हम परंपरागत गुलामी से आज भी आजाद नहीं हो पा रहे हैं। बा मुलाहिजा होशियार की जगह लालबत्ती और उससे निकलने वाली सायरन की आवाज आज भी गुलामी की याद दिला देती है। हमारे बीच से निकले लोग ही हम पर शासन करने लगे- यह शासन उन राजाओं से भी कठोर है जो सड़कों पर चलने वालों को उनके निकलते ही एक ओर ढकेल देते हैं जो नहीं हटा उसे अपनी गाड़ी के नीचे कुचल डालते हैं जैसा कि बुधवार को तब हुआ जब विधानसभा जा रहे आधुनिक राजा के काफिले ने एक परिवार की बिटिया को कुचलकर मार डाला। दुष्टता की हद तो तब हो गई जब उस घायल को अस्पताल पहुंचाने तक की जहमत इन अहम में डूबे लोगों ने नहीं उठाई। आखिर हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं...या राजतंत्र में। वीआईपी, वीवीआईपी आखिर हैं कौन? जनता की सेवा के लिये निकले लोगों में इतना अहम क्यों आ गया? क्यों उन्हें इतनी सुरक्षा दी जा रही है?अगर ये इतने असुरक्षित हैं तो क्यों समाज सेवा के लिये निकले?एक वीआईपी, वीवीआईपी सड़क से निकलता है तो सारे रास्तों को जाम कर दिया जाता है। सड़क पर जरूरी काम से निकलने वालोंं को इधर उधर ढकेल दिया जाता है। इस बंदोबस्त में कई बीमार लोग तक फंस जाते हैं जिन्हें तुरन्त अस्पताल पहुंचाना होता है लेकिन इसकी परवाह करने वाला कोई नहंीं। आखिर क्यों हम चंद लोगों के लिये लाखों लोगों के मूलभूत अधिकार से खिलवाड़ कर रहे हैं? रायपुर के विधानसभा रोड़ पर बुधवार को जो कुछ हुआ उसके लिये जिम्मेदार वह वीआईपी है जिसके काफिले ने एक परिवार को उजाड़कर रख दिया। इस मामले में सिर्फ चालक पर कार्रवाई कर मामले की इतिश्री नहीं करनी चाहिये बल्कि उस वीआईपी और काफिले में शामिल अन्य लोगों पर भी गैर इरादतन हत्या का जुर्म कायम कर अदालत में मामला पेश किया जाना चाहिये। हम मानते हैं कि नेतागिरी के चलते कुछ नहीं होगा लेकिन देश की न्यायालयों पर आज भी हमें पूर्ण विश्वास है... कम से कम ऐसे मामलों में न्यायालयों को स्वंय होकर पीडितों को न्याय दिलाने की आशा जनता करती है।

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