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जून, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खतरे बहुत हैं!....दो साल की सैनिक शिक्षा अनिवार्य करने में क्या हर्ज?

विश्व के कई देशों में प्राथमिक स्तर से ही बच्चों को सैन्य शिक्षा दी जाती है और स्कूली शिक्षा पूर्व होने पर सेना में सेवा देने का अवसर प्राप्त होता है लेकिन हमारे देश में जो शिक्षा दी जाती है वह रोजगार मूलक भी नहीं है देश के करोड़ो नवजवान ऐसी शिक्षा की डिग्री-डिप्लोमा लेकर बेरोजगार बैठे हैं, इसलिए दूसरे देशों की सैन्य शक्ति हमसे अधिक है। ऐसे देशों के खिलाफ उसके पड़ोसी देश कुछ बोलने से भी घबराते हैं. आज हमारी आवश्यकता  विश्व के  उन देशों की तरह सभी क्षेत्रों में शक्तिशाली बनने की है इसके साथ-साथ हमें अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत करना जरूरी है.इसमें दो मत नहीं कि हमारे देश की स्थल, वायु व जल सेना किसी से कम नहीं किन्तु आज हम जिस तरह  चारों और पडौसी दुश्मनों  और आतंकवाद से घिरे हुए है उस हिसाब से हमारी सैन्य शक्ति उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिये. देश में जनसंख्या की बढौत्तरी के साथ-साथ शिक्षित व अशिक्षित दोनों किस्म के बेरोजगारों की संख्या में लगातार बढौत्तरी हो रही है.एक  शक्तिशाली फौज के साथ-साथ देश में अशिक्षित व अनुभवहीन अशक्तिशाली युवाओं की फैाज अपनी सेना के बराबरी पर खड़ी है=अग

और कितने लोगो की बलि लेगा सरकार का डा. आम्बेडकर अस्पताल?

चरोदा की रहने वाली 75 वर्षीय खोरबाहरिन बाई को रायपुर के डीके अस्पताल उर्फ मेकाहारा उर्फ डा. आंबेडकर अस्पताल में भर्ती करने लाया गया था, देर रात हायपरटेंशन का इलाज कराने उसके परिवारजन बड़ी उम्मीदों के साथ लेकर आये थे लेकिन महिला ने इलाज के अभाव में बरामदे में दम तोड़ दिया चूंकि यहां के मेडीसिन विभाग ने यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि भर्ती के लायक नहीं है.इसके बाद महिला व उसका पति दिनभर अस्पताल में भटकते रहे,रात 9 बजे के आसपास किचन के सामने बरामदे में महिला गश खाकर गिर गई और मौके पर ही मौत हो गई. पहला सवाल यह कि यह अस्पताल किसके लिये बना है? क्यों यहां  मरीजों की उपेक्षा की जाती है? बार बार यहां होने वाली अतिगंभीर घटनाओं को सरकार क्यों नजरअंदाज करती है? पूरे छत्तीसगढ़ और आसपास के राज्यों से आने वाले मरीज इस अस्पताल में बहुत उम्मीदों के साथ पहुंचते हैं कि यहां कम पैसे में उनका इलाज हो जायेगा लेकिन यहां पहुंचने पर न केवल उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है बल्कि वे यहां से जाते समय भारी जख्म लेकर जाते हैं. डीके या मेकाहारा उर्फ मेडिकल कालेज हास्पिटल रायपुर अथवा डा. आम्बेडकर

सेंट्रल कर्मचारियों की तो नैया पार हो गई लेकिन बाकी का क्या?

सेंट्रल कर्मचारियों की तो नैया पार हो गई लेकिन बाकी का क्या? सेंट्रल कैबिनेट ने बुधवार को केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिये सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी. बढ़ा हुआ वेतन 1 जनवरी 2016 से लागू होगा,इस वृद्धि के ऐलान के बाद 50 लाख सरकारी कर्मचारी और 58 लाख पेंशनधारियों के हाथों में ज्यादा पैसा आएगा, इस बढौत्तरी  से सरकारी खजाने पर करीब एक लाख करोड़ से ज्यादा का भार पड़ेगा.  इस वेतन वृद्धि से रीयल एस्टेट सेक्टर और ऑटोमोबाइल सेक्टर में उछाल आएगा. आरबीआई ने अप्रैल में कहा था कि अगर आयोग की रिपोर्ट को ऐसे ही लागू किया गया तो 1.5 फीसदी महंगाई बढ़ जाएगी याने आम वर्ग पर  बोझ और बढ़ जायेगा. इससे पहले सातवें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सरकारी कर्माचारियों की बेसिक सैलरी में 14.27 फीसदी बढ़ोत्तरी की सिफारिश की थी, साथ ही आयोग ने एंट्री लेवल सैलरी 7,000 रुपये प्रति महीने से बढाकर 18,000 रुपये प्रति महीने करने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है. सरकारी कर्मचारियों को 6 महीने का एरियर भी मिलेगा.पेंशन बोगियो को इससे भारी फायदा होगा. सेंट्रल के कर्मचारी भाग्यशाली है कि उनके  वेतन

क्या कानून के डंडे से पर्यावरण सुधर सकता है?जनजागृति भी जरूरी!

पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण पर चर्चा हर जगह है, फिर भी न तो कोई दोषी पाया जाता है न किसी को सजा मिलती है.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का ही उदाहरण ले लीजियें यहां प्रदूषण इतना ज्यादा है कि इस राजधानी की गिनती देश के सातवें प्रदूषित शहरों की सूची में है.ग्रेटेस्ट साइंटिस्ट आइंस्टीन ने कहा था- दो चीजें असीमित हैं-एक ब्रह्माण्ड- दूसरा मानव की मूर्खता! मनुष्यों ने अपनी  मूर्खता के कारण अनेक  समस्याएं पैदा की हैं, इनमें पर्यावरण- प्रदूषण अहम है. हम किसे दोषी ठहराएं? क्या किसी को दोषी ठहराना या दंड देना ही समाधान है? चूंकि दंड संहिता से ही सुधार होता तो अब तक अदालतों से दंडित लाखों लोगों के उदाहरण द्वारा सारे प्रकार के अपराध ही बंद हो चुके होते पर हम देखते हैं, ऐसा हुआ नहीं. वास्तव में इसके लिये जरूरी है जन-जागृति. प्रकृति का प्रत्येक कार्य व्यवस्थित एवं स्वाचालित है, उसमें कहीं भी कोई दोष नहीं है हमने अपनी अविवेकी बुद्धि के कारण अपने आपको प्रकृति का अधिष्ठाता मानने की भूल कर दी है. मानव द्वारा की गई भूलें प्रकृति के कार्य में व्यवधान डालती हैं ओर ये व्यवधान सभी को नुकसान पहुंचाते हैं.

जंगली जानवरों को लेकर दो मंत्रालयों में जंग...आखिर क्या है माजरा?

क्या जंगली जानवर वास्तव में आबादी के लिये खतरे बनते जा रहे हैं? केन्द्र में दो मंत्रालयों के बीच इस मुद्दे को लेकर हो रही टकराहट से तो कुछ ऐसा ही आभास होता है लेकिन इन कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिये कि जंगल में रहने वाले जानवर गांव व शहर में रहने वालों के लिये क्यों मुसीबत बन रहे हैं? हकीकत हम जो समझते हैं वह यही है कि औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण  और विकास के नाम  पर्यावरण को नष्ट कर तेजी से कांक्रीट के जंगलों का विकास कर रहे हैं. क्या यह भी एक कारण नहीं हो सकता? जंगल में कुछ बचा ही नहीं है कि जानवर वहां चैन से रह सके. अवैध शिकार के अलावा जंगल में आग,पानी की समस्या, इंसनी शोर और अन्य कई ऐसे कारणों से जंगली जानवरों का गांव व शहरों की तरफ बढऩा जारी है. आजादी के कुछ वर्षो तक देश में जंगली जानवरो के शिकार पर रोक -टोक नहीं थी .इसके बाद के वर्षो ने जंगली जानवरों के शिकार पर पूर्ण पाबंन्दी लगा दी - यहां तक कि हिंसक जानवरों के साथ- साथ उन छोटे मोटे जानवरों को भी मारने पर पाबन्दी लगाई गई जो इंसानों से भी घुले मिले हैं और जगलों से भागकर कभी भी शहर की तरफ चले आते हैं. शिकार पर पाबंन्धी  इसलिये

बिजली कंपनी ने गर्मी में परेशान किया अब बारिश में भी....कहां गये दावे!

छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनी ने गर्मी के दौरान छत्तीसगढ़वासियों को मेंटनेंस के नाम पर बिजली सप्लाई बंदकर भारी यातना दी थी तथा दावा किया था कि वे ऐसा प्रबंध कर रहे हैं कि लोगों को मानसून के दौरान कोई तकलीफ न हो लेकिन मानसून अभी पूरी तरह से छाया भी नहीं कि कंपनी के सारे दावे खोखले साबित होने लगे.कंपनी ने दावा किया था कि बारिश के दौरान बिजली गुल होने पर विभाग ने कर्मचारियों को अलर्ट रहने व सुधार करने दौड़ पडऩे का निर्देश दिया है लेकिन यह सारी बाते खोखली साबित हुई है. पूरे छत्तीसगढ़ से जो खबरे मिल रही है वह यही दर्शा रही  है कि थोड़़ी से बारिश होते ही बिजली गुल हो जाती है तथा कई कई घंटे तक बिजली के  वापस आने का लोग इंतजार करते हैं.भीषण गर्मी के दौरान विद्युत कंपनी ने बकायदा अखबारों में विज्ञापन जारी कर व एसएमएस के जरिये बिजली कई घंटों तक बंद रखने की सूचना दी थी. यह बंद इसलिये किया गया चूंकि बारिश आने पर लोगों को तकलीफ न हो.इस दौरान लाइन और ट्रांसफार्मर का रखरखाव तथा मरम्मत का काम कथित तौर पर किया गया.  दावा है कि  विभागीय कर्मचारी तीन शिफ्ट में काम करते हैं, लेकिन तेज आंधी और बारिश के द

इस हड़ताल ने तो पचास लोगों की जान ले ली! कौन जिम्मेदार?

किसी हड़़ताल को लेकर पचास से ज्यादा लोगों को प्राण गंवाना पड़ा हो यह छत्तीसगढ़ में पहला मामला है.प्रदेश में संजीवनी एक्सप्रेस और महतारी एक्सप्रेस के पायलट (ड्राइवर) टेक्नीशियन अपनी मांगों को लेकर कई दिनों से हड़ताल पर हैं, इसके चलते जनहित में चलरही एम्बुलेंस सेवा पूरी तरह से ध्वस्त है. पिछले कुछ वर्षो से मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने का एक अच्छा और सुगम माध्यम बनी इस सेवा पर मानो ग्रहण लग गया है. अचानक कर्मचारियों ने अपनी  मांगें जोड़कर सेवा जहां अपने व सरकार  के बीच संबन्धों की खाई बना दी है वहीं सरकार ने हठधर्मिता दिखाते हुए उनकी किसी मांग को स्वीकार करने से इंकार कर दिया. दोनों के बीच चले द्वंद का असर अब दिखाई देने लगा है. मरीजों को समय पर अस्पताल पहुँचा न पाने के कारण  लोगों ने रास्ते में ही दम तोडऩा शुरू कर दिया हैं.  रायपुर-बिलासपुर हाईवे पर सिमगा के पास एक टीवी कैमरामैन राकेश चौहान (24) और उनकी मां की सड़क हादसे में मौत भी इसी वजह से हुई. अगर समय पर उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया जाता और चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा दी जाती तो संभव है उन्हें जीवन दान मिल जाता. छत्तीसगढ़ में इस

भारत-अमरीका घनिष्टता-मोदी ने विश्व को बता दिया कि भारत क्या है?

अमरीका के साथ घनिष्टता के जो बीज अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने बोए थे, मनमोहन सरकार के दिनों में अंकुरित हुए, वे अब पुष्पित-फलित हो रहे हैं. इस प्रक्रिया में मोदी के व्यक्तित्व का योगदान  जरूर है. शायद मोदी ने अमरीका को अपनी जिद बना ली थी- जिस मोदी से अमरीका किसी समय नफरत करता था,उन्हें वीजा देने से  मना किया आज उसी मोदी को अमरीका पलक पावड़े बिछाकर स्वागत कर रहा है.उनके भाषणों पर तालियां पिट रही है. अमरीकी ससंद में मोदी के आवाज की गूंज है,उनके एक एक लब्ज को सुनने लोग बेताब हैं, इतना ही नहीं लोग खड़े होकर उनकी इज्जत कर रहे हैं. यहां यह उल्लेखनीय  है कि मोदी के अमरीकी संसद में भाषण के दौरान लोगों ने न केवल तालियां बजाई,वाह वाह किया बल्की बार बार खड़े होकर उनका समर्थन किया. यह भारत  के लिये गर्व की बात है कि उसके प्रधानमंत्री को इतनी इज्जत दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश और उसके राष्ट्रपति ने दी.हम स्पष्ट तौर पर कह सकते हैंं.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं में यह यात्रा सबसे सार्थक रही. ओबामा  के बुलावे पर अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल की यह आखिरी मुलाकात विश्व इतिहास में सदैव

कांग्रेस को सोमवार शुभ नहीं रहा...साथी बिखर गये!

एक दिन में चार झटके से कांग्रेस पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों में हार के बाद अब पार्टी में नेताओं की बगावत आम हो चली है। साथ ही कई दिग्गज नेता पार्टी का दामन छोड़ रहे हैं। महाराष्ट्र्र छत्तीसगढ़, त्रिपुरा और यूपी  से एक ही दिन कांग्रेस के लिए  बुरी खबर आई.पांच राज्यों की विधानसभा में पराजय के बाद अब पार्टी नेताओं ने बगावत का झंडा थाम लिया है.दिग्गज नेताओं के पार्टी  छोडऩे से पार्टी के अंदर मायूसी है लेकिन बाहर इसे दिखाया नहीं जा रहा. पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता गुरुदास कामत ने सोमवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया लेकिन कल राहुल गांधी ने उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण देकर उनके मामले को हल्का करने का प्रयास किया है. वास्तविकता यही है कि लोकसभा चुनावों में सत्ता गंवाने के बाद  संकट से जूझ रही कांग्रेस के लिए मुश्किलें बड़े तूफान की तरह आई हैं. सोमवार को कांग्रेस के लिए चार बुरी खबरें आईं. पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता गुरुदास कामत ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और राजनीति से सन्यास लेने का एलान भी कर दिया. कामत महाराष्ट्र से आते हैं और अगले साल मुंबई में निकाय चुनावों

राजनीतिक पैतरेबाजी...क्या कांग्रेस का पूर्ण सफाया होगा?

'कांग्रेस मुक्त भारत क्या मोदी का यह नारा कामयाब होगा? कुछ चुनावो में पराजय और हाल के चुनाव में कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद तो लोगों को लगने लगा है कि मोदी आगे के वर्षो में अपने नारे को कामयाब करने में बहुत हद तक सफल होगेंंॅ. असल में कांग्रेस परिवारवाद और अपने ही साथियों की गुटबाजी के  जाल में इतनी उलझ चुकी है कि वह अपना वजूद ही खोती जा रही है. डेढ़ सौ वर्ष पुरानी  कांग्रेस में अभी भी दम है लेकिन उसे बहुत हद तक परिवारवाद को किनारे रखना होगा तथा अपने  युवकों को आगे करना होगा तभी वह इस संकट से उभर सकेगा वरना आगे आने वाले वर्षो में उसे और बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं. अभी हाल के चुनाव में देखते- देखते उसके हाथ से दो राज्य को जहां निकल भागे वहीं छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में उसे दो टुकड़ों में बटना पड़ा. आंतरिक गुटबाजी और उससे उत्पन्न होने वाले विवाद को केन्द्र की कांग्रेस शुरू से ही हल्के में लेती रही है वहीं विवादों का निपटारा उचित समय पर नहीं कर पाने के कारण संकट केंसर का रूप लेता गया. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के बंटने का शायद यही एक कारण है. छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस

नदियों का लोप होता जा रहा... छोटी नदियां,निस्तारी तालाब अब कहां?

छत्तीसगढ़ से लेकर कर्नाटक तक ट्रेन में यात्रा करों तो कम से कम तीन या चार राज्यों से होकर गुजरना पड़ता है -छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र आंन्ध्र और कर्नाटक  इन राज्यों की प्राय: सभी नदियां इस समय सूखी है. खेतो में सन्नाटा है और किसानों की स्थिति बेहाल है. वास्तविकता आज यही है कि देश की दो तिहाई छोटी नदियां सूख गई हैं और दिनों-दिन देश के नक्शे से गायब भी होती जा रही हैं.छोटी नदियों का सूखना बड़ी नदियों के लिए खतरे की घंटी है.कई छोटी नदियां नालों में तब्दील हो गई हैं. वर्षो से हम  देखते आ रहे हैं कि गांव-कस्बो से गंदे पानी के लिए निस्तारी तालाब हुआ करते थे, जिससे पानी दूसरे तालाब में पहुंचता था ,दूसरे तालाब में कपड़े धोने आदि का काम किया जाता था वहीं तीसरा तालाब ऐसी जगह बनते थे, जहां धरती का पेच छूटा हुआ हो यानि जहां पर धरती में पानी रिसकर जा सकता था इस तरह दो तालाबों से होता हुआ पानी तीसरे तालाब में और तीसरे तालाब से झरनों और छोटी नदियों का जन्म होता था. देश की 9.8 प्रतिशत नदियां तालाबों और झीलों से जन्मी हैं, इसलिए छोटी नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए इनका रिश्ता तालाबों से दोबारा जोडऩे की

जंगली जानवर फसल का नुकसान करेंगे तो मिलेगा मुआवजा!

छत्तीसगढ़ के कोरबा में हाथियों से कुचलकर अब तक पांच लोग मारे गये हैं-कल ही एक वृद्वा को जो महुआ बीनने गई थी हाथी ने कुचलकर मार डाला यह सिलसिला पूरे छत्तीसगढ़ में लगातार जारी है वहीं संपत्ति को नुकसान का तो कोई आंकलन ही नहीं है.असल में हाथियों की  चपेट में वे लोग आते हैं जो अन्न उत्पादन में लगे हैं उनके खेतों को उजाडऩे पहुंचे जानवरों से वे भिड़ जाते हैं तथा उसी में उनकी मौत होती है. किसान को अन्न उत्पादन से लेकर उसे बेचने तक हर कदम पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अच्छी भली फसल को देखते देखते जहां मवेशी चट कर जाते हैं तो दूसरी ओर जंगली जानवर भी किसानों के दुश्मन बन जाते हैं. हाथी  व अन्य जंगली जानवर जिस तरह फसलों की बरबादी करते हैं वह असहनीय है. जगली जानवरों से किसानों को बचाने के लिये सरकार ने कुछ कदम उठाये हैं उसके तहत उन किसानों को शीघ्र राहत मिल सकती है जिनकी फसल जंगली हाथियों द्वारा रौंदकर खराब कर दी जाती है या फिर नीलगाय या अन्य किसी जंगली जीव बर्बाद कर देते है। ऐसी दशा में किसान फसल के नुकसान की भरपाई सरकार से हासिल कर पाएंगे लेकिन व्यक्तिगत रूप से हाथियों के हमले से बचान

जवानों की तत्परता से ही पुलगांव में बड़ा डेमेज टला!

पुलगांव में देश के सबसे बड़े आयुध डिपो में लगी आग की जांच के लिए हालाकि अब एसआईटी गठित हो गई है और इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही यह साफ तौर पर कहा जा सकेगा कि घटना केै से  हुई.लेकिन महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सेना से जुड़े लोग ही यह कह संदेह व्यक्त कर रहे हैं कि इस कांड के लिये किसी साजिश से भी इंकार नहीं कर सकते. इस भीषण अग्रिकांड में हमारे आयुध कारखाने को तो भारी नुकसान पहुंचा है साथ ही जांबाज अफसरों की भी इस दुर्घटना में मौत हुई है. जवानों ने एक बार फिर जांबाजी का परिचय दिया है, खुद आग के शोलों में समा गए लेकिन पूरे हथियार (आयुध) डिपो को तबाह होने से बचा लिया. यार्ड में आग लगने के बाद सेना के अधिकारी और जवान तुरंत सतर्क हो गए थे. यह आग शोला न बन जाए इसलिए उसपर काबू पाने के लिए पहले दो अधिकारियों समेत जवानों की पहली टीम ने मोर्चा संभाला था लेकिन, आग बुझाने के दौरान ही धमाके शुरू हो गए और यह टीम गोला बारूद के धमाकों में समा गया. इस भीषण अग्निकांड के पीछे सुरक्षा की दृष्टि से हुई लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 7000 एकड़ में फैला यह डिपो संभवत: एशिया के सबसे बड़े आयुध डिपो में से

एक बड़ी आबादी वेश्यावृत्ति, भीख मांगने, बंधुआ मजदूरी करने मजबूर!

यह एक दुर्भाग्यजनक स्थिति है कि एक अरब  तीस करोड़ की आबादी वाली हमारी इस धरती में करीब एक करोड़ तिरासी लाख पचास हजार लोग बंधुआ मजदूरी, वेश्यावृत्ति, भीख जैसी आधुनिक गुलामी के शिकंजे में बुरी तरह जकड़े हुए हैं- दुनिया में आधुनिक गुलामी से पीडितों के मामले में हमारा देश सबसे आगे हैं.सरकार का  ध्यान इस गंभीर समस्या की ओर होने के बावजूद इस समस्या का लगतार उग्र रूप  धारण करना सामाजिक सोच रखने वालों को चिंता में डाल देता है.देश में चुनाव के दौरान कुछ लोगों को यह जरूर याद आ जाते हैं लेकिन चुनाव के बाद इन्हें कोई नहीं पूछता जबकि अगले चुनाव तक यह संख्या और बढ़़ती जाती है.पूरी दुनिया  में ऐसे गुलामों की तादाद तकरीबन चार करोड़ 60 लाख है दूसरी  ओर भारत दुनिया के 10 दौलतमंद देशों की लिस्ट में तो है किन्तु औसत भारतीय काफी गरीब है.धनाढृय व्यक्ति कुल 5,200 अरब डालर की संपत्ति अपने पास समेटे हुए हैं-भारत की गिनती दुनिया के 10 सर्वाधिक धनवान देशों में होती है मगर इसकी एक वजह यहां की बड़ी आबादी का होना भी है.प्रति व्यक्ति आधार पर औसत भारतीय 'काफी गरीबÓ है.  विश्रेषण करने से कई महत्वपूर्ण बाते सामने

जून शुरू हुआ- बुरी खबर लेकर- सेस लागू,सर्विस टैक्स फिर बढ़ा

आम आदमी की जुबान पर आजकल देश के आर्थिक हालात पर सवाल है-देश का बजट मार्च में बनता है और इसमें जो बढौत्तरी घटोत्री होती है वह उसमें दर्शा दिया जाता है लेकिन इन्हे लागू करने के लिये कम से कम एक दो महीने का इंतजार होता है इस दौरान कीमतो में इतना इजाफा हो जाता है कि एक आम आदमी की कमर टूट जाती है वह चाहे यात्रा के मामले में हो या रसोई के मामले में  अथवा ड्राइंग रूम में रखे टेलीफोन के मामले में सभी का किराया, भाड़ा या टैक्स इतना बढ़ा दिया जाता है कि आदमी का मानसिक हालात बिगडऩे  लगता हैं.  रेलवे व आम बजट की घोषणा के बाद से अब तक प्राय: हर वस्तुओं के भावो में भारी इजाफा हुआ है. वेट -सर्विस टैक्स के नाम पर इतनी  बढौत्तरी शुरू के दौरान की गई कि लोग सामान लेने में डरने लगे चूंकि उनकी कमाई का आधा हिस्सा तो इसी में निकल जाता है. लोग यात्रा करने में भी डरने लगे कि इससे उनके रहन सहन का मासिक बजट बिगड़ जायेगा. सरकार ने सुविधाएं बढ़ाने के नाम पर रेल किरायें में बढौत्तरी पीछे के दरवाजे से कर दी. सुविधाएं...जिसके नाम पर मंहगाई बढ़ाई जा रही है,का कोई अता पता नहीं लोग वैसे ही लटककर सफर कर रहे हैं छतो पर

जवानों की तत्परता से ही पुलगांव में बड़ा डेमेज टला!

पुलगांव में देश के सबसे बड़े आयुध डिपो में लगी आग की जांच के लिए हालाकि अब एसआईटी गठित हो गई है और इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही यह साफ तौर पर कहा जा सकेगा कि घटना केैसे घटित हुई.लेकिन महत्वपूर्ण बात तो यह है कि सेना से जुड़े लोग ही यह कह संदेह व्यक्त कर रहे हैं कि इस कांड के लिये किसी साजिश से भी इंकार नहीं कर सकते. इस भीषण अग्रिकांड में हमारे आयुध कारखाने को तो भारी नुकसान पहुंचाया  है साथ ही जांबाज अफसरों की भी इस दुर्घटना में मौत हुई है. जवानों ने एक बार फिर जांबाजी का परिचय दिया है, खुद आग के शोलों में समा गए लेकिन पूरे हथियार (आयुध) डिपो को तबाह होने से बचा लिया. यार्ड में आग लगने के बाद सेना के अधिकारी और जवान तुरंत सतर्क हो गए थे. यह आग शोला न बन जाए इसलिए उस पर काबू पाने के लिए पहले दो अधिकारियों समेत जवानों की पहली टीम ने मोर्चा संभाला था लेकिन, आग बुझाने के दौरान ही धमाके शुरू हो गए और यह टीम गोला बारूद के धमाकों में समा गया. इस भीषण अग्निकांड के पीछे सुरक्षा की दृष्टि से हुई लापरवाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 7000 एकड़ में फैला यह डिपो संभवत: एशिया के सबसे बड़े आयुध डिपो

और कितने जवाहरबाग मौजूद हैं देश में?

पहले भिंडरावाले,फिर आशराम बापू फिर रामपाल और अब रामवृक्ष यादव.....इसके अलावा माओवाद और आंतक का चेहरा.. तस्कर, अंडर वल्ड़ और गुण्डे असामाजिक तत्व.....इसके बाद भी और न जाने कितने-कितने लोग? हमारी धरती के टुकड़े करने के षडय़ंत्र में लगे हैं देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने वालों कौ क्यों प्राप्त है राजनीतिक व ब्यूरोक्रेटस का समर्थन.? यह मथुरा का जवाहरबाग हो या छत्तीसगढ़ का अबूझमाड़ या बोडोलैण्ड- इतने दिनों से जो षडय़ंत्र पुलिस व  सरकार की नाक के नीचे चलता रहा उसे क्यों छोटे पौधे से एक बड़े विकराल वृक्ष के रूप में पनपने दिया?  एक छोटा आदमी जुर्म करता है तो उसे कई पुलिसवाले पीट पीटकर अदमरा कर देते हैं लेकिन देश के खिलाफ आवाज उठाने, हथियार जमा करने, आपत्तिजनक भाषण देने वालों को पनपने दिया जाता है और जब यह बड़ा खतरनाक रूप ले लेता है तो जिम्मेदार लोग सारा तमाशा देखते हैे तथा बहादुर पुलिस जवानों को बलि का बकरा बनाकर मैदान  में उतार दिया जाता है. आतंक के इस गढ़ को रौंधते- रौंधते पुलिस के योग्य अफसरों को अपनी जिंदगी से हाथ धोना पड़ा. मथुरा के जवाहर बाग में आंतक की एक बड़ी फौज दो साल से तैयार हो