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अप्रैल, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अस्पताल भगवान भरोसे तो मरीज की जिदंगी भी भगवान भरोंसे!

कहने को तो डीके अस्पताल से मेकाहारा और बाद में डा. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है.राज्य के आसपास के राज्यों से भी गरीब लोग यहां पहुंचते हैं लेकिन इसके करम ऐसे हैं कि लोगों को इसकी हरकतों पर कभी शर्म और कभी तरस आता है.हाल ही इस अस्पताल ने ऐसी हरकत कर डाली कि छत्तीसगढ़ को शर्म से सिर झुकाना पड़ा. सिर्फ एक हजार रूपयें के लिए शव को 3 घंटे तक रोके रखा.शव उस समय छोड़ा गया जब आसपास के मरीजों ने पैसा एकत्रित कर पीडि़त गरीब परिवार को दिया.अब तक ऐसे बर्ताव के किस्से कतिपय निजी अस्पतालों से ही सुनने को मिलते थे  अब इस प्रदेश का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल भी इस श्रेणी में शामिल हो गया. आखिर कौन है इसके लिये जिम्मेदार? अस्पताल में होने वाली प्राय: हर ऐसी गलतियों को नीचे से लेकर ऊपर लेवल तक छिपाने की एक परंपरा चली आ रही है और इस अस्पताल को चलाने वाले करता धरता ऐसे हर मामले में पतली गली से निकल जाते हैं- वे इस बात का हर संभव प्रयास करते है कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे.तीन घंटे तक शव को रोके रखने का जो विवरण हमें प्राप्त हुआ है वह इतना घिनौना है कि हमें अपने आप

नाबालिग यह कहां जा रहे हैं?...इनका तो पहला कदम ही गलत!

इससे पूर्व कि आपराधिक प्रवृत्ति की और बढ़ते नाबालिगों के बारे में कुछ कहे हम एक किस्सा सुनाते हैं-एक बच्चे के पैदा होने के बाद से लेकर युवा और जवान होते तक उसकी मां ने उसे वह सब कुछ दिया जो वह मांगता था. कई मसलों पर उसके परिवार वाले भी विरोध करते कि इतना लाड़ प्यार न करों  कि वह बिगड़ जाये किन्तु मां कहां अपने लाडले के खिलाफ कुछ सुनने वाली थी. लड़का धीरे धीरे बड़ा हुआ तो उसकी मांग भी बढने  लगी स्कूल जाने की जगह आवारा बच्चों के साथ घूमने लगा.बीड़ी सिगरेट शराब की लत लग गई. मां को यह सब मालूम था फिर भी वह अवाइड करती रही. लड़का जब घर से पैसा नहीं मिलता तो चोरी करने लगा. उसे भी मां ने नहीं  रोका फिर वह लड़ाई झगडे भी करने लगा अच्छा खासा गुण्डा बन गया मां ने फिर भी कुछ नहीं कहा अंतत: उसने एक का खून कर दिया और जेल में ठूस दिया गया,अदालत ने उसे फांसी  की सजा सुना दी.फांसी पर चढ़ाने के पूर्व जब उससे अंतिम इच्छा पूछी तो उसने कहा कि मैं एक बार अपनी मां से मिलना चाहता हूं-उसे मिलने दिया गया. मां जब पहुुंची तो उसने  अपनी मां को अपने  पास बुलाया और उससे लिपट गया और इतनी जोर से मां के कान को काटा

आगे के वर्षो में लाखों लंबित पड़े मुकदमों का निपटारा हो पायेगा!

भारत की अदालतों में लाखों लंबित पड़े मामलों और न्यायपालिका की मुश्किलों का जिक्र करते हुए मुख्य न्यायाधीश प्रधानमंत्री की मौजूदगी में भावुक हो गए.भारत में न्यायपालिका की निंदा अकसर इस बात को लेकर होती है कि बहुत सारे मुकदमे बिना फैसले के पड़े हुए हैं और अनेक मामलों में फैसला होने में कई साल लग जाते हैं. स्वाभाविक है कि इसके कारण जनता में गुस्सा है, जबकि इसके पीछे बहुत सारी वजहें है जिनका लोगों को पता नहीं होता है. न्याय में देरी न्याय न मिलने के बराबर होती है. चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने  न्यायपालिका का बचाव करते हुए सरकारों को कटघरेें मेेें खड़े करते हुए सवाल उठाए हैं.आज भी देश में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 15 जज हैं .जस्टिस ठाकुर के अनुसार 1987 में लॉ कमीशन ने जजों की संख्या बढ़ाने की बात कही थी, लेकिन आजतक ऐसा नहीं हो पाया है। भारतीय  संविधान लागू होने से पहले जजों की भूमिका बहुत सीमित थी। उनके पास रिट संबंधी अधिकार नहीं थे, न ही सरकार या सरकारी अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर आपत्ति करने का अधिकार था,इसलिए उस जमाने में जजों की संख्या कम रखी गई थी।  जब 1950 में संविधान ने पहली बार नागरिक

एलईडी क्या किसानों के घरों में रौशनी कर पायेगी?

 देश,राज्य या परिवार की उन्नती उसकी साख व आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है-जितनी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी उतना ही देश, राज्य व घर प्रगति के सौपान को पार करेेगा प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय उजाला योजना के माध्यम से प्रदेश के गांवों के हर परिवार को एलईडी लैंप से रोशन करने का बीड़ा अपने कंधों पर लिया है.सरकार का यह कदम बिजली की खपत कम करने उठाया गया माना जा रहा है, इसके पीछे और भी कोईउद्देश्य हो सकता है लेकिन हम उस ओर जाना चाहिये. ऊपरी  तौर पर यही कहेंगे कि सरकार की यह योजना प्रशंसनीय है लेकिन गांव के किसानों का घर तब रोशन होता है जब उस परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हो। एलईडी बल्ब दे देने मात्र से घर रोशन होगा यह नहीं कहा जा सकता, उन्हें और अन्य तरीको से भी संपन्न व मजबूत बनाने की जरूरत हैै. बच्चों को अच्छी शिक्षा, उनके स्वास्थ्य, स्कूल ड्र्रेस और कुछ स्कालरशिप जैसी सुविधाएं देने की भी जरूरत है. सरकार को सबसे पहले किसानों व  गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति को इतना मजबूत बनाने का प्रयास करना चाहिये कि उसका परिवार ठीक से चल सके. किसान अगर सही तरह से अनाज उत्पन्न नहीं कर सकेगा तो वह राज्य व परि

हां हम विश्वास कर सकते हैं, इस साल बारिश अच्छी होगी!

हमारा मौसम विभाग कितना सटीक है वह हमें  इस साल अर्थात कम से कम दो महीने बाद पता चलेगा वैसे गलत भविष्यवाणी के कारण हम अपने मौसम विभाग को कोसते रहे हैं लेकिन पिछले एक दशक के उसके दावों पर नजर डाले तो  वह जो कहता है वही  हो रहा ह है इसलिये अब हम दावे के साथ तो नहीं  हां विश्वास के साथ यह कह ही सकते हैं कि इस वर्ष मानूसन बेहतर होगा. इस साल औसत छह प्रतिशत अधिक बारिश होने का अनुमान है मौसम विज्ञानी  लगे रहे हें. भारी गर्मी  पडऩे से भी  इस संभावना को बल मिल रहा है कि   देश में 104 से 110 प्रतिशत के बीच बारिश हो सकती है, यानी इस साल मानसून औसत 106 प्रतिशत पर रह सकता है.मौसम विभाग ने पिछले एक दशक से लगभग सही  सही अनुमान लगाया है सिर्फ एक दो प्रतिशत ही इधर उधर हुआ है. सन् 2005 में उसने कहा था- 98 प्रतिशत बारिश होगी और बारिश हुई 99 प्रतिशत एक प्रतिशत ज्यादा.  2006 में 93 प्रतिशत की जगह 100 प्रतिशत, 2007 में 95 प्रतिशत की जगह 106 प्रतिशत, 2008 में 99 प्रतिशत की  98 प्रतिशत, 2009 में 96 प्रतिशत की जगह 78 प्रतिशत, 2010 में 98 प्रतिशत की जगह 102 प्रतिशत, 2011 में भी 98 प्रतिशत की जगह 102 प्रतिशत,

काली कमाई खदान की रेंज से 'खाखी कैसे गायब रहती है?

 इसमें दो मत नहीं कि छत्तीसगढ़ की एसीबी एक के बाद एक काली कमाई के धनकुबेरों को खोज खोज के बाहर निकाल रही है लेकिन आम लोगों में कई प्रश्न इन छापों के बाद उत्पन्न होते हैं जिसका जिक्र हम आगे करेंगे, पहले यह बता दे कि पिछले एक शनिवार को छोड़कर उस शनिवार एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई, रायपुर और कोरबा में अफसरों के क ई ठिकानों पर एक साथ ताबड़तोड़ छापे मारकर कई करोड़ की काली कमाई का भंडाफोड़ किया था बिलासपुर में तो छापा पडऩे के बाद पीएमजीएसवाय के ईई ने भ्रष्टाचार के 40 लाख बचाने के लिए पूरे पैसे पिलो में भरा और बाहर फेंक दिया- हम यह बता दे कि एसीबी छत्तीसगढ़ सरकार का एक उपक्रम हैं जो सिर्फ पुलिस वालों को मिलाकर बनाया गया है, इस विभाग के अधिकारियों को शिकायत मिलती है तो बाहर सेे और टीम लेकर छापे की कार्रवाही होती है शनिवार इस विभाग का पसंदीदा दिन है अधिकांश  छापे के लिये इसी दिन को चुना जाता है अंक भी शायद यह चुनकर रखते हैं पिछले छापे में आठ अधिकारियों की अलग अलग टीम थी इस बार जब छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर, कोरिया और रायगढ़ समेत कई जिलों में  

सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देशों पर राज्य सरकारों का रूख क्या होगा?

सरकारी जमीन और सरकारी सड़क दोनों ही पूरे देश की सरकारों के लिये मुसीबत बनी  हुई है.जहां निजी भूमि पर कुछ दबंग अपनी जोर आजमाइश करते हैं वहीं कुछ लोग ऐेसे भी हैं जो अपनी धन दौलत के बल पर जमीन को अपने कब्जे में करने लगे हैं. कांक्रीट के बढते जंगल के बीच आज सबसे मुसीबत बेजर कब्जर है विकसित होते शहरों की सड़को के आजू बाजू बेजा कब्जों की समस्या.  कब्जेधारियों के रहते सड़कों की चौड़ाई कम होती जा रही है तथा यह ट्रैफिक के लिये गंभीर समस्या बन रही है. बेजा कब्जे की नइ्र्र -नई टेक्नीक रोज अस्तित्व में आती है तथा लोग इसमें कामयाब भी हो रहे हैं और फिर जब इन्हें हटाने पहंचते हैं तो संगठित होकर विरोध भी करते हैं.करीब सात साल पहले सर्वोच्च न्यायालय ने खाली जमीन पर कब्जा कर अवैध रूप से बनाए गए पूजा-स्थलों के खिलाफ सख्त दिशा-निर्देश जारी किया था तब अदालत ने कहा था कि सड़कों, गलियों, पार्कों, सार्वजनिक जगहों पर मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरद्वारा के नाम पर अवैध निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती लेकिन इतने साल बाद भी अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल सुनिश्चित नहीं हो सका है तो इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराय

बुलेट ट्रेन से पहले...स्वच्छता,सुरक्षा, सुविधा पर कौन ध्यान देगा?

स्पेन से बुलेट ट्रेन कल इंडिया पहुंच जायेगी लेकिन छत्तीसगढ़ एक्सपे्रस के यात्री परेशान हैं कि उनकी ट्रेन में इतनी गंदगी है कि उसमें बैठना तो क्या घुसना भी मुश्किल है. रेलवे अब भी कुछ न कुछ बहाना बनाकर जहां यात्रियों से ज्यादा पैसे वसूलने की तैयारी में हैं वही जिन सुविधाओं की बात कर रही है वह इतनी बदतर है कि लोगों का विश्वास ही रलवे पर से उठने लगा है. अभी कुछ दिन पहले ही जहां एक ट्रेन की बोगी में चूहा मरने के बाद निकली बदबू से हंगामा हुआ था तो छत्तीसगढ़ से चलने वाली ट्रेन ने तो रेलवे की  स्वच्छता के सारे दावों की पोल ही खोलकर रख दी.यात्रियों का तो यहां तक कहना है कि पूरे छत्तीसगढ़ जोन में कई ट्रेनों में साफ-सफाई हो ही नहीं रही है. शिकायत पर तत्काल कार्रवाही के दावे भी खोखले साबित हो रहे हैं.सफाई के मामले में रेलवे जितना दोषी है उससे कई गुना ज्याद यात्री भी दोषी है जिनके आचरण के कारण ही ज्यादातर कोचों में गंदगी बिखरी पड़ी रहती है. कूपे में कोई गुटखा, पान, स्नेक्स आदि खाकर फेंक देता है तो सीटों के बीच भी में मिट्टी और धूल तक को कोई साफ करने वाला नहीं रहता. कोच के अटेंडर से इसकी शिकायत

घटनाओं के बाद क्यों बनती है पुलिस वाचाल!

एक दिन में पांच महिलाओ के गले से चैन लूटने का एक नया रिकार्ड कायम हुआ है छत्तीसगढ़ के सिर्फ दो शहरो में।ं इनमें चार के गले  से चैन निकालने में लुटेरे सफल रहे तो एक में सफलता नहीं मिली. एक दिन के दौरान कुछ ही घंटो में इतनी घटनाओं को पुलिस की नाक के नीचे अंजाम देना लुटेरों के साहस का एक अद्भुुत नमूना ही कहा जायेगा-अगर पिछले चैन स्नेचिंग के इतिहास तरफ नजर दौड़ाये तो एक ही समय में इतनी बारदातें कभी नहीं हुई.हां आज खबर हैं इस घटना के पूर्व ग्वालियर में भी ऐसा कुछ हुआ जबकि इससे पूर्व चैन स्नेेचरों ने रायपुर भिलाई, दुर्ग राजनांदगांव में ऐसा करने में  दो महीने का समय लगाया. इस दौरान दो दर्जन से ज्यादा महिलाओं के गले से चैन लूटने का प्रयास हुआ है और सभी में सफल रहे हैं. इन  मामलों में दो लुटेरों को पकड़े जाने के बाद लोगों को काफी राहत मिली थी कुछ को उनका लूटा सोना वापस मिला लेकिन कुछ अभी भी थानों के चक्कर  लगा रहे हैं उसी प्रकार की घटना के अचानक शुरू हो जाने से महिलाओं में सोना पहनकर निकलना एक दहशतभरी बात हो गई हैं छत्तीसगढ़ में चोर-लुटेरे कितने शातिर हैं उसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है

जरूरी वस्तुओं के दामों में इजाफा, दाल फिर रूलाने की तैयारी में!

जरूरी वस्तुओं के दामों में इजाफा, दाल फिर रूलाने की तैयारी में! आवश्यक वस्तुओं के भावों में हो रही बेतहाशा वृद्वि सभी वर्ग के लिये चिंता का विषय बन गया है. गरीब ेसे लेकर उच्च वर्ग तक सभी के लिये यह परेशानी की बात है कि वस्तु जिसमें रोजमर्रा उपयोग मे आनी वाली वस्तुएं भी शामिल हैं के भावों में दिन प्रतिदिन बढौत्तरी हो रही है. इसमें सबसे ज्यादा चिंता का विषय तो उन पैकेज वाली वस्तुओं के दाम है जिनके भावों में पिछले दो तीन माह के दौरान लगभग लगभग दो गुनी वृद्वि कर दी गई है. कंपनियों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के दामों पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण कहीं से भी नहीं है. उपभोक्ता इन वस्तुओं को जैसे साबुन, तेल, ब्लेड आदि को कंपनियों द्वारा निर्धारित मनमानी कीमतों पर खरीदना मजबूरी हो गई है. किराना व थोक दुकानदार स्वंय यह बता रहे हैं कि कीमतों में अचानक वृद्वि हुई है गर्मी के  दौरान इस बार वस्तुओं में जिस प्रकार बढौत्तरी की गई है वह एक रिकार्ड है. बच्चों को उपयोग में आने वाले हर फूड आइटम के भावों में अनाप शनाप वृद्वि कर दी गई है. अब इस बात की सूचना मार्केट में पहुंच गई हैै कि दालों के भाव में बे

नशेकी लत यूं और कितने परिवारों की खुशियां छीनेगी?

बोलचाल की भाषा में बात करें तो हर प्राणी को ईश्वर ने एक जिंदगी दी है, उसे उसी के अनुसार जीना है.उसी की मर्जी से उसे अपने अंतिम पड़ाव तक पहुंचना है लेकिन आज ऊपर वाले कीमर्जी के खिलाफ हर व्यक्ति अपनी जिंदगी जी रहा है.व्यक्ति या प्राणी जो जीवन जीता हैं उसमे कभी खुशी कभी गम की स्थिति रहती है.इसके पीछे कारण यही है कि हम सभी उनके नियमों के खिलाफ जीने की तमन्ना रखने लगे हैं.इसका परिणाम यह निकल रहा है कि प्राय: हर रोज किसी न किसी को इसका खामियाजा भरना पड़ता है.प्रतिदिन हमारे सामने घटित होने वाली  घटनाओं से तो यह साफ नजर आने लगा है कि ईश्वरीय शक्ति के विरूद्व जाकर जो लोग रास्ता तय करने की कोैशिश करते हैं वे न केवल खुद गर्त में जाकर गिरते हैं बल्कि कई अन्य लोगों को भी इसकी चपेट में ले लेते हैं. वास्तविकता यही है कि मनुष्य आज नशे में जी रहा है.किसी को यह नशा दौलत का हैं तो किसी को अपने पद व प्रभाव का तो कोई  ऐसा भी है जो गम को दूर करने और अत्यन्त खुशी को व्यक्त करने के लिये नशे में डूब जाता है- शराब और ड्रग का नशा मनुष्य को किसी भी सूरत में फायदा नहीं पहुंचाता बल्कि मनुष्य को इससे नुक्सान ही पह

रेस्क्यू आपरेशन... और वीवीआईपी की घटनास्थल पर दस्तक!

यह पहला विवाद नहीं है जब कोई वीवीआईपी या वीआईपी के तत्काल दुर्घटना स्थल पहुंचने से रेस्क्यू आपरेशन के प्रभावित होने की बात कही गई हो. केरल के मंदिर में आगजनी के बाद अचानक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व राहुल गांधी के पहुंचने पर वहां बवाल खड़ा हो गया कि उनके पहुंचने से राहत कर्मियों का ध्यान बंट गया तथा राहत कार्य प्रभावित हुआ. इससे पूर्व हरियाणा के खुले बोर में एक बच्चे के गिरने के बाद चले रेस्कयू आपरेशन के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री हुड्डा के पहुंचने के बाद भी इसी प्रकार की  बात हुई थी-और भी कई हादसे देशभर में ऐसे हुए हैं जहां वीवीआईपी या वीआईपी के पहुंचने से रेस्कयू कार्य प्रभावित होने की बात कही गई. इसमें दो मत नहीं कि किसी भी रेस्कूय कार्य के दौरान बड़े नेताओं के पहुंचने से आप्रेशन में कुछ बाधा तो उत्पन्न होती ही है लेकिन इस मामले में जहां तक नरेन्द्र मोदी का सवाल है,यहां मोदी डाक्टरों की एक पूरी टीम भी साथ लेकर गये थे-ऐसा इससे पहले कभी नहीं हुआ. मोदी अकेले पहुंचते तो यह संभव था कि आप्रेशन में बाधा पहुंचती लेकिन अचानक बना उनका यह दौरा एक खास मकसद को लेकर था जिसमें पीडि़तों को तत

नशेकी लत यूं और कितने परिवारों की खुशियां छीनेगी?

बोलचाल की भाषा में बात करें तो हर प्राणी को ईश्वर ने एक जिंदगी दी है, उसे उसी के अनुसार जीना है.उसी की मर्जी से उसे अपने अंतिम पड़ाव तक पहुंचना है लेकिन आज ऊपर वाले कीमर्जी के खिलाफ हर व्यक्ति अपनी जिंदगी जी रहा है.व्यक्ति या प्राणी जो जीवन जीता हैं उसमे कभी खुशी कभी गम की स्थिति रहती है.इसके पीछे कारण यही है कि हम सभी उनके नियमों के खिलाफ जीने की तमन्ना रखने लगे हैं.इसका परिणाम यह निकल रहा है कि प्राय: हर रोज किसी न किसी को इसका खामियाजा भरना पड़ता है.प्रतिदिन हमारे सामने घटित होने वाली  घटनाओं से तो यह साफ नजर आने लगा है कि ईश्वरीय शक्ति के विरूद्व जाकर जो लोग रास्ता तय करने की कोैशिश करते हैं वे न केवल खुद गर्त में जाकर गिरते हैं बल्कि कई अन्य लोगों को भी इसकी चपेट में ले लेते हैं. वास्तविकता यही है कि मनुष्य आज नशे में जी रहा है.किसी को यह नशा दौलत का हैं तो किसी को अपने पद व प्रभाव का तो कोई  ऐसा भी है जो गम को दूर करने और अत्यन्त खुशी को व्यक्त करने के लिये नशे में डूब जाता है- शराब और ड्रग का नशा मनुष्य को किसी भी सूरत में फायदा नहीं पहुंचाता बल्कि मनुष्य को इससे नुक्सान ही प

मौसम वालों ने कह दिया अच्छी बारिश होगी? भीषण गर्मी में हम झूम उठे!

हम खुश है कि इस भरी गर्मी में मौसम विभाग और स्कायमेट ने यह दावा कर दिया है कि इस बार मानसून सीजन में अच्छी बारिश होगी. मौसम विभाग का कहना है कि  इस साल भरपूर बारिश अर्थात 106 प्रतिशत तक होगी जबकि एक दिन पहले ही स्कायमेट ने 105 प्रतिशत बारिश का अंदाजा जताया था. मौसम विभाग ने कहा कि इस बार सभी जगह खूब बारिश होगी. सूखा झेल रहे मराठवाडा में तो सामान्य से ज्यादा की उम्मीद जताई है हालाकि अभी मई जून में मॉनसून के दो अनुमान और आएंगे लेकिन ये पहली बार है जब पहले अनुमान में ही 100 प्र्रतिशत से ज्यादा बारिश की उम्मीद जताई गई है.सवाल यहां यह उठ रहा है कि क्या हम इस अनुमान से खुश हो जायें चूंकि अभी नया मौसम आने में दो से ढाई महीने  बाकी है. दूसरी बात यह कि मौसम विभाग की बातो पर हम कितना भरोसा करें? पूर्व के अनुभव बताते हैं कि वे जब भी अच्छे बारिश की बात करते हैं तो अच्छा सूखा पड़ता है और जब सूखें की बात करते हैं तो गीला होता है.पारा जब ऊंचाइयों पर हो और गर्मी के मारे लोगों की हालत पतली हो तो कोइ्र्र उन्हें बोल दे कि ले भाई थोड़ा ठण्डा पानी ले ले तो सामने वाले को बड़ी राहत मिलती है-क्या स्कायमे

गैंग में अपराधी! क्या निपट पायेगी छत्तीसगढ़ पुलिस इनसे?

रायपुर के कोर्ट परिसर में संदिग्धों से लोहे का पंच और गांजा मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं है-रायपुर का वह बचपन अब जवां हो चुका है, जिसके बारे में हम अक्सर अपने कालमों में लिखकर पुलिस व सरकार दोनों का ध्यान दिलाते रहे हैं कि हसअगर इनपर नियंत्रण नहीं किया गया तो आगे आने वाले समय में यह मुसीबत बनकर खडी हो जायेगी. मीडिया यह संकेत करती रही है कि  किसी आयोजनों के लिये नाबालिगों के एक बड़े वर्ग द्वारा चंदे के रूप में दुकानों,परिवारों से होने वाली वसूली का धंधा कोई  अच्छा संकेत नहीं दे रहा. बच्चे से जवानी की ओर बढते यह कदम वास्तव में लडख़ड़ा रहे हैं. एक तरह से कार्यक्रमों की  आड़  में चंदे की वसूलीय अपराध की दुनिया में प्रवेश का पहला कदम है और इस प्रथा ने साबित कर दिया कि छत्तीसगढ़ में यह बुराई तेजी से पनपी. बच्चो से जवानी की ओर बढने वाला  एक बड़ा वर्ग न स्कूल जाता हैं और न परिवार के लोगों के किसी  कार्य में हाथ बटाता हैं ऐसे पल बढ़ रहे बच्चों पर न किसी की लगाम है और न इन्हेें कि सी से कोई लेना देना है. इन्हें कुछ लोग अपने इशारे पर नचाते हैं-ऐसे बच्चे बड़े होकर अब एक रैकेट के रूप में बदल

रसूकदारों की जिद...बेबस प्रशासन....भक्तों की मौत!

यह बात समझ में नहीं आती कि एक हादसा हो जाने के बाद भी लोग सबक क्यों नहीं लेते? यह शायद इसलिये कि मनुष्य में वह स्वभाव विद्यमान है कि जो उसे कहा जाये  इसे नहीं करना तो वही करता है-देश में होने वाले अधिकांश हादसों के पीछे एक यही लाजिक विद्यमान है.केरल में  कोल्लम के पास स्थित  पुत्तिंगल देवी मंदिर में लगी भीषण आग में 112 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 383 गंभीर रूप से घायल हैं. मंदिर में आतिशबाजी की  मनाही थी किन्तु रसूकधार लोगों ने प्रशासन  की कोई बात नहीं मानी और  फटाके बाजी से भयानक आग लग गई तथा कई भक्त मारे गये.जो खबरें आई वह चौका देने  वाली है- कोल्लम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ए शाइनामोल और एडिश्नल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ए शानवाज ने मंदिर में आतिशबाजी की इजाजत नहीं दी थी इसके बाद स्थानीय  संगठनों ने धमकी दी और आरोप लगाया कि सांप्रदायिक मकसद के चलते आतिशबाजी की परमीशन नहीं दी गई, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ए शाइनामोल और एडिश्नल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट दोनों मुस्लिम हैं इसके चलते शनिवार दोपहर तक असमंजस की स्थिति थी, लेकिन मंदिर प्रशासन ने राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल कर लिया।मंद

काली कमाई के कुबेर-''बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाये?

ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ में काली कमाई का खजाना दबा पड़ा है जब भी एसीबी के छापे पड़ते हैं हम यही कहते आये हैं कि यहां जितना खोदोगे उतना माल मिलता जायेगा, इस बडे छापे ने उस दावे पर फिर मुहर लगा दी लेकिन जनता को पुराने अनुभवों के आधार पर संदेह है कि इन काले धंधे से कमाई करने वालों पर कुछ ऐसा होगा कि दूसरो को सबक मिलेगा? एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने शनिवार को रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई, रायपुर और कोरबा में 8 अफसरों के 12 से ज्यादा ठिकानों पर एक साथ ताबड़तोड़ छापे मारकर 15 करोड़ से ज्यादा की काली कमाई का भंडाफोड़ किया. बिलासपुर में तो छापा पडऩे के बाद पीएमजीएसवाय के ईई ने भ्रष्टाचार के 40 लाख बचाने के लिए पूरे पैसे पिलो में भरा और बाहर फेंक दिया यह तो एसीबी वालों की नजर तेज थी नहीं तो अफसर महोदय इन छापामारों के जाते ही गली से फिर नोट उठाकर लाकर रख लेते.छापामार अभियान का शुरूआती दौर शुभ था कि इतना कैश उन्हें एक साथ मिल गया. वैशाली नगर के उषा हाइट्स के फोर्थ फ्लोर में यह सब हुआ. एसीबी छत्तीसगढ़ सरकार का एक उपक्रम हैं जो पुलिस वालों को मिलाकर बनाया गया है, इस विभाग के अधिकारियों को शिका

भयंकर सूखा...पानी के लिये त्राहि-त्राहि

बिन पानी सब सून-जल  ही जीवन है,जल हैं तो कल है- देश के दस राज्य इन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में हैं,हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि लोगों के सामने खाने  पीने  के लाले  पड़ रहे हैं. भीषण सूखे की मार सह रहे लोग गांव छोड़कर दूसरे क्षेत्रों में जाने  मजबूर हो गये हैं. इस स्थिति से निपटने की  जिम्मेदारी  राज्य और केन्द्र सरकारों की है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता.संकट की इस घड़ी में कुछ करने की जगह सरकारें आंखे मूंदे हुए हैं लेकिन जिसका कोई नहीं उसका खुदा या भगवान है कि तर्ज पर राज्य व केन्द्र सरकार को  सरकार को पिछले  दिनों देश की सर्वोच्च अदालत ने कड़ी  फटकार लगाई हैं 'स्वराज अभियानÓ की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और एनवी रमण की पीठ ने कहा है कि पारा पैंतालीस डिग्री के पार पहुंच रहा है और लोगों के पास पीने का पानी नहीं है।उन्हें मदद पहुंचाने के लिए कुछ तो करिए! सूखे से निपटने के लिए अदालत ने राज्यों को पर्याप्त कोष जारी न करने पर केंद्र की खिंचाई करते हुए उसे हलफनामा देकर यह बताने का भी निर्देश दिया कि सूखाग्रस्त राज्यों में मनरेगा पर किस तरह अमल किया जा रहा है।

बस्तर में अब आगे हवार्ई लड़ाई के संकेत!

नक्सलवाद को छत्तीसगढ़ से जड़मूल खत्म करने सरकार एक से एक प्रयोग कर रही है इस कड़ी में आगे आने वाले समय  में नक्सलियों पर आसमान से वार शुरू हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना. इस बात के  संकेत अब मिलने लगे हैं. अब तक नक्सलियों को समझाने बुझाने और मुठभेड़ कर उनके ठिकानों को ध्वस्त करने का प्रयास सराकरी तौर पर किया जाता रहा है लेकिन अब हवा में निगरानी रखने के लिये हवाई पट्टी के रास्ते नकसलियों के मुकाम तक पहुंचने की तैयारी हो रही  है- इसका आभास भी होने लगा है- पुलिस और वायुसेना का संयुक्त प्रशिक्षण अभी  कुछ दिन पूर्व हुआ था. अब छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर के इंद्रावती टाइगर रिज़र्व के भीतर हवाई पट्टी बनाने की खबर ने सभी को चौका दिया है-नक्सलियों में जहां इससे गुस्सा हैं वहीं केन्द्र सरकार की मंज़ूरी मिल जाने से प्रदेश  सरकार ने भी अब कमर कस ली है.देश के किसी टाइगर रिज़र्व में हवाई पट्टी की मंज़ूरी का यह पहला मामला है.वन विभाग भी यह कहने में संकोच नहीं कर रहा है कि पट्टी का इस्तेमाल माओवादियों के खिलाफ़ चलाए जा रहे ऑपरेशन में किया जाएगा.सरकार जहां अपने निश्चय के प्रति दृढ है तो वहीं उस

शराब को नीतिश की बाँय-बाँय, छत्तीसगढ़ से कब होगी विदाई...

शराब को नीतिश की बाँय-बाँय, छत्तीसगढ़ से कब होगी विदाई...? चुनाव के दौरान नीतिश कुमार ने वादा किया था कि वे जीते तो बिहार में शराब  पर रोक लगा देंंगें.सत्ता सम्हालने के बाद उन्होंने अपने इस वादे को पूरा किया तो विरोध करने वाले भी सामने आये लेकिन बिहार की महिलांए बहुत खुश हैं.नीतिश का यह कदम आर्थिक-सामाजिक हितो को ध्यान में रखकरउठाया गया है.शराब पर  पाबंदी के इस कदम का विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी ने भी स्वागत किया है.मुख्यमंत्री का यह कदम उनके गांधीवादी और संवैधानिक आदशों के चलते उठाया गया कदम माना जायेगा. बिहार सरकार को शराब से चार हजार करोड़ रूपये का राजस्व मिलता रहा है किन्तु उन्होने इसकी  परवाह नहीं की. शराब पर रोक से बिहार के सामाजिक व आर्थिक उन्नयप में काफी बदलाव आने की संभावना है लेकिन नीतिश कुमार के सामने असली चुनौती तो अब है. बिहार में शराब बंदी लागू करने से पहले सरकार ने शराब की बोतलों को बुलडोजरों के जरिये एक साथ खत्म कराया जबकि चोरी छिपे व्यापार करने वाले और तस्कर अब इस प्रतिबंध की आड़ में मुनाफा कमाने का प्रयास जरूर करेंगे. सरकार ने प्रतिबंध लगाने के साथ नियमों को भी

दस्तावेज बता रहे हैं-कालाधन विदेशों में मौजूद है...!

पूरी दुनिया में कुछ ऐसा हो गया कि अब सब कुछ ठीक नहीं रहा.मोसेक  के दस्तावेजों में छुपे कारोबारी गोरखधंधे के खुलासे ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. पत्रकारिता जगत के अब तक के इस सबसे बड़े भंडाफोड़ ने दो सौ देशों के राष्ट्राध्यक्षों, राजनेताओं, अधिकारियों, कारोबारियों, फिल्म अभिनेताओं और खिलाडयि़ों के चेहरों से नकाब उतार दिया है और इन आशंकाओं तथा धारणाओं की फिर पुष्टि की है कि पूंजीवाद के वित्तीय क्रियाकलापों में बहुत कुछ स्याह है और समाज के लिए खतरनाक भी. जहां तक भारत का सवाल है यह पहले से ही आशंका थी कि भारत के कई लोगो का काला धन विदेशों में किसी न किसी ढंग से इन्वेस्ट ह.ै मोसेक के दस्तावेजों से यह बात और साफ हो गई है कि कई भारतीय सफेद पोश हस्तियां इस काले धंधे गोता लगा रहे हैं. दस्तावेजों में 500 से ज्यादा भारतीयों के नाम हैं. यह अभियान इंटरनेशनल कंर्सोटियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आइसीआइजे) के नेतृत्व में चलाया गया था, जिसमें इंडियन एक्सप्रेस भी शामिल था. कुल मिलाकर एक करोड़ पंद्रह लाख के आसपास फाइलों को खंगाला गया था, जिनमें से 36,000 फाइलें भारतीय रिपोर्टरों की नजरों

सेलरी बढौत्तरी-सवाल नैतिकता और नीयत का...!

 प्रत्यके व्यक्ति का यह बुनियादी हक है कि वह अधिक से अधिक संसाधनों को जुटाए और अपनी जिंदगी को बेहतर करने के लिये हर संभव उपाय करे. हमारा संविधान भी इस बारे में किसी तरह का कोई बंधन नहीं लगाता. किसी भी परिधि में इस बात की पूरी छूट है,पर सवाल नैतिकता व नीयत का है. मामला परिस्थिति का भी है-इस बात पर किसी को विरोध नहीं होना चाहिये कि किस फलाने पेशेवर व्यक्ति का वेतन कितना हो और उसकी  तनखाह में कितने की बढौत्तरी की जानी चाहिये. पिछले वर्षो के दौरान हम  विधानसभाओं में अपने वेतन के लिए उदारमना विधायकों को देखते रहे हैं, उनसे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि जहां अपनी बात आती है वहां माननीय वैसा रुख नहीं अपनाते, चाहे विपक्ष ही क्यों न हो ! सही है, वैसा रुख अपनाएं ही क्यों? लेकिन जिन राज्यों के आर्थिक हालात ठीक नहीं होने की बात कही जाती हैं जहां कभी बाढ़ आने,पाला पडऩे, सूखे के भयंकर हालात हों,जहां किसान आत्महत्या कर रहे हो और जहां का आम जन किसी न किसी तरह की मुश्किल में गुजारा कर रहा हो, वहां ऐसी उदारता क्यों नहीं दिखाई जाती? अगर हम छत्तीसगढ  की बात करें तो यहां ़केवल अमित जोगी ने ही विधायकों की

अपनी सुरक्षा आप स्वंय करें, हेलमेट जरूर पहने!

एक व्यक्ति के सिर पर दूसरा सिर लगाना उतना आसान नहीं है जितना हम समझते हैं-जी हां मै बात कर रहा हूं हेलमेट की...छत्तीसगढ़ पुलिस, छत्तीसगढ़ सरकार और यहां तक कि उन सिर वालों केे माता पिता को भी अपने बच्चों को दूसरे का सिर लगाकर जाने के लिये प्रेरित करने के लिये कितनी जद्योजहद करनी पड़ती है यह हम उन राज्यों में जहां हेलमेट की अनिवार्यता छत्तीसगढ़ से पहले से है,वहां इसे लोगों को पहनाने में कितनी मेहनत करनी पड़ी यह बताना आश्चर्यजनक ही नहीं बल्कि दिलचस्प भी है बहरहाल देश के प्राय: हर राज्य में दुपहिया सवार को दूसरा सिर पहनाने के लिये कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़े उसका उदाहरण है तामिलाडू जहां हेलमेट पहनने  संबंधी जागरकता पैदा करने के लिए भगवान गणेश और मृत्यु के देवता यम की मदद लेनी पड़ी. कांचीपुरम में क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय ने एक फ्लेक्स बोर्ड लगाया जिसमें भगवान गणेश यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि आपको मेरी तरह सिर नहीं मिलेगा, हेलमेट पहनिए और अपने सिर की रक्षा कीजिए. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश ने भगवान शिव को उनकी पत्नी पार्वती से मिलने नहीं दिया था जिसके बाद भगवान शिव ने गुस्से में

प्रभाव के चलते पुलिस व्यवस्था का अपना दर्द!

क्या प्रभावशाली वर्ग अपने खिलाफ किसी भी कार्रवाई से बाहर होना अपना अधिकार मानता है? अपराध नियंत्रण में पुलिस की भूमिका को लेकर कुछ ऐसी ही स्थिति अब हर जगह बनती जा रही है.जहां भी कोई अपराध गठित होता है लोग यह कयास लगाना शुरू कर देते हैं कि इसका हश्र क्या होगा अर्थात इसे तुरन्त बेल मिल जायेगी या कुछ दिन जेल में रहकर छूट जायेगा-यह सब उसके प्रभाव उसके आर्थिक हालात आदि को देखकर लगाया जाता है वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे भी लोग है जो बेचारे कहीं फंस गये तो कहीं के नहीं रह जाते उन्हें तो जमानतदार भी नहीं मिलते. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अपराध रोकने और कानून व्यवस्था संभालने के नाम पर पुलिस की मनमानी और लापरवाही होती है, लेकिन इसका विरोध करने का सिलसिला कुछ ऐसी हद तक पहुंच रहा है कि पुलिस के लिए अपना रूटिन काम करना भी मुश्किल होता जा रहा है. देश के कुछ राज्यों में तो स्थिति इस सीमा तक बिगड़ती नजर आ रही है कि पुलिस ने कई मामलों में गैरकानूनी गतिविधियों की ओर ध्यान देना तक बंद कर दिया है, क्योंकि किसी भी प्रकार की कार्रवाई करने पर अगले ही पल ऊपर से फोन आने के साथ ही स्थानीय नेता या जनप्

रौशनी पर मंहगाई....बिजली का बिल या गले का फंदा?

रोजमर्रा की भाषा में बात करें तो हमें रोज कई प्रकार के लेन -देन के लिये हमें पहले बिल दिया जाता है फिर हम उसका भुगतान करते हैं किन्तु छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल द्वारा जारी किया जाने वाला बिजली का बिल इन सब बिलों में अनोखा है-करीब सोलह इंच लम्बे इस बिल को न तो कोई समझ सका है और न  समझ पाता है. वास्तविकता यही है कि यह किसी भी आम आदमी के न तो पल्ले पड़ता है और न पड़ सकता है. यहां तक कि पड़े लिखे लोगों के भी पल्ले नहीं पड़ता. बिजली बिल हर माह पहुंचता है. किसी माह बराबर आता है तो किसी माह उसमें दुनियाभर का मीटर चार्ज,सर्विस टैक्स,फिक्सेड डिपाजिट और फलाना ढिकाना मिलाकर उपभोक्ता का ब्लड प्रेशर बढा देता हैं. बिल ऐसा लगता है जैसे गले में डालने के लिये फंदा भेज दिया हो.अगर किसी के घर में  एक मीटर हो तो सोलह इंच लम्बा एक फंदा और अगर किसी के घर में दस मीटर लगा हो तो सोलह- सोलह इंच के दस फंदे पहुंच जाते हैं. यह आज से नहीं वर्षो से यूं ही चला आ रहा है. मशीन से घर पर बिल देने से पहले एक कापी के कागज साइज का छोटा बिल आता था उसे तो लोग कुछ पड या समझ भी लेते थे किन्तु अभी का बिल सुविख्यात हिन्दी औ

सभी चुनाव एक साथ कराने में क्या हर्ज? पहल करें मोदी जनता साथ देगी!

इसमें दो मत नहीं होना चाहिये कि देश में अगर सभी चुनाव को एक साथ एक ही समय में पांच वर्ष के लिये करा दिये जाये तो पैसे की बचत होगी साथ ही सरकार भी  सही ढंग से चल सकेगी. इलेक्शन को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राय के बाद इसपर बहस चलना स्वाभाविक है..अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल के दौरान वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी देश में एक साथ सभी चुनाव कराने की प्रस्ताव रखा था. उनका भी मानना था कि बार बार होने वाले चुनाव से सरकारी खजाने पर बहुत ज्यादा दबाव  पड़ता है.अगर एक ही बार मे सभी चुनाव पांच वर्ष के लिये करा लिये जाये तो चुनाव पर होने वाले व्यय व समय की बर्बादी दोनों  से बचा जा सकेगा. नरेंद्र मोदी ने भी19 मार्च को भारतीय जनता पार्टी की एक मीटिंग में इसकी पैरवी की है. मोदी ने मीटिंग में मौजूद पार्टी मेंबर्स से कहा था कि देश भर में निकाय और असेंबली इलेक्शन करीब हर साल होते हैं. ये सभी इलेक्शन एक साथ कराए जा सकते हैं. पार्टी का कहना है कि इस आइडिये से देश का वक्त और पैसा बचेगा.प्रधानमंत्री  की इस राय के बाद बीजेपी में भी यह राय है कि पंचायत से लेकर संसद तक के सभी चुनाव साथ होन