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मई, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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कच्चा तेल सस्ता, कंपनिया माला- माल, जनता बेहाल!

देश की आर्थिक स्थिति में उतार चढ़़ाव का एक बड़ा कारण पेट्रोल और डीजल हैै. इसके भाव बढे नहीं कि बाजार में चढ़ाव शुरू हो जाता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि एक बार डीजल पेट्रोल के भाव बढऩे के बाद वस्तुओं के भावों में जो वृद्वि होती है वह फिर नीचे नहीं उतरती. कहने का मतलब बढाने वाले बढ़ा देते हैं उन्हें उसका फायदा उन्हेें होता रहता है पिसता है वह गरीब प मध्यमवर्गीय जिसकी जेब से पैसा कटता है.सरकार का कोई नियंत्रण इस मामले में नहीं होने की वजह से ही ऐसा होता है.होना तो यह चाहिये कि हर किस्म की वस्तुओं पर सरकार अपनी निगरानी रखे और यह पता लगाती रहे कि जब पेट्रोल डीजल के भाव ऊपर-नीचे होते हंै तब बाजार की क्या प्रतिक्रिया होती है- ऊपर होने पर तो भाव ऊपर चढ़ा दिये जाते हैं लेकिन नीचे आते हैं तो कोई प्रतिक्रिया बाजार में नहीं होती अर्थात बढा हुआ कारोबार ही चलता रहता है.अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गिरते तेल की कीमतों की वजह से पिछले दो वर्षो में तेल विपणन करने वाली कंपनियों को जहां रिकार्ड मुनाफा हो रहा है, वहीं वे घरेलू बाजार में डीजल और पेट्रोल की कीमतें कम कर जनता को फायदा नहीं पहुंचा रही हैं-इ

माननीयो की सेलरी दो गुनी करने की सिफारिश पर पीएम का वीटो!

ससंद में भले ही हर दिन किसी ेन किसी मसले पर हंगामा हो लेकिन जब माननीयों के अपने हित की बात आती  है तो सब एक मत हो जाते हैं -यही हो रहा है सासंदों के वेतन के मामले में-सांसद चाहते हैं कि उनकी सैलरी और अलाउंस में  दो गुना अर्थात 100 प्रतिशत का इजाफा कर दिया जाये. एक पार्लियामेंट्री कमेटी ने इसकी सिफारिश भी कर दी लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता के दर्द को समझा है तथा उन्होनें इसकी प्रक्रिया का विरोध किया है उनके अनुसार माननीयों को अपनी सैलरी पैकेज के बारे में खुद फैसला नहीं करना चाहिए वे चाहते हैं कि इसके लिये एक नया रास्ता देखा जाये. मोदी ने कहा है कि कोई और बॉडी तय करे...उनके अनुसार सांसदों की सैलरी का फैसला पे कमीशन या उस जैसी कोई और बॉडी करे, जो वक्त के हिसाब से इसमें बढ़ोतरी करती रहे। मोदी का सुझाव है कि सांसदों की सैलरी को प्रेसिडेंट, वाइस प्रेसिडेंट या कैबिनेट सेक्रेटरी जैसी पोस्ट की सैलरी में होने वाली बढ़ोतरी से लिंक कर देना चाहिए- पीएम के मुताबिक, सांसद इस पर खुद फैसला ना करें, बल्कि इन टॉप पोस्ट्स पर बैठे लोगों की सैलरी बढ़ाने का जब कभी कोई पे कमीशन फैसला करे, वही

स्वास्थ्य की तरह अन्य विभागों के रिक्त पदों पर भी तो नियुक्ति हो सकती है!

गांवों मे  झोला छाप डाक्टरों से  मुक्ति की दिशा में हाल ही एक ठेासे कदम मुख्यमत्री डाक्टर रमन सिंह ने उठाया उसके बाद से अब ऐसी संभावना बन गई है कि गांवो में लोगों को बेहतर इलाज प्राप्त हो सकेगा लेकिन एक प्रशन अब भी बना हुआ है कि शहरों की ओर भागम दौड के चलते क्या चिकित्सक गांवों में पांव जमाकर अपनी सेवा दे सकेंगे? प्रदेश सरकार ने ग्रामीण और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिये यह कदम उठाया है कि बगैर साक्षात्कार के ही डॉक्टरों की नियुक्ति करने का आदेश जारी किया. स्वास्थ्य विभाग ने प्रदेश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने 200 नियमित डॉक्टरों की भर्ती के लिए विज्ञापन भी निकाला और इन पदों के लिए 800 आवेदन आए. इन आवेदनों का परीक्षण जब पूरा हुआ तो 609 आवेदनों को सही पाया गया और मुख्यमंत्री ने सभी पात्र डॉक्टरों को बगैर साक्षात्कार के सीधे नियुक्त करने का निर्देश दे दिया।.पूरे छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों के 539 पद रिक्त है जिन्हें शासन को भरना था लेकिन मुख्यमंत्री के इस आदेश के बाद 609 डॉक्टरों की प्रदेश में अब शीघ्र ही नियुक्ति हो जाएगी. इस आदेश से स्वास्थ्य विभाग की

यह दो साल... अभी तो ट्रेलर था, आगे देखे क्या होता है...!

दो साल पहले केंद्र में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तब यह उम्मीद की जा रही थी कि देश की अर्थ व्यवस्था जल्द ही पटरी पर आ जाएगी,महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा, काला धन वापस आ जायेगा-कई बेरोजगारों को रोजगार मिल जायेगा लेकिन चाहकर भी सरकार कई प्रमुख बदलाव लाने में असफल रही, अपने कार्यकाल के दो वर्षो  में सरकार न तो वस्तु सेवा कर (जी.एस.टी.) बिल संसद में ला सकी और न ही भूमि अधिग्रहण बिल पास करा सकी. संसद में नाकाम होने पर भूमि अधिग्रहण बिल को केंद्र सरकार ने राज्यों के हवाले कर दिया लेकिन उसका फायदा जो उद्योगों और उद्यमियों को मिलना चाहिए था, नहीं मिल रहा.एस.ई.जैड. के कई प्रोजैक्ट जमीन नहीं मिलने की वजह से अटके पड़े हैं. सरकार की भी तमाम योजनाएं जमीन न मिल पाने से जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं. प्रधानमंत्री की अति महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडियाÓ तक ठीक ढंग से नहीं चल पा रहीै. आर्थिक क्षेत्र में बदलाव के लिए जी.एस.टी. को सबसे अहम बताया जा रहा है लेकिन सरकार इस पर तमाम राज्यों के साथ एकराय नहीं बना पाई और संसद में भी विपक्ष को साधने में नाकाम रही है, जिसके चलते यह बिल अब तक संसद के पटल तक

नेपाल अच्छा मित्र था, वह ड्रेगन की चाल में कैसे फंसा....?

 यह एक विड़म्बना ही है कि हमारे आसपास कोई हमारा अच्छा और भरोसेमंद दोस्त नहीं है. हम नेपाल को अपना अच्छा पडौसी समझते थे लेकिन जो दूरियां उससे हाल के महीनों में बड़ी है वह हमें चिंतित करती है. चीन, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, श्रीलंका सब हमारें पडौसी देश है लेकिन आज की स्थिति में हम किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते. भारत और नेपाल के बीच संबंधों की शुरूआत 1950 में नेपाल के तत्कालीन शासकों के साथ भारत-नेपाल शांति एवं मैत्री संधि द्वारा हुई थी जिसके अंतर्गत दोनों देशों के बीच पारस्परिक व्यापार और प्रतिरक्षा संबंधों को परिभाषित किया गया था, इसमें कहा गया था कि, ''कोई भी सरकार किसी विदेशी आक्रामक द्वारा एक-दूसरे की प्रतिरक्षा को पैदा किया जाने वाला खतरा बर्दाश्त नहीं करेगी और दोनों ही देशों के बीच संबंधों में कटुता पैदा करने वाले कारणों के बारे में एक-दूसरे को सूचित करेगी।ÓÓ समझौते के बाद दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत हुए थे तथा भारत ने नेपालियों को अपने देश में भारतीयों के समान ही शैक्षिक एवं आर्थिक क्षेत्रों में प्राथमिकता वाला दर्जा देने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की थी जिस पर भ

एनआईए की साख पर दाग! निष्पक्ष एजेंसी कौन सी?

मुंबई में २६/११ के आतंकवादी हमलों के बाद तत्कालीन सरकार ने आतंकवादी हमला मामलों की जाँच के लिए राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) बनाई थी, तब यह माना  गया कि यह एजेंसी राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करेगी लेकिन शायद ऐसा हुआ नहीं. इस एजेंसी ने जितने मामलों की जाँच अपने हाथ में ली उसमें से ज्यादातर में जाँच इतनी लंबी खिंच गई कि आरोपियों को न केवल राहत मिली बल्की इसके जाल से निकलने का मौका भी मिल गया. २००८ में महाराष्ट्र के मालेगाँव मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को क्लीन चिट ने इसकी पुष्टि कर दी. पहले उसने समझौता ट्रेन बम धमाके के मामले में कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट दी और अब साध्वी प्रज्ञा को मालेगाँव बम धमाका मामले में कोई सबूत नहीं होने के चलते क्लीन चिट दे दी. इससे पहले एनआईए ने जब समझौता बम धमाका और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट मामले में आरोपी स्वामी असीमानंद को जमानत के खिलाफ अपील नहीं करने की बात कही थी तभी लगने लगा था दकि अगला नंबर प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित का होगा. भगवाधारियों की जब गिरफ्तारी हुई तब यह मामला दुनिया के अखबारों की सुर्खियोंं में था तब आतंकवाद का

अत्याचारों पर यह चुप्पी कैसी? क्यों रिएक्ट करना छोड़ दिया लोगों ने!

 हममें असंवैधनहीनता कितनी घर कर गइ्र्र है हम किसी खास घटना पर रिएक्ट ही नहीं करते, मूक दर्शक बने सब देखते हैं और मूक ही बने रहते हैं.वास्तविकता यही है कि हमारे आसपास कोई भी बड़ी से बड़ी घटनाहो जाये, हम ऐसा शो करते हैं कि हमने कुछ न देखा ,न सुना-हां- बनते जरूर हैं कि अरें! हमें तो पता ही नहीं चला.फिल्मों ने इस मामले में जरूर जारूकता दिखाई है,कई फिल्मे ऐसी घटनाओं पर बनी है लेकिन समाज अब तक ऐसी घटनाओं पर रिएक्ट करने लायक नहीं हो पाया, चाहे वह सड़क पर कोई व्यक्ति किसी के वार से कराह रहा हो या किसी  महिला के साथ सरे आम छेड़छाड़ की जा रही हो या कोई किसी को लूटकर भाग रहा हो-अथवा कोई ट्रेन में किसी असहाय के साथ दुव्र्यवहार कर रहा हो-हम इतना साहस भी नहीं कर पाते कि ऐसे विरोधी ताकतो का मुकाबला करें.हमारे समाज व कानून ने मनुष्य को कुछ ऐसा बना दिया कि वह चाहते हुए भी किसी प्रकार का एक्शन नहीं ले पाता. यू पी, बिहार हो या देश का अन्य कोई भी भाग, इस प्रकार की निष्क्रियता  से समाज भरा पड़ा है. लोगों में इतनी हिम्मत भी नहीं रह जाती कि अपने या अपने सगे संबन्धी पर हुए अन्याय का प्रतिरोध कर सकें. आप

डाक्टरी 'व्यवसायÓ पर सुको का जबर्दस्त प्रहार!

भारतीय मेडिकल कौंसिल को सन् 2010 मेंं इसलिये बंद करना पड़ा था चूंकि इसके अध्यक्ष घूस लेते पकड़े गये थे. अब सर्वोच्च न्यायालय ने डॉक्टरी के धंधे पर जबर्दस्त प्रहार किया है. उसने अपने एक फैसले में कहा है कि यह पवित्र कार्य अब 'धंधाÓ बन गया है, जिसका लक्ष्य सिर्फ पैसा कमाना रह गया है। कौंसिल डॉक्टरी शिक्षा के मानदंड कायम करती है, डॉक्टरों की डिग्रियां तय करती है और देश की चिकित्सा-व्यवस्था पर नियंत्रण रखती है. कौंसिल ने पिछले पांच-छह वर्षों में भी अपने काम में कोई सुधार नहीं किया है- एक संसदीय कमेटी की जांच रिपोर्ट में भी कौंसिल की कारस्तानियों की कड़ी भर्त्सना की गई रपट इस साल मार्च में आई उसके पहले 2014 में एक विशेषज्ञ समिति ने भी इस कौंसिल की काफी खिंचाई की थी लेकिन सरकार ने कोई ठोस-कार्रवाई नहीं की मजबूर होकर सर्वोच्च न्यायालय ने इस मेडिकल कौंसिल को लगभग भंग कर दिया है ,पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता में उसने एक कमेटी बना दी है, जो तब तक काम करती रहेगी, जब तक कि कोई नया मेडिकल आयोग नहीं बन जाता.सर्वोच्च न्यायालय ने इस कौंसिल के अधिकार छीनने का जो फैसला दिया है,

कार्यपालिका, विधायिका सुस्त हो तो न्यायपालिका दखल तो करेगी ही!

कार्यपालिका और विधायिका पर बहस एक आम बात है किन्तु हमारी मौजूदा संसदीय लोकतांत्रिक पद्धति के तीसरे खंबे न्याय पालिका पर बहस नगण्य है जितनी है वह प्रकृति में अकादमिक है और केवल सेवा निवृत्त न्यायाधीशों, वकीलों के संगठनों और गिने चुने राजनेताओं तक सीमित है. आमजन उससे बहुत दूर है, विगत कुछ समय से न्याय व्यवस्था पर खुली बहस की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई है.संसदीय लोकतंत्र में न्याय पालिका की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन उसकी कार्यप्रणाली में अनेक कमजोरियाँ और कमियाँ भी हैं जिन्हें दुरूस्त किया जाना आवश्यक है जिससे न्याय व्यवस्था की दक्षता को उन्नत बनाया जा सके. कुछ लोग यह राय प्रकट करते हैं कि न्यायपालिका की आलोचना से न्यायव्यवस्था पर से जनता का विश्वास उठ सकता है जो कि अत्यन्त खतरनाक स्थिति होगी किन्तु जनतांत्रिक मूल्य इस राय से सहमत होने की अनुमति प्रदान नहीं करते.किसी भी व्यवस्था की आलोचना के बिना उसकी कमियों, कमजोरियों और दोषों को दूर किया जाना संभव नहीं है और ये कमियां, कमजोरियां तथा दोष ही व्यवस्था में जन-विश्वास को समाप्त कर देते हैं.न्याय प्रणाली में जन विश्वास को केवल कमियों, कमजोर

नशा ही दुर्घटनाओं की जड़ है,कठोर कदम जरूरी!

संपूर्ण विश्व में नशे में ड्रायंिवंग एक समस्या बनकर उभरी है. हाल के दिनों मे छत्तीसगढ़ में हुई दुर्घटनाओं का विश्लेषण किया जाये तो अधिकांश का कारण नशा ही  हैै-या तो हम शराब और अन्य नशीली वस्तुओं पर पूरी तरह पाबदंी लगाये या फिर ऐसा करने वालों पर सतत निगरानी रख उन्हें दङ्क्षंडत करें.ऐसे लोग न स्वंय आत्म हत्या कर रहे हैं या फिर दूसरों की हत्या कर रहे हैं यहां तक कि सामूहिक हत्या भी!  ताजा  उदाहरण बलरामपुर का है जहां नशें में धुत्त बस ड्रायवर ने बाइक सवारों को बचाने के चक्कर में पुल से नीचे गिरा दिया. कम से कम सत्रह लोगों की यहां मौत हुई. इससे पूर्व भी ऐसी कई घटनाएं हुई  हैं जो अखबारों की सुर्खियां बनकर विलीन हो गई. दुर्घटनाओ के वैसे कई कारण है लेकिन पहला कारण ड्रायवर का नशे मे होना है जो एक विश्वव्यापी समस्या बनी हुई है. नशे में ड्राइविंग करने से अब तक कितने लोगों की जान जा चुकी है इसका कोई हिसाब नहीं है. हर पल कोई न कोई बड़ी दुर्घटना होती है तथा इसमे प्रमुख वजह ड्रायवर का नशे में गाड़ी चलाना है. देश के बड़े शहरों में ऐसी घटनाएं हर रोज़ देखने व सुनने  को मिल रही हैं। सरकार ऐसे लोगों के

नक्सलियों से निपटने अब आयेगी महिला सीआरपीएफ!

नक्सली समस्या से निपटने  के लिये रोज नये नये प्रयोग हो रहे हैं लेकिन समस्या है कि हल होने की जगह उलझती ही जा रही है. आम आदमी की जुबान पर बस एक ही सवाल है कि आखिर क्या होगा इसका अंत? सरकारी तौर पर एक और जहां यह वादे किये जा रहे हैं कि बडे बड़े नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं तो वहीं नक्सली अपनी ठोस सक्रियता का दावा भी तुरन्त दिखा देते हैं.बड़े नक्सली हमले  के बाद सरकार समस्या से निपटने कई दावे करती है उसके बाद फिर कोई बड़ी वारदात होने  पर नये सिरे से पहल होती है. हाल के महीनों में सरकार की कार्यवाही में ड्रोन, हवाई पट्टी जैसी बाते सामने आई तो अब खबर आ रही है कि सरकार सारी  पुरानी परंपरा को तोड़कर देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ की 560 से ज्यादा महिला कमांडों को नक्सल प्रभावित इलाकों में भेजने की तैयारी कर रही है सरकार मानती है कि नक्सल समस्या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है.नक्सलियों के बीच महिला नक्सली भी भारी तादात में मौजूद है और अब इन दोनों से लडऩे के लिये महिला सीआरपीएफ की मौजूदगी क्या गुल खिलायेगी यह आगे देखना महत्व रखता है. नक्सलियों के खिलाफ अभियान का ह

प्रभु की ट्रेन सेवा-हाथी के दांत खाने के कुछ दिखाने के कुछ!

इसमें  दो मत नहीं कि रेलवे ने सतही तौर पर बहुत ऐसे काम किये हैं जो यात्रियों व जनता के बीच किसी न किसी रूप में चर्चित हैं किन्तु जो सुविधाएं दी जा रही है उसकी क्वालिटी कितनी ठीक है यह न रेलवे के लोग देख रहे हैं और न रेल  मंत्रालय और न ही रेलवे मिनिस्टर. एक थर्ड एसी की सीट पर दो तीन लोग आरएसी टिकिट पर सोते नजर आये तो इसे क्या कहना चाहिये? इसी प्रकार जो रेल मंत्रालय डिस्कवरी जैसे विश्व स्तरीय चैनल पर लाखों रूपये खर्च कर  खाना बनाने के तरीके को दिखाता है उसकी  हकीकत अगर लोग जान जाये तो शायद खाना खाना ही छोड़ दे. राजधानी जैसी  ट्रेन में जो खाना परोसा जा रहा है वह सिर्फ एक भूखे व्यक्ति को संतुष्ट कर सकता है, कि सी पर्यटक व दूरस्थ यात्रा करने वाला इसे या तो वापस कर दे या कूड़े में फेक दे. किसी प्रकार का टेस्टी खाना न परोसा जाता है ओर न मांगने पर दिया जाता है. भारी भरकम टिकिट लेकर यात्रा करने वाले यात्री सिर्फ इस गर्मी के मौसम में एसी की ठंडी  हवा का मजा ले सकते है उसके सिवा कोई अन्य सुविधाएं रेलवे से प्राप्त हो जाये इसकी उम्मीद नहीं करनी चाहिये. हां किराये के मामले में लगातार संशोधन हो र

यह दो साल... अभी तो ट्रेलर था, आगे देखे क्या होता है...!

खे क्या होता है...!दो साल पहले केंद्र में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तब यह उम्मीद की जा रही थी कि देश की अर्थ व्यवस्था जल्द ही पटरी पर आ जाएगी,महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा, काला धन वापस आ जायेगा-कई बेरोजगारों को रोजगार मिल जायेगा लेकिन चाहकर भी सरकार कई प्रमुख बदलाव लाने में असफल रही, अपने कार्यकाल के दो वर्षो  में सरकार न तो वस्तु सेवा कर (जी.एस.टी.) बिल संसद में ला सकी और न ही भूमि अधिग्रहण बिल पास करा सकी. संसद में नाकाम होने पर भूमि अधिग्रहण बिल को केंद्र सरकार ने राज्यों के हवाले कर दिया लेकिन उसका फायदा जो उद्योगों और उद्यमियों को मिलना चाहिए था, नहीं मिल रहा.एस.ई.जैड. के कई प्रोजैक्ट जमीन नहीं मिलने की वजह से अटके पड़े हैं. सरकार की भी तमाम योजनाएं जमीन न मिल पाने से जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं. प्रधानमंत्री की अति महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडियाÓ तक ठीक ढंग से नहीं चल पा रहीै. आर्थिक क्षेत्र में बदलाव के लिए जी.एस.टी. को सबसे अहम बताया जा रहा है लेकिन सरकार इस पर तमाम राज्यों के साथ एकराय नहीं बना पाई और संसद में भी विपक्ष को साधने में नाकाम रही है, जिसके चलते यह बिल अ

वोटर की सोच में बदलाव, सबकों पूर्ण बहुमत पसंद.....

  समय के साथ- साथ अब देश के वोटरों की सोच में भी बदलाव आता जा रहा है. अब तक वोटर बिखरे हुए थे अब संगठित होने लगे हंैै.यह बात देश के पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद पूरी तरह स्पष्ट हो गया है. जनता अब किसी एक पार्टी पर विश्वास करेगी और किसी एक ही पार्टी को पूर्ण बहुमत से सत्तासीन भी करेगी। चुनाव परिणाम में यह भी स्पष्ट हो गया है कि जनता पहले से ज्यादा जागरूक और सोच समझकर अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रही है, वोटर चाहे वह किसी भी राष्ट्रीय पार्टी से ताल्लुख रखता हो किसी क्षेत्रिय पार्टी के चक्कर में फंसता नहीं  दिख रहा. लोक लुभावन नारे,लालच, मीठी चुपड़ी बाते व झूठे वादे करके सत्ता हासिल  करना अब एक कठिन होता  जा रहा हैै. पांच राज्यों के चुनाव परिणामों में वोटर्स के जनाधार ने यह बात साफ कर दी है. 294 विधानसभा सीट वाले पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को वोटर्स ने 211 सीट देकर पूर्ण बहुमत दिया है वहीं तमिलनाडू की 234 विधानसभा क्षेत्र वाली विघानसभा में जयललिता की अन्नाद्रमुख पार्टी को एकतरफा 134 सीट का जनाधार यह बता रहा है कि जो काम करेगा अब उसे वोट मिलेगा

फांसी की सजा पर फिर सवाल,बस दुनिया के तेरह देशों में फांसी !

विश्व के मात्र तेरह देश इस समय जघन्य अपराध करने वालों को सजाएं मौत देती हैं,इनमें पाकिस्तान तीसरे नम्बर पर है कि न्तु यहां फांसी असल अपराधी की जगह ऐसे लोगों को देने का आरोप मानव अधिकार संगठनों ने लगाया है जो वास्तव में इसके पात्र नहीं है.2014 में फांसी देने वाले दस प्रमुख देशों में भारत का नाम था चूंकि 2014 में भारतीय अदालतों ने 64 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी अब पाकिस्तान मुजरिमों को फांसी पर लटकाने वाले देशों में तीसरे स्थान पर हो गया है. अंतरराष्ट्र्रीय मानवाधिकार संगठन  एमनेस्टी इंटरनेशनल पाकिस्तान में दी जाने वाली फांसियों पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहता है कि पिछले साल पाकिस्तान में 324 लोगों को  फांसी दी गई इनमें ज्यादातर ऐसे अपराधी शामिल थे जिनका आतंकवाद से कोई वास्ता नहीं था.पेशावर आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमले के बाद से 351 लोगों को पाकिस्तान में फांसी दी गई उनमें केवल 39 लोग ऐसे थे जो आतंकवाद से जुड़े थे या उनका संबंध आतंकी संगठनों से था,मानवाधिकार संगठन यह दावा कर रहा हैं कि पाकिस्तान में मानसिक रोगी, युवा अपराधी और ऐसे कैदी जिनपर अत्याचार किया गया या उन्हें पूरे रूप में न्

पैसा कमाने वाली बैकों की लचर सेवा-लचर एटीएम, लचर सुरक्षा!

देश की विशेषकर छत्तीसगढ़ में मौजूद राष्ट्रीयकृत बैंकें जनता का कितना भला करती हैं यह तो वे ही बता सकते हैं लेकिन हम जो आंखों से देखते हैं और महसूस करते हैं वह यही है कि यह बैंक अपने उपभोक्ताओं के प्रति खरा नहीं उतर रहे हैं- बैेंक ों को अपने हित व अपनी कमाई की ज्यादा चिंता है. उपभोक्ता जाये भाड़ में -हम तो अपनी चाल चलेंगे- के सिद्वान्त पर चल रहे हैंं जिसपर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है. यह तो किसी अच्छे इंसान  की उपज थी जिसने पैसा निकालने और भरने की मशीन बना दी वरना आज बैंक और  तानाशाह बैंकों के रूप में जाने जाते.आप में से कई लोगों छत्तीसगढ़ के एटीएमों से पाला पड़ा होगा और आपने उसकी कार्यप्रणाली पर कोसा भी होगा, ऐसे में से ही एक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एनआईटी के सामने लगा है एक एटीएम है और दूसरा डिपोजिट मशीन जो इतनी पुरानी व घटिया हो गई है कि इसे क बाड़ी भी न खरीदे-अक्सर इसको खराब है के कार्डबोर्ड से बंद कर दिया जाता है.यही हाल कचहरी ब्रांच में स्थापित पैसा जमा भरने की मशीन का है. एटीएम व सेविंग  मशीन दोनों अक्सर खराब रहती है.कचहरी  चौक जहां संपूर्ण छत्तीसगढ़ पैसा निकालने भरने

एक झटके में आई बला.....और सत्रह लोगों को ले गई!

उन्हें इतना भी मजबूर न करें कि वे फांसी पर चढ़ जायें! बाल सुधार की दिशा में उठाए गए उपायों और प्रगति के तमाम दावों के बावजूद भारत में  कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. देश में रोजाना औसतन ऐसे आठ से दस बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं.राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों से यह कड़वी हकीकत सामने आई है. सामाजिक माहौल में बदलाव, माता-पिता का रवैया और उम्मीदों का बढ़ता दबाव ही इसकी प्रमुख वजह बताई जा रही है. आत्महत्या को नम्बर के हिसाब से देखा जाये तो मध्य प्रदेश का नम्बर पहला है उसके बाद तमिलनाडु पश्चिम बंगाल  का नंबर है. मध्य प्रदेश में हुई  घटनाओं में लड़के लड़कियां दोनों शामिल हैं. बच्चों में बढ़ती इस प्रवृत्ति की कई वजहें हैं. एक दशक पहले के मुकाबले मौजूदा दौर में बच्चे अपने आसपास के माहौल और हालात से जल्दी अवगत हो जाते हैं.  ज्यादातर बच्चे कम उम्र में इन हालातों से उपजे मानसिक दबाव को नहीं सह पाते.मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कम तादाद और स्कूली स्तर पर काउंसलरों की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से बच्चों के पास अपनी भावना

उन्हें इतना भी मजबूर न करें कि वे फांसी पर चढ़ जायें!

उन्हें इतना भी मजबूर न करें कि वे फांसी पर चढ़ जायें! बाल सुधार की दिशा में उठाए गए उपायों और प्रगति के तमाम दावों के बावजूद भारत में  कम उम्र के बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है. देश में रोजाना औसतन ऐसे आठ से दस बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं.राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी ताजा आंकड़ों से यह कड़वी हकीकत सामने आई है. सामाजिक माहौल में बदलाव, माता-पिता का रवैया और उम्मीदों का बढ़ता दबाव ही इसकी प्रमुख वजह बताई जा रही है. आत्महत्या को नम्बर के हिसाब से देखा जाये तो मध्य प्रदेश का नम्बर पहला है उसके बाद तमिलनाडु पश्चिम बंगाल  का नंबर है. मध्य प्रदेश में हुई  घटनाओं में लड़के लड़कियां दोनों शामिल हैं. बच्चों में बढ़ती इस प्रवृत्ति की कई वजहें हैं. एक दशक पहले के मुकाबले मौजूदा दौर में बच्चे अपने आसपास के माहौल और हालात से जल्दी अवगत हो जाते हैं.  ज्यादातर बच्चे कम उम्र में इन हालातों से उपजे मानसिक दबाव को नहीं सह पाते.मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कम तादाद और स्कूली स्तर पर काउंसलरों की कोई व्यवस्था नहीं होने की वजह से बच्चों के पास अपनी भावन

जंगलों में आग...प्राकृतिक या कृत्रिम-सावधानी की जरूरत!

वैसे तो विश्व के जंगलों में आग सामान्य सी बात है. अभी कुछ ही महीनों पहले-अमरीका के जंगलों में भीषण आग लगी थी लेकिन भारत के उत्तराखंड से लेकर कई अन्य राज्यों तक में फैले जंगलों में इस भीषण गर्मी के दौरान आग लगने की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. आग की भीषणता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि आग बुझाने  के लिये वायुसेना और थल सेना दोनों का सहारा लेना पड़ा. एक साथ कई जंगलों में आग की घटना ने यह सोचने के लिये विवश कर दिया है कि कहीं आग किसी ने जानबूझकर तो नहीं लगाई.? कई हैक्टर के जगल जलकर राख हो गये जगंली जानवर भी काफी तादात में जलकर मर गये होंगे. वास्तविकता यही है कि इस साल लगी आग ने पहाड़ के लोगों और वन्यजीवों पर कहर बरपा दिया. यह जानना जरूरी है कि हमारी वन संपदा को कौन खाक कर रहा है. कहीं इसके लिये पा्रकृतिक घटनाओंं की जगह मानव तो जिम्मेदार नहीं है? सोशल मीडिया पर जंगलों में दहक रही इस आग के लिए लकड़ी माफियाओं को जिम्मेदार माना जा रहा है क्योंकि हर साल वन विभाग द्वारा गिरे या सूखे पेड़ की निलामी की जाती है.आग लगाने से बड़ी संख्या में वन संपदा को नुकसान पहुंचता है और वन माफिया

मेडिकल प्रेवेश परीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला!

अब सभी सरकारी, निजी कॉलेजों और डीम्ड विश्वविद्यालयों में राष्ट्र्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा के जरिए ही दाखिले दिए जा सकेंगे.अभी तक अलग-अलग कॉलेज और विश्वविद्यालय अपने ढंग से प्रवेश परीक्षाएं आयोजित करते आ रहे थे, इस तरह विद्यार्थियों को हर प्रवेश परीक्षा के लिए अलग-अलग तैयारी करनी पड़ती थी. हर प्रवेश परीक्षा का आवेदन करने के लिए फीस भी अदा करनी पड़ती थी. इस तरह विद्यार्थियों पर पैसे और परीक्षा का तनाव अधिक बना रहता था.करीब छह साल पहले अध्यादेश जारी किया गया था कि देश भर के चिकित्सा संस्थानों में दाखिले के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा का प्रावधान होगा मगर कुछ निजी और अल्पसंख्यक संस्थाओं को आपत्ति थी कि यह शर्त उन पर थोपी नहीं जानी चाहिए मगर सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी यह दलील खारिज कर दी इसके बाद चिकित्सा संस्थानों में प्रवेश को लेकर चला आ रहा द्वंद्व आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से खत्म हो गया. अलग-अलग परीक्षाएं लेने और निजी कॉलेजों में प्रबंधन का कोटा निर्धारित होने के कारण उनमें ऐसे विद्यार्थियों के प्रवेश की गुंजाइश रहती थी, जिनके माता-पिता आर्थिक रूप से सक्षम हैं इससे कमजोर आर्थ

पैसा किसने खाया! अगस्ता सौदे की काली कमाई किसके खजाने में?

 इटली के उच्च न्यायालय में एक पत्र के माध्यम से अगस्ता वेस्टलैंड  सौदे को लेकर  बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल ने बताया कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस सौदे की ''मुख्य लाभार्थीÓÓ हैं। हालांकि मीडिया से बातचीत में मिशेल ने कहा है कि वह कभी किसी गांधी से नहीं मिला। इतालवी अदालत में अगस्ता वेस्टलैंड मामले में जो फैसला आया है उसमें कांग्रेस के पांच शीर्ष राजनीतिज्ञों और पूर्व वायुसेना अध्यक्ष एस.पी. त्यागी का नाम बताया जा रहा है। कथित रूप से फैसले में चार बार सिग्नोरा गांधी का नाम आया है। इतालवी भाषा में सिग्नोरा का अर्थ श्रीमती होता है। हालाँकि फैसले में किसी भी कांग्रेस नेता के रिश्वत लेने की बात नहीं कही गयी है लेकिन दस्तावेजों में यह बात जरूर कही गयी कि इस करार को पूरा करवाने के लिए सोनिया गांधी, अहमद पटेल, आस्कर फर्नांडिस जैसे बड़े नेता माहौल बना सकते थे। इस करार पर बातचीत वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में शुरू हुई थी जिसे 2010 में तब मंजूरी प्रदान की गयी जब वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी देश के रक्षा मंत्री थे। अगस्ता वेस्टलैंड मामले को लेकर देश का राजनीतिक माहौल  गरम है कहा

My Father and Mother

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मेरे माता पिता यही है. मैरे आदर्श...मुझे जीवन दिया आज सिर्फ उनकी स्म्रतियां शेष रह गई है.

रवि थॉमस

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