'गंदगीÓ का कलंक लगा, अब इसे कैसे साफ करें?


   'गंदगीÓ का कलंक लगा, अब इसे कैसे साफ करें?

 हम स्मार्ट सिटी की दौड़ में नहीं जीत पायें वहीं अब गंदगी का दाग भी माथे पर लग गया! आखिर कौन जिम्मेदार है इसके लिये? कौन से कारण है जिसके चलते छत्तीसगढ़ का कोई शहर स्मार्ट सिटी और स्वच्छता की दौड़ में अग्रणी नहीं बन सका? सफाई जैसे मुद्दे में पिछडऩा साफ तौर पर हमारी घरेलू कमजोरी को ही दर्शाता है- एक नजर में राज्य बनने के पहले से अब तक की तुलना में हमारे राज्य के सारे शहर न केवल विकास के मामले में अग्रणी है बल्कि विकास के सौपान को भी पार कर चुके हैं किन्तु स्वच्छता के मामले में पिछडऩे के पीछे क्या कारण हो सकता है?स्वाभाविक है कि हमने स्वच्छता  पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं किया.  पडौसी राज्य मध्यप्रदेश की कम से कम तीन सिटी को केन्द्र से स्मार्ट सिटी का दर्जा मिलना यह दर्शाता है कि उसका काम हमसे अच्छा है-लेकिन यह भी सही है कि हमें मध्यप्रदेश के शासन से मुक्ति मिले अभी सिर्फ पन्द्रह साल ही हुए है और उस दौरान हमने अपने  राज्य का जो विकास किया वह अतुलनीय है, जबकि मध्यप्रदेश को अपना विकास दिखाने में पूरे साठ साल से ज्यादा का समय लग गया. यह सही है कि हमने विकास के नाम पर अपने शहरों की स्वच्छता पर इन वर्षो में बहुत कम ध्यान दिया, हमने अपनी पुरानी  सफाई व्यवस्था में कोई ज्यादा बदलाव  नहीं किया और न ही प्रदेश को पर्यावरण की दृष्टि से स्वच्छता प्रदान करने  का प्रयास किया. अंडर ग्राउडं ड्रेनेज सिस्टम भी छत्तीसगढ़ के किसी शहर में विकसित नहीं हो सका इसके चलते हम स्वच्छता के क्षेत्र में पिछड़ते चले गये। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि हम अपने नागरिकों को स्वच्छता का सही पाठ सिखाने में भी पिछड़ गये, गंदगी फैलाने वालों पर बहुत हद तक सक्वती बरतनी थी उसे हम अपनी  सहरदयता के कारण नहीं कर पाये लेकिन अब हमे आगे के वर्षो में इस गंभीर हालातों का समाधान निकालना होगा।  अगर हम ऐसा नहीं कर पाये तो और पिछड़ते चले जायेंगे. स्वच्छता के मामले में पिछडऩे का मतलब यही निकाला जा सकता है कि हमने इस दिशा में कुछ किया ही नहीं, राज्य बनने  के बाद हमारी दृष्टि में या हमारे आंकलन में छत्त्ीसगढ़ के प्राय: सभी शहरों में पूर्व की अपेक्षा अच्छी सफाई व्यवस्था है किन्तु यह आंकलन राष्ट्रीय स्तर  पर  खरा  नहीं उतर रहा है, अब एक त्वरित व दीर्घकालीन  महत्वाकांक्षी स्वच्छता अभियान की जरूरत है, जिसमें भूमिगत नाली, वेस्ट मेनेजमेंट और आधुनिकतम मशीनों की मदद से शहरों की सफाई के बारे में कोई निर्णय लेने  की जरूरत है. शहरों से निकलले वाले गंदे पानी और कचरे का कैसे और किस तरह से उपयोग हो,इस पर भी कोई योजना बनाने की जरूरत है।  शहरों से लाखों टन कचरा रोज निकलता है-आज की स्थिति में सब एक जगह डम्प हो जाता है उसका उपयोग बिजली बनाने, खाद बनाने में किया जा सकता है उसी प्रकार  नालियो से निकलने वाले पानी का उपयोग आसपास के गांवों में खेती व कल कारखानों के उपयोग के लायक बनाने पर भी तेजी से विचार करने की जरूरत है.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर ही नहीं अब न्यायधानी बिलासपुर और आसपास के सभी बड़े शहरों और विकसित हो रहे ग्रामीण क्षेत्रों को स्वच्छता अभियान के मामले में एक ही छत के नीचे लक्ष्य निधा्र्ररित कर लाने की जरूरत हे तभी हम गंदगी के इस कलंक को धो सकेंगे! अंत में एक महत्वपूर्ण बात यही कहा जा सकता है कि गंदगी के लिये हम सब जिम्मेदार है-हमे खुद जब तक अपनी जिम्मेदारी तय नहीं करेंगे तब तक स्वच्छता के किसी भी अभियान का कोई मायाना नहीं रह जायेगा!  महत्वपूर्ण मुद्दा अभी  स्वच्छता का है-छत्तीसगढ़ की  राजधानी रायपुर को कम से कम उसके विकास के साथ देश का नम्बर एक नहीं तो दूसरे या तीसरे दर्जे का शहर होना चाहिये था लेकिन वह देश के छठवें गंदे शहर की  श्रेणी मे शामिल हुआ-छत्तीसगढ़ में दुर्ग शहर की स्थिति रायपुर से बेहतर है कम से से कम इसी पर गर्व कर सकते हैं लेकिन अगर इसी पर संतोष कर बैठ जाये तो भी काम नहीं चलने वाला। सफाई रखने की जिम्मेदारी अकेले प्रदेश के नगर निगमों की  नहीं है हम स्वंय जब तक गंदगी के खिलाफ मोर्चा नहीं सम्हालेंगे तब तक अपने शहर को साफ नहीं रख पायेंगे.सरकार को भी शहर को गंदा करने वालों के खिलाफ महाराष्ट्र की तरह सख्त होनेा पड़ेगा जहां थूकने पर भी कठोर सजा का प्रावधान है. सार्वजनिक नलों, सड़कों पर लघुशंका करने वालों पर  भी जुर्माने व सजा का प्रावधान जरूरी है. गंदगी और सफाई पर देशव्यापी सर्वे होने के बाद हमने शहर की सफाई व्यवस्था का जायजा लिया तो यह बात सामने आई कि पूर्व के वर्षो की अपेक्षा शहर की सड़कों व नालियों की सफाई व्यवस्था अच्छी व दुरूस्त है सफाई कर्मचारी व उनको देखने वाला ऊपरी अमला सतत निगरानी रख रहा है लेकिन जो लोग शहर को गंदा करने के आदी हैं उनके व्यवहार में किसी प्रकार का परिवर्र्तन नहीं आया ढाक के तीन पात वाली कहावत पर वे आज भी कायम है. घर के सामने कहीं भी कचरा फैला देने, कहीं भी थूक देने ओर कहीं भी खड़े होकर लघुशंका करने से लोग बाज नहीं आये हैं.शायद यही कारण है कि स्वच्छता के मामले में देश के दस लाख की आबादी के उऊपर वाले  53 शहरों व 22 राजधानियों के सर्वे में छत्तीसगढ़ की राजधानी का नम्बर 68वें स्थान पर आया है जबकि देश के गंदे शहरों में राजधानी छठवें क्रम पर है. उड़ीसा जैसे राज्य में उसकी राजधानी स्वच्छता के मामले में पिछले रिकार्ड 32 के रिकार्ड को कम कर चौबीसवे पायदान पर पहुंच सकता है तो आज की स्थिाति में छत्तीसगढ़ के शहरों के पिछडऩे का कोई कारण नहीं बनता बस हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है. जब हम अपने घर को साफ रख सकते हैं तो ऐसा कोई दूसरा कारण नहीं  है कि हम चाहेेंंगे तो अपना शहर भी सुधरे-स्वंय साफ रखे और बाहर से आने वाले हमारी सड़कों नालियों को गंदा करते हैं तो उन्हें भी समझायें. सरकारी स्थर पर भी यह पहल जरूरी है कि वह शहरों को प्रदूषित करने वाले संस्थानों पर लगाम लगाये.

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