यौन हिंसा पर क्षमा की घृणित संस्कृति, क्यों इसे संरक्षण दिया जा रहा?




यूनिसेफ की  एक शीर्ष अधिकारी ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा से जुड़ी क्षमा की घृणित संस्कृति पर चिंता व्यक्त करते हुए उसकी निंदा की है और इस क्रूरता को खत्म करने के लिए तत्काल कार्रवाई करने को कहा है हालाकि उन्होंने सिर्फ एक राज्य की दलित युवती के साथ उन्हीं पांच युवको द्वारा दोबारा कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार मामले का जिक्र किया है जो रोहतक में चर्चित हुआ  लेकिन भारत में अब ऐसा आम हो गया है जिसपर कठोर कदम उठाने की बजाय राजनीतिक रोटी सेकी जा रही है और क्षमादान दिया जा रहा है.मामले को कोर्ट के हवाले कर तुरन्त फुरंत में उसका निपटारा करने की जगह राजनीति से जुड़े कतिपय लोग ऐसी घटनाओं को अपने  मकसद तक पहुंचने की नीयत से देखने लगे हैं. यूएन अधिकारी ने जिस मामले का  जिक्र किया है वह  तीन साल पहले के उस बलात्कार का है जिसमें दलित लड़की से पांच युवकों ने दुष्कृत्य किया और जमानत पर छूटकर आने के बाद दुबारा उसका अपहरण कर रेप किया. इस मामले में अभी जांच चल रही है और पुलिस अब यह भी कह रही है कि लड़की के आरोप की सत्यता को परखा जा रहा है चूंकि युवती द्वारा बताये गये लोकेशन में गडगड़ी हैै बहरहाल हम भी मानते हैं कि बच्चियों और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा से जुड़ी माफी की घृणित संस्कृति को समाप्त किया जाना चाहिये तथा ऐसे क्रूर मामलों में तो किसी प्रकार की राहत अपराधी को मिलनी ही नहीं चाहिये. रोहतक गैंगरेप का मामला हो या महाराष्ट्र के कल्याण,ठाणे अथवा केरल का सिर्फ गुस्सा काफी नहीं, ऐसे मामलों को समाज को बांटकर देखने की जगह मानवता के नाते महिलाओं पर होने वाला अत्याचार स्वीकार करना चाहिये. जिस क्रूरता से घटानाएं राज्यो में घटित हो रही है वह सरकार चलाने वालों को सोचने के लिये मजबूर करती है कि क्या मौजूद व हाल ही बनाया गया कानून  ऐसे मामलों के लिये काफी हैॅ.? दिल्ली के  क्रूररतम निर्भया कांड में फांसी की सजा मिलने के बाद भी अपराधी जेल में रहकर ऐशोआराम की सुविधा की मांग कर रहे हैं वहीं ऐसी घटनाओं से प्रेरणा लेकर महाराष्ट्र और अज्य राज्यों में अपराधी एक के बाद एक ऐसा दुष्कर्म कर रहे हैं जो संपूर्ण मानवता को ही हिलाकर रख  रहे हैं. हम यहां उस दुष्कर्म की बात करेंगेे जो अहमतनगर के कर्जत तहसील की छात्रा के साथ हुआ.मामला ज्यादा पुराना नहीं इसी महीने की 13 जुलाई का है जब नौंवी में पढऩे वाली छात्रा अपने घर से थोड़ी दूर शाम को अपने दादा के घर मसाला लेने गई थी, जब बहुत देर बाद भी वो नहीं लौटी तब परिजनों ने उसे ढूंढना शुरू किया, घर से थोड़ी ही दूर पर एक पेड़ के नीचे उसकी बुरी तरह क्षत-विक्षत लाश मिली.एक आरोपी लड़की के परिजनों को देखते ही भाग खड़ा हुआ याने इस घटना को प्र्रत्यक्ष देखने वाले लोग भी हैं.बाकी तीन आरोपी इस आरोपी के बताये जाने से पकड़ लिये गये.पीडि़तों को ज्याय मिलने की जगह यहां खूब राजनीति चली और पुलिस कार्रवाही पर भी आक्षेप लगे. कानून को अपना काम करने देने की जगह क्यों राजनीति बिखेरी जाती है.?इस मामले में चूंकि सारा मामला एक तरह से लोगों के सामने हुआ इसमे सजा भी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर उसी तत्काल दी जानी चाहिये थी. ऐसे मामलों में तो कानून ऐसा होना चाहिये कि किसी प्रकार की अपील होने की गुंजाइश ही न रहे. दुनियाभर की 12 करोड़ लड़कियों में से हर 10 में से एक लड़की यौन हिंसा का सामना करती है और इनमें से अधिकतर लड़कियों के साथ 15 से 19 साल की उम्र के बीच ऐसा होता है. इस क्रूरता को खत्म करने के लिए और हिंसा के पीडि़तों को न्याय एवं सुरक्षा देने के लिए कठोरतम कार्रवाई की जरूरत है. यह एक क्राइम है और क्राइम का सियासत और जातिगत समीकरण को दखल देने की  क्या जरूरत?.केरल में एक नाबालिग दलित लड़की से लगभग एक दर्जन लोगों नेदो महीने तक रेप किया मुख्य आरोपी ऑटो ड्राइवर ने अपने एक दोस्त के साथ  बारी-बारी से रेप किया और सेलफोन पर रिकॉर्डिंग कर ली.लड़की को वीडियो दिखाया और धमकाया कि किसी को बताने पर वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया जाएगा लड़की से कई लोगों ने कम से कम 10 बार रेप किया.उसके प्राइवेट प्रार्टस में सिगरेट से जलाने के निशान भी दिखे. केरल में ही  30 साल की एक अन्य दलित छात्रा से कथित बलात्कार और उसकी हत्या का मामला बुधवार को संसद में भी उठा.समाज बताये ऐसे दुष्टों को क्या सजा दें?






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