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मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सवाल स्मृति की शिक्षा का या संवैधानिक त्रुटि का?

सवाल स्मृति की शिक्षा का या संवैधानिक त्रुटि का? ''पढ़ोगे लिखोगे बनागे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब जो बच्चे कभी लिखते पढ़ते नहीं, वो इज्जत की सीड़ी पर चढ़ते नहीं, यही दिन है पढ़ने के पढ़ लो किताब बुराई  के रास्ते से बचके चला कभी न झूठ बोलों न चोरी करोÓÓ हमें बचपन से यही गीत गाकर पढ़ाया लिखाया गया है.हम यही सुनते आये है लेकिन ''अगर काम से ही किसी का मूल्याकंन करना है तो देश के युवाओं को अब डिग्री लेने की जरूरत नहींÓÓ-स्मृति इरानी की माने तो कुछ ऐसा ही संकेत मिलता है. नरेन्द्र मोदी मंत्रिमंडल  में मानव संसाधन  मंत्री जैसा महत्वपूर्ण सम्हालने वाली कम उम्र की मंत्री,जिन्हें देश की उच्च शिक्षा, जाँब,शिक्षा में एफडीआई, आईआरटी, आईबाईएम, एम्स, स्किल डेवलपमेंट, युवाओं की उम्मीदो और  बेसिक शिक्षा  के दायित्वों को पूरा करना है,वे सिर्फ बारहवीं कक्षा पास है. उनका कहना हैै कि उनके पास  तजुर्बा है और उसी को रखकर देश की शिक्षा नीति और उससे संबन्धित अन्य कार्यो को तय करेंगी.  स्मृति अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव  हार  गई, राहुल गांधी जैसे कांग्रेस के बड़े नेता को हराना उनकी

धारा 370 पर कश्मीर गर्म आखिर है क्या यह धारा?

नरेन्द्र मोदी सरकार के एक मंत्री द्वारा भारतीय संविधान की धारा तीन सौ सत्तर पर दिये बयान के बाद बखेड़ा खड़ा हो गया है. सवाल  यह उठ रहा है कि  क्या नरेन्द्र मोदी सरकार इस धारा को खत्म करेगी? इससे पूर्व कि सरकार इसपर  कोई राय बनाये जम्मू कश्मीर  के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा दोनों ने ही इसपर गंभीर रूख अख्तियार करते हुए यहां तक कह दिया कि अगर धारा 370 को हटाया गया तो कश्मीर भी भारत से अलग हो जायेगा. आखिर धारा 370 है क्या बला? आम लोग यह नहीं जानते कि आखिर यह धारा 370 है क्या? -यह भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद (धारा) है जिसे अंग्रेजी में आर्टिकल 370 कहा जाता है. इस धारा के कारण ही जम्मू एवं कश्मीर राज्य को सम्पूर्ण भारत में अन्य राज्यों के मुकाबले विशेष अधिकार अथवा (विशेष दज़ार्) प्राप्त है. देश को आज़ादी मिलने के बाद से लेकर अब तक यह धारा भारतीय राजनीति में बहुत विवादित रही है.भारतीय जनता पार्टी एवं कई राष्ट्रवादी दल इसे जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिये जिम्मेदार मानते हैं तथा इसे समाप्त करने की माँग करते रहे हैं.भारतीय संविधान में अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष

इच्छा शक्ति, छप्पन इंच का सीना ही जनता का विश्वास जीतेगी

इच्छा शक्ति, छप्पन इंच का सीना ही जनता का विश्वास जीतेगी! नरेन्द्र मोदी के लिये काम आसान लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं बेेरोजगारी, काला धन, आर्थिक विकास/निवेश, आंतरिक सुरक्षा, चौबीस घंटे बिजली, सड़क, फास्ट ट्रेन, नि:शुल्क शिक्षा जैसी बातें जो आम आदमी से जुड़ी हैं जिसे सत्ता में बैठे व्यक्ति के लिये हल करना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसके लिये भी इच्छा शक्ति के साथ छप्पन इंच का सीना भी होना चाहिये. अब तक शासन करने वालों में इसका अभाव था या उनके साथ काम करने वालों ने अपनी जेब भरने के साथ जनता से दूरी बनाई और समस्या को ज्यों का त्यों बनाये रखा लेकिन अब मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही लोगों की वे आशाएं जाग गई हैं जिनका वर्षों से वे सपना देखते रहे हैं? नरेन्द्र मोदी 26 मई को शाम छह बजे भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण करेंगे और इसी के साथ देश की जनता की वे आशाएं और अपेक्षाएं भी मोदी का पीछा करने लगेंगी जो उन्होंने चुनाव के दौरान लोगों से वादे किए थे. सबसे पहला मुद्दा है महंगाई- कम से कम एक महीने के भीतर नरेन्द्र मोदी को आम लोगों को यह महसूस कराना होगा कि उनके सिंहासन पर बैठते ही मंहगाई कम ह

मौसम पर वैज्ञानिक कितने सटीक,फंसते तो किसान हैं!

मौसम पर वैज्ञानिक कितने सटीक,फंसते तो किसान हैं! मौसम का मिजाज कब बिगड़ जाये यह कोई नहीं जानता.हम बुधवार की रात सोने की तैयारी कर रहे थे तभी धरती अचानक हिल गई. ऐसा छत्तीसगढ़ में करीब तीस साल पहले भी हुआ था किन्तु समय में फरक था, उस समय सुबह चार बजे के आसपास धरती हिली लेकिन इस बार यह शाम को नौ साढ़े नौ बजे के आसपास हुआ. रायपुर में बहुत कम लोगों को इसका अहसास हुआ किन्तु ऐसे किसी भूकम्प की भविष्यवाणी किसी माध्यम से नहीं की गई, हां धरती हिलने के बाद यह बताने में कोई कमी नहीं की गई कि देश में कहीं भी धरती हिले मगर छत्तीसगढ़ में ऐसा कभी नहीं होगा बहरहाल ऐसे बहुत से मामले हैं जो मौसम विज्ञानियों की भविष्यवाणियों को झुठला देते हैं. सुबह से दोपहर तक खूब गर्मी पड़ती है और शाम होते ही जैसे किसी हंसते खेलते व्यक्ति का मूड बदल जाता है, उसी प्रकार तेज आंधी चलती है तूफान आता है और सब तबाह हो जाता है. अरबों रूपयें के मौसम की जानकारी के लिये संयत्र देश में लगे है लेकिन सटीक जानकारी न भारत के इन संयत्रों और इसमें तैनात विशेषज्ञों के पास है और न ही दूर सात समुन्द्र पार बैैठे महान वैज्ञानिक होने का दावा क

आजाद भारत में पैदा हुआ पहला प्रधानमंत्री!

. युवाओं की अहम भूमिका रही...जाति-धर्म सब सीमाएं लांघी गई मोदी को जिताने के लिये... कांग्रेस के भ्रष्टाचार और दस वर्षो के कुशासन से मुक्त होना चाहते थे लोग  लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा को जो ऐतिहासिक जीत मिली है उसे भारतीय लोकतंत्र में किसी एक पार्टी को हासिल जीत में सबसे बड़ी  जीत है. पार्टी ने  दिल्ली, राजस्थान सहित कई राज्यों की सभी सीटें अपने नाम कर ली हैं तो कई राज्यों में दिग्गज क्षेत्रीय पार्टियों का सूपड़ा साफ कर दिया है। यह चुनाव  हम सब के लिए चौंकाने वाले हो सकते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए यह परिणाम अपेक्षित ही माना जा  रहा है क्योंकि 2011 के बाद से ही उन्होंने सुनियोजित रणनीति के तहत इसके लिए आगे बढ़ना शुरू कर दिया था। तब उन्होंने सद्भावना यात्रा शुरू की थी. अटलबिहारी वाजपेयी सरकार के समय वे जरूर कुछ हाशिये पर आ गए थे मगर 2004 के आम चुनाव में जब भाजपा की हार हुई तो उन्हें लगा कि अब वे केंद्र में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं. यह वह समय था जब लालकृष्ण आडवाणी ने पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना की कब्र पर जाकर उनके लिए सराहना के शब्द बोल दिए. वे संघ के निशाने पर आ गए.अब मो

युवा वोटरों की अपेक्षाएं..."जादू की छड़ी घुमायेंगे मोदी"

युवा वोटरों की अपेक्षाएं..."जादू की छड़ी घुमायेंगे मोदी" निशुल्क शिक्षा,चौबीस घंटे बिजली, एकल टैक्स,  जैसे ग्यारह अनुरोध... युवा मतदाताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग, जिनकी संख्या करीब 2.31 करोड होती है, पहली बार मतदान में हिस्सा लिया- भाजपा जनता पार्टी के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर वे एक तरह से फिदा थे. वर्तमान भ्रष्ट सरकार से उनका विश्वास उठ चुका था. शायद यही कारण था कि उसने नरेन्द्र मोदी पर इतना विश्वास किया कि वोट देने के मामले में उन्होंने अपने अभिावकों तक की नहीं सुनी. इन नये मतदाताओं पर राजनीतिक दलों की पैनी नजर थी और चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले युवाओं का समर्थन अधिक प्राप्त हुआ. मोदी के मोहित करने वाली बातों तथा नये भारत के लिये जो सपने दिखाये उसने पूरे देश में ऐसा माहौल खड़ा कर दिया कि उसके आगे वे सम्मोहित हो गये तथा पुराने युवाओं को, जो एक लम्बे समय से दूसरी  पार्टियों के साथ जुड़े हुए थे उन्हें भी अपने साथ मिलाने  में कामयाब हो गये.एक तरह से युवा मतदाताओं के आगे यह नये मतदाता हावी हो गये तथा सारी बाजी पलट दी. अब चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी से युवा यह आशा कर

बस अब ज्यादा इंतजार नहीं.... आज एक्जिट पोल से कुछ तो स्थिति स्पष्ट होगी

गठजोड़ में मोदी को 'सिंहासन के करीब जाने से रोकने की कोशिशें भी! अब ज्यादा दिन नहीं बचे,सिर्फ चार दिन बाद यह स्पष्ट हो जायेेगा कि देश के सिंहासन पर कौन बैठेगा, लेकिन इससे पूर्व आज शाम एक्जिट पोलक लोगों की जिज्ञासा को बहुत हद तक कम कर देगा. इन पङ्क्षक्तयों के लिखे जाते तक आखिरी दौर का मतदान जारी है.मतदान की प्रक्रिया सोमवार को खत्म हो जायेगी, इस बीच जोड़-तोड़ का जो सिलसिला चला है वह भी कम इंन्टे्रस्टिंग नहीं है. भाजपा जहां स्पष्ट बहुमत का दावा कर रही है वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस जोड़-तोड़ में हैं कि किसी प्रकार केन्द्र में भाजपा की सरकार का उदय न हो. इस जोड़ तोड़ को देख भाजपा भी अपना इंतजाम करने में लगी है उसकी नजर ममता, मोदी और पटनायक पर है, भाजपा यह अच्छी तरह जानती है कि वह किसी प्रकार इन धुरन्धर नेताओं को मनाकर अपने साथ नहीं मिला सकती लेकिन 'साम धाम दण्ड भेदÓ का तरीका अख्तियार करने में भी वह पीछे नहीं है शायद यही वजह है कि सीबीआई को भी सत्ता पाने के लिये अपना मोहरा बनाने की बात चल रही है.  इधर आम आदमी पार्टी की क्या भूमिका होगी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उसका दावा

कब तक यात्री रेलवे के अत्याचारों को सहेगा?

कब तक यात्री रेलवे के  अत्याचारों को सहेगा? प्लेन में खराबी आ जाये तो संबन्धित एयर लाइंस अपने यात्रियों को किसी बड़े होटल में ठहराकर उनकी सेवा में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती लेकिन क्या देश की सबसे ज्यादा कमाऊपूत रेलवे अपने यात्रियों की सेवा इसी प्रकार करती है? इस प्रकार नहीं तो भी क्या वह अपने उन यात्रियों की कोई खैर खबर लेती है जिनसे वह लम्बी यात्रा के नाम पर अनाप शनाप रेट वसूल करती है. शुक्रवार और शनिवार की दरम्यिानी रात बैतूल के समीप एक मालगाड़ी दुर्घटना के बाद जो अनुभव इस रूट के लाखों यात्रियों को करना पड़ा वह अभूतपूर्व था हालाकि ऐसी दुर्घटनाएं अक्सर होती है तथा यात्री इस तरह की मुसीबतें झेलते हैं लेकिन गर्मी के दिनों में जो कठिनाई होती है वह किसी जेल में एक दिन की सजा से कम नहीं है. शुक्रवार रात करीब 10-11  बजे के आसपास  बेतूल के पास घोडाडोगरी रेलवे स्टेशन के बिल्कुल करीब एक कोयले से भरी मालगाड़ी जो सारिणी संयत्र के लिये कोयले लेकर जा रही थी खूब तेज गति से पटरी से उतरकर विद्युत खम्बों को तोडते हुए बुरी तरह दुर्घटनग्रस्त हो गई.संपूर्ण रेलवे लाइन पर चलने वाले इलेक्ट्रिक इंजन की रेलगाड़य

एक्जिट पोल 'अच्छे दिन आने वाले हैं!

दुनिया के प्राय: सभी लोकताङ्क्षत् देशों में एक्जिट पोल का बोलबाला है,यह मतदाताओं व प्रत्याशियों को कुछ समय तक टेंशन से दूर रखने की कोशिश तो करता है किन्तु हकीकत में यह असल पोल के नतीजे नहीं बन पाते.भारत में लोकसभा चुनाव के बाद पिछले कुछ वर्षो से एक्जिट पोल का ्रचलन शुरू हुआ है.मतदान के दौरान भी एक्जिट पोल दिखाये जा रहे थे किन्तु चुनाव आयोग ने  इसपर रोक लगा दी.चुनाव खत्म होते ही इसकी अनुमति दे दी और आननफानन में टीवी चैनलों ने एक्जिट पोल दिखा भी दिया. देश की दो बड़ी पार्टियों कांग्रेस और भाजपा सहित सभी विपक्षी पार्टी के नेताओं ने एक्जिट पोल के नतीजे को स्वीकार करने की जगह यही कहा है कि मतगणना के दिन का  इंतजार कीजिये. वास्तव में एक्जिट पोल बहुत सीमित लोगों के बीच से होता है, भारत जैसे एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी वाले देश में जिसमें  आधे  से ज्यादा अर्थात करीब  सत्तर प्रतिशत लोग मतदान में हिस्सा लेते हैं में से यह खोज निकालना किसी के लिये भी कठिन हो जाता है कि मतगणना के बाद क्या स्थिति होने वाली है. करीब एक महीने के चुनाव अभियान के दौरान चुनाव प्रचार के समय एक्जिट पोल में लगे लोगों ने कर

शास्त्री चौक ही सब कुछ क्यों? जयस्तभं-शारदा चौक भी तो है!

 रायपुर का ट्रेफिक सुधार कार्यक्रम शास्त्री चौक तक ही सिमटा हुआ क्यों है?पिछले कई दिनों से पूरा प्रशासन शास्त्री चौक को ही पूरा शहर मान बैठा है और उसकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोड़ रहा शायद इसलिये भी कि यहां से इस प्रदेश के कर्ताधर्ता दिन में कई बार गुजरते हैं जबकि जयस्तंभ चौक जो शहर का दिल है उसे विकसित करने का कार्य ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया है. इधर रायपुर के टैफिक को बुरी तरह प्रभावित करने वाले शारदा चौक से लेकर तात्यापारा तक के रोड़ पर ट्रेैफिक की बुरी हालत पर रायपुर का प्रशासन चाहे वह नगर निगम हो या जिला प्रशासन अथवा पुलिस प्रशासन सब खामोश है. इस मार्ग को आमापारा से तात्यापारा चौड़ीकरण के साथ- साथ पूरा किया जाना था लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कार्रवाही नहीं की गई. संबन्धित लोगों को मुआवजा देकर उसी समय हटा दिया जाता तो शायद यह नौबत नहीं आती  कि अब यहां से हटाने के लिये लोगों को दा से तीन गुना ज्यादा मुआवजा देना पड़ेगा. रायपुर नगर निगम, जिला प्रशासन  और सरकार के बीच  के झगड़े का खामियाजा रायपुर सहित पूरे देश के नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है. पीक हावर्स में इस रोड़ से गुजरना कठिन हो

बस अब ज्यादा इंतजार नहीं.... आज एक्जिट पोल से कुछ तो स्थिति स्पष्ट होगी? गठजोड़ में मोदी को 'सिंहासनÓ के करीब जाने से रोकने की कोशिशें भी!

अब ज्यादा दिन नहीं बचे,सिर्फ चार दिन बाद यह स्पष्ट हो जायेेगा कि देश के सिंहासन पर कौन बैठेगा, लेकिन इससे पूर्व आज शाम एक्जिट पोल लोगों की जिज्ञासा को बहुत हद तक कम कर देगा. इस बीच जोड़-तोड़ का जो सिलसिला चला है वह भी कम इंन्टे्रस्टिंग नहीं है. भाजपा जहां स्पष्ट बहुमत का दावा कर रही है वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस जोड़-तोड़ में हैं कि किसी प्रकार केन्द्र में भाजपा की सरकार का उदय न हो. इस जोड़ तोड़ को देख भाजपा भी अपना इंतजाम करने में लगी है उसकी नजर ममता, मोदी और पटनायक पर है, भाजपा यह अच्छी तरह जानती है कि वह किसी प्रकार इन धुरन्धर नेताओं को मनाकर अपने साथ नहीं मिला सकती लेकिन 'साम धाम दण्ड भेदÓ का तरीका अख्तियार करने में भी वह पीछे नहीं है शायद यही वजह है कि सीबीआई को भी सत्ता पाने के लिये अपना मोहरा बनाने की बात चल रही है. इधर आम आदमी पार्टी की क्या भूमिका होगी यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन उसका दावा है कि वह मोदी और राहुल को सत्ता में आने से रोकने के लिये तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने में मदद करेगी हालाकि इस मामले में आप के बीच मतभेद है किन्तु राजनीति में सबकुछ हो सकता है.कांग