राजनीतिक पैतरेबाजी...क्या कांग्रेस का पूर्ण सफाया होगा?




'कांग्रेस मुक्त भारत क्या मोदी का यह नारा कामयाब होगा? कुछ चुनावो में पराजय और हाल के चुनाव में कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद तो लोगों को लगने लगा है कि मोदी आगे के वर्षो में अपने नारे को कामयाब करने में बहुत हद तक सफल होगेंंॅ. असल में कांग्रेस परिवारवाद और अपने ही साथियों की गुटबाजी के  जाल में इतनी उलझ चुकी है कि वह अपना वजूद ही खोती जा रही है. डेढ़ सौ वर्ष पुरानी  कांग्रेस में अभी भी दम है लेकिन उसे बहुत हद तक परिवारवाद को किनारे रखना होगा तथा अपने  युवकों को आगे करना होगा तभी वह इस संकट से उभर सकेगा वरना आगे आने वाले वर्षो में उसे और बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं. अभी हाल के चुनाव में देखते- देखते उसके हाथ से दो राज्य को जहां निकल भागे वहीं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में उसे दो टुकड़ों में बटना पड़ा. आंतरिक गुटबाजी और उससे उत्पन्न होने वाले विवाद को केन्द्र की कांग्रेस शुरू से ही हल्के में लेती रही है वहीं विवादों का निपटारा उचित समय पर नहीं कर पाने के कारण संकट केंसर का रूप लेता गया. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के बंटने का शायद यही एक कारण है. छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन था अगर आंतरिक कलह और भीतरघात की राजनीति नहीं होती तो शायद यह राज्य उसके हाथ में होता. बहरहाल  कांग्रेस मुक्त भारत बनाने भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.वर्तमान में कांग्रेस की देश में सिर्फ सात राज्यों में  सरकार चल रही है. जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार चल रही है वहां से भी आने वाले समय में भाजपा की सरकार बनाने के प्रयास में भाजपा जुट गई है. छत्तीसगढ़ में हाल ही अजीत जोगी के कांग्रेस से बाहर होने के बाद राजनीति गरमाई हुई है यहां हालाकि भाजपा अपने  विकास और डा. रमनसिंह के सुशासन से संतुष्ट है लेकिन अजीत जोगी के निर्णयों पर वह पूरी निगाह गढ़ाये हुए हैं वहीं कांग्रेस यह बताने का प्रयास कर रही है कि  अजीत जोगी के बाहर होने से वह और मजबूत हुई है लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अंदर से यह मानकर चल रहे हैं कि अजीत जोगी उनके लिये मुसीबत खड़ी कर सकते हैं. आगे आने वाला समय यह तय करेगा कि छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय पाॢटयों का भविष्य क्या होगा?. वैसे हम अविभाजित मध्यप्रदेश में यह अच्छी तरह देख चुके हैं कि कम से कम छत्तीसगढ़ में तो कभी क्षेत्रीय पार्टी अपना वर्चस्व नहीं बना पाई. इस बीच आम आदमी पार्टी दिल्ली  में अपनी सरकार की सफलता का दावा कर  पंजाब,हरियाना और छत्तीसगढ़ में भी अपना  पैर जमाने प्रयासरत है-छत्तीसगढ़ में हालाकि अब तक आप ऐसा कुछ नहीं कर पाई है जिससे उसका अस्तित्व लोगों के बीच नजर आने लगे लेकिन जो पार्टी यहां अस्तित्व  में हैं उसने रमन मुक्त छग का नारा देकर अपने अभियान का  ढंका बजा दिया है. आम आदमी पाटी ने  1 मई से 30 मई तक पूरे प्रदेश में रमन मुक्ति यात्रा निकाली और लोगों को सरकार की खामियां गिनाई. 31 मई को आम आदमी पार्टी द्वारा निकाली गई रमन मुक्ति यात्रा की समीक्षा की गई.आने वाले दिनों में भी आम आदमी पार्टी रमन मुक्ति यात्रा के द्वितीय चरण का शंखनाद करेगी.दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में भाजपा के पूर्व सांसद सोहन पोटाई, पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविंद नेताम भाजपा की सरकार को आऊट सोर्सिंग सरकार मानते हैं.उन्होंने  आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की जंग छेड़ रखी है.रमन सराकर के लिये अजीत जोगी के साथ यह ग्रूप भी एक सरदर्द बन गया है. प्रदेश में भाजपा  जनप्रतिनिधियों के व्यवहार पर जहां कतिपय मामलों को लेकर आक्रोश में है वहीं नौकरशाहों के कारनामों से भी लोगों में रोष है. कुछ दिन पूर्व  गीदम नगर पंचायत क्षेत्र के जनपद अध्यक्ष ने एक गरीब सब्जी बेचने वाली पर कहर बरसाया उसने गरीब महिला की रोजी रोटी पर लात मारी, जिसके विरोध में उस क्षेत्र में व पूरे प्रदेश में नारेबाजी व विरोध प्रकट किया गया वहीं नौकरशाही अपनी मर्यादा भूलकर मनमाने तरीके से कार्य कर रही है इसका नमूना अंबिकापुर के रामानुजगंज में डॉ. जगदीश सोनकर के द्वारा अस्पताल के निरीक्षण के दौरान देखने को मिला वहीं प्रदेश सरकार द्वारा 27 अप्रैल से 26 मई तक लोक सुराज अभियान चलाया गया, लोकसुराज दलों को बंधकर बनाकर आम जनता द्वारा रोष प्रकट किया गया, इससे यही अर्थ निकला गया कि  प्रदेश में शासन प्रशासन का कार्य सुचारू रूप से नहीं चल रहा है-यह उस समय स्पष्ट हुआ जब मुख्यमंत्री ने कई विभागों में अधिकारियों का तबादला कर दिया.  

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