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अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'इनमे से कोई नहीं के बाद भी एक आप्शन है,सरकार को चिंता नहीं

आप अपना वोट जरूर दे कि अपील आसान लेकिन वोट किसे दें? हालाकि अगला चुनाव शायद जल्द आ जाय या फिर पांच साल पूरे करे लेकिन इस चुनाव ने फिर कई सवालों को यूं ही छोड़ दिया है?सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, सुपर स्टार आमिर खान सहित कई प्रमुख हस्तियों और सरकारी विज्ञापनों ने जनता को इस चुनाव में जागृत करने का प्रयास किया लेकिन वोटों का प्रतिशत कहीं शत प्रतिशत नहीं रहा. लगातार वोट के प्रतिशत में कमी या लोगों मे वोट न देने की प्रवृत्ति पर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तो यहां तक कह दिया कि जो वोट न दे उसपर कानूनी कार्रवाही करनी चाहिये. चुनाव आयोग की सिफारिश पर जिस नोटा को संवैधानिक अधिकार में शामिल कराने में राजनीतिज्ञों और सरकार की अडगेंबाजी के कारण ग्यारह साल का समय लग गया वे वोट न डालने पर सजा की बात किस मुंह से करते हैं? भारत का नागरिक होने का हमें गर्व है और एक सच्चे नागरिक के तौर पर हम भी वोट देना चाहते हैं लेकिन किसे? वे जिन्हें पार्टियां चुनाव मैदान में उतारती हैं?जिनके खिलाफ कई किस्म के अपराध,आरोप और मामले दर्ज हैं या उन्हें जो चुनकर जाने के बाद संसद का समय बर्बाद क रते हैं य

कौन जिम्मेदार है शहर में पीलिया फैलाने के लिये?

जब प्यास लगती है, तब हम कुआं खोदते हें और जब बीमारी से मौते होने लगती है तब हमें याद आती है सफाइ!र् स्वास्थ्य कार्यक्रम! और दुनियाभर के एहतियाती कदम! राजधानी रायपुर के मोहल्लों में कम से कम तीन महीनों से पीलिया महामारी का रूप धारण किये हुए हैैं और हमने अपने इन्हीें  कालमों में यह भी बताया था कि इसके पीछे कौन से प्रमुख कारण है किन्तु किसी ने इसपर संज्ञान नहीं लिया, अब जब आज यह बीमारी संक्रामक रूप ले चुकी है और एक साथ दो-दो मौते हो चुकी है तब प्रशासन को याद आ रहा है कि हां कुछ तो करना पड़ेगा नहीं तो लोग कीड़े मकोडा़ें की तरह मरने लगेंगे. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को भी आनन फानन में बीमारी की गंभीरता से अवगत करा दिया गया.लगातार लोगों के बीमार पड़ने के दौरान इसकी गंभीरता से अवगत कराने की जगह दो मौतों के बाद खबर उनके उत्तर प्रदेश दौरे के दौरान ही पहुंचाई गई.रविवार को एक एनआईटी छात्र और बाद में एक महिला की मौत ने संपूर्ण प्रशासन को हिलाकर रख दिया और शहर  में सनसनी व दहशत का माहौल निर्मित हो गया.अफसरों ने बीमारी की गंभीरता से तो मुख्यमंत्री को अवगत करा दिया पैसे भी स्वीकृत करा लिया लेकिन क्या

जल प्रबंधन इतना कैसे बिगड़ा कि गांवों में सूखा पड़ने लगा!

  कोई यह नहीं कह सकता कि इस वर्ष बारिश कम हुई, इन्द्र देवता खुश थे, खूब लबालब बारिश से नदी नाले सब भर गये, यहां तक कि मनुष्य द्वारा निर्मित बांधों में भी इतना पानी भर गया कि बांधों के गेट खोलकर पानी बहाया गया,इससे कई गांवों में बाढ़ की स्थिति निर्मित हुई.सवाल यहां अब यही उठ रहा है कि मानसून अनुकूल व सामान्य से अधिक बारिश होने के बावजूद छत्तीसगढ़ में सूखे के हालात क्यो पैदा हो रहे हैं. क्यों महासमुन्द और अन्य  अनेक  क्षेत्रों में सूखे की नौबत आई?क्यों महानदी का पानी सूख गया और क्यों धरती का जलस्त्रोत नीचे गिरता जा रहा है?क्या यह हमारी प्रबंध व्यवस्था की खामियां थी जिसके कारण अप्रैल महीने से लोगों को सूखे की भयानक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है. यह अब स्पष्ट होने लगा है कि शहरी क्षेत्रों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में पेय  जल के साथ निस्तारी की  समस्या भी गंभीर रूप  धारण करती जा रही है. गांव के गाव खाली होना शुरू हो गया है, मवेशियों तक  के लिये पीने का पानी गांवों में नहीं रह गया है. सूखे पर लोग अपना व्यापार चलाने लगे हैं एक एक टेैंकर पानी  की कीमत सोने के भाव चल रहा है.सरकार ग्रामीण व श

क्या देश लहर पर लहरा रहा

          सिर्फ 22 दिन..प्रतीक्षा कीजिये... अच्छे या पुराने दिन का! - क्या देश में किसी एक पार्टी की लहर है? -क्या इस बार देश में सत्ता का परिवर्तन होगा?  -क्या सौ साल से ज्यादा पुरानी कांग्रेस की ऐसी स्थिति हो जायेगी जो आज तक कभी नहीं हुई? -क्या आज देश में वैसी लहर बह रही है जो कभी इमेरजेंसी के बाद थी या वैसी लहर,जो इंदिरा  गांंधी के पुन: सत्ता में आने के समय थी?  -क्या भाजपा आज अटल बिहारी बाजपेयी के समय से ज्यादा लोकप्रिय हो चुकी है?अथवा यह नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिगत लोकप्रियता है जिसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने सिर पर ले रखा है   नरेन्द्र मोदी की सभाओं में जनसैलाब को अगर लहर मान लिया जाये तो देश के हिन्दी भाषी क्षेत्रों में यह लहर है. हिन्दी चैनलों में भी यह लहर है, मगर क्या यह लहर पूरे देश की फिजा को ही बदलकर रख देगा? यह गंभीर किन्तु कठिन प्रन है जिसका जवाब 16 मई के बाद ही प्राप्त होगा लेकिन इससे पहले देश का आधे से अधिक भाग मोदी और सुषमा स्वराज के साथ यही कह रहा है कि ''अच्छे दिन आने वाले हैं.ÓÓ 2009 के लोकसभा चुनाव में भी कुछ इ

मानसिक अस्वस्थों की जिंदगी सड़क पर..जिम्मेदार कौन

एक व्यक्ति तीन दिन तक एक बड़े घराने की गेट के सामने भीषण गर्मी आंधी बारिश में पड़ा रहा. घर के लोगों ने भी उसे देखा, किन्तु पुलिस को खबर करने की जगह उसे अपने नौकरों के मार्फत सरकाकर गली तरफ डाल दिया. आते जाते लोगों ने भी देखा किन्तु किसी को उसपर दया नहीं आई आखिर तीसरे दिन आसपास के लोगों को लगा कि यह शख्स अब मरने वाला है और यहीं पड़ा-पड़ा सड़ जायेगा तो इसकी सूचना पुलिस को देने के लिये दौड़ धूप शुरू हुई और अंतत: पुलिस ने उसे अस्पताल पहुंचाया.जब पुलिस से यह पूछा गया कि शहर में ऐसे घूमने वाले मानसिक रूप से अस्वस्थ लोगों के पास आपके पास क्या व्यवस्था है तो पुुलिस का जवाब था कि हमको सूचना मिलती है तो हम पहुंचते हैं गाड़ी बुलावते हैं, गाड़ी नहीं तो अपने खर्चे पर ही किसी गाड़ी में डालकर मानवता के नाते उन्हें सरकारी अस्पताल पहुंचा देते हैं अस्पताल में ऐसे लोगों के साथ कौनसा ट्रीटमेंंट होता होगा यह सब जानते हैं.  ऐसे लोगों को अस्पताल पहुंचाने वाले पुलिस के लोगों का ही यह कहना है कि थोड़ा बहुत ठीक होने के बाद फिर वैसे ही यह सड़क पर नजर आते हैं. कहीं कूड़ेे के ढेर के पास तो कहीं उस स्थान पर जहां कोई शादी ब्

गांवों में बिजली-पानी नहीं होने का दर्द...!

यह सन् 1950 के बाद के वर्षो की बात है जब हम भोपाल में रहा करते थे, एक ऐसी कालोनी जहां बिजली होते हुए भी हमारे पास पंखा नहीं था, प्रकृति की हवा मे जीना ही हमारी दिनचर्या थी.गर्मी में सारे शरीर पर घमोरियां परेशान  करती थी,हमें इंतजार रहता था बारिश का कि बारिश होगी तो इस समस्या से मुक्ति मिलेगी लेकिन आगे के वर्षो में हम भाइयों ने गुल्लाख में जेब खर्च इकट्ठा करके एक टेबिल फेन लिया तो लगा कि इसके नीचे सोने वालों को कितना मजा आता रहा होगा.हमें पानी   सार्वजनिक नल या कुए से भरना पड़ता था जहां अलग अलग राज्यों से आये लोगो से झगड़ा भी करना पड़ता था चूंकि कोई एक दूसरे की भाषा नहीं समझते थे. बहरहाल इस दुखड़े के पीछे छिपा है वही दर्द जो आजादी के पैसठ वर्षो बाद भी हमारे देश के करोड़ों लोगों को झेलना पड़ रहा है जो बिना बिजली-पानी के दूरदराज गंावों में निवास करते हैं.उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं. वातानुकूलित कमरों में बैठकर विकास की बात करने वाले हमारे मंत्री नेता सिर्फ बाते ही करते हैं.जनता की सेवा के नाम पर  वोट मांगते हैं लेकिन उस गरीब, आदिवासी, हरिजन या सामान्य वर्ग की जनता की कुटिया की तरफ पांच वर्षो

मायावी चक्रब्यूह खूनी पंजों का, जो फंसा वह मरा

शहीदों की बोली कब तक लगेगी?कितने और लोगों को यूं ही जीवन गंवाना होगा-सरकार बताये? &''एक ब्लास्ट... कई जवान शहीद, &प्रत्येक के परिवार को तयशुदा बीस लाख का मुआवजा- &श्रद्वांजलि, निंदा, तोपों की सलामी और उसके बाद सब भूल जाओं... मुआवजा लेेने के लिये परिजन चक्रब्यूह में फंस जाते हैं, उन्हेें कभी दस्तावेज के लिये प्रताड़ित होना पड़ता है तो कभी किसी अन्य कारण सेÓÓ इसके बाद  फिर वही विस्फोट...नौजवानों का एक नया बेच मायावी नक्सली गुफा में शहीद हो जाता है.आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा?क्या सरकार बस्तर सहित देश के कतिपय राज्यों में इस प्रकार के नक्सली संयत्र खोलकर रखे हुए हैं जो देश के नौजवानों और सरकारी अफसरों को मौत के घाट उतारने के लिये बना रखा है?या नेताओं व सरकार के संरक्षण में इस प्रकार के मायावी संयत्र चल रहे हैं?संदेह इस बात को लेकर भी उठता है कि क्यों नहीं सख्त कदम उठाये जाते?देश के नौजवानों को जानबूझकर मौत के सौदागरों के हाथ सौंपा जा रहा है.एक जवान मरता है तो उसके साथ- साथ उसका पूरा परिवार मरता है. ऐसे गुमराह लोग इस खूनी ताण्डव में लगे हैं जो यह भी नहीं बता

यह चुनाव है या जाति, धर्म, संप्रदाय के नाम पर मारकाट का ऐलान

'''मार डालेंगे, काट डालेंगें , टुकड़े टुकड़े कर देंंगें- हमें सत्ता में आ जाने दो तब हम बतायेंगेÓं- ÓÓऐसे कुछ बयान  हैं जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महापर्व में उम्मीदवारों व उनके समर्थकों के मुख से निकल रहे हंै.आखिर हम किस दिशा की ओर बढ़ रहे हैं? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का भविष्य क्या यही है जो हमारे नेताओं के श्रीमुख से सुनाई दे रहा है. सिंहासन पाने के लिये कोई मुस्लिमों को रिझा रहा है तो कोई हिन्दुओं को तो कोई दलितो को रिझाकर आगे बढ़ रहा है. युवाओं को दिग्भ्रमित करने की कोशिशे भी की जा रही है. मुद्दे, जनता तथा देश हित को लेकर बात करने की जगह नेता ये कहां एक दूसरे को लड़ाने वाले मुद्दे लेकर सामने आ गये? दिलचस्प तथ्य तो यह है कि कोई यह नहीं कह रहा कि वह अगर सिहासन पर काबिज होता है तो देश और देश की जनता के लिये क्या करेगा? उसकी विदेश नीति क्या होगी? आतंकवाद, नक्सलवाद जैसे मुद्दों पर बनने वाली सरकार क्या करने वाली है? पडौसी राष्ट्रों, विशेषकर चीन और पाकिस्तान के प्रति उसका रवैया क्या होगा? ऐसे अनेक मद्दों के अलावा यह भी कोई नहीं बता रहा कि देश में भ्रष्टाचार को मिटाने के

शहरों में आबादी का बोझ

शहरों में आबादी का बोझ अब चिंता का सबब बनता जा रहा है। सरकार इसपर चिंतित हैं किंतु क्या सिर्फ ङ्क्षचंता करने से इस समस्या का समाधान निकल जायेगा? बढ़ते बोझ से कई प्रकार की समस्याएं जन्म ले रही हैं। शहरों के ट्रैफिक में वूद्वि हो रही है, तो अपराध बढ़ रहे हैं। अलग- अलग गांवों से लोग रोजगार की तलाश में शहरों में पहुंचते हैं। जब रोजगार नहीं मिलता तो अपराध का रास्ता ढूंढ लेते हैं। जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीकरण योजना के पांच वर्ष पूरे होने के बाद शहरीकरण संबंधी योजनाओं-परियोजनाओं को थोड़ी गति मिलने के आधार पर सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है, लेकिन इतने मात्र से संतुष्ट होने का मतलब है, सामने खड़ी चुनौतियों से मुंह मोडऩा। शहरों के आसपास पड़ी कृषि भूमि जहां कांक्रीट के जंगलों में तब्दील हो रही हैं। वहीं गांव के अपने खेतों को जोतने के लिये आदमी नहीं मिल पा रहे हैं। धीरे- धीरेे हमारे नीति-निर्धारकों को उन विशेषज्ञों के सुझावों पर तत्काल प्रभाव से गंभीरता प्रदर्शित करनी ही होगी। जिन्होंने शहरों की परिवहन व्यवस्था और अन्य समस्याओं का उल्लेख करते हुए एक निराशाजनक तस्वीर पेश की है। यह ठीक नहीं कि शहरो

छत्तीसगढ़ में तेजी से फैल रहा लेबर 'फलू

निर्माण कार्य में लगे एक ठेकेदार को उस दिन काफी गुस्से में देखा गया, पता चला कि रात में उसके बंधक बनाये मजदूरों में से कुछने भागने का प्रयास किया. कुछ तो पकड़ लिये गये, कुछ भागने में सफल हुए. इस संपूर्ण मामले पर से जब पर्दा हटा तो पता चला कि ठेकेदार बंगाल से गरीब परिवार के लड़कों को बर्गलाकर छत्तीसगढ़ में लाते हैं और उनसे यहां सस्ते में काम कराते हैं. मजदूरों को उनका पैसा उनके घर पर ही एक मुश्त राशि के रूप में दे दिया जाता है,जो, करीब पांच छै हजार रूपये होता है,फिर चाहे उनसे जितनी भी देर, सुबह नौ बजे से लेकर देर रात दस बजे तक भी हो काम कराओ. यह धंधा अकेले बंगाल के  गरीब परिवार के युवकों के साथ ही नहीं हो रहा बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार के गरीबों के साथ भी हो रहा है. छत्तीिसगढ़ में तेजी से फैल रही इस रोजगार बीमारी- जिसे लेबर फलू का नाम दिया है, के कारण छत्तीसगढ़ के प्राय: घरों से यह आवाज सुनने को मिल रही है कि 'लेबर नहीं मिल रहे, काम रूका पड़ा है...Óचूंकि सारा काम ठेके पर चल रहा है. बंगाल, बिहार,उडीसा और उत्तर प्रदेश के मजदूरों के साथ छत्तीसगढ़ के मजदूरों को भी देकेदार उसी रेट पर खरीद ले

खून की प्यासी क्यों हो रही नई पीढ़ी?

एक बारह साल की लड़की ने अपने नौ साल के भाईर् की गला काटकर हत्या कर दी.जुवेनिल कोर्ट ने दिल्ली दुष्कर्म कांड के नाबालिग सर्वाधिक क्रूरतम कर्म करने वाले आरोपी को तीन वर्ष की कैद की सजा दी. यह खबरे सुनकर सभी को आश्चर्य तो हुआ होगा साथ ही यह भी मन में विचार आया होगा कि वर्तमान पीड़ी किस बहाव में बह रही है.बहन द्वारा भाई की निर्ममतापूर्वक हत्या का मामला अभी बुधवार का ही है जिसने संपूर्ण  जगन्नाथपुर जमशेदपुर झारखंड सहित पूरे देश को सोचने के  लिये मजबूर कर दिया कि देश की युवा पीढ़ी का एक बहुत बड़ा वर्ग किस तरफ बढ़ रहा है और हमारा समाज उसे क्यों गंभीरता से नहीं ले रहा. यह भी सवाल उठने लगा है कि आजकल टीवी चैनलों में दिखाये जा रहे इंटरनेट के एक विज्ञापन की तरह क्या बच्चा पैदा होते ही इतना ज्यादा एडवांस हो गया है कि वह सारी दुनियादारी को समझकर समाज के एक बहुत बड़े हिस्से के लिये खतरनाक साबित होने लगा है.अभी कुछ दिन पहले की बात है रायपुर की एक कालोनी में दो तीन बच्चे जिनकी उमर करीब दस बारह साल के आसपास की होगी एक घर में चंदा मांगने पहुंचे वहां उनकी उस व्यक्ति से चंदे को लेकर कु छ विवाद हुआ. वे वहां स