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जुलाई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बीएसएनएल-सिर्फ बड़ी सरकारी कंपनी होने का घमंड, कान बंद कर रखे हैं इस विभाग के लोगों ने!

198 -यह बीएसएनएल की आटोमेटिक कम्पलेंट बुकिंग सेवा है- इसमें लैण्डलाइन में आई खराबी और इंटरनेट की कंम्पलेंट दर्ज होती है. सूचना दर्ज होते ही आपके मोबाइल पर सूचना आती है कि आपकी शिकायत दर्ज कर ली गई है, आपको कम्पलेंट नम्बर भी दे दिया जाता है, यह भी बताया जाता है कि आपके नम्बर की खराबी को दूर करने के लिये व्यक्ति को अधिकृत किया गया है उसका फोन नम्बर भी दिया जाता है लेकिन यह व्यक्ति कभी किसी का फोन नहीं उठाता. इस एक व्यक्ति की बात छोडिय़े पूरे डिपार्टमेंट में जिन लोगों को उपभोक्ताओं की शिकायतों को हल करने का दायित्व सौंपा गया है वे कभी अपना मोबाइल उठाने की जरूरत नहीं समझते. बीएसएनएल दावा करता है कि वह देश की सबसे बड़ी कंपनी है किन्तु आज स्थिति यह है कि इससे बकवास कंपनी और कोई नहीं है, चूंकि इसकी सर्विस इतनी लचर है कि इसे लेने के बाद लोग कोसते रहते हैं. बीएसएनएल बड़ी कंपनी होने के कारण लोग इसकी ओर आकर्षित होते हैं किन्तु यह कितनी अच्छी सेवा देती है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रायपुर एयरपोर्ट और दुर्गा कॉलेज ने अपने क्षेत्र में इस सरकारी कंपनी से वायफाई लगवाने से इंकार कर दिया.

याकूब फांसी पर!इधर आतंक के खेल की आहट...

याकूब फांसी पर! इधर आंतक के नये खेल की आहट और आंतकियों के पास अमरीकी डिवाइस! दो चर्चित लोगों को आज सुपुर्दे खाक किया गया. एक देश की महान हस्ती, भारत के पूर्व राष्ट्रपति मिसाइलमेन अबुल पकीर अब्दीन अब्दुल कलाम जिनका शिमला में निधन हो गया था और दूसरा मुम्बई में सीरियल ब्लास्ट के लिये जिम्मेदार याकूब मेमन जिसे सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी. याकूब मूमन का आज जन्मदिन भी था -एक का नाम विश्व के प्रसिद्ध व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जायेगा और दूसरा मुम्बई में कई लोगों की मौत के लिये जिम्मेदार! बहरहाल इस बीच एक बड़ी खबर चौंका देने वाली है कि आईएसआईएस नामक आतंकवादी संगठन हमारे देश पर हमले की योजना बना रहा है. दूसरा बड़ा रहस्योद्घाटन यह कि जम्मू से सटे पंजाब के गुरदासपुर में सोमवार को हुए आंतकी हमले में एक  आतंकियों के रूट से मिले नाइट विजन डिवाइस में अमरीकी मार्का लगा हुआ है- अब यह जांच का विषय है कि आखिर आतंकवादियों के हाथ यह डिवाइस कैसे लगा? जीपीएस रूट से इस बात का तो खुलासा हुआ है कि इस मामले में लिप्त लोग पाकिस्तान से आये थे और तीनों मुस्लिम थे, इस बात की पुष्टि भी कर दी गई है.

म्यांमार की तरह पाक आतंकियों के ठिकानों पर हमला करने से क्यों हिचक रही सरकार?

साड़ी, आम और हाथ मिलाने की कूटनीति! क्या यही नरेन्द्र मोदी की कूटनीति है? विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा, केन्द्र सरकार की विदेश नीति को सही नहीं मानते! नरेन्द्र मोदी को सलाह देते हैं कि वे मेंगो डिप्लोमेसी छोड़ें और पाकिस्तान के खिलाफ स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी जैसा साहस दिखाएं! तोगडिय़ा यही नहीं रुकते, वे कहते हैं कि म्यांमार में घुसकर जिस तरह आंतकवादियों को खत्म किया गया था ठीक उसी तरह पाकिस्तान के कब्जे में कश्मीर में घुसकर हमला बोलना चाहिए। वास्तविकता यही है कि आखिर कब तक हम बर्दाश्त करते रहेंगे!- वे दो सैनिकों का गला काटकर ले गये तो जवाबी कार्यवाही करने की जगह हमने उन्हें साड़ी भेज दी. आंतकवादियों को भेजकर हमारी सीमा में हलचल पैदा की तो हमने उन्हें बंदूक से जवाब देने की जगह भारत का प्रसिद्ध आम अल्फांसो भेज दिया। पाकिस्तान लगातार हम पर एक के बाद एक हमले कर रहा, क्यों नहीं हमारा खून उबलता? क्यों हम चुप बैठे हैं? हमारा सारा जोश क्या चुनाव जीतने के लिए है? कभी पाक के प्रधानमंत्री की मां को साड़ी, कभी आम का रस, और कभी हाथ में हाथ देकर कब तक उनके जुल्म को झेलते रहेंगे-

कलाम नहीं रहे....इधर पंजाब में आतंकवादियो का ख़ूनी मंजर-सुरक्षा में भारी चूक!

कलाम नहीं रहे....इधर पंजाब में आतंकवादियों का खूनी मंजर-सुरक्षा में भारी चूक! सोमवार को सुबह से पंजाब में खूनी मंजर की बुरी खबर के साथ  शाम होते -होतेे एक और बुरी खबर ने पूरे देश को चौका दिया ''भारत के पूर्व राष्ट्रपति महान वैज्ञानिक अवुल पकीर जेनूला अब्दीन अब्दुल कलाम जिन्हें सारा विश्व इंडियन मिसाइल मेन के रूप में जानता था नहीं रहे.... '' विनम्र श्रद्वांजलि पंजाब एक बार फिर आतंकवाद की गिरफत  में आ गया. इस बार पाक से आये आतंकियों ने कहर ढा दिया. रात के अंतिम पहर में जब सब सो रहे थे तभी आतंकवादियों ने पाक सीमा से लगे गुरूदासपुर से भारत में प्रवेश किया और सबसे पहले एक आटो को रोकने का प्रयास किया लेकिन आटोवाला शायद उनके इरादों को भाप गया और बिना रूके आगे बढ़ गया आगे कार वालों के साथ उन्होंने कोई रहमी नहीं दिखाई, उसे रोकने के लिये अंधाधुन्ध गोलियां चलाई तथा कार को हाइजेक कर शहर के अनेक क्षेत्रों में दहशत फैलाया और थाने में घुसकर भी गोली चलाई.आतंकवादियों से बारह घंटे की अब तक की सबसे बड़ी मुठभेड़ इस दौरान हुई जिसमें आतंकवादी तो मारे गये लेकिन हमें भी मानवीय क्षति उठान

सामान्य से लेकर नौकरशाही और राजनीति तक सब जगह टांग खींचने की प्रवृति!

हम अपना काम छोड़कर बाकी सब करते हैं-वह चाहे किसी की आलोचना करना हो, टांग खींचना हो या फिर किसी के काम में अडंग़ा डालना- यह बात अकेले सामान्य लोगों पर लागू नहीं होती, देश की राजनीतिक व्यवस्था में लगे लोगों का भी यही हाल है. इससे जो काम होना है वह या तो ढंग से नहीं होता या फिर उस काम की गति कमजोर पड़ जाती है. देश में सामान्यजन से यह बात निकलक र नौकरशाही और राजनीति में भी पहुंच गई है, इसका हश्र आज सभी के सामने है. लोग अपना काम छोड़कर परनिंदा, आरोप-प्रत्यारोप, भत्र्सना और ऐसी ही कई फिजूल की बातों में उलझकर रह गये हैं। व्यवस्था और राजनीति में इस बुराई के प्रवेश ने सारे माहौल को ही बिगाड़ दिया है, जबकि इससे नुकसान आम लोगों का ही हो रहा है. माननीयों को भी अब जनता-देश को छोड़  दूसरों की चिंता ज्यादा सताने लगी है. वह क्या कर रहा है, उसने क्या किया इसी में समय गुजर रहा है- यहां तक कि देश का सबसे बड़े तंत्र को भी आज अखाड़ा बना दिया गया है- किसी को इस बात की कतई परवाह नहीं कि उसने क्या किया? वह क्या कर रहा है? इस पूरे एपीसोड में हर आदमी अपने काम को छोड़कर दूसरे की बुराई निकालने में ही अपना बड़प

सुनसान सड़क पर बच्ची के रोने की आवाज, और गुस्से में भागती मां-'घर-घर की कहानी

सुनसान सड़क पर बच्ची के रोने की आवाज, और गुस्से में भागती मां-'घर-घर की कहानी पति-पत्नी के बीच झगड़े आम बात है, यह झगड़े प्राय: हर घर में होते हैं, जो शाम या रात होते-होते फिर दोस्ती और पे्रम में बदल जाते हैं लेकिन इन सबके बाद भी कुछ मामले इतने अड़ियल हो जाते हैं कि इसके परिणाम घातक व पूरे परिवार को प्रभावित करने वाले हो जाते हैं- ऐसा ही एक मामला हाल के दिनों में प्रकाश में आया जो इतना घातक था कि अगर मौके पर हल  नहीं निकाला जाता तो संभव है पूरा परिवार बिछड़ जाता तथा  सभी संबन्धित लोगों को जिंदगीभर के लिये पछताना पड़ता. अक्सर मीडियाकर्मी रात में सारे दिन रात की टेंशन के बाद घर लौटते हैं तब उन्हें काफी ऐसे नजारे देखने मिलते हैं जो वास्तव में हमारे सामाजिक जीवन में रोजमर्रे की घटनाएं हैं. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रात को एक मीडियाकर्मी अपने काम से पूरा टेंशन लेकर वापस लौट रहा था तभी सड़क पर उसे एक बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी, पहले तो वह घबराया फिर पीछे मुड़कर देखा तो एक पांच-छह साल की बच्ची रोती हुई चली जा रही थी, स्कूटर सवार मीडियाकर्मी ने रूककर बच्ची से पूछा तो उसने बताया कि उ

ताउम्र जेल या फांसी?, बेहतर तो यही कि ताउम्र कैद में रहकर कठोर यातना भुगते!

'जेल में ताउम्र सड़ने से मर जाना ही अच्छाÓ- यह हमारी राय नहीं बल्कि देश के सुप्रीम कोर्ट की है-जेल में ताउम्र सड़ रहे ऐसे कैदी भी संभवत: यही चाहते होंगे लेकिन उनके चाहने से क्या होता है उन्हेंं तो अपने किये की सजा भुगतनी ही होगी. सुप्रीम कोर्ट की राय व कैदियों की मंशा का अगर विश्लेषण करें तो बात साफ है कि फांसी से बेहतर ताउम्र सजा है, चूंकि अपराधी को जिंदगीभर  इस बात का तो एहसास होता है कि उसने जो कृत्य किया वह कितना घिनौना था कि उसे नरक धरती पर ही जीते जी मिल गया. आतंकवाद में लिप्त याकूब मेमन को फांसी के बाद एक मानवाधिकारी महिला को यह कहते हुए सुना गया कि फांसी से अपराध बंद नहीं होगा फिर फांसी का क्या औचित्य? अपराधी  जन्मजात अपराधी नहीं होता उसे परिस्थितियां ही ऐसा बना देती है- सही है कोई व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता, उसके कर्म उसे अपराधी बना देते हैं. अगर किसी ने अपराध किया है तो उसे इसकी सजा तो भुगतनी ही होगी, यह सजा फांसी न होकर अगर जन्मजात पछताने की है तो फांसी से भी बढ़ी सजा मानी जायेगी क्योंकि फांसी, बंदूक की गोली या जहर का इंजेक्शन तो उसे इस जन्म से मुक्ति दिला देगी. म

व्यवस्था के दो रूप-एक माननीय ने जीवित पूर्व राष्ट्रपति के चित्र पर फूल चढ़ाया, दूसरे ने मान बढ़ाया!

व्यवस्था के दो रूप-एक माननीय ने जीवित पूर्व राष्ट्रपति के चित्र पर फूल चढ़ाया, दूसरे ने मान बढ़ाया! झारखंड की शिक्षामंत्री ने बुधवार को एक स्कूल के कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के चित्र पर माल्यार्पण किया, फूल चढ़ाये और जीते जी उन्हें श्रद्धांजलि भी दे डाली. यह सब देखने के लिये स्कूली बच्चे, शिक्षक और झारखंड के अधिकारी मौजूद थे, किसी ने यह नहीं कहा कि उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिये. चूंकि कलाम अभी जीवित हैं. झारखंड में यह पहला अवसर नहीं है जब मंत्रियों के व्यवहार की इतनी छीछालदर हुई है. दूसरी ओर सांसद शशि थरूर का उदाहरण है, जिन्होंने ब्रिटेन जाकर उसके देश में वहां की सरकार को ललकारा कि ब्रिटिश शासनकाल में उसने हमारे देश को लूटा है, उसका मुआवजा उसे मिलना चाहिये. यह दो उदाहरण है जो प्रजातांत्रिक व्यवस्था को तुला पर तौल रही है-एक का वजन ज्यादा है तो दूसरे का कम! यह हमारी ही गलती है कि हम ऐसे कतिपय लोगों को चुनकर सत्ता में भेजते हैं जो न केवल अशिक्षित हैं बल्कि अज्ञानता की भी हद पार कर देते हैं,-जबकि देश में संविधान के तहत निर्मित एक संस्था है 'चुनाव आयोग, जिसे चुनाव नियमो

नैतिकता, सिद्धांत सब पुरानी बात इस्तीफों की मांग को लेकर आंदोलनों का औचित्य क्या

व्यापमं, नान घोटाले के लिये कौन जिम्मेदार है? क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह? क्या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह? इसका जवाब सीधे तौर पर हां या न में हो सकता है लेकिन इन मंत्रियों के इस्तीफे से संपूर्ण मसला हल हो जायेगा? अगर हां तो उन्हें तत्काल त्यागपत्र दे देना चाहिये- न तो ऐसे किसी आंदोलन को चलाने का कोई औचित्य नहीं! यही बात वसुन्धरा राजे, सुषमा स्वराज पर ललितगेट मामले, स्मृति इरानी पर फर्जी डिग्री और महराष्ट्र की मंत्री श्रीमती पंकजा मुण्डे जिन पर भूमि घोटाले का आरोप है, पर भी उठ रहा है. सभी मामले कहीं न कहीं किसी रूप में कोर्ट की परिधि में है. इतना हल्ला इन मामलों पर मचाने की बनिस्बत हम क्यों नहीं कोर्ट के फैसले का इंतजार करते? हम अपनी संस्कृति, सिद्धांत और नैकितकता की चाहे जितनी दुहाई दें हम दूसरे देशों के मुकाबले में ऐसे मामलों में बहुत पीछे हैं. बुधवार को जापान से एक खबर आई कि वहां तोशिबा में सत्यम जैसी हेराफेरी के बाद सीईओ रिसाको तनाओ, वाइस चेयरमेन नोरियो ओरछेअन्ने ने न केवल अपने पदों से इस्तीफा दिया बल्कि आधा मिनट झुककर कहा कि हम शर्मिन्दा हैं. हमारे दे

जनता के माल को अपनी पैतृक संपत्ति मानकर भ्रष्टतंत्र चट कर रहा..!

जनता के खरे पसीने की कमाई को सरकारी तंत्र में बैठे कुछ लोग दीमक की तरह खा रहे हैं. हाल ही में एसीबी की जाल में फंसी बड़ी मछलियों के कारनामों से तो कुछ ऐसा ही लगता है. इन तत्वों ने सरकार व जनता के माल को अपनी पैतृक संपत्ति मान ली है. जिस ढंग से सरकारी सर्विस में चंद सालों से लगे लोगों के घर व पारिवरिक सदस्यों यहां तक कि नौकर चाकरों के घर से जो माल निकल रहा है यह यही दर्शा रहा है कि ऐसे लोगों ने अपने पद और ओहदे को निचोड़कर उसमें से रस निकालने में कोई कमी नहीं छोड़ी है.अगर प्रदेश में आठ कर्मचारियों की संपत्ति पचास करोड़ से ज्यादा है तो इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि पूरे प्रदेश में ऐसे और कितने लोग होंगे जो अकूत संपत्ति लेकर मौज से काम कर रहे हैं और ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे हैं. नान घोटाले के आरोपियों के पास से भी करोड़ों रूपये की संपत्ति व पैसा निकला है-उनके खिलाफ कार्रवाही के बाद से लग रहा था कि अब भ्रष्टाचार पर कुछ तो लगाम लगेगा लेकिन यहां तो भ्रष्टाचार की पूरी खदान है जिसमें थोड़ा बहुत धन नहीं बल्कि पूरा रिजर्व बैंक है- यह पैसा  बाहर आ जाये तो छत्तीसगढ़ स्वर्ग बन सकता है उसे न केन्

हर आदमी के हाथ बंधे हैं फिर पीड़ितों की मदद में कैसे हाथ बढ़ायें?

कोई सड़क पर किसी गुण्डे से पिटता रहे, कोई गुण्डा किसी महिला की सरेराह इज्जत उतार दे, कोई राह पर दुर्घटना में कराहता रहे, किसी को क्या फर्क पड़ता है? हमारे देश के कानून ने लोगों को कुछ ऐसा ही बना दिया, चाहते हुए भी वह मजबूर है! पिछले  शुक्रवार, शनिवार और रविवार को इलेक्ट्रानिक चैनल दिल्ली में मीनाक्षी मर्डर केस के संदर्भ में दिनभर चिल्लाता रहा कि 'कौन बचायेगा दिल्ली कोÓ? -शायद उन्हें नहीं मालूम कि अकेली दिल्ली नहीं पूरा देश यह पूछ रहा है कि कौन बचायेगा देश को? हर जगह न स्त्री सुरक्षित हैं और न पुरुष और न ही बच्चे. मीडिया में होने के कारण हम भी यही सवाल करते हैं कि कौन बचायेगा हमें? देश के करोड़ों सामान्य लोगों की जिंदगी आज सड़क पर कभी भी लाश में बदल सकती है. घर से निकलने वाला हर आदमी असुरक्षित है. वह सुरक्षित घर लौट आये तो भाग्यशाली वरना उसका दुर्भाग्य! मीनाक्षी, निर्भया और भी कई अन्य तो एक बार में इस दुनिया की बुराई से छुटकारा पाकर चली गईं लेकिन अन्य जीवितों के सामने आज भी प्रश्न बना हुआ है कि उनके सुरक्षा की क्या गारंटी?. सड़क, गली-कूचे पर होने वाली हर गंभीर घटना आम लोगों के लिये आ

कानून से कौन डरता है? नेता छात्रावास निरीक्षण के लिये पहुंचे, लड़कियों को देख मन डोल गया!

कानून से कौन डरता है? नेता छात्रावास निरीक्षण के लिये पहुंचे, लड़कियों को देख मन डोल गया! महिला छात्रावास फिर सुर्खियों में है, इस बार बारी आई है छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पाली गांव के आदिवासी छात्रावास की! जहां स्थानीय नेताओं के एक आठ सदस्यीय दल ने अनधिकृत रूप से प्रवेश किया और वहां मौजूद कम से कम दस छात्राओं से यौन दुर्व्यवहार किया. एक पन्द्रह साल की छात्रा ने तो यहां तक आरोप लगाया है कि दल का नेता घनराज उसके कमरे में घुस आया और उसे अपनी ओर खींचकर गलत हरकतें करने लगा. हालांकि कोरबा पुलिस अधीक्षक के हवाले से जो खबर आई है उसमें इस घटना में लिप्त प्रमुख आरोपी घनराज सहित पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है जबकि अन्य फरार हैं, उनकी  तलाश की जा रही है. यह घटना इस सप्ताह के शुरू में मंगलवार  को तब की बताई जाती है जब पाली के सरकारी आदिवासी छात्रावास में उस समय हॉस्टल निरीक्षण के नाम पर यह तत्व जबर्दस्ती घुस गये. उस समय छात्रावास अधीक्षिका बाहर गई हुई थी. शिकायत के अनुसार जिला पंचायत उपाध्यक्ष अजय जायसवाल, जनपद अध्यक्ष घनराज सिंह कंवर, पाली कांग्रेस विधायक का प्रतिनिधि शंकर दास महंत और

क्या हम कभी ट्रेन लेट न होने का जापानी रिकार्ड इक्यावन सेक ण्ड तोड़ पायेंगे?

इसमें दो मत नहीं कि हमारी रेलवे ने पिछले वर्षों में बहुत प्रगति की है लेकिन क्या आम आदमी इस प्रगति और उसकी सेवाओं से संतुष्ट है? क्या हम जापान या किसी अन्य बड़े देश की तरह या अपने हवाईअड्डों की तरह ट्रेन सुविधा उपलब्ध करा पायेंगे? क्या हमारी ट्रेनें वक्त पर आवाजाही करेंगी? क्या ट्रेनें और रेलवे स्टेशन कभी साफ सुथरे होंगे? क्या हमारी पटरियों पर ट्रेनें जापान की बुलेट ट्रेनों की तरह स्पीड़ से दौड़ती नजर आयेंगी? क्या इसे उपयोग करने वाले साफ सुथरे रेलवे स्टेशनों को उसी तरह रहने देेंंगे जैसे विदेशों में लोग रखते हैं? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब हम वर्षों से खोज रहे हैं लेकिन दूर-दूर तक हमें कहीं इसका जवाब नहीं मिल रहा. यह सही है कि नरेन्द्र मोदी के सत्ता  में आने के बाद रेल को आधुनिकता की ओर ले जाने का कुछ प्रयास जरूर हुआ लेकिन इसके साथ-साथ किराये में बढ़ोत्तरी, टिकिट व्यवस्था में फेरबदल भी हुआ. कुछ और नई टे्रनों को पटरियों पर उतारा भी किन्तु हम अपने सपनों की ट्रेन अब तक नहीं देख सकें. ट्रेनें न समय पर चलती है. न उसमें सुरक्षा है, न स्वच्छता है. किसी डिब्बे में पानी है तो बिजली नहीं, खाने

अब तक तीन! सरकारी विभागों में घोटालों को दबाने का नया खेल,

अब तक तीन! सरकारी विभागों में घोटालों को दबाने का नया खेल, 'आग लगा दो, सबूत नष्ट कर दोÓ- घपले, घोटालेबाजों की छत्तीसगढ़ में यह कोई नई परंपरा नहीं है,कई सालों से ऐसा होता आया है, इससे पूर्व रायपुर के राजकुमार कालेज के सामने जब  आरटीओ दफतर था, उसे भी आग के हवाले किया जा चुका है लेकिन इस एक वर्ष दौरान तीन घटनाओं ने तो एक नया रिकार्ड कायम किया है.मलाई से भरपूर विभागों में एक के बाद एक अग्रिकांड से प्रशासनिक हलकों में तहलका मचना स्वाभाविक है साथ ही अब विभागों में कार्यरत कतिपय कर्मचारियों के चरित्र पर भी संदेह की परत चढ़ गई है. सिंचाई विभाग के जिस कमरे में आग लगी थी उसमें कई सालों का रिकार्ड जमा था जो जल गया या जलाकर राख कर दिया गया. आग लगने के लिये सीधे-सीधे शार्ट सर्किट को जिम्मेंदार बताकर अधिकारी व कर्मचारी अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. कोई जवाबदारी लेने को तैयार नहीं.सिंचाई विभाग में आग कैसे लगी, इसमें कौन लोग मिले हुए हैं इसकी जांच चल ही रही थी कि डायवर्सन विभाग में आग लग गई. और इसकी आग ठंड भी नहीं हुई कि संस्कृति विभाग आग की चपेट में आ गया .यहां शक की सुई कैशियर डिपार्टमेंट के बाबू

पीड़ित को न्याय में गवाह की मौत कितनी बाधक?- साक्षियों की मृत्यु ने कई मामलों को उलझाया!

गवाह की मौत मुकदमा खत्म? कानून की किताब में यह लिखा है या नहीं हम नहीं जानते लेकिन एक सामान्य नागरिक के नाते यह एक अनसुलझा सवाल है की क्या गवाह की मौत के बाद पीड़ित को न्याय मिल सकेगा या नहीं! दो तीन गवाहों  में  से एक की मौत के बाद तो यह माना जा सकता है कि पीड़ित को न्याय मिलने की संभावना है लेकिन जब सारे साक्ष्य व गवाह ही खत्म हो जाये तो इसका विकल्प क्या है? ऐसा प्रावधान जरूर है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अपराधी को सजा दी जाये लेकिन सवाल यह भी है की क्या न्यायालयों मेंं लंबित मुकदमें गवाह बिना चल ही नहीं सकते? इस स्थिति के चलते कई पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता? कानून में यह प्रावधान तो है कि मृतक के रिश्तेदार की गवाही को अदालत मान्य कर सकती है लेकिन कई बार रिश्तेदारों की गवाही भी काम नहीं आती. गवाहों को किसी प्रकार की सुरक्षा नहीं मिलती.कुछ खास मामलों में ही सुरक्षा दी जाती है. सही भी है कितने लोगों को सुरक्षा देंगे? हमारे देश का कानून साक्ष्य पर आधारित है, इसलिए भी यह सवाल उठ खड़ा है कि देश में एक बड़ा घोटाला हुआ जिसमें एक-एक कर कई साक्ष्यों ने मुकदमा शुरू होने के पूर्व ही दम त

कानून इतना ढीला क्यों? संगीन जुर्म के अपराधियों को फरार होने का मौका कैसे मिलता है?

उरला रबर आयल फैक्ट्री में शुक्रवार को हुए ब्लास्ट में फैक्ट्री मालिक पर तत्काल कार्रवाही न होने को लेकर हमारे कानून की खामियां फिर उजागर हुई है. ऐसी घटना किसी गरीब या मध्यम वर्ग का व्यक्ति करता तो शायद उसे तत्काल गर्दन पकड़कर  सीखंचों के पीछे भेज दिया जाता. इतना ही नहीं उसे पीट-पीटकर चलने-फिरने लायक भी रहने नहीं दिया जाता. उरला में घटना पिछले शुक्रवार को हुई थी जिसमें तीन मजदूर जिंदा जल गये. फैक्ट्री बिना सरकारी नियमों का पालन करे चल रही थी तथा इसका संचालक बालेन्द्र उपाध्याय घटना के बाद कानून से बचने के लिये राज्य छोड़कर भाग गया. सवाल यहां यह उठता है कि कानून की नजरें क्यों इतनी कमजोर है कि वह अपराधियों पर निगाह भी नहीं रख सकती? जब मालूम था कि उसे इस व्यक्ति को आज नहीं तो कल इस मामले में गिरफ्तार  करना ही है तब घटना के बाद से उसपर निगरानी  क्यों नहीं रखी गई? यह तो ऐसा लगता है कि सरासर उसे भागने का मौका दिया गया? यह पहला अवसर नहीं है जब ऐसे मामलों में पुलिस का कथित  चेहरा नजर आ रहा है. घटना के बाद अपराधी पुलिस के सामने से जादुई तरीके से फरार हो जाते हैं और पुलिस आंख मलती रह जाती है. अक

एटीएम, ई-बैंकिंग मशीनों से लूटपाट! आखिर जनता के पैसे की यूं बरबादी के लिये कौन जिम्मेदार?

ई-बैंकिंग शुरू होने के बाद ग्राहकों को बड़ी राहत मिली, उन्हें भीड़ भरे माहौल में पैसे जमा कराने, निकालने न अब लाइन लगाना पड़ता है और न बैंक खुलने-बंद होने का इंतजार करना पड़ता है लेकिन लगता है अब इस पर भी ग्रहण लग गया है, कहीं एटीएम को तोड़कर पैसे निकाले जा रहे हैं तो कहीं एटीएम लगे हैं किन्तु उसमें से पैसे नहीं निकलते. कई बड़े बैंकों विशेषकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम सेंटर में प्राय: एटीएम व ई-बैंकिंग मशीनों के काम नहीं करने का बोर्ड टंगा रहता है. अगर बैंक बंद होने के बाद एटीएम मशीन में खराबी आ गई तो उसे सुधारने में भी काफी वक्त लग जाता है. एटीएम मशीनों की सुरक्षा कितनी है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अकलतरा शहर में लगे सेन्ट्रल बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम मशीन से चोरों ने चौबीस लाख से ज्यादा की रकम पार कर दी. दिलचस्प तथ्य तो यह कि एटीएम पर चोर हाथ साफ कर गये यह बैंक अधिकारियों को उस समय पता चला जब ग्राहकों ने बैंक अधिकारियों को एटीएम से पैसा नहीं निकलने की शिकायत की, इसके बाद छानबीन हुई तो वे पहले तो यही समझ नहीं सके कि आखिर बैंक से पैसा क्यों नहीं निकल रहा. आगे जांच में पता च

भ्रष्टों को सेवा से बर्खास्त करने में देरी क्यों? नये को मौका मिलना चाहिये!

एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी में सरकारी कर्मचारियों की संख्या आबादी के प्रतिशत से बहुत कम है, इनमें से अधिकांश जहां अपनी ईमानदारी से काम करते हैं किन्तु उनमें से बहुतों पर घूसखोरी, अनुपातहीन संपत्ति रखने, शराब पीकर कार्यालय आने, दुर्व्यवहार, यौन प्रताड़ना जैसे आरोप हंै लेकिन सरकार की ऐसे मामलों में कार्रवाई इतनी ढीली है कि ऐसे लोग अपने पदों पर बने रहते हैं जिससे नये और उत्साही लोगों को मौका नहीं मिलता. आजादी के बाद से अब तक यह सिलसिला चला आ रहा है. किसी भी पार्टी की सरकार ने इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया. सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि सरकारी तंत्र को चलाने वाले राजनीतिज्ञ भी जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होते हैं वे भी पद छोड़ने के लिये तैयार नहीं होते, या तो वे खुद अपने आपको ईमानदार समझते हैं या फिर उन्हें सरकार में बैठे लोगों का ही संरक्षण प्राप्त रहता है. अब व्यापम घोटाले में गंभीर आरोपों से लिप्त एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का ही उदाहरण लीजिये- कुर्सी से ऐसे चिपके हुए हैं कि हटने का नाम ही नहीं ले रहे. जब सरकारी तंत्र का बड़ा हिस्सा ही इस प्रकार का अड़ियल रूख अख्तियार करता है औ

जब ऊपरी लेवल पर ही नैतिकता, जिम्मेंदारी खत्म हो रही है तब आगे तो खाई ही खाई है!

जी हां नैतिकता, जिम्मेंदारी,संस्कृति, परंपराएं यह सब अब जिम्मेंदार और सत्ता में बैठे लोगों की डिक्शनरी से गायब हो चुके हैं.कुर्सी और सत्ता में चिपके रहने पर ही लोग अपनी भलाई समझने लगे हैं चाहे वह बड़े से बड़ा घोटाला हो, भीषण प्लेन दुर्घटना हो या ट्रेन दुर्घटना अथवा किसी अबला पर सामूहिक दुष्कर्म, किसी को कोई फरक नहीं पड़ता.असल में नैतिकता का पाठ जिन्हें सिखाना है वे स्वयं जब कुर्सी छोड़ने के लिये तैयार न हो तो हम किसी छोटे- बड़े को दोष क्यों दें? बड़े से बड़े घोटाले आज प्रकाश में आ रहे हैं.नौकरशाह और संबन्धित मंत्रीगण लोगों को नैतिकता का पाठ पढ़ाकर एक  दूसरे पर  जिम्मेंदारी थोपकर अपनी गर्दन बचाने की फिराक में हैं कोई नैतिकता का नाम लेकर के न पद छोड़ता है और न ही जिम्मेंदारी लेता है. छत्तीसगढ़ में नान घोटाला हो या मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला किसी बड़े अधिकारी और संबन्धित मंत्री ने न कभी अपनी नैतिक जिम्मंदारी ली और न ही पद छोड़कर एक उदाहरण पेश करने का साहस किया. ऐसे में सारी व्यवस्था में बैठे लोग आम जनता, जिनके लिये वे काम करते हैं विश्वास खोने लगे हैं. यह स्थिति पूर्व में यूपीए सरकार के समय भी थ

छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद का नामोनिशान मिटेगा? हवा और जमीनी लड़ाई दोनों की बू!

क्या छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद का सदा-सदा के लिये अंत होगा? बस्तर के घने जंगलों से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक तो  कुछ ऐसा ही लग रहा है कि सरकार इस मौसम में कुछ ऐसा ही करने जा रही है कि आगे आने वाले समय में ऐसी कोई समस्या ही नहीं रहे. केन्द्र व राज्य सरकार का कोई भी जिम्मेंदार व्यक्ति यह नहीं कहता कि नक्सलवाद को समाप्त करने के लिये सेना को उतारा जायेगा. जब सेना की बात आती है तो नक्सली भी घबरा जाते हैं चूंकि सेना के अभियान में कोई नहीं बचता.छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के उदय को कई दशक बीत गये.कई मुठभेड़ें हुई और कई मारे भी गये, इनमे सुरक्षा बलों के लोग भी शामिल हैं. सामान्य वर्ग भी शामिल है और नेता भी शामिल हैं. सुरक्षा बलों के हाथों कई नक्सली भी मारे गये हैं. बहरहाल इन वर्षों में नक्सलियों ने भारी तादात मेें राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, कई का गला काटा तो कइयों को गोली से भूना. निर्दोष लोगों के खून से बस्तर की धरती लाल होती रही है.अब जिस अभियान का जिक्र कुछ समय से चल रहा है उसमें मिलट्री तो नहीं शामिल हो रही है लेकिन जानकारों के अनुसार यह पूरा अभियान मिलट्री स्टाइल पर होने वाला है तथ

व्यापम से भी बड़ा रहस्य अब इसमें आरोपियों, गवाहों की मौत, संदिग्ध मौतों के पीछे आखिर कौन?

हम तंत्र-मंत्र पर विश्वास नहीं करते, इसमें कोई शक्ति है या नहीं यह भी हमें नहीं मालूम क्योंकि विश्व को ईश्वर नामक शक्ति ने बनाया है, उससे बड़ी कोई शक्ति नहीं है. मेरा संपर्क एक वरिष्ठ तांत्रिक से हुआ था जिसने मुझे एक खास बात बताई कि तंत्र विद्या दो तरह की होती है, इसे बड़ी मुश्कि ल से प्राप्त किया जाता है, एक होती है 'पाकÓ और दूसरी 'नापाकÓ. उन्होंने कहा हम तो पाक करते हैं लेकिन जो लोग नापाक करते हैं वह इतने खतरनाक होते हैं कि मुम्बई में बैठकर रायपुर या दुनिया के किसी कोने में किसी को भी मार सकते हैं और लोग कहेंंगे कि उनकी मौत स्वाभाविक हार्ट अटैक से, दुर्घटना अथवा बीमारी से हुई या फिर लीवर फेल हो गया या और कुछ और. आज यह संदर्भ इसलिये भी निकला कि मध्यप्रदेश के देशव्यापी व्यापम घोटाले में कम से कम संदिग्ध पैतालीस मौतों ने यह सवाल खड़ा कर दिया कि आखिर यह मौतें कैसे और क्यों हो रही है. इस पूरे प्रकरण में अधिकांश लोग युवा हैं जिनकी मौत पर कोई भरोसा भी नहीं कर सकता, आखिर यह कौन सी शक्ति है या कौन-सा प्रयोग है जो इस घोटाले  में लिप्त या गवाही देने वाले अथवा मध्यस्थ को एक-एक कर मारे

एक माननीय पर हर माह 2.92 लाख का खर्चा तो टैक्स और मंहगाई नहीं बढ़ेगी तो और क्या होगा?

कहते हैं परिवार में एक अधिकारी, एक पुलिसवाला, एक पत्रकार तथा एक नेता जरूर होना चाहिये जो परिवार की हर मुसीबतों को हल करें, लेकिन अब इस युग में उक्त बात में कोई दम नहीं रह गया. इन चारों में से अगर तीन को अलग कर दिया जाये तो सिर्फ नेता बच जाता है, परिवार में सिर्फ एक नेता ही काफी है और अगर यह नेता माननीय हो जाये तो सोने में सुहागा. हाल ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाइली क्वालीफाइड आउट परफोर्मिगं सीईओ और अन्य ज्यादा वेतन पाने वालों से कहा है कि वे अपने वेतन में कटौती करें और एलपीजी की सब्सिडी न लें लेकिन क्या हाईली वेतन प्राप्त करने वाले देश के माननीय अपने वेतन में कटौती करने तैयार हैं? या वे एलपीजी सब्सिडी नहीं लेंगे? प्रधानमंत्री के विचारों का हम स्वागत करते हैंं. इसमें दो मत नहीं कि निजी क्षेत्रों में काम करने वालों का वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाएं अन्य लोगों से बहुत ज्यादा है, उनकी क्वालिफिकेशन भी उसके लायक है लेकिन देश के माननीयों पर क्या यह नियम लागू हो सकता है? जो जनता के बीच से उनकी सेवा के नाम पर चुनकर विधानसभा या लोकसभा में पहुंचते हैं-लाखों रुपये की कमाई का जरिया बना ले

बरसात रायपुरवासियों के लिये मुसीबत, पानी तो पानी, बिजली, गंदगी भी सर चढ़कर बोलती है!

बरसात रायपुरवासियों के लिये मुसीबत, पानी तो पानी, बिजली, गंदगी भी सर चढ़कर बोलती है अभी तो पूरी बरसात बाकी है और राजधानी रायपुर में गुरुवार को हुई बारिश ने संपूर्ण व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी.  आगे अगर रायपुर में कहीं और ज्यादा बारिश हुई तो शहर के लोग बड़ी मुसीबत में पड़ जायेंगे. हम मानते हैं कि शहर को सुन्दर बनाने के लिये प्रशासन, निगम व सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है लेकिन तेज गर्मी, बारिश-तूफान आने पर संपूर्ण व्यवस्था की स्थिति ठीक उसी प्रकार हो जाती है जैसे दूध में मक्खी गिर गई हो. चकाचक सड़कें जहां बारिश के दौरान  क्लियर होनी चाहिये वहीं नाली के गंदे पानी से भर जाता है और सतह तक कचरों का ढेर लग जाता है. टेलीफोन विभाग की लाइनें बैठ जाती हैं तथा बिजली गुल रहती है, यह दुर्भाग्यजनक  है कि हम इतने सालों बाद भी ऐसी कोई तकनीक अपनाने में नाकाम रहे हैं जिससे लोगों को बरसात के दिनों में किसी प्रकार  की तकलीफ नहीं हो. बिजली विभाग की लापरवाही का इससे बड़ा उदाहरण और क्या दें कि उसने तेलीबांंधा के जलविहार कालोनी में ट्रांसफार्मर को इतने नीचे लगाया है कि उसकोपानी छू गया तो हजारों लोगों की जान

डिजिटल इंडिया की एंट्री, आम लोगों तक पहुंचाने में कई पापड़ बेलने पड़ेंगे

एक समय जब पुलिस वाले वायरलेस हाथ में लेकर एक दूसरे से बात करते थे तो हमें भी लालच होता था कि काश हमारे पास भी ऐसा कुछ होता तो हमारे काम कितने आसान हो जाते, धीरे से समय ने हमारी इच्छा को पूरा किया. सामाजिक क्षेत्र में पेजर की एंट्री हुई और यह कुछ ही समय में लोगों के रेस्ट में टंगा और कैसेे लुप्त हो गया पता ही नहीं चला. मोबाइल की एंट्री ने सभी संचार माध्यमों को पीछे छोड़ दिया. मोबाइल मंहगें थे, कम लोगों के पास थे लेकिन लोग मजाक में यह भी कहा करते थे कि एक समय ऐसा आयेगा जब रद्दी बेचने वाला भी दस मंजिले मकान के नीचे खड़े होकर फोन कर गृह स्वामी से पूछेगा कि बाई रद्दी है क्या? और घर में काम करने वाली बाई मोबाइल से फोन कर कहेगी कि बाई आज काम पर नहीं आऊंगी. युग बदला और वह सब कुछ हो गया जो पिछली शताब्दी में लोग सपने में देखते और दिन में कल्पना करते थे. बीसवीं सदी में युग ऐसा बदला कि आज हम कम्पयूटराइज्ड और डिजिटिल हो गये. पूरी दुनिया हमारी उंगली पर नाचने लगी. घर बैठे आप बिजली का बिल भर सकते हैं, टेलीफोन का किराया अदा कर सकते हैं. डिश टीवी का पेमेंट कर सकते हैं. नौकरी पर लगने के लिये चक्कर लगाने

सरकार की दूरगामी योजनाएं लेकिन वर्तमान को कौन देखेगा, महंगाई फिर बेलगाम!

या तो हमे जल्दी भूल जाने की आदत है या फिर हम अपने पर होने वाले जुल्म का प्रतिकार ही नहीं करते. हमारी खामोशी सामने वाले को हमारे ऊपर और जुल्म ढहाने का मौका देती है. सत्ता में आने से पूर्व सरकारें हमसे कितने लुभावने वादे करती है हम यह कर देंगे वो कर देंगे मगर हकीकत यही है कि ऊं ची कुर्सियों से चिपकने के बाद वे न यह करते हैं और न वे करते हैं! मंहगाई,भ्रष्टाचार और विदेशों में जमा कालेधन की वापसी का लुभावना नारा देकर सरकार सत्ता में आई. यह सरकार भी भूल गई और हम भी भूलने लगे.वास्तविकता यही थी कि जनता पूर्ववर्ती सरकार की चुप्पी और मंहगाई, भ्रष्टाचार तथा कालाधन वापस लाने में असफलता को लेकर आम जनता को नाराज कर चुकी थी.वर्तमान सरकार ने सौ दिन पूरे होने के बाद भी आम इंसान को सपने दिखाने के सिवा कोई राहत देने का प्रयास किया हो यह दिखाई नहीं दे रहा. शुरू-शुरू में जब पेट्रोल, डीजल के भाव गिरे तो जनता ने यह महसूस किया कि वास्तव में सरकार  अपने वादों के प्रति कटिबद्व है लेकिन बाद में पता चला कि यह सब अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में घट बढ़ से हो रहा है.जो भाव आज पेट्रोल डीजल के हैैं वह नई सरकार बनते समय भी