक खेलों में शर्मनाक स्थिति पर अपने सरकारी मीडिया के जरिए जो

सरकारी कामों में पब्लिक दखल,क्या कर्मचारी सुरक्षित हैं?

अक्सर सरकारी दफतरों में यह आम बात हो गई है कि किसी न किसी बात को लेकर कर्मचारियों से बाहरी लोग आकर उलझ पड़ते हैं. इसमें दो मत नहीं कि कतिपय सरकारी कर्मचारी भी अपने रवैये से लोगों को उत्तेजित कर देते हैं किन्तु सभी इस तरह के नहीं होते. सरकारी काम लेकर पहुंचने वाले प्राय: हर व्यक्ति में सरकारी सेवक से गलत व्यवहार करने का ट्रेण्ड चल पड़ा है. देरी से होने वाले काम, सरकारी तोडफ़ोड, सरकार के बिलो केे भुगतान में देरी, रेलवे में बिना टिकिट के दौरान टी ई से झगड़ा और ऐसे ही कई किस्म के मामले उस समय कठिन स्थिति में पहुंच जाते हैं जब सरकारी सेवक अकेला पड़ जाता है और मांग करने वाले या सेवा लने वाले ज्यादा हो जाते हैं फील्ड में काम करने वाला पुलिस वाला भी कभी कभी ऐसे जाल में फंस जाता है कि कभी कभी तो उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. मुठभेड़ या फिर अन्य आपराधिक मामलों को छोड़ भी दिया जाये तो आंदोलन के दौरान कई निर्दोष सिपाही या उनके अफसर भीड़ की चपेट में आकर अपनी जान से हाथ धो बैठते है जिसका खामियाजा उनके परिवार को भुगतना पड़ता है.सरकारी काम को लोग ने उन कर्मचारियों का व्यक्तिगत मामला समझने की भू

...दुष्कर्मियों की कब तक होती रहेगी खातिरदारी?

बुलंदशहर में कार से जा रही मां-बेटी से हाईवे पर गैंगरेप, तीन आरोपी अरेस्ट और पूरा थाना सस्पेंड:...वाह क्या जिम्मेदारी निभाई! उस परिवार पर क्या बीत रही है- जिनको इस कांड के जालिमों ने जन्मभर का दर्द दिया, यही न कि पीडि़तों में से कोई न कोई इस अपमान को वहन न कर पाये और अपने आप को आग के हवाले कर दें, फांसी पर झूल जायें या जहर पी ले. हमारें कानून की  खामियां और न्याय मिलने में देरी का ही सबब है कि आज पूरे देश में ऐसे दरिन्दें छुट्टे घूम रहे हैं और किसी न किसी परिवार के सुख चैन को रोज छीन रहे हैं. बुलंदशहर यू पी एनएच-91 के 200 मीटर के हिस्से में गैंगरेप की शिकार मां-बेटी की गले की चेन जैसी कई चीजें खेत में पड़ी मिलीं- यहां एनएच-91 के करीब 35 साल की मां और उसकी 14 साल की नाबालिग बेटी को दरिन्दों ने निर्वस्त्र कर नोैच डाला. 12 लोगों ने जो दरिन्दगी का खेल खेला वह अतीत बन गया और उसके बाद अब अपराधियों को थाने में बिठाकर पूछताछ की जा रही है. बीच बीच में चाय भी पिलाई जा रही है.नाश्ते का भी इंतजाम होगा.अफसरों को रेप की  घटना बुरी लगी, उन्होनें पूरा थाना बदल दिया सब सस्पेण्ड! यह सस्पेण्ड नामक सजा व