वोटर कौन हो?प्रत्याशी कैसा हो इसमें कौन करेगा चेंज?



वोटर कौन हो?प्रत्याशी कैसा
हो इसमें कौन करेगा चेंज?
एक आम मतदाता, जो पढ़ा लिखा है व सब समझता है- वर्तमान चुनाव पद्वति के बारे में क्या सोचता है? विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा तो हम करते हैं और पिछले पैसठ वर्षो से उप चुनाव, मध्यावधि या आम चुनाव हो रहे हैं लेकिन क्या इस व्यवस्था ने आम मतदाताओं के दर्द को कभी देखा,समझा या महसूस किया है? पांच साल की अवधि के लिये एक बार मतदाता को यह अधिकार दिया जाता है कि वह अपने जनप्रतिनिधि या माननीय जो भी कहे का चुनाव करें लेकिन उसके बाद वोटर किन परिस्थितियों से गुजरता है?उसको दिये गये वायदों को कितना पूरा किया गया?और उस जनप्रतिनिधि का पांच साल का परफोरमेंस कैसा रहा यह सब देखने का प्रयास किसी स्तर पर नहीं होता. हमें अपने बीच से एक व्यक्ति को चुनने का तो विकल्प दे दिया जाता है लेकिन क्या कभी इस बात पर गौर किया जा  रहा है कि वह व्यक्ति कौन है, केैसा है उसका बैक ग्राउण्ड क्या है? उसकी क्वालिफिकेशन क्या है?क्या वह चुनाव जीतने के बाद कभी जनता के बीच गया है? क्या उसने विधानसभा या लोकसभा में कभी जनता की आवाज उठाई? प्रत्याशी कोई भी हो, पार्टियां चयन कर जनता पर थोप देती है. वोट का अधिकार भेड़ बकरियों की तरह देकर सिर्फ प्रतिशत देखा जाता है कि कितने ज्यादा लोगों ने वोट दिया. उन व्यक्तियों को चुनकर लोकतंत्र की सबसे बड़ी संस्था में भेजने का अधिकार क्यों दिया जा  रहा हैं जो कम से कम शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाये हंै, आपराधिक छबि वाले व्यक्ति को संसद या विधानसभा में भेजने पर पाबंदी लगा दी लेकिन फिर भी चुनाव लड़ने वालों और मत देने वाले व्यक्ति को जो अधिकार दिये गये उसका कोई क्राइटेरिया नहीं निश्चित किया गया? एक मंदबुद्वि व्यक्ति या नासमझ व्यक्ति भी वोट देने के दायरे में है वह सामने वाले व्यक्ति से नोट या शराब की एक बोतल अथवा अन्य किसी लालच  के सामने बिक जाता है और पांच साल का गुलाम हो जाता है? क्यों ? देश की जनसंख्या एक अरब बाईस करोड़ के आसपास है इसमें  मतदाताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो चुनाव और मत देने का इंतजार करता है ऐसे लोग, जो न अपनी कथित पार्टियों व प्रत्याशियों के बारे में कुछ जानते हैं न उन्हें वोट देने का मतलब मालूम  है ऐसे लोग उन लोगों के लिये भारी पड रहे हैं जो वास्तव में एक सही प्रत्याशी को चुनकर ससंद या विधानसभा में भेजना चाहते हैं? भारतीय संविधान में निर्मित लोकतांत्रिक व्यवस्था को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये यह जरूरी है कि चुनाव की वर्तमान घिसी -पिटी व्यवस्था में आमूल परिवर्तन किया जाये, इसके लिये यह जरूरी है कि पार्टी, प्रत्याशी और मतदाता तीनों को एक ऐसे दायरे में लाया जाये जो सही व योग्य प्रत्याशियों का चयन कर विधानसभा व संसद में भेजे, इसके लिये जरूरी है कि प्रत्याशी व मतदाता कौन हो, दोनों ही बाते तय की जाये? हमारा तर्क यही है कि ''जब आप सरकारी निजी या अन्य किसी व्यवसाय में किसी को लेने के पूर्व उसकी योग्यता को परखते हो तो प्रत्याशी बनाने व मतदाता बनाने दोनों के लिये भी उसी प्रकार की योग्यता को परखा जाय आखिर हमारे माननीय भी तो हमारी नौकरी ही करते हैं.ÓÓ उन्हें गिन गिनकर तनखाह देते हैं. क्यों नहीं योग्यता के आधार पर मतदाता का भी चयन हो,देश लगभग शतप्रतिशत साक्षर हो चुका है, ऐसे में मत देने का अधिकार सिर्फ उन्हीं को देना जरूरी है, जो कम से कम यह जानते हो कि मत देन का मतलब क्या है. आपराधिक छबि का व्यक्ति न हो- इसका भी ध्यान रखना जरूरी है.लोकतांत्रिक व्यवस्था को मेकियावेली ने 'मूर्खो का शासनÓ कहा था, हम क्यों न इस धारणा को बदल दे?

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