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अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भूमि पर विवाद का खात्मा?अब राजनीति में नये-नये पैतरे और इन्द्राणी का क्राइम रहस्य!

प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी भूमि संबन्धी विधेयक अब नहीं लायेंगे.बिहार में शीघ्र ही विधानसभा के लिये चुनाव है, इससे पूर्व लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और सोनिया गांधी की कांग्र्रेस के महागठबंधन ने अपने पासे फेकना शुरू कर दिया है.गुजरात से पटेल आरक्षण को लेकर उठी राजनीतिक आग यद्यपि अपने जन्म स्थल गुजरात में थम गई है लेकिन लगता है कि आगे चलकर इसकी आंच देश  के कई राज्यों में फैलाने की तैयारी शुरू हो गई है .यह आंदोलन अब सरकार के लिये मुसीबते खड़ी कर सकता है. आंदोलन के जनक हार्दिक पटेल का कहना है कि वह अब देश के सत्ताईस करोड़ लोगों को एकत्रित कर एक संगठित आंदोलन देशभर में शुरू करेंगे. इधर देश की हाई प्रोफाइल शीना मर्डर केस रोज नये-नये रहस्य उगल रहा है इससे मुम्बई पुलिस खुद आश्चर्य चकित है. इस मामले में रहस्योद्घाटन हुआ है कि इस पूरे कांड की विलन इन्द्राणी मुकर्जी शीना से जहंा नफरत करती थी वहीं उसे व उसके भाई मिखाइल को मारने का प्लान बहुत पहले बना लिया था इसके लिये वह उन्हे समय समय पर स्लो पाइजन भी देती थी. इन्द्राणी मुकर्जीे हत्या के आरोपो से इंकार करती है जबकि उसके पूर्व पति संजय खन्ना ने

आरूषी से लेकर सुनंदा,जिया लैैला, मीनाक्षी और शीना वोरा तक सब रहस्यमय!

 नोएडा दिल्ली का आरूषी-हेमराज हत्याकांड आज उस समय याद आ रहा है जब देश के हाइप्रोफाइल शीना वोरा मर्डर केस की रहस्यमय परते एक के बाद एक खुलती चली जा रही है.तीन साल बाद उजागर इस कांड में रहस्य-रोमांच दोनों है-इस कांड के प्राय: सभी आठ पात्र लगभग- लगभग सामने आ चुके हैं लेकिन अभी बहुत से प्रश्नों का उत्तर बाकी है जो शायद आने वाले दिनों में उजागर होंगे इस बीच यहां आरूषी-हेमराज हत्याकांड का भी जिक्र हो रहा है तो बालीवुड की कुछ खास अदाकाराओं और हाई प्रोफाइल पूर्व मंत्री के पत्नी की मौत के रहस्य का भी जिक्र होने लगा है. चुनाव के पूर्व भारत के विदेश राज्य मंत्री रह चुके शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर भी रहस्यमय परिस्थितियों मेें दिल्ली के एक होटल में मृत पाई गई थी. इस पूरे मामले में थरूर पर उंगली उठी चूंकि उनका सुनंदा के अलावा पाकिस्तान की एक महिला पत्रकार से संबंध बताया जाता है. पहले सुनन्दा की मृत्यु का कारण खुदखुशी बताया गया लेकिन बाद में स्पष्ट हुआ कि उनकी मौत अन्य कारणों से हुई। पति थरूर पर जब संदेह हुआ तो मामला सीबीआई तक पहुंचा और अब मामले की जांच सीबीआई कर रही है. बालीवुड की कम से कम तीन

रिश्तों का मर्डर और आरक्षण से उठी अग्रि की ज्वाला-अब आगे क्या होगा?

मोदी शांति की अपील कर रहे हैं- राहुल जम्मू-कश्मीर में दु:ख बाट रहे हैं नीतीश पैकेज को लेकर आंकड़े पेश कर रहे हैं तो केन्द्र सरकार बिहार चुनाव की रणनीति तैयार कर रही हैं .... और देश का रोल माडल गुजरात आरक्षण के आग की लपटे उगल रहा  है- आरक्षण आंदोलन के लीडर हार्दिक पटेल ने ऐलान कर दिया है कि जो चीज मांगने से नहीं मिलेगी उसे हम छीन लेंंगे? इन राजनीतिक और रणनीतिक खबरों के बीच एक हाई प्रोफाइल आपराधिक खबर ने चौबीस घंटे के अंदर देश को चांैका दिया कि देश की इलेक्ट्रानिक मीडिया से जुड़ी एक प्रसिद्व उद्योगपति महिला इन्द्राणी मुखर्जी ने अपनी बेटी और बेेटे को बहुत समय तक समाज के सामने अपनी बहन - भाई बताया और अब जब उसका ड्रायवर अवैध रूप से हथियार रखने के आरोप में गिरफतार हुआ तो यह रहस्योद्घाटन हुआ कि वह जिसे अपनी बहन बताकर उसके अमरीका में होने की बात करती रही वह उसकी बहन न होकर उसकी अपनी बेटी थी और सन् 2012 में ड्रायवर व पूर्व पति के साथ उसकी गला घोटकर हत्या कर दी थी. बहरहाल तीनों को मुम्बई पुलिस ने गिरफतार कर लिया है जिसमें उसका पूर्व पति भी शामिल  है.. आगे अभी बहुत सा खुलासा होना बाकी है.इध

जनता क्यों सहन करे आरक्षण की आंच को, यह तो कूट-नीतिज्ञों की लगाई आग है वे ही झुलसे!

आजादी के अड़सठ साल बाद भी अगर हम अपने आपको इस लायक नहीं बना सके कि आर्थिक,सामाजिक व भौतिक आधार पर अपने व अपने परिवार को खड़ा नहीं कर पाये तो यह किसकी गलती है? हमें अपने आप पर शर्म करनी चाहिये कि इतना अवसर,इतनी सुविधाएं और भरपूर आरक्षण मिलने के बाद भी हम एक के बाद एक समाज आरक्षण की मांग क रते जा रहे हैं.आज कौन बताएगा कि हम आर्थिक आजादी का स्वाद इतने साल बाद भी क्यों नहीं चख पा रहे हैं-यह सवाल उठाते हुए हम पटेल समुदाय के आरक्षण आंदोलन की खिलाफत नहीं कर रहे बल्कि यह बताना चाह रहे हैं कि आरक्षण को अब वोट बैंक की राजनीतिक हथियार के रूप में क्यों इस्तेमाल किया जा रहा है? क्यों नहीं लोगों ने इतने सालों में अपने व  अपने परिवार को सारी सराकारी सुविधाएं प्राप्त होने के बाद भी अपने को सीधा खड़ा होने लायक तक नहीं बनाया. वर्तमान माहौल में किसी भी समाज के आरक्षण की मांग जायज हो गई है क्योंकि सराकर में बैठने वालों ने इसे ऐसा बना दिया.  एक तरह से आरक्षण लगता है लोगों के मूल अधिकार में शामिल हो गया है.इसे अब ऐसे मांगा जा रहा है जैसे यह हर आदमी का संवैधानिक अधिकार हो जबकि संवैधानिक व्यवस्था के तहत आर

रेड मंडे-कुछ उलटा तो कुछ पुलटा पाक ने भौंका तो ट्रक ने ट्रेन को ठोका, छग में अदानी की दस्तक!

जो भौंकते हैं वो काटते नहीं-कुत्ते भौंकते हैं, हाथी अपनी चाल चलता है-पाकिस्तान पिछले अड़सठ साल से भांैक रहा है अब हमे परमाणु बम से उड़ा देने की धमकी दे रहा है-हम कहते हैं दम है तो तू अपना बम निकालकर ही दिखा दे, हम तेरा नामोनिशान मिटा देंगे.हम देश के हुकमरानों से बस यही कहना चाहते हैं कि वह पाकिस्तान के आगे किसी भी तरह झुके नहीं और अपनी बात पर अड़े रहें-पाक अपने नापाक इरादों से हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता. बहरहाल यह अब देश की हुकूमत को तय करना है कि वह पाक की इस धमकी से कैसे निपटेगा. इधर बात नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्रीगणों के बयानों की है, जो कभी भी कोई उटपटांग बयान देकर नरेन्द्र मोदी की छवि को धूमिल करने की कोशिश करते हैं.मध्यप्रदेश से मोदी सरकार के मंत्री नरेन्द्र सिह तोमर ने सोमवार को अच्छे दिन आने की बात को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि ऐसा कोई बयान दिया ही नहीं था. क्यों राजनीतिज्ञ इस तरह की झूठ बोलते हैं-क्या वे देश की जनता को इतना बेवकूफ या बहरा समझते हैं? जनता सबकुछ जानती है,सुनती है देखती है और जब मौका मिलता है तो बजाती भी है जैसा मनमोहन की सरकार के साथ किया था इसलिये कम से कम

चम्मच और मत घुमाना, अभी तो काकरोच निकला है तेज घुमाओगे तो मेंढ़क भी निकल सकता है!

राष्ट्रगान जनगणमन किसने लिखा था-? यह सवाल किसी बच्चे से पूछा जाता तो शायद उसका जवाब सही में यही होता रविंद्रनाथ टैगोर!- लेकिन यह सवाल पूछा गया उत्तरप्रदेश के एक बुजुर्ग प्रधान अध्यापक से- तो सुनिये उनके द्वारा अत्यंत गंभीरता से दिया गया जवाब...वे कहते हैं...वो जो है न हमारे कानपुर के पार्षद...वो उनका नाम क्या है.... उन्होंने लिखा है. यही सवाल फिर एक प्रधान अध्यापिका से पूछा गया तो वे भी बगले झांकने लगी. देश में शिक्षा की बुनियाद रखने वालों के ज्ञान को समझने की कोशिश करते हुए एक रिपोर्टर को जब इन 'महानशिक्षाविदोंÓ के गुणों का एहसास हुआ तो लगा कि कुछ और लोगों से भी जानकारी एकत्रित की जाये कि उनका ज्ञान कैसा है? आश्चर्य के साथ विश्वास भी हुआ कि यह 'महानज्ञानीÓ अपने छात्रों को कैसी महान शिक्षा दे रहे हैं? एक से पूछा गया कि क्या महोदया आप भारत के राष्ट्रपति का नाम बता सकती हैं? तो इस ज्ञानी मेडम का जवाब पूरे आत्मविश्वास के साथ था- वे तपाक से कहती हैं- जी... राम नायक- जवाब देते समय उनके चेहरे पर न मुस्कराहट थी और न हंसी-ज्ञान का आत्मविश्वास चेहरे पर खासतौर पर झलक रहा था- ज

हम तो यहां हैं, तुम उसकी डिक्की में क्या झांक रहे? कलयुगी तंत्र छत्तीसगढ़ पहुंचा!

 ''रामचन्द्र कह गये सिया से, ऐसा कलयुग आयेगा, हंस चुगेगा दाना तिनका कौवा मोती खायेगा...ÓÓ दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म गोपी के इस गाने ने किसी समय खूब धूम मचाई थी. कवि की यह कल्पना सच होती दिखाई दे रही है. नेता भले ही अच्छे दिन की बात कर हमारा मुंह बंद करे लेकिन जिस वास्तविकता का दृश्य हमारे सामने है, वह सच्चाई को नकार नहीं सकता. एक पिचहत्तर वर्षीय मां के साथ उसका अपना बेटा अपनी पत्नी के सामने बलात्कार करता है तो दूसरा बेटा पिचहत्तर वर्ष के उम्र की एक बूढी मां को सहारा देने की जगह उसे सरेआम ठगकर उसके खाते से समूचा ढाई लाख रुपये निकाल लेता है, इतना ही नहीं कोई बाप अपनी नन्ही बिटिया को हवस का शिकार बना रहा है तो कोई भाई अपने ही खून और राखी के बंधन की भी परवाह नहीं कर रहा. कानून के पहरेदार भी यह सब देख सिर्फ खानापूर्ति में लगे हैं. हम यूपी, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, झारखंड, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल की बात नहीं करते वहां तो कलयुगी पुत्रों ने संपूर्ण कानून व्यवस्था को ही चुनौती दे डाली है, जहां किसी इंसान का भाग्य इन दुस्साहसियों ने अपने हाथ में ले रखा है जिसको प्रश्रय भी सत्ता व विपक

पैसे के खेल ने सामाजिक व्यवस्था की चूले हिलाना शुरू कर दिया!

ृजिनके पास पैसा है उन्हें जेल नहीं हो सकती-आज के हालात में आम लोग कुछ ऐसा ही महसूस करते हैं- लेकिन यह हम नहीं उपहार अग्रिकांड में अन्य उनसठ लोगों के साथ अपने दो बेटों को गवा चुकी मां की आवाज है जो अठारह साल बाद इस अग्रिकांड पर अंसल बंधुओं को दिये फैसले के बाद सामने आई है. अंसल बंधुओं को सुप्रीम कोर्ट ने पांच माह कैद की सजा के बाद तीस-तीस करोड़ रुपये जुर्माना चुकाने का आदेश देकर यह कहते हुए छोड़ दिया कि पांच माह की सजा पर्याप्त है. बहरहाल एक तरफ इस फै सले के बाद उक्त मां की आवाज गूंजी है, दूसरी तरफ देश में पैसे का खेल किस तरह समाज और व्यवस्था पर हावी है यह हर कोई जानता है. पिछले दिनों आस्था के न्द्रों में बरसने वाले पैसे पर टिप्पणी कर बता चुके हैं कि देश की संपत्ति किस तरह कुछ लोगों के हाथ में केन्द्रित होकर रह गई है. दूसरी ओर आजादी के बाद पैदा हुए चंद लोगों ने अपनी संपत्ति का किस ढंग से विस्तार किया है यह मध्यप्रदेश में व्यापमं घोटाला, छत्तीसगढ़ में नान घोटाला जैसे मामलों से साफ है. मध्यप्रदेश में एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से रिटायर्ड डायरेक्टर डीएन शर्मा के निवास पर एसीबी  छापा भी कम

अब आयेगा मजा! साहब और माननीयों के बच्चों को भी सरकारी स्कूलों का थोड़ा आनंद लेना होगा....!

आजकल के बच्चे क्या जाने सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का मजा! लेकिन जो बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं उन बच्चों से पूछो- सरकारी स्कूलों में पढऩे में कैसा मजा आता है? वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि निजी स्कूलों की बनिस्बत इन स्कूलों में पढऩे का अपना अलग ही मजा है. खूब स्वतंत्रता है-जब मर्जी आए तब स्कूल जाओ और जब मर्जी आए तब स्कूल से भाग जाओ, बारिश हो तो छुट्टी, मास्टर जी नहीं आये तो छुट्टी! जब चाहे तब किसी पेड़ के नीचे बैठकर गप्प मारो, दोस्तों के साथ कभी भी फिल्म देखने चले जाओ. कभी-कभी तो एक ही मास्टर पूरे स्कूल को पढ़ा देता है. ऐसे हालात में सरकारी स्कूल बच्चों के लिये बहुत ही मजेदार हैं लेकिन पालकों को यह पसंद नहीं, वे तो प्रायवेट स्कलों की तरफ दौड़ते हैं- अब लेकिन उनकी नहीं चलने वाली. हाईकोर्ट ने भी मान लिया है कि सरकारी कर्मचारियों, नेताओं, जनप्रतिनिधियों, जजों आदि को भी अपने बच्चों की बुनियादी शिक्षा सरकारी स्कूलों में ही देनी होगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक ऐसा आदेश सुनाया है जो स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है. कोर्ट ने कहा है कि सभी एमपी-एमएलए और स

पाक है कि मानता नहीं, हम कब तक झेलते रहेंगे उसके जुल्मों को?

यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही कि पाक आखिर चाहता क्या है? उधर पाक प्रधानमंत्री हमारे प्रधानमंत्री से बात करते हैं या विदेश यात्रा पर निकलते हैं तो इधर सीमा पर  गोलियां चलने लगती है. ऐसा लगता है कि पाक शांत बैठना जानता ही नहीं- या तो पाक हुक्मरानों का उसके फौज पर कोई नियंत्रण नहीं है या वह हमें ललकारना चाहता है, या छेड़कर युद्ध जैसे हालात पैदा करना चाहता है. एक बात यह भी स्पष्ट हो रही है कि पाक में उग्रवादी संगठनों ने सत्ता को अपने हाथ में ले रखा है, वह वहां की सत्ता को हमसे दोस्ती करने की इजाजत नहीं देता- पाक में आतंकवादियों के जमघट का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सीमा पर फायरिंग के दौरान ही आतंकवादियों ने लाहौर में गृहमंत्री के घर हमला बोलकर उनकी हत्या कर दी जबकि इस हमले में करीब बारह लोगों की मौत हो गई. इधर पुंछ जिले मेेंं नियंत्रण रेखा पर आठ दिनों से ज्यादा समय सेे जारी गोलीबारी तो यही दर्शा रही है कि पाक के हुक्मरान बातचीत का झांसा देकर सीमा पर युद्ध के हालात पैदा करने में लगे हैं. सीमा पर गोलीबारी में इस बार पाक सेना ने सिविलियन को अपना निशाना बनाया है. एक महिला और एक ब

मोदी का भाषण अच्छा लेकिन ग्रॉफ गिरा, कई लोगों की उम्मीदों पर भी पानी फिरा!

नरेन्द्र मोदी भाषण अच्छा देते हैं, उनकी इसी कला ने आज उन्हें लोकप्रिय बना दिया, लेकिन क्या इस बार उनके भाषण के ग्रॉफ में गिरावट आई है? सिर्फ भाषण से कब तक लोगों की आशााएं पूरी होंगी? स्वतंत्रता दिवस पर 86 मिनट  दस सेकण्ड का भाषण लोगों को अच्छा जरूर लगा लेकिन क्या यह जनता की उम्मीदों को पूरा कर सकेगा? जो वादे उन्होंने चुनाव के दौरान किये, उसमें से कितने पूरे हुए? विश्लेषक इसे विभिन्न ढंग से लेते हैं. प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में वह सब कुछ नहीं कहा जो वास्तव में घट रहा है. उन्होंने अपने भाषण में पूर्व सैनिकों के वन रैंक-वन पेंशन पर दिलासा ही दी. टेररिज्म और पाकिस्तान की ओर से लगातार हो रहे सीजफायर वॉयलेशन समेत इंटरनेशनल रिलेशन्स पर भी बात नहीं की। गुरदासपुर और घाटी में आतंकवादी हमलों में जवान-अफसर शहीद हो रहे हैं ऐसे में पीएम को लाल किले से देश के दुश्मनों को एक मैसेज देना चाहिए था लेकिन यह भी नहीं हुआ. पीएम ने लोगों की दिक्कतों को ज्यादा तरजीह दी. एक साल में सरकार के किए काम गिनाए. स्टार्टअप इंडिया और स्टैंडअप इंडिया जैसे कुछ नए नारे दिए. मोदी ने टीम इंडिया की

बच्चों की पीठ से कापी, किताब, टिफिन का बोझ तो कम होगा लेकिन शिक्षा का स्तर कब सुधरेगा?

बहुत से लोगों को याद होगा कि एक समय ऐसा था जब बच्चों की बुनियाद फैले हुए चावल के ढेर या आटे के ऊपर रखी जाती थी- उन्हें वर्णमाला का पहला अक्षर अ या ए उसी पर लिखना सिखाया जाता था. धीर-धीरे स्लेट का प्रचलन हुआ और अब बच्चों की पीठ पूरी पढ़ाई का साधन बन गई! किंडर गार्डन और प्रायमरी स्कूल के बच्चों को इतनी पुस्तकें, कापियां, कम्पास बॉक्स, टिफिन और पानी की बोतल लादनी पड़ती है कि उनकी पढ़ार्ई तो छोडिय़े कमर तक टूट जाती है. एक दस किलो का बच्चा दस किलो से ज्यादा का वजन अपनी पीठ पर लादता है, अब शायद उसे ऐसा नहीं करना पड़ेगा. कम से कम छत्तीसगढ़ सरकार ने तो इस पर गंभीरता से सोचा है और सभी जिला शिक्षा अधिकारियों के नाम से परिपत्र जारी कर बच्चों की पीठ से बस्ते का बोझ हटाने का आदेश दिया है. अब देखना यह है कि इस आदेश का पालन कितना होता है. आदेश में कहा गया है कि विद्यालय के प्राचार्य एवं शिक्षक समय सारिणी में प्रति दिवस पढ़ाये जाने वाले विषयों का चयन ऐसा करें कि अत्यधिक मात्रा में पुस्तकें व कापियां लाने की बाध्यता न हो. सरकार यह मानने लगी है कि बस्ते का मूल वजन न्यूनतम नहीं होने से बच्चे के विकास

अच्छे पकवान से भरी थाली हर आदमी के सामने है लेकिन बेबसी कि उसे खा नहीं पाता!

अच्छे पकवान से भरी थाली हर आदमी के सामने है लेकिन बेबसी कि उसे खा नहीं पाता एक व्यक्ति ने दस सालों में सौ करोड़ रुपये की संपत्ति बना डाली, नब्बे कंटेनरों से भरी एक ट्रेन करीब अठारह दिनों से लापता है. नान घोटाला, व्यापम घोटाला में अरबों रुपये का घोटाला हुआ, ललित मोदी घोटाला, कोलगेट घोटाला, राधे मां की संपत्ति अरबों में, आशाराम बापू, राम रहीम और ऐसे ही कई बाबाओं की प्रापर्टी अरबों में, मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारे और अन्य आस्था केन्द्रों की आय व प्रापर्टी खरबों मेंं, रिश्वतखोरी से कमाने वालों की बेहिसाब संपत्ति का अनुमान लगाना कठिन है, लेकिन समय-समय पर जो छापे पड़ते हैं उससेे यह जरूर संकेत मिलता है कि इस क्षेत्र में भी पैसों की कोई कमी नहीं. फिर क्यों गरीब है हमारा देश? हाल ही एक अखबार ने जो सर्वेक्षण कुछ आस्था केन्द्रों का किया उसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं, जिसमें कहा गया है कि देश के सिर्फ चार आस्था केन्द्रों, जिसमें केरल का प्रसिद्ध आस्था के न्द्र शामिल नहीं है उसकी एक दिन की औसत आय प्रतिदिन आठ करोड़ रुपये है. अकेले एक आस्था केन्द्र की कुल संपत्ति 1.30 लाख करोड़ है. ज

पोर्न साइट बनाम देखने की आजादी....इच्छा मृत्यु बना मांग मनवाने का हथियार!

इच्छा मृत्य-पोर्न साइट-सियासत व न्याय के दरबार में इस समय विशेष चर्चा का विषय बने हुए हैं. एक तरफ जेल में बंद व्यापम के आरोपी इच्छा मृत्यु की मांग कर रहे हैं तो पच्चीस हजार किसानों ने भी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छा मृत्यु की मांग की है. यह किसान सत्रह सालों से मुआवजे के लिये परेशान हंै- इनके समक्ष अब रोजी रोटी का जरिया भी खत्म हो चुका है तथा भूखे मरने की नौबत आ गई है. आम चर्चा में अगर देखें तो कोई भी इस खबर को पड़कर यह कह सकता है कि आपको मरना है तो क्यों नहीं मर जाते. मरने वाले को राष्ट्रपति से पूछने की क्या जरूरत? हर मरने वाले को राष्ट्रपति थोड़े ही इजाजत देता है, यह तो सीधे-सीधे दबाव की बात है कि हमारे लिये सरकार कुछ करें! अगर राष्ट्रपति इजाजत भी दे तो कोई इच्छा मृत्यु मांगने वाला मरता नहीं बहरहाल किसानों के प्रति हमदर्दी के साथ हम यही कहना चाहते हैं कि सरकार को इन किसानों की समस्या का निदान पूर्र्ण प्राथमिकता से कराना चाहिए.इच्छा मृत्यु की मांग प्राय: अत्यन्त गंभीर बीमारी से पीडि़त लोग करते आयें हैं लेकिन अब हर कोई न कोई समस्या लेकर इसकी मांग करने लगा है जिससे इच्छा मृत्यु की

बच्चों की बुनियाद पढ़ाई के साथ सैनिक शिक्षा पर रखी जाये आने वाले समय के लिये जरूरी!

हमने जब से होश संभाला तब से लेकर अबतक कम से कम चार युद्ध तो देखे हैं जो कभी पाकिस्तान से हुआ तो कभी चीन से, सन् 62 में जब चीन से युद्ध हुआ तो हमारी फौज इतनी शक्तिशाली नहीं थी लेकिन चीन युद्ध के बाद हमने अपनी शक्ति में भारी इजाफा किया. पाकिस्तान से युद्ध में पाक को अमरीका की भरपूर सहायता मिली, उसके बाद भी हमारी फौज ने जमकर उससे मुकाबला किया. अब जब देश को आजाद हुए करीब 68 साल होने को आये तब हमारी सैनिक शक्ति दुनिया की मजबूत और शक्तिशाली सेना के रूप में उभरकर आई है. इस मामले में हमने अमरीका को भी पछाड़ दिया है. आज के नौजवान हमसे सवाल करते हैं कि युद्ध नहीं होने की स्थिति में देश के सेना की क्या भूमिका है- हमारा उन्हें जवाब रहता है कि देश की सेना को हमेशा सक्रिय रहना चाहिये. सुस्त पड़़़़़ी रहे तो हम पर अगर दुश्मन हमला करें तो यह सुस्त सेना क्या करेगी? अत: हर दिन हमारी सेना एक नये रूप में उभरकर आती है जिसका उपयोग हम किसी भी पल कहीं भी कर सकते हैं. युद्ध नहीं तो सेना पर खर्च हमारी नौजवान पीढ़ी में से कई को अनावश्यक लगता है लेकिन वास्तविकता यह है कि सेना के लिये, सेना के ऊपर खर्च हर दिन ज

साहब मस्त,चपरासी सुस्त जेल की हवा गरीब को, नियम में यह भेदभाव क्यों?

नियम-कानून सभी के लिए समान क्यों नहीं है? बड़ा-छोटा, बाहुबली, नेता सबके लिये अलग कानून, अलग नियम! क्यों ऐसा होता है कि एक चपरासी अपने साहब के लिए घूस लेता है तो साहब तो बच जाते हैं किन्तु गरीब चपरासी को जेल में ठूंस दिया जाता है? न्याय की आंखों से पट्टी कब हटेगी? छत्तीसगढ़ में रिश्वत के मामले में ट्रेप होने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा 2012 बैच के अधिकारी को पद से हटाकर मंत्रालय में अटैच कर दिया, कुछ दिन बाद उसे सम्मानजनक कुर्सी भी प्रदान कर दी जायेगी, जबकि जो चपरासी कथित रुप से उनके कहने पर घूस लेता था उसे तत्काल जेल में ठूंस दिया. साहब का तो कुछ नहीं जाता, अब इस चपरासी पर आश्रित परिवार के सामने ढेरों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा. कुछ कमाई उसने जमा की है तो सही वरना उसका परिवार उसकी जमानत के लिए वकील तक नहीं जुटा पायेगा. पाक-साफ ईमानदार छवि और न्याय की बात करने वाले बहुत से माननीय लोग हमारे समाज में मौजूद हैं-क्या उन्हें हमारी व्यवस्था के इस प्रकार के गुण-दोष नजर नहीं आते? यह पहला उदाहरण नहीं है- देशभर में "अपराध" के मामले में यही व्यवस्था चली आ रही है. एक गरीब या मध्यम वर

सवालों के घेरे में भारतीय टे्न, गंतव्य तक की यात्रा या मौत की दौड़!

चांपा रेल दुर्घटना के बाद मध्यप्रदेश के हरदा के पास खंडवा-इटारसी सेक्शन में हरदा के पहले खिरकिया और भिरंगी स्टेशनों के बीच हुई रेल दुर्घटना ने रेल यात्रियों में दहशत व कई सवाल पैदा कर दिये हैं-क्या रेलवे यात्रियों को सुरक्षा दे पा रहा है कि वह यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचा देगा? अगर जान की गारंटी नहीं दे पा रहा तो वह यात्रियों के माल की गारंटी भी तो नहीं दे पा रहा! यात्री विशेषकर महिलाएं रेलों में पहले ही सुरक्षित नहीं हैं, दूसरा बहुत ज्यादा वेतन पाने वाले कतिपय भ्रष्ट कर्मियों के व्यवहार से भी यात्री परेशान हैं जबकि ट्रेनों में अनअथराइज्ड लोगों की घुसपैठ, सफाई, छेड़छाड़, गुण्डागर्दी की घटनाओं ने भी यात्रियों के लिये कई समस्याएं पैदा कर रखी हैं. खिरकिया-भिरंगी स्टेशनों के बीच दो ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त हुुुई हैं जिसमें 30 से 37 लोगों के मारे जाने की अधिकृत जानकारी है, दुर्घटना के फोटोग्राफ दुर्घटना की भीषणता को दर्शा रहे हैं. ऐसे में क्या दुर्घटना के इन अधिकृत आकड़ों पर विश्वास किया जा सकता है? बोगी जिस ढंग से उलटी-पलटी है वही दर्शाते हैं कि दुर्घटना के समय इन ट्रेन के डिब्बों में भारी

मुन्नाभाई एमबीबीएस के बाद छत्तीसगढ़ में रिलीज हुई नई फिल्म मुन्नीबाई एमए!

हिन्दी सिनेमा के नायक संजय दत्त की सुपरहिट फिल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस के बाद अब छत्तीसगढ़ की सरज़मीं पर नक्सलगढ़ में तैयार हुई 'मुन्नीबाई एमएÓ. नई फिल्म आते ही हिट हो गई और छग में अब तक के बहुचर्चित नान घोटाला, नसबंदी कांड, पर्चा लीक कांड जैसे घोटालों को पीछे छोड़ते हुुए हिट हो गई. फिल्म ने छत्तीसगढ़ में तहलका मचा दिया, चूंकि इस फिल्म की साइड हीरोइन मुन्नीबाई परीक्षा देने के तुरन्त बाद पकड़े जाने के डर से भाग गई और फंस गई असल हीरोइन, जिनके नाम से परीक्षा दी जा रही थी वह राज्य के स्कूली शिक्षा मंत्री केदार कश्यप की पत्नी है. परीक्षा केन्द्र में नाम, रोल नम्बर, फोटो, पता सब कुछ उन्हीं का है लेकिन परीक्षा उनकी एवज मेंं कोई दूसरी दे रही थी. इस कांड की गंभीरता इसलिये भी है चूंकि प्रदेश की संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लग गया है कि ऐसा कब से और कैसे क्यों और किसकी शह पर चल रहा है? प्रदेश में मुख्यमंत्री की अपील के बाद भी  बुनियादी शिक्षा पहले से ही लडख़ड़ाई हुई है जिसकी नींव मजबूत नहीं हो पाई है. ऐसे में अब इस उच्च शिक्षा में मुन्नीबाइयों के बोलबाले ने संपूर्ण शिक्षा जगत में

बेमकसद हो रही लड़ाई को क्यों देश में पनपने दिया जा रहा? मदद कहां से मिल रहा?

इनामी नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लाख सरकारी दावों के बावजूद कारखानों में आग लग रही है तो यात्री बसों को भी आग के  हवाले किया जा रहा है. लोगों के सर कलम करने में भी कोई रहम नहीं किया जा रहा है लेकिन एक बड़ी घटना होने के बाद कड़ी कार्रवाही करने, नक्सलवाद का नामोनिशान मिटाने का दावा करने वाली सरकार उस समय खामोश रहती है जब नक्सलवादी राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं. पिछली बार नक्सलवादियों ने चार जवानों का अपहरण कर उनकों मौत के घाट उतार दिया था- श्रद्वांजलि अर्पित करने के अलावा सरकारी तौर पर कुछ नहीं किया जाना यही दर्शाता है कि कतिपय मामलों में नक्सलवाद को पनपने देने में  सरकार का भी कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष हाथ है. सोमवार को नक्सलियों ने लोहा कारखाने को आग के हवाले कर दिया वहां खड़ी कई कीमती गाडिय़ों को भी आग से जलाकर राख कर दिया . सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक यह सब बर्दाश्त किया जायेगा? जब यह संगठन सरकार द्वारा प्रतिबंधित है तब इसको क्यों इस ढंग से पनपने दिया जा रहा? हिंसा और खून खराबेे का हमारे संविधान में कोई जगह नहीं है फिर देश के ग्यारह से

सेक्स रैकेट का जाल, बच्चियों को बंधक बनाने, यौन शोषण का खेल-छत्तीसगढ़ शर्मसार!

बहुत दिनों बाद राजधानी के किसी थाने में भारतीय दंड विधान की धारा 363, 376 (घ), 372, 342, 506, 34 और पास्को एक्ट का प्रयोग हुआ, वह भी तब जब एक गुमशदा तेरह साल की नाबालिग बच्ची पुलिस के हाथ लगी! इस बच्ची ने सारा भेद खोला तब कहीं जाकर कार्रवाही हुई वरना पुलिस आज भी हाथ मलती रहती तथा अपराधी अपना कुत्सित खेल खेलते रहते. शहर के सबसे बड़े कोतवाली थाने से कुछ ही दूरी पर स्थित है टिकरापारा! इस इलाके का भी अपना थाना है-पास ही पुलिस लाइन और इसके अंदर पूरे छत्तीसगढ़ की फोर्स का जमावड़ा- इन सबकी नाक के  नीचे पनप रहे इस घिनौने व्यापार जिसे पुलिसिया भाषा में कहे तो सेक्स रेैकेट! पुलिस की माने तो साक्ष्य के अभाव में कोई कार्रवाई न करने की बाध्यता पर चलता रहा- एक गंभीर मामला है जिसे यूं ही अनदेखा नहीं किया जा सकता. अगर राजी मर्जी से सारा खेल होता तो बात समझ में आती लेकिन यहां तो पूरी जबर्दस्ती थी और संभव है यह खेल यहां वर्षों से चला आ रहा होगा जिसमें कई सफेदपोश और राज्य तथा राज्य के बाहर के अपराधियों का समावेश होगा. रायपुर पुलिस विशेषकर एसपी बद्रीनारायण मीणा इस अंतर्राज्यीय गिरोह को खोज निकालने तथा