एक्जिट पोल 'अच्छे दिन आने वाले हैं!


दुनिया के प्राय: सभी लोकताङ्क्षत् देशों में एक्जिट पोल का बोलबाला है,यह मतदाताओं व प्रत्याशियों को कुछ समय तक टेंशन से दूर रखने की कोशिश तो करता है किन्तु हकीकत में यह असल पोल के नतीजे नहीं बन पाते.भारत में लोकसभा चुनाव के बाद पिछले कुछ वर्षो से एक्जिट पोल का ्रचलन शुरू हुआ है.मतदान के दौरान भी एक्जिट पोल दिखाये जा रहे थे किन्तु चुनाव आयोग ने  इसपर रोक लगा दी.चुनाव खत्म होते ही इसकी अनुमति दे दी और आननफानन में टीवी चैनलों ने एक्जिट पोल दिखा भी दिया. देश की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा सहित सभी विपक्षी पार्टी के नेताओं ने एक्जिट पोल के नतीजे को स्वीकार करने की जगह यही कहा है कि मतगणना के दिन का  इंतजार कीजिये. वास्तव में एक्जिट पोल बहुत सीमित लोगों के बीच से होता है, भारत जैसे एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी वाले देश में जिसमें  आधे  से ज्यादा अर्थात करीब  सत्तर प्रतिशत लोग मतदान में हिस्सा लेते हैं में से यह खोज निकालना किसी के लिये भी कठिन हो जाता है कि मतगणना के बाद क्या स्थिति होने वाली है. करीब एक महीने के चुनाव अभियान के दौरान चुनाव प्रचार के समय एक्जिट पोल में लगे लोगों ने करीब पौने दो लाख लोगों के बीच से यह बात निकाल ली कि भावी स्थिति क्या होगी? एक टीवी चेनल के एंकर ने एक्जिट पोल के परिणाम पर टिप्पणी के बाद यही बात कही कि आप इस परिणाम को असल परिणाम के नजरिये से मत देखिये दुनिया के किसी देश का एक्जिट पोल आज तक सही परिणाम नहीं दे पाया हैं. बहरहाल एक्जिट पोल ने जो परिणाम दिये है वह चुनाव  के दौरान मौजूद कथित लहर और मतदान प्रतिशत में बढौत्तरी के आधार पर भी हो सकता है. एक्जिट पोल में एनडीए को भारी बहुमत का दावा किया है जिसमें उसे 340 सीट तक लाने की बात कही गई  है जबकि वर्तमान सत्तारूढ दल को कहीं सत्तर और कहीं 119, 123 सीट तक मिलने का दावा किया गया है. कांग्रेस का जहां सूपड़ा साफ है वहीं हाल ही अस्तित्व में आई आप पार्टी को देश की संसद में खाता खोलते बताया गया है. इससे पहले  सन् 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कुछ इसी तरह का आंकलन एक्जिट पोल करने वालों ने किया था. 2004 में अटल बिहारी बाजपेयी की तेरह दिनी सरकार के बाद चुनाव कराया गया था. उस समय 'फील गुडÓ का नारा चला और सब 'बेड- बेडÓ हो गया इसके बाद 2009 में फिर  एक्जिट पोल मे दिखाया गया कि यूपीए सत्ता से बाहर हो रही है लेकिन सत्ता पर फिर वही काबिज हुई. इस बार एनडीए ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करते हुए नरेन्द्र मोदी पर दाव खेला है.मोदी ने 'अच्छे दिन आने वालेÓ हैं का वादा करते हुए धुआंधार प्रचार में देश के युवाओ को बांधा. हिन्दी भाषी क्षेत्रों में उनका सिक्का बहुत हद तक जम गया लेकिन दक्षिण और पूर्वोत्तर राज्यों में अब भी कु छ नहीं कहा जा सकता. सोलह तारीख को इलेक्ट्रोनिक मशीनों से जब वोट उगलेंगे तभी इस बात का पता चलेगा कि देश में किये जाने वाले एक्जिट पोल में कितना दम है.बहरहाल एक्जिट पोल को देखे तो हिंदी पंट्टी से लेकर पश्चिम और दक्षिण कहीं से भी कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं आ रही हैं. पिछले दो बार से लगातार मजबूती देते रहे आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस बंटवारे का कार्ड खेलने के बाद भी धड़ाम रही.आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी इससे आगे निकलते दिखाए गए हैं.वैसे कांग्रेस ने एक्जिट पोल पर होने वाली किसी भी बहस का बहिष्कार किया है और उसने वर्ष 2004 और 2009 के चुनावों में एक्जिट पोल गलत साबित होने का उदाहरण दिया है.चुनाव के नतीजे शुक्रवार को आने वाले हैं. सभी एक्जिट पोल केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनती और कांग्रेस की अब तक की सबसे बुरी हार होती दिख रही हैं, इनमें आज तक-सीसरो जहां राजग को 272 सीटें मिलते दिखा रहा है, वहीं इंडिया टीवी-सी वोटर इसे 289 सीटों के साथ अच्छी बढ़त पाता दिखा रहा है। टाइम्स नाऊ-ओआरजी मार्ग ने राजग को 249 सीटें मिलने की भविष्यवाणी जरूर की है, लेकिन ऐसी स्थिति में भी यह गठबंधन जरूरी सीटों से ज्यादा दूरी पर नहीं है। इसी तरह आज तक-सीसरो ने जहां कांग्रेस नेतृत्व वाले संप्रग को 115 सीटें दी हैं, वहीं अन्य दलों के लिए 156 सीटें रखी हैं। इंडिया टीवी-सी वोटर ने संप्रग को 101 सीटें दी हैं। एक्जिट पोल में आम आदमी पार्टी भी पांच सीटों के साथ अपने पहले चुनाव में खाता खोल रही है. हालांकि, यह नहीं भूला जा सकता कि 2004 में तो ऐसे अधिकांश सर्वेक्षण भाजपा नेतृत्व की सरकार आती दिखा रहे थे. गत विस चुनावों में सबसे सटीक आकलन देने वाली सर्वेक्षण एजेंसी टुडेज चाणक्य ने अकेले भाजपा को 291 व राजग 340 सीटें दी हैं और कांग्रेस को आपातकाल के बाद से भी कम यानी 57 सीटों का अनुमान लगाया है।

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