छत्तीसगढ़ में बुनियादी शिक्षा को यूं बिगाडऩे का ठेका किसने दिया?



एक समय ऐसा था जब छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थापित रविशंकर विश्वविद्यालय ने अपने घपले-घोटाले जिसमें रद्दी कांड,फर्जी डिग्री कांड, अंकसूची कांड आदि के चलते अपनी साख खो दी थी-यहां तक कि इस विश्वविद्यालय से डिग्री लेकर निकलने वाले छात्रों को कहीं नौकरी पर लगाने से पहले भी लोग दस बार सोचते थे- इस स्थिति से निजात पाने में विश्वविद्यालय को वर्षों लग गये. अब ले देकर यह विश्वविद्यालय अपनी साख पुन: कायम करने में ज्यों त्यों सफल हुआ है, तभी छत्तीसगढ़ की बुनियादी शिक्षा पर प्रश्र चिन्ह लगता नजर आ रहा है- यहां कि शिक्षा, शिक्षक और संपूर्ण व्यवस्था को सम्हालने वाले प्राय: सभी इस समय न केवल संदेह के दायरे में हैं बल्कि उनपर गंभीर आरोप भी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि बुनियादी शिक्षा की जड़े ही जब मजबूत नहीं हो पा रही है तो क्या यहां कि उच्च शिक्षा और अन्य शिक्षा से जुड़ी संस्थाएं विश्व की बात छोड़े अपने देश में ही अपना अस्तित्व जमा सकेंगी?. मध्यप्रदेश में हुए व्यापमं घोटाले के तो तार यहां से जुड़े होने के कुछ-कुछ प्रमाण मिले हैं अब दुष्कर्म मामले में जेल में बंद आसाराम बापू के कथित दिव्य पुस्तकों को भी न केवल स्कूल में खपाने और उसमें लिखी बातों को छोटे-छोटे बच्चों के मन में डालने का कु त्सित प्रयास कथित लोगों ने किया है-स्वाभाविक है कि इस पूरे मामले की डोर किसी प्रभावशाली व्यक्ति के हाथ में है जिसे बचाने का प्रयास भी अब शुरू हो गया है- इस मामले का भंडाफोड़ होने के बाद भी प्रशासन और सरकार ठण्डी कार्यवाही कर बैठा है ताकि मामला पूरी तरह से ठण्डा हो जाये. ऐसे मामले प्रकाश में आने के बाद जिम्मेदार लोगों के पास रटी रटाई बयानबाजी मौजूद रहती है जिसे अखबारों में प्रकाशित करा सब लीपापोती कर दी जाती है.यह पहला अवसर नहीं है जब शिक्षा से जुड़े मामलों को यूं ही ठण्डे बस्ते में डालकर रखा गया. जब स्वयं शिक्षा मंत्री से जुड़ा एक मामला परीक्षार्थी की जगह दूसरे को बिठाने का सामने आया तब भी इसी प्रकार की ठंडाई दिखाकर मामले को रफा दफा किया गया? शिक्षा के मामले में जिस कदर एक के बाद  एक घपले घोटाले,अनियमितता, लालफीताशाही के सामने आ रहे हैं वह यह इंगित कर रहे हैं कि सरकार शिक्षा की बुनियाद पर गंभीर नहीं हैं. 

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