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उम्र कैद की सजा पर से संदेह खत्म! क्या फांसी की सजा पर भी सुको सज्ञान लेगी?

याकूब मेनन को फांसी  से पहले व बाद से यह बहस का विषय है कि फांसी दी जानी चाहिये या नहीं अभी भी इसपर बहस जारी है लेकिन इस बीच उम्र कैद का मामला भी सुर्खियों में है कि आखिर उम्र कैद होती है, तो कितने साल की? यह माना जाता रहा है कि उम्र कैद का मतलब है- चौदह साल जेल लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि उम्र कैद चौदह साल नहीं बल्कि ताउम्र है याने अपराधी की जब तक जिंदगी है तब तक उसे जेल में ही काटनी होगी. छत्तीसगढ के धीरज कुमार, शैलेन्द्र और तीन दोषियों के मामले में याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और वी गोपाला गोवड़ा की बेंच ने समाज के एक वर्ग द्वारा फांसी की सजा के विरूद्व अभियान पर टिप्पणी करते हुए कहा की यह वर्ग चाहता है कि फांसी को खत्म कर उसकी जगह आजीवन कारावास की सजा दी जाये तथा स्पष्ट किया कि उम्र कैद का मतलब उम्र कैद होता है न कि चौदह साल. अपराधी जिसे उम्र कैद हुई है उसे अपनी पूरी उम्र सलाखों के पीछे बितानी होगी. इससे यह तो संकेत मिलता है कि भविष्य में फांसी को खत्म करने पर भी विचार किया जा सकता है. सर्वोच्च अदालत ने अब तक उम्र कैद के संबन्ध में चल

सड़क से..लेकर बस,ट्रेेन और प्लेन तक मौत का पीछा...आखिर कौन है इन सबके लिये जिम्मेदार?

सबसे पहले राजधानी के छेरी-खेड़ी इलाके से लगी उस बुरी खबर का जिसमें तीन छात्रों की मौत हो गई. दो अन्य भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं. राजधानी में फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने वाले 10 दोस्त बर्थडे मनाने दो कारों में सवार होकर नया रायपुर जा रहे थे. दोनों कारों के बीच रेस होने लगी, रेस के दौरान दोनों का बैलेंस बिगड़ा और आपस में टकरा गये. हादसे में  कार में सवार तीन छात्रों  की मौत हो गई जबकि दो युवक गंभीर रूप से घायल हैं. इस दर्दनाक हादसे में टाटीबंद रायपुर की  किरण पनेज सहित उसकी क्लास मेट अनिशा सरलिया व सिद्वार्थ अब इस दुनिया में नहीं रहे-सभी को हार्दिक श्रद्वांजलि. रायपुर की खबर चौका देने वाली है जबकि हंसी खुशी परिवार को लेकर ट्रेन, बस या हवाई जहाज से सफर करने वालों की जिंदगी का भी अब कोई भरोसा नहीं रहा.कभी सपने में भी नहीं आता कि हम जिस सफर पर जा रहे हैं  यह हमारी आखिरी यात्रा हो सकती है, किन्तु हो जाती है. यह मौत कभी एक्सीडेंट के रूप में तो कभी डकैती, लूट, छेड़छाड़ या अन्य किसी तरह से होती है. प्लेन में सफर करने वाले चंद मिनटों या घंटो में अपने गंतव्य पर पहुंच गये तो ठीक वरना डर बना

यह चिंतनीय है कि कुछ घटनाएं सामाजिक मान्यताओं को तोड़ रही!

सामाजिक जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी होती है जो हमें गंभीर रूप से न केवल प्रभावित करती हैं बल्कि सोचने के लिये भी मजबूर कर देती है कि क्या वास्तव में ऐसा भी होता है? अगर कोई पुरूष शराब पीकर हंगामा करे तो हमें उतना आश्चर्यजनक नहीं लगता जितना अगर कोई महिला शराब पीने के बाद हंगामा करे गालियां बके लेकिन कुछ अर्से से ऐसा ही हो रहा है और इधर छत्तीसगढ़ के साथ उदित उस झारखंड की तरफ जरा गौर कीजिये वहां तो लोग अति करने लगे हैं जहां अपनी बेवकूफी का डंका बजा रहे हैं तो वहीं ऐसा कृत्य भी कर रहे हैं जो मानवता को झकजोर कर रख रही है. कानून को अपने हाथ में लेकर उन्होनें एक बाइक सवार को पीट-पीटकर न केवल उसका कचूमर निकाल दिया बल्कि गुस्से की हद पार कर उसकी आंख भी निकाल ली यह वह राज्य हैं जहां के एक मंत्री व प्राचार्य नेे जीते जी दो बड़े नेताओं को जहां श्रद्वाजंलि अर्पित की बल्कि स्कूल की छुट्टी भी करा दी. बहरहाल कुछ ताजा जीवंत घटनाएं भी हैं जो समाज का वास्तविक आइना दिखाता है- उस घटना का यहां हम जिक्र कर रहे हैं जो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में घटित हुई. एक तेरह साल की मासूम के साथ एक पैसे वाले के नाबालिग बेट

अब एक नया 'शिगूफा! 'एस्ट्रायड इस सप्ताह दुनिया को खत्म कर देगा?

हम और आप में से कई लोग वर्षो से सुनते आ रहे हैं कि दुनिया का अंत होने वाला है.सन् 1960 के दशक में तो यह खबर ऐसे उडी कि बहुत से लोग मरने के कथित निर्धारित दिन घर से बाहर निकलकर आ गये. ऐसा कुछ नहीं हुआ, उस दिन न प्रलय आया न जलजला आया और न ही कुछ अनहोनी हुई इसके बाद के दिनों में एक स्काई लैब के पृथ्वी टकराने की खबर ने खूब आंतकित किया. दूर क्यों जायेंं -21 दिसंबर 2012 में भी पृथ्वी पर भयंकर प्रलय की बात कही गई थी, तब प्राचीन माया सभ्यता के कैलेंडर (5,125 साल लंबा चक्र)के  खत्म होने का हवाला दिया गया था, इसपर हॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है. इस बार बात एक एस्ट्रायड की है-कहा जा रहा है कि वर्ष 2015 में सितंबर महीने अर्थात आज 21 तारीख से शुरू होने वाले सप्ताह में फिर ऐसी स्थिति निर्मित होगी कि दुनिया से मानव सभ्यता का अंत हो जाएगा? क्या पृथ्वी तबाह होने वाली है? कॉन्सपिरेसी थ्योरी की माने तो वह कुछ इसी ओर इशारा कर रही है. डूम्सडे (प्रलय का दिन)थ्योरिस्ट्स के अनुसार  22 से 28 सितंबर के बीच पृथ्वी से एक विशालकाय चट्टान (एस्ट्रॉयड) टकराएगी, जिससे सबकुछ खत्म हो जाएगा. धर्मग्रंथों में भी दुनि

सिर्फ गैस ही नहीं कई तरह की चिंगारी सड़कों पर सुलग रही है!

हादसे होते हैं, तब जागता है प्रशासन, उससे पहले तक उसे होश नहीं रहता कि जो हो रहा है वह खतरनाक व जानलेवा है.गैस के गोदाम, पटाखे की दुकान,पेट्रोल पंप, मिट्टी तेल की दुकान यह सब प्राय: विकसित शहरों के बीच में हैं चूंकि विकास के साथ आबादी बढ़ी और घनी बस्ती, कालोनियां बेतरतीब ढंग से विकसित हुई. ऐसा प्रशासन के लोगों की नाक के नीचे होता रहा किन्तु किसी को भी इतनी फुरसत नहीं रहती कि वे शहरों में निर्माण होतेे वक्त देखे कि इससे क्या रिफरकेशन हो सकते हैं. ट्रेन दुर्घटना होने के बाद उसके कारणों का पता लगाया जाता है-ट्रेन दुर्घटना न हो इसका प्रबंध शुरू से नहीं किया जाता. सांप मर जाये तो लोग लकीर को पीटते रहते हैं. झाबुआ हादसे ने देश को हिलाकर रख दिया. यहां गैस का गोदाम फटा तो पूरा देश हिल गया. क्या वहां के प्रशासन और हमारे छत्तीसगढ़ के प्रशासन में बैठे लोगों को मालूम नहीं था कि घनी बस्तियों में गैस के गोदाम खतरनाक है? क्या उन्हें मालूम नहीं कि शहर के भीतर पटाखा दुकाने चलाना और पेट्रोल-डीजल के पंप खतरनाक हो सकते हैं? फिर प्राथमिक तौर पर ऐसे प्रबंध क्यों नहीं किये जाते कि आम आदमी की जिंदगी से खि

आईएएस की एक रात कब्रिस्तान में! और एक मासूम की कोर्ट में एंट्री!

 कुछ लोगों के काम करने का तरीका अन्य से अलग होता है जो न केवल दूसरों के लिये उदाहरण पेश करता है बल्कि उसे अंगीकार करने की प्रेरणा भी देता है-अब चंडीगढ़ की एडीजे अंशु शुक्ला का ही उदाहरण ले-जिनकी कोर्ट में एक अजूबा मामला आया, जिसे उन्होंने न केवल अपनी सूझबूझ से हल किया बल्कि एक पांच साल की बच्ची, जो यौन शोषण से पीडि़त थी उसके परिवार को न्याय भी दिया.बच्ची जिसे कोर्ट में पेश किया गया न कोर्ट के बारे में उसे कुछ मालूम था और न जज को जानती,न ही उससे कठोर सवाल किये जा सकते.अंशु शुक्ला ने कोर्ट की परिधि से बाहर जाकर इस मामले में पारिवारिक नुस्खा अख्तियार किया.बच्ची से सवाल पूछने जज ने पहले बच्ची को गले लगाया, फिर गोद में बिठा लिया. इस आत्मीयता से बच्ची को लगा कोई अपना है,जज ने बातचीत शुरू की और बातों-बातों में उन सवालों के जवाब जान लिए जो अहम थे. बच्ची ने जो बताया वह वास्तव में रोंगटे खड़े कर देने वाली थी,उसने कंडक्टर अंकल की सारी पोल खोल कर रख दीं जो उससे स्कूल जाने के दौरान करता था. बच्ची ने जज के सामने खड़े आरोपी की ओर इशारा करके बता दिया कि यही वह अंकल हैं.बच्ची ने यह भी बताया कि कंडक्

क्या वीआईपी कल्चर आम आदमी के अधिकारों पर ठोकर नहीं मार रहा?

इस साल के शुरू में एक छोटी किन्तु महत्वपूर्ण खबर अखबारों में छपी, जो किसी अफ्रीकी राष्ट्र से संबन्धित थी जिसमें कहा गया कि-''एक व्यक्ति सड़क पर अपनी कार से जा रहा था, तभी उसे एक व्यक्ति ने हाथ दिखाकर लिफट देने को कहा-उसने कार रोकी, उसको कार में बिठाया और दोनो बात करते हुए गंतव्य की ओर निकल पड़े. रास्ते में अपना पड़ाव आते ही उस व्यक्ति ने गाड़ी मालिक से कहा गाड़ी रोक दो, मुझे यहीं उतरना है.गाडी रोकने के बाद चालक ने उस व्यक्ति से पूछा- भाईसहाब आप करते क्या हैं?-उसने बताया कि वह उस देश का राष्ट्रपति है.ÓÓ अब बताइये उस ड्रायवर पर क्या गुजरी होगी. क्या हमारे दंश के वीआई पी और वीवीआईपी इस तरह आपको कभी मिले या मिल सकेंगे? गरीब व आम पब्लिक का देश जो लोकतंत्र की दुहाई देते नहीं थकता वह कुछ- इस तरह से ढल गया है या ढाल दिया गया है कि यहां निर्वाचन के बाद हर व्यक्ति वीआईपी बन जाता है या बना दिया जाता है, वहीं उनके इशारे पर चलने वाले हर ब्यूरोके्रट की आज एक अलग ही दुनिया बना दी गई है जिसे हम आम आदमी की भाषा में  वीआईपी कल्चर कहते हैं. पूर्व के राजा महाराजाओं और अंग्रेजो से प्राप्त इस कल्

प्रकृति केे कोप के आगे भी कई सवाल-जिसका जवाब तो किसी न किसी को देना ही होगा!

मांग को लेकर सड़कों पर उतरने से अगर समस्या हल हो जाती है तो हम कहेंगे कि रोज लोग सड़कों पर आये और अपनी मांग रखे. प्रकृति के कोप के आगे सब बेबस हैं तो सरकार की तैयारियों के अभाव ने भी तो लोगों को कहीं का नहीं छोड़ा. प्रकृति की मार झेल रहे किसान परेशान है उसकी फसल तबाह हो चुकी है. बारिश इस बार कम हुई.जहां पानी खूब गिरा वहां के पानी को सम्हालकर फसल व पीने के लिये रखने की जिम्मेदारी सरकार की थी उसका निर्वहन सही ढंग से नहीं किया. सितंबर का महीना आधा चला गया अब बारिश की  गुंजाइश कम है लेकिन लोगों को ढाढस बंधाने के लिये हमारा मौसम विभाग कह रहा है कि अभी बारिश होगी, कितना सही कितना गलत वे ही जाने क्योंकि उनकी भविष्यवाणियां अक्सर उलटी ही निकलती है याने पानी गिरेगा तो सूखा पड़ता है बहरहाल संपूर्ण छत्तीसगढ़ इस समय सूखे की चपेट में है इतना ही नहीं जलप्रबंधन सही नहीं होने के कारण इस बार गर्मी के दिनों में गंभीर पेयजल संकट पैदा हो जाये तो आश्चर्य नहीं. जमीन के भीतर अभी पर्याप्त पानी इकट्ठा नहीं हो सका है. पानी की एक- एक बूंद अब महत्वपूर्ण हो गई है. इसमें दो मत नहीं कि संपूर्ण छत्तीसगढ़ सूखे की च

किसानों की फसल बर्बाद होने व कृषकों की आत्महत्या के लिये आखिर कौन जिम्मेदार?

यह सही है कि इस साल बहुत पहले ही मौसम विभाग ने इस बात का अनुमान लगा दिया था कि इस बार साामान्य से कम बारिश होगी लेकिन क्या ऐसी स्थिति में सरकार की तरफ से ऐसे कोई कदम उठाये गये जिससे किसानों की तकनलीफ दूर हो सके और उनकी तकलीफे दूर हो सके.हर बार चाहे वह सूखे कि स्थिति हो या ज्यादा बारिश अथवा कम बारिश हमारा किसान आसमान की तरफ देखने के लिये मजबूर है.उसे कुछ सूझता नहीं कि वह क्या करें? क्या न करें? बारिश आने से पूर्व वह बैेंक से कर्ज लेकर अच्छी फसल पैदा करने के लिये पैसे का जूगाड़ करता. अपना बतँन भाड़ा बेचकर या घर गिरवी रखकर उन बैंक वालों से ऋण प्राप्त करता है जो देने के समय तो मुस्कराते हैं हंसते हैं लेकिन वसूली के समय क्रूरता की सारी हदें पार कर देते हैं. किसान बैंक व साहूकार से प्राप्त ऋण से न केवल बीज खरीदता है बल्कि खाद व दवा आदि की भी खरीदता है इसके बाद फसल बोता है जिसे वह भगवान भरोसे छोड़ देता है. भगवान ने पानी बरसाया तो ठीक वरना उसे सरकार के बंाध और नालों पर भरोसा करना पड़ता है इसके लिये भी उसे इतनी मगरमच्छी करनी पड़ती है कि कई जगह तो सर फु टव्वल की नोबत आ जाती है. अडसठ साल म

अंतरराष्ट्रीय संधि में उलझा एक विदेशी राष्ट्र के राजनयिक पर बलात्कार का संगीन मामला!

''सन् उन्नीस सौ इकसठ में वियना में विभिन्न देशों के बीच एक संधि हुई थी जिसमें तय किया गया था कि किसी भी देश के राजनयिकों को वह देश राजनयिक संरक्षण देगा जिसमें वह कार्यरत है. इस संधि के अनुच्छेद  29 में कहा गया है कि किसी भी राजनयिक को हिरासत में नहीं लिया जा सकता न ही उसे गिरफ्तार किया जा सकता है, साथ ही उसके खिलाफ कोई ऐसी कार्रवाई भी नहीं की जा सकती जिससे उसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे. इस संधि के अनुच्छेद संख्या इकतीस में यह भी कहा गया कि किसी राजनयिक को आपराधिक मुकदमे से भी छूट हासिल हैÓÓ वियना की यह संधि  इसलिये भी याद आ रही है चूंकि भारत सउदी के राजनयिक पर कार्रवाई करना चाहता है और पुलिस व सरकार दोनों इस संधि से बंधी हुई है. गुडग़ांव के एक फ्लैट में रहने वाले राजनयिक व उनके साथ कुछ लोगों पर आरोप है कि उन्होंने भूकंप पीडि़त दो नेपाली महिलाओं का न केवल लगातार रेप किया बल्कि उन्हें प्रताडि़त भी किया व अपने दोस्तों को भी परोसा. हमारी सरकार को इन सउदी डिप्लोमेट्स पर कार्रवाई से पूर्व वहां की सरकार से कहना पड़ेगा कि वह राजनयिक संरक्षण हटा ले. बिना अनुमति के अगर हमारी सरकार अ

प्रेम, सेक्स-संपत्ति की भूख ...और अब तो रक्त संबंधों की भी बलि चढऩे लगी!

कुछ लोग तो ऐसे हैं जो मच्छर, मक्खी, खटमल और काकरोच भी नहीं मार सकते लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो हैवानियत की सारी हदें पार कर मनुष्य यहां तक कि अपने रक्त संबंधों का भी खून करने से नहीं हिचकते. इंसान खून का कितना प्यासा है वह आज की दुनिया में हर कोई जानता है क्योंकि आतंकवाद और नक्सलवाद के चलते रोज ऐसी खबरें पढऩे-सुनने को मिल जाती है जो क्रूरता की सारी हदें पार कर जाती हैं. मनुष्य का राक्षसी रूप इस युग में ही देखने को मिलेगा शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. आतंकवाद और नक्सलवाद हिंसा के दो रूप के अतिरिक्त अब रिश्तों के खून का वाद भी चल पड़ा है जो सामाजिक व पारिवारिक मान्यताओं, संस्कृति- परंपराओं का भी खून कर रहा है. नारी जिसे अनादिकाल से अबला, सहनशक्ति और मासूमियत, ममता और प्रेम का प्रतीक माना जाता रहा है उसका भी अलग रूप देखने को मिल रहा है. रक्त संबंध, रिश्ते, सहानुभूति, आदर, प्रेम, बंधन सबको तिलांजलि देकर जिस प्रकार कतिपय मामलों में अबलाओं ने जो रूप दिखाना शुरू किया है वह वास्तव में ङ्क्षचंतनीय, गंभीर और खतरनाक बन गया है. नारी के कई रूप हमें इन वर्षों के दौरान देखने को मिले हैं लेकि

हाईवे, फोरलेन सड़कों पर एक्सीडेंट के लिये वाहन चालक कितना दोषी?

हाईवे पर एक्सीडेंट के पीछे असली कारण क्या है? ड्रायवर की लापरवाही? ड्रायवर का शराब पीकर गाड़ी चलाना, तेज रफ्तार, ऊटपटांग मोड़, गाड़ी के सामने अचानक मवेशियों अथवा किसी व्यक्ति  या अन्य किसी वस्तु या चीज  का आ जाना या ओवरटेक?- दुर्घटना के पीछे यह सभी कारण हो सकते हैं. अगर हाईवे, फोरलेन पर तेज रफ्तार से गाड़ी नहीं चले तो एक घंटे का सफर दो और तीन घंटे का हो जाये किन्तु इन सबके बीच आज ज्वलंत प्रश्न है. सड़कों पर मवेशियों का झुंड और उनका टांग पसारे पड़े रहना, आवारा मवेशियों का अचानक वाहन के आगे कूद पडऩा, झुंड के रूप में चराने अथवा किसी तालाब में पानी पिलाने या नहलाने के लिये उस स्थिति में भी निकालना जबकि दूसरा रास्ता मौजूद है आदि. जब हाईवे खाली मिलता है तो हर ड्रायवर चाहे वह शराब पिये हुए हो या न हो उसके  गाड़ी का एक्सीलेटर बढ़ता ही रहता है, वह फिर या तो किसी रेड सिंग्नल पर रूकता है या फिर कोई दूसरी गाड़ी के सामने खड़े होने या आने से कम होती है लेकिन सपाट रोड पर अचानक मवेशी कूद पड़े तो किसकी गलती? राजधानी रायपुर के आसपास रिंग रोड और सड़कों पर रात-दिन आवारा मवेशियों का मेला लगा रहता है. इन

सरोना स्टेशन का वर्षों पुराना सपना अब साकार होगा! ट्रेनों में सुरक्षा पर भी प्रश्न चिन्ह

अगर रेलवे अपनी योजना के अनुरूप आगे बढ़ा तो भोपाल के हबीबगंज और दिल्ली में निजामुद्दीन की तरह रायपुर के सरोना में भी एक स्टेशन शीघ्र ही अस्तित्व में आयेगा जो न केवल रायपुर के सबसे पुराने स्टेशन में भीड़ कम करेगा बल्कि इस पूरे क्षेत्र के लोगों को बड़ी राहत भी देगा. ऐसे स्टेशन देश के कई बड़े नगरों में हैं जहां इस सुविधा के होने से आधी से ज्यादा भीड़ छंट जाती है. सरोना को स्टेशन बनाने की पहल इस बार सांसद रमेश बैस की तरफ से शुरू हुई है और रेलवे ने अपने कदम आगे बढ़ा भी दिया है. इससे एक बात तो साफ है कि योजना पर अमल भी जल्द होगा. रमेश बैस अच्छी तरह जानते हैं कि रायपुर पश्चिम में रेलवे स्टेशन की मांग बहुत पुरानी है तथा इसके स्थापना की पहल भी इस क्षेत्र के लोगों की आशाओं के अनुरूप है. जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश से जुड़ा हुआ था तब इस क्षेत्र के लोगों ने यहां स्टेशन बनाने के लिये आंदोलन छेड़ा था. पूर्व में रेलवे ने सरोना को पूर्णत: विकसित करने की जगह सरस्वतीनगर को विकसित किया- जिसकी अब कोई उपयोगिता नहीं रह गई क्योंकि यहां एनआईटी की बड़ी-बड़ी दीवार ने स्टेशन के लिये रास्ता ही नहीं छोड़ा. सरोना राय

अपराध अन्वेषण में मीडिया का दखल, अपराधों की गुत्थियां सुलझाने में रोड़ा!

किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना और गिरफ्तार करना दोनों अलग-अलग है -यह बात मुझे उस समय पता चली जब एक आपराधिक मामले की रिपोर्ट के बाद कोर्ट से समन पहुंचा. असल में कथित अपराधी को हिरासत में लिया गया था न कि उसे विभिन्न धाराओं में गिरफ्तार किया गया था. कई बार होता यह है कि पुलिस अपने तरीके से किसी को यूं ही पूछताछ के लिये बुलाती है और बाद में या तो छोड़ दिया जाता है या फिर गिरफ्तारी शो कर दी जाती है लेकिन कतिपय हाई-प्रोफाइल मामलों में पहले हिरासत और फिर गिरफ्तारी शो की जाती है. कानूनी दृष्टि से हिरासत और गिरफ्तारी अलग-अलग बात है इसलिये उसे छापते समय भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है वरना कभी-कभी रिपोर्टिंग का हमारा उत्साह कानून ठंडा कर सकता है, बहरहाल हम आज इस बात का जिक्र कुछ विशेष परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में कर रहे हैं- अपराध और अपराध की रिपोर्टिंग में आये भारी बदलाव ने सबको चौंका दिया है. कुछ रिपोर्टिंग प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया दोनों में ऐसी हो रही है जो पुलिस को मदद मिलने की जगह सीधे-सीधे अपराधियों को लाभ पहुंचाने का काम कर रही है. मुम्बई 26/11 आतंकी हमला हो चाहे गुरूदासुपर क

स्कूलों में बच्चो को शैक्षणिक ज्ञान के अलावा कराटे,मार्शल आर्ट जैसी तकनीक भी सिखाई जाये

अगर हममेें हिम्मत है तो किसी भी कठिन स्थिति का सामना कर सकते हैं और यदि कुछ दाव पेच सीखा है तो यह ताकत हमारी रक्षा के लिये काफी हो जाती है. अब ब्राजील की उस साधारण सी दिखने वाली महिला को ही बात को ले - लुटेरे ने उसका आंकलन सही  किया होता तो वह उससे जूझते ही नहीं. मोबाइल लूटने के चक्कर में लुटेरा ऐसा फंसा कि उसे उसके नाना, नानी, पापा मम्मी से लेकर भगवान तक सब याद आ गये. लड़की ने ऐसा दाव मारा कि लुटेरा ट्राइगं चोक फंदे में फंस गया.असल में यह लड़की मार्शल आर्ट में ब्लू बेल्ट है और उसने इस लुटेरे को अपने शिकंजे में कसने के लिये उसी विदा का प्रयोग किया. करीब बीस मिनिट तक उसे उसी दाव में कसे रखा जब तक कि पुलिस नहीं पहुंच गई. इस वाक्ये का उल्लेख हम यहां इसलिये कर रहे हैं चूकि इस ढंग की घटनाएं भारत में आम है यहां लुटेरे सड़कों पर महिलाओं को छेडऩे, लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते. अगर देश की शिक्षा में रोज कम से कम एक पीरियेड ऐसी विदाओं जिसमें मार्शल आर्ट,कराते आदि सिखाने के लिये तय किया जाये तो देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अपनी सुरक्षा स्वंय करने के काबिल हो जायेगा. वैसे भी हर व्यक्ति

रायपुर में डकैती तब भी होती थी अब भी,तब पारधी गिरोह का नाम आया अब भी! क्यो सक्रिय है यह गिरोह?

जहां तक मेरी जानकारी है रायपुर में डकै ती का इतिहास बहुत ज्यादा पुराना नहीं है. उस समय रायपुर मेें एक एसपी,एक सीएसपी, एक टीआई और गिने चुने थाने जिसमें कोतवाली, गंज, आजाद चौक शामिल हुआ करते थे, तभी एक दिन खबर आई कि महुआ बाजार में डकैतों का एक गिरोह पकड़ा गया है जो अपने शिकार की तैयारी में था. उस समय के एसपी पूरन बतरिया, सीएसपी बीएल तारन और टीआई नायडू सहित कई अफसर कर्मचारी तुरन्त एक गैरेज में पहुंचे जहां सभी डकैतों को पकड़कर रखा गया था.वहां उनसे पूछताछ में पता चला कि गिरोह में से अधिकांश बाहरी व्यक्ति है जिसमें एक स्थानीय महिला भी थी.गिरोह कोई बड़ी वारदात नहीं कर सका इससे पहले पुलिस ने उन्हे दबोच लिया और पुलिस ने राहत की सांस ली किन्तु डकैतों की इस सक्रियता ने पुलिस को बैचेन करना शुरू किया उसके बाद सर्वोदय नगर हीरापुर कालोनी मेें प्रोफेसर वर्मा के घर डकैतों ने धावा बोला इस डकैती में भी काफी लोग शामिल थे इसके बाद इतनी दहशत इस कालोनी में फैल गई थी कि अधिकांश लोगों ने रायपुर पश्चिम स्थित स्थित इस सुनसान स्थल पर बसी उक्त कालोनी से घर खाली कर दिया कई तो बेचकर चले गये.इसके बाद तो जैसे रायपुर

हड़ताल,हड़ताल और हड़ताल! देश की रीड़ तोडऩे वाले इस मूल अधिकार का है कोई इलाज?

हड़ताल से पच्चीस करोड़ रूपये से ज्यादा का नुकसान हुआ,आवश्यक सेवाएं ठप्प रही,औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन नहीं हुआ, बदंरगाहों पर भी कामकाज ठप्प रहा-चंद लोगों की जिद,चंद लोगोंं की मांग और उसपर सरकार की अडिय़ल नीति पर यह सब कल ही नहीं अक्सर होता आ रहा है-हम आम नागरिकों को  कब तक यूं तकलीफे सहनी होंगी? हड़ताल शांतिपूर्ण ढंग से निपट जाये तो ठीक वरना चक्का जाम, तोडफ़ोड़ आगजनी-जिसे जो लोग बनाते हैं उसे वे ही चंद मिनटों में ही उजाड़ देते हैं. यह कौन सी व्यवस्था है? कैसा अधिकार है? क्यों सरकारें ऐसा होने का मौका देती है? । इस बार देश में ट्रेड यूनियनों की हड़ताल के दौरान जो कुछ हुआ वह कुछ ऐसा ही था कि लोग अपने ही देश के दुश्मन बन गये! श्रमिकों की मांगों पर सरकार के कान में जू नहीं रेंगती हम क्यों इतने असंवेदनशील हो जाते हैं? जगह-जगह अनजान लोगों से लडऩे झगडऩे और राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने से किसका भला होता है? पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्यप्रदेश जैसे शहरों में जो कुछ हुआ वह शायद यही कह रहा था कि कोई इसे करा रहा है और यह कराने वाला दूर बैठा मजा ले रहा था. कोई मां आटो से बच्चे सहित खीं

दूरंतों का फायदा रायपुर को क्यों नहीं?सामने दिख रही फिर भी कई प्राथमिकताएं नजर अंदाज !

एक अच्छी खबर यह है कि दूरंतों ट्रेन बिलासपुर से सवारी भरना शुरू करेगी लेकिन बुरी खबर यह कि इसका स्टापेज रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के किसी दूसरे शहर में नहीं होगा. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर होने के बावजूद जब भी कोई बड़ी सुविधा देेने की बात आती है तो इस बड़े शहर की उपेक्षा ही होती है. रायपुर में इंटरनेशनल हवाई अड्डा है यहां बंगलादेश का भटका हवाई जहाज सही सलामत उतरकर यह बता चुका है कि यहां कोई भी विमान उतर सकता है या उड़ान भर सकता है. देश के बड़े बड़े शहरों की राजधानियों से जोडऩे वाले विमान यहां से उड़ान भर रहे हैं तथा भविष्य में यहां से और ज्यादा यात्री विमानों व मालवाहक विमानों के उड़ान भरने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता जबकि टे्रेन सेवा के मामले में शुरू से रायपुर उपेक्षित रहा है.बाहर से आकर देश की राजधानियों को जोडऩे वाली कई ट्रेने रूकती व गुजरती जरूर हैं किन्तु बाहर से आकर रायपुर रुककर या यहां से रवाना होने वाली कोई ट्रेन नहीं चलती.कोई दुर्ग से जाती है तो कोई रायगढ़, कोरबा या बिलासपुर से शुरू होकर या खत्म होकर फिर अपने गंतव्यों की ओर रवाना होती है.अब यह मामला ट्रेन का हो