जनता के माल को अपनी पैतृक संपत्ति मानकर भ्रष्टतंत्र चट कर रहा..!



जनता के खरे पसीने की कमाई को सरकारी तंत्र में बैठे कुछ लोग दीमक की तरह खा रहे हैं. हाल ही में एसीबी की जाल में फंसी बड़ी मछलियों के कारनामों से तो कुछ ऐसा ही लगता है. इन तत्वों ने सरकार व जनता के माल को अपनी पैतृक संपत्ति मान ली है. जिस ढंग से सरकारी सर्विस में चंद सालों से लगे लोगों के घर व पारिवरिक सदस्यों यहां तक कि नौकर चाकरों के घर से जो माल निकल रहा है यह यही दर्शा रहा है कि ऐसे लोगों ने अपने पद और ओहदे को निचोड़कर उसमें से रस निकालने में कोई कमी नहीं छोड़ी है.अगर प्रदेश में आठ कर्मचारियों की संपत्ति पचास करोड़ से ज्यादा है तो इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में ऐसे और कितने लोग होंगे जो अकूत संपत्ति लेकर मौज से काम कर रहे हैं और ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे हैं. नान घोटाले के आरोपियों के पास से भी करोड़ों रूपये की संपत्ति व पैसा निकला है-उनके खिलाफ कार्रवाही के बाद से लग रहा था कि अब भ्रष्टाचार पर कुछ तो लगाम लगेगा लेकिन यहां तो भ्रष्टाचार की पूरी खदान है जिसमें थोड़ा बहुत धन नहीं बल्कि पूरा रिजर्व बैंक है- यह पैसा  बाहर आ जाये तो छत्तीसगढ़ स्वर्ग बन सकता है उसे न केन्द्र पर निर्भर रहना पड़ेगा और न लोगो को शराब पिलाकर पैसा वसूल करना पड़ेगा और न ही वेट जैसा जानलेवा टैक्स रोपित करना पड़ेगा.सारा काम ईमानदारी से चलता रहा तो संभव है आगे भी कई बड़ी मछलियां छत्तीसगढ़ के तालाब से निक ले.सरकारी तंत्र में इस समय ऐसा कोई विभाग नहीं रह गया है जहां लेन-देन के बगैर काम होता है.पहले यह माना जाता था कि कम वेतन के कारण ऊपरी लेन देन करते हैं लेकिन अब ज्यादा वेतन, सुरक्षित नौकरी के बाद भी ब्लेक मनी जुटाने में लगे हैं लोग,जिसके जरिये उनका उद्देश्य अपने खानदान को लम्बे समय तक सुरक्षित बनाना है.छत्त्तीसगढ़ के बस्तर इलाके का कितना शोषण हो रहा है यह इसी से पता चलता है कि यहां तैनात कतिपय अफसरों के घर से करोड़ों रूपये जमीन तक से निकल रहा है.नक्सली क्षेत्र होने के कारण यहंा तैनात अफ सर अपने ऊपर किसी कार्रवाही का खौफ नहीं रखते, वे देखते ही देखते धन कुबेर हो जाते हैं.बस्तर में नक्सलवाद का उदय व सक्रियता के पीछे भी यही कारण है कि यहां केन्द्र व राज्य सरकार का जो भी पैसा विकास कार्यों के लिये पहुंंचता है उसका बहुत बड़ा हिस्सा सरकार के कतिपय भ्रष्ट अफसर व कर्मचारी खा जाते हैं.यही हाल राज्य के अन्य मलाईदार विभागों का है जैसे सिंचाई, वन,पीडब्लूडी,कृृषि,शिक्षा आदि जिनके विकास के लिये पहुंचने वाले एक रूपये में से सिर्फ चवन्नी ही खर्च होती है बाकी सारा बडी़-छोटी मछलियांं मिलकर गप कर जाती है. सरकार जब तक अपनी योजनाओं के विकास पर खर्च होने वाले पैसे की सतत निगरानी नहीं करेगा तब तक ऐसे भ्रष्ट तंत्र पनपते रहेंगे. दूसराऐसे फंसने वालो पर पंजा इस तरह कसा दिखना चाहिये कि दूसरा कोई इसमें फंसने से पहले दस बार सोचे. एसीबी ने कुछ माह से ऐसा प्रयास किया है लेकिन अभी उसे बहुत कुछ करना है.

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