वोटर की सोच में बदलाव, सबकों पूर्ण बहुमत पसंद.....






  समय के साथ- साथ अब देश के वोटरों की सोच में भी बदलाव आता जा रहा है. अब तक वोटर बिखरे हुए थे अब संगठित होने लगे हंैै.यह बात देश के पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद पूरी तरह स्पष्ट हो गया है. जनता अब किसी एक पार्टी पर विश्वास करेगी और किसी एक ही पार्टी को पूर्ण बहुमत से सत्तासीन भी करेगी। चुनाव परिणाम में यह भी स्पष्ट हो गया है कि जनता पहले से ज्यादा जागरूक और सोच समझकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रही है, वोटर चाहे वह किसी भी राष्ट्रीय पार्टी से ताल्लुख रखता हो किसी क्षेत्रिय पार्टी के चक्कर में फंसता नहीं  दिख रहा. लोक लुभावन नारे,लालच, मीठी चुपड़ी बाते व झूठे वादे करके सत्ता हासिल  करना अब एक कठिन होता  जा रहा हैै. पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में वोटर्स के जनाधार ने यह बात साफ कर दी है. 294 विधानसभा सीट वाले पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को वोटर्स ने 211 सीट देकर पूर्ण बहुमत दिया है वहीं तमिलनाडू की 234 विधानसभा क्षेत्र वाली विघानसभा में जयललिता की अन्नाद्रमुख पार्टी को एकतरफा 134 सीट का जनाधार यह बता रहा है कि जो काम करेगा अब उसे वोट मिलेगा. इस बार असम का चुनाव परिणाम सबको चौका देने वाला रहा यहां जनता ने भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी दलों असम गण परिषद व  बोडो पीपुल्स फ्रंट को 126 में से 86 सीट देकर  पहली बार सत्ता सौंपी. राज्य में 15 वर्षों से सत्ता में काबिज कांग्रेस की तरूण गोगई  सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया गया. कांग्रेस को इस राज्य से न केवल सत्ता खोनी पड़ी बल्कि एक शर्मनाक स्थिति का भी सामना करना पड़ा. यही हाल केरल में हुआ जनता ने कांग्रेस नीत यूडीएफ सरकार को सत्ता से बेदखल करते हुए माकपा नीत वाम मोर्चा एलडीएफ को 140 सीटों में से 85 सीट देकर राज्य में अपने बल बूते सरकार बनाने का न्यौता दे दिया। चारों राज्यों की तुलना में सबसे कम 30 सीटों वाले केन्द्र शासित राज्य पाण्डुचेरी में जनता ने कांग्रेस गठबंधन द्रमुख को 17 सीटें दी है. इस तरह पांचों राज्यों में जनता ने एक ही पार्टी पर विश्वास करते हुए पूर्ण बहुमत दिया है. इस चुनाव में त्रिशंकु प्रणाली देखने को नहीं मिली और न ही सरकार बनाने के लिए सीटों के लिए लेन देन की नौबत आई.यहां यह उल्लेखनीय है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी वहां के वोटर्स ने देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को नकार दिया और अंरविंद  केजरी वाल की नर्ई आम आदमी पार्टी को पूर्ण बहुमत दिया था. आम आदमी पार्टी दोनों पार्टियों को पटकनी देकर आज सत्ता में काबिज हैं. बिहार विधानसभा चुनाव में भी नीतिश कुमार एवं उनके सहयोगी दलों को जनता ने भारी बहुमत देकर जीत दिलाई थी. लोकसभा चुनाव में भी यह नजारा देखने मिला था जब भारतीय जनतापार्टी को देश की जनता ने पूर्ण बहुमत दिया.  छत्तीसगढ़ में भी भाजपा अपने बलबूते  पूर्ण बहुमत पर आई. मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान ऐसे  कई राज्य हैं जहां जनता ने इस बार एक पार्टी व उसके सहयोगी दल पर विश्वास किया है. देश के कुछ राज्यों को छोड़ दे तो बाकी राज्यों में पूर्ण बहुमत की स्थिति रही है. इस चुनाव से यह भी स्पष्ट हो गया कि जिन राज्यों में क्षेत्रिय पार्टी मौजूद हैं उन राज्यों में देश की दोनों बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस को वहां की क्षेत्रिय पार्टियों के साथ गठबंधन के बिना सत्ता नहीं मिलेगी क्यों कि क्षेत्रिय पार्टी उस राज्य के हित में कार्य करती है, यह पाॢयां जनता के लिए कार्य करती है और जनता उस पार्टी पर ज्यादा भरोसा करती है देश की सभी छोटी बड़ी पार्टियों को इस बात को समझना होगा नहीं तो भविष्य में कांग्रेस पार्टी की जो हालत है उसी तरह के हालात से उन्हें भी  गुजरना होगा. क्या इन चुनाव परिणामों से पार्टियां कुछ सीख पाएंगे? चुनाव सुधार की दिशा में कदम उठाने वालों को भी इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि देश में बदलते माहौल में बार बार चुनाव न हो इसके लिये पूरे देश में एक ही बार में पांच साल के लिये सारे चुनाव एक साथ करायें ताकि जनता पर चुनाव खर्च का बोझ न पड़े और बार बार चुनाव के झंझट से भी लोग बच सकें.

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