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सातवां वेतन आयोग क्या कर्मचारियों के तौर तरीको में भी बदलाव लायेगा?

सरकारी नौकरी यानी 'मस्ती-'शहंशाही नौकरी-'अलाली या जब मर्जी आये तब काम करो और निकल जाओ! सरकारी कर्मचारियों के बारे में लोगों को सदैव यह कहते सुना गया हैं 'यार काम करों या न करो तनख्वाह तो मिलना ही है. जब मर्जी आये तब आफिस जाओ, गप्पे सप्पे मारो और चाय पीने या लंच  के नाम से बाहर जाकर मटर गस्ती करते घूमते रहो. कई दिनों की छुट्टी,प्रोवीडन्ट फण्ड,बोनस, महंगाई भत्ता और भी कई सुविधाएं तो पकी-पकी  रहती है लेकिन अब आगे आने वाले वर्षों में सरकारी कर्मचारियों के लिये नौकरी कठिन होने वाली हैं.सरकार कर्मचारियों से काम लेगी, तभी पैसा देगी. अगर अलाली दिखाई तो घर का रास्ता दिखा दिया जायेगा-सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट संदेश दे रही है कि देश में और भी कई ईमानदार व काम करने वाले बेरोजगार हैं जिन्हें काम पर लगाया जा सकता है- आयोग कि सरकार को सिफारिश है कि जो अफसर या कर्मचारी काम किये बगैर कुर्सी पर बैठै- बैठे सरकार का खजाना खाली कर रहे हैं उन्हें नौकरी से निकालो. आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान मे भारी बढ़ौत्तरी की है न्यूनतम वेतन सात हजार रूपये से बढ़ाकर अठारह हजार कर दिया है साथ

रष्ट्रीय महागठबंधन कितना कारगर साबित होगा?क्या विचारधाराओं का संगम होगा?

बिहार में महागठबंधन को जीत क्या मिली राष्ट्रव्यापी महागबंधन बनाने की चर्चाओं का दौर चल पड़ा. यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसके बारे में सोच शरू हो गई.अगले आने वाले विधानसभा चुनावों में तो संंभव हैं एक बार फिर महागठबंधन सामने आये साथ हीं राष्ट्रीय स्तर पर भी महागठबंधन कर चुनाव लडऩे की तैयारी चल रही है इसके लिये  प्रधानमंत्री प्रत्याशी की चर्चा भी शुरू हो गई हैै. लेकिन क्या पूरा देश चुनाव के मामले में दिल्ल्ी या बिहार हो सकता है?और होगा तो भी क्या इस प्रकार के दल जिनकी विचारधाराएं अलग-अलग हैं? वे कितने दिन एक साथ रह सकेंगे? या यह गठबंधन सिर्फ भाजपा और नरेन्द्र मोदी को सत्ता विहीन करने के लिये बनाया जायेगा? कई ऐसे सवाल हैं जो आगे आने वाले समय में उठेंगे बहरहाल इस समय जो माहौल चल रहा है वह बिहार चुनाव में महागठबंधन जिसमें राजद, जदयू कांग्रेस शामिल हैं की भारी विजय को लेकर है.चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में महागठबंधन करने की तैयारी शुरू हुई थी, उसमें कांग्रेस को छोड़कर और बहुत से पार्टियों के नेता एकत्रित हुए . इस पहल के बाद ही बिहार में महागठबंधन अस्तित्व में आया जिसमें जदयू, राजद का

सरकारी कामगारों ने तो मंहगाई की बेतरनी पार कर ली लेकिन आम आदमी! वह तो...

सरकारी कर्मचारियों को बधाई! शुभकामना की उनका वेतन नये वर्ष से तीन गुना हो जायेगा-बढ़ती मंहगाई में उनको यह बहुत बड़ी राहत है. एक सरकारी  कर्मचारी जो अब तक सात हजार रूपये की न्यूनतम तनख्वाह पाता था वह अब अठ्ठारह हजार रूपये प्राप्त करने लगेगा.जस्टिस माथुर आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी और उसके अनुसार अब सरकार को निर्णय लेना है-यह निर्णय सरकार के अनुसार उनके द्वारा स्टडी करने के बाद जनवरी से लागू होगा परन्तु इस बढ़ौत्तरी से बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं कि सरकारी कर्मचारियों की नैया तो इस मंहगांई की धारा में पार हो जायेगी मगर शेष आम आदमी जो निजी, सार्वजनिक व रोज कमाकर खाता है उसके जीवन का क्या होगा?अभी से भारी टैक्स में फटे हाल जी रहे लोगों की जिंदगी पर अब सरकार अपने कर्मचारियों को खुश करने के लिये ऐसा तीर चलायेगी कि वे उठ नहीं सकेंगे मसलन सरकार कर्मचारियों को बढ़ा हुआ वेतन देने के लिये पैसा एकत्रित करने सकल कर्म करेगी- याने कर्ज लेगी, टैक्स बढ़ायेगी?अकेले रेलवे को अपने कर्मचारियों को अठ्ठाईस हजार करोड़ रूपये देना होगा. पहले से यात्रियों पर बोझ डालती आ रही रेलवे इसके लिये फर किराया,माल

बोलने की आजादी का जबरदस्त दुरूपयोग अब समस्या बन रही !

देश की राजनीति का संतुलन क्यों बिगड़ रहा? शायद इसलिये भी कि देश में बोलने की आजादी का दुरूपयोग इससे पहले कभी नहीं हुआ. लोग अपना काम छोड़कर कभी सहिष्णुता-असहिष्णुता पर तो कभी व्यक्तिगत आक्षेपों को लेकर  एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में आपे से बाहर हो रहे हैं.दुख इस बात का है कि बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बड़े लोग भी इन लफड़ो में पड़कर अपने छबि पर दाग लगवाने लगे हैं. कुछ तो एकदम अति कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो सात समुन्दर पार बैठे लोगों को कोसने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे.बात अगर चुनाव तक सीमित रह जाती तो भी समझ में आता लेकिन चुनावों के निपटने के बाद भी यह सिलसिला बना हुआ है. पिछले  चुनावों के बाद से कुछ ऐसा हो गया कि लोग मुंंह से बाण चलाने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं. संविधान में प्रदत्त अधिकारों का जिस प्रकार अभी दुरूपयोग हो रहा है वह इससे पहले कभी नहीं हुआ. यह अब विचार करने का विषय है कि क्या लोगों को इतनी आजादी दी जानी चाहये कि वह अपनी बातों से देश की अस्मिता पर ही सवाल उठा दे. सरकार की नीितयों के खिलाफ अगर विपक्ष का हल्ला हो तो बात समझ में आती है यहां तो सीधे-सीधे व्यक

सरकारी खजाने को चूना-विभागीय जांच का ढोंग कब तक? नौकरी से क्यों नहीं हटाये जाते!

एक आम आदमी जब खर्च करता है तो सोच समझकर करता है कि कहीं आगे उसको परेशानी तो न हो जाये लेकिन क्या हमारी निर्वाचित सरकारे ऐसा कर रही है? शायद नहींं! ऐसा इसलिये भी कि उसको यह पैसा खर्च करने में दर्द नहीं होता! चूंकि यह पैसा उस साधारण आदमी की जेब काटकर प्राप्त होता है जो दिनरात मेहनत करता है.भारत जैसे गरीब देश में आम आदमी पैदा होने के बाद से लेकर अपना जीवन समाप्त होते तक इतना टैक्स पटा चुका होता है कि उसकी आने वाली पीढ़ी बिना टैक्स पटाये रह सकती है लेकिन सरकार के अनाप शनाप खर्चों ने उसकी जिंदगी को जहां टैक्स और मंहगाई के बोझ से लाद दिया वहीं भ्रष्टाचरण के चलते उसे इतनी परेशानी में डाल दिया है कि उसकी कमर ही टेढ़ी हो गई है.वैसे बहुत से उदाहरण है इसके किन्तु ताजा   उदाहरण हाल के उस वाक्ये का लें जिसमें सरकार के एक विभाग ने अपने विभाग की वेबसाइट तैयार करने के लिये जनता की जेब पर ऐसा डाका डाला कि सबके होश उड़ गये.वेबसाइट के लिये नब्बे लाख रूपये निकाले गये जबकि इस पर खर्च करीब दो लाख के आसपास आता है. जनता किससे पूछे कि यह किसने किया और ऐसा करने वालों को नौकरी से निकाला गया? जब चोर को कोई नौ

आतंक के साये में विश्व,अब तो यह लगने लगा कि अगला सूरज देख पायेेंगे या नहीं?

एक साल के भीतर जिस तरह से आतंक का रूप विश्व में सामने आया है वह इंसानियत को सोचने के लिये मजबूर कर रहा है कि वह उसके लिये कितना खतरनाक है. भावी पीढ़ी को चिंतित होना चाहिये कि आने वाला भविष्य उसे कहां लेकर जाने वाला है? भारत हो या फ्रांस अथवा अन्य शांतिप्रिय देश सर्वत्र यह चिंता है कि निकलने वाला अगला सूरज उसे देखने मिलेगा या नहीं? जिस प्रकार जेहाद ने सिर्फ एक वर्ष में विश्व के नक्शे पर अपना सिक्का कायम किया है वह न केवल चिंतनीय है बल्कि पूरी मानवता को खतरे में डालने वाला है. हमारे प्रधानमंत्री ने ठीक कहा है कि संयुक्त राष्ट्र को तय करना चाहिये कि कौन आंतकवाद का साथी है और कौन मानवता के साथ है. मानवतावादियों को कुर्बानी के लिये तैयार रहना पड़ेगा. इस्लामिक संगठन आईएसआईएस जैसा आतंकवादी संगठन जिसने सिर्फ एक साल के अंदर पूरे विश्व में अपना झंडा गाड़ दिया है कि करतूते यह साबित करने के लिये काफी है कि यह सिलसिला थमने वाला नहीं. दुख तो इस बात का है कि हमारे बीच में ही कुछ लोग सारे मामले में मीरजाफर की भूमिका अदा कर रहे हैं. विश्व के साथ भारत कई सालों से आंतक के साये में है. वह अपनी धरती पर

ट्रेड सेंटर हो या मुम्बई,पेरिस हर जगह इंसानियत ही लहूलुहान होती है!

आतंक का नाम कुछ भी हो लेकिन हर बार इंसानियत ही लहूलुहान होती है.पहले न्यूयार्क का वल्ड ट्रेड सेंटर फिर मुंबई और अब पेरिस. लश्कर और अलकायदा के बाद आतंक का नया और सबसे खौफनाक चेहरा है आईएसआईएस जिसने पेरिस हमले की जिम्मेदारी ली है.पिछले शुक्रवार की रात पेरिस में उसकी इस कारस्तानी के बाद पूरी दुनिया हिल गई, इस हमले को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आतंकी हमला माना गया है.चौदह साल पहले 11 सितंबर 2001 को पूरी दुनिया ने आतंक का वो मंजर देखा जिसे देखकर इंसानियत खौफजदा हो गई. अमरीका के मशहूर शहर न्यूयार्क पर आतंकियों ने इस तरह हमला किया कि हर कोई हैरान रह गया. विमान के सहारे दुनिया की एक आलीशान इमारत वल्ड ट्रेड सेंटर पलभर में जमीदोज कर दी गई. हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए.दूसरा बड़ा हमला भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में 26 नवंबर, 2008 को हुआ जब आतंकियों ने कई जगह हमले किए. कई बेगुनाहों की जान ले ली. कई लोगों को बंधक भी बनाया जिसमें विदेशी पर्यटक भी शामिल थे. पूरा देश सन्न रह गया था. 24 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षा बलों ने जान पर खेल कर आतंकियों को मार गिराया और एक आतंकी कसाब को जिंदा

इतिहास को इतिहास के पन्नों पर ही रहने दो, देश की सोचो!

इतिहास पुरूषों को इतिहास में ही रहने दीजिये,देश की सोचिये- परिवार के किसी के भी गुजरने का गम पूरे परिवार व सगे संबन्धी को रहता है और यह  देश का महान व्यक्ति रहा तो यह दायरा ओर बढ़ जाता है लेकिन ईश्चर ने हम मनुष्यों को इतनी शक्ति तो दी है कि हम कुछ दिनों में ही उनके जाने के गम को भूलक र अपने काम में जुट जाये. हर मृतात्मा की याद तो बहुत आती है लेकिन सिर्फ उसे ही याद करके हमारा बाकी जीवन तो नहीं चल सकता. कुछ दिनों से देश में इतिहास के पन्नों को खोजकरआत्माओं को डिस्टर्ब करने का खेल शुरू हुआ है जो किसी के लिये राजनीतिक रोटी पकाने का साधन बन गया तो किसी के लिये अपने को खोने और उनकी आत्मा की शंाति के लिये सकल कर्म करने का! क्या कुछ ऐसा ही कर्नाटक में नहीं हो रहा जहां इतिहास पुरूषों को इतिहास के पन्नों से निकालकर सड़क पर हल्ला मचाने के लिये ला खड़ा किया गया है? कर्नाटक में कांग्रेस का राज है, यहां पिछले कुछ महीनों से जो कुछ हो रहा है वह किसी भी सभ्य व्यक्ति के गले नहीं उतर रहा. इतने दिनों बाद अचानक एक मृत महापुरूष को अचानक उनकी जयंती मनाने का सपना किसने देखा और यह क्यों साकार करने की ठानी?

बिहार चुनाव भविष्य में देश की राजनीति को नये मोड़ पर ले जायेगा?

अब कोई लाख कितना भी कहे मगर यह तो मानना ही पड़ेगा कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का ग्राफ तेजी से गिरा है.बिहार के चुनाव में इतनी बड़ी पराजय होगी इसकी कल्पना नहीं की थी-चुनाव से पूर्व जो सर्वेक्षण महागठबंधन के पक्ष में आये उसकी संभावना मतगणना के शुरूआती रूझान में जरूर धूमिल होते नजर आई लेकिन जल्द ही यह साफ हो गया कि मोदी लहर बिहार में खत्म हो चुकी है.इन नतीजों के पूर्व शनिवार को त्रिवेन्द्रम के स्थानीय चुनाव में भाजपा को मिली सफलता ने उन्हे जरूर इस बात की उम्मीद दिलाई थी कि बिहार भी उनके हाथ में होगा. दिल्ली में हार का बदला लेने पूरी तरह कमर कसकर भाजपा ने बिहार में अपना दाव खेला था किन्तु उसे सफलता नहीं मिली.असल में भाजपा की सबसे बड़ी गलती तो यह रही कि बिहार में उसने लालू प्रसाद और नीतिश कुमार की ताकत को कम आंका और पूरे विश्वास के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतीष्ठा को ही दांव पर लगा दिया. प्रधानमंत्री देश का प्रधानमंत्री न होकर उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री बना दिया गया. अकेले अमित शाह को प्रचार अभियान की बागडौर सौंप दी जाती और कुछ अन्य स्टार प्रचारकों के हाथ मेंं य

फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता सिद्ध की,अभी भी देश में हजारों मुकदमें विचाराधीन!

फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता सिद्ध की,अभी भी देश में हजारों मुकदमें विचाराधीन! 26 मार्च 1972 को चन्द्रपुर महाराष्ट्र की सोलह साल की एक दलित लड़की से दो पुलिस वालों ने रेप किया. 'मथुरा रेप कांडÓ से कुख्यात यह मामला सेशन कोर्ट से हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर पीडि़ता को न्याय मिलने में सोलह साल लग गये.यह तो न्याय में देरी की बात हुई किन्तु कहावत हैं न 'न्याय में देर है अंधेर नहींÓ-यह अब हमारी न्यायपालिका ने दिखाना शुरू कर दिया है. 16 दिसंबर को दिल्ली में 23 साल की फिजियोथेरोपी विषय की एक मेडिकल छात्रा से बस में गेंग रेप हुआ.सभी आरोपी पकड़े गये तथा उन्हें एक साल के अंदर दस सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई गई- इस मामले ने देश में रेप के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि सरकार को इसके लिये न्यायिक आयोग बिठाना पड़ा और आयोग को अस्सी हजार सुझाव देशभर से मिले-कानून में कुछ संशोधन भी हुआ कि न्तु रेपिस्टों को इससे कोई भय नहीं हुआ. दिल्ली रेप कांड के मुल्जिमों में से एक नाबालिग को तीन साल की सजा हुई जबकि बाकी में एक की मौत हो गई तथा शेष करीब चार को फांसी पर लटकाने का फैसला हुआ लेकिन इ

फ्रीडम ऑफ स्पीच का दुरूपयोग करने वालों को सरकार का करारा जवाब!

यह पहला अवसर है जब मोदी सरकार ने फ्रीडम ऑफ स्पीच का दुरूपयोग करने वाले किसी बड़े शख्स को लपेटे में लेकर देश को एक संदेश देने का प्रयास किया है कि इस स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई किसी के खिलाफ कुछ भी बोलेे और सरकार यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठै रहे.-होम मिनिस्ट्री ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके कहा है कि फ्र ीडम ऑफ स्पीच के नाम पर लोगों को किसी भी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए. इससे अशांति फैलेगी और दंगे होंगे. सरकार का यह रुख बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी के उस पिटीशन पर आया है, जिसमें उन्होंने हेट स्पीच से जुड़े आईपीसी के सेक्शन 153, 153,153क, 295, 295, 298 और 505 की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए थे. केंद्र ने स्वामी के खिलाफ हेट स्पीच के मामले में केस चलाए जाने को भी सही ठहराया है.सरकार का यह रूख उस समय सामने आया है जब देश में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है. हैट स्पीच और इनटोलेंट बहस का प्रमुख मुद्दा है ऐसे समय सरकार का रूख साफ होने से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामें के रूप में पेश होने के बाद उन लोगों के मुंह पर लगाम लग सकती है जो इस मामले को लेक

नन्ही रेप पीडि़ता की नन्हीें बच्ची के जीवन में खुशी ऐसे लौटायेगा हाई कोर्ट!

नन्ही रेप पीडि़ता की नन्हीें बच्ची के जीवन में खुशी ऐसे लौटायेगा हाई कोर्ट! हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस शाबिबुल हसनेन और न्यायमूर्ति डी के उपाध्याय के उस एैतिहासिक फैसले का स्वागत करते हैं जिसमें उन्होंने एक ऐसी बच्ची को जीने की राह दिखाई है जो एक तेरह साल की बच्ची से रेप के बाद पैदा हुई. न्यायमूर्तियों ने अपने फैसले में यूपी सरकार को आदेश दिया है कि वो विक्टिम के नाम 10 लाख रुपए की एफडी कराए. सरकार विक्टिम की बेटी की देखभाल करे. इसके अलावा, विक्टिम के एडल्ट होने के बाद उसकी नौकरी का भी इंतजाम करें. सवाल यह भी पैदा हुआ है कि क्या इससे समाज को कोई संदेश जायेगा और व्यवस्था में कुछ सुधार होगा? इस फैसले के तुरन्त बाद थाने में रेप पीडि़ता के पिता ने रिपोर्ट लिखाई है कि रेपिस्टों ने उनकी दूसरी बेटियों से भी रेप की धमकी दी है-कोर्ट के फैसले के बाद अब समाज और पुलिस दोनों का दायित्व और बढ़ गया है कि वह अपने बेटियों की हैवानों से रक्षा कैसे करें. रेप पीडि़ता का यह मामला अबार्शन की मांग को लेकर  सात सितंबर को हाईकोर्ट पहुंचा था,उस समय मेडिकल जांच कराने की सलाह दी गई. जांच

असहिष्णुता क्यों सर चढ़कर बोल रही है! क्यों अचानक ऐसे हालात पैदा हुए?

अंग्रेजी के शब्द इनटोलेरेन्ट को हिन्दी में कहते हैं असहिष्णु अर्थात असहनशीनता या न बर्दाश्त करने वाला.यह नेताओं के साथ साथ उन सैकड़ों लोगों की जुबान पर भी है जो देश में असहिष्णुता के कारण गुस्से में हैं इनमे कलाकार भी हैं,इतिहासवेत्ता भी है समाजसेवी भी, वैज्ञानिक भी और फिल्मकार भी और आगे आने वाले समय में और भी कई लोग जुड जाये तो आश्चर्य नहीं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?अगर साफ तौर पर आम आदमी की भाषा में कहेे तो यह सब कुछ पैदा हो रहा है कुछ लोगों की असहिष्णुता के कारण- वैसे इसके कई उदाहरण है कि न्तु जब जनप्रतिनिधियों व ब्यूरोक्रेटस में सहिष्णुता नहीं रह जाती तो इसका व्यापक असर समाज पर होता है एक उदाहरण से स्पष्ट है-मध्यप्रदेश की एक मंत्री है कुसुम मेहदले, वे प्रदेश में समाज कल्याण व बाल विकास विभाग सम्भालती है-स्वाभाविक है विभाग के अनुरूप उन्हें संवेधनशील व पोलाइट होना चाहिये लेकिन वे क्या संवैधनशील अथवा पोलाइट हैं? नहीं, चूंकि उन्होनें सड़क पर भीख मांगते बच्चे को अपने समीप पाकर उसे लात मारकर दूर कर दिया.उसका कसूर बस इतना था कि उसने कहा दीदी मुझे एक रूपया दे दो. वह तो भड़की उनके सुरक्ष