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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
जिस देश में सोने की चिडिया करती थी बसेरा वह देश है मेरा....किंन्तु अब यहां सोने की चिड़िया नहीं यहां- भ्रष्टाचार, आंतक,मंहगंाई और अपराध बसता है। कैसे बदल गया हमारा स्वर्ग? यहां कोई हादसा हो जाय तो श्रदांजलीे, किसी महिला की अस्मत लुटी तो निंदा, भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ तो जांच कमेटी । जनता आंदोलन करें तो दस दिन तक खामोशी - भारत में पिछले तीन दशकों में घोटालों की एक फहरिस्त है। गिने चुने लोग ही सल ाखों के पीछे है किेन्तु अपराध के सूत्रधार पतली गली से निकलकर तमाशा देख रहे हैं। मामले प्रकाश में आते ही संसद और विधानसभाओं में हंगामा होता है। हंगामों पर ससंद और विधानसभाएं ठप्प हो जाती है-जनता की जेब से निकला लाखों रूपया पानी की तरह बहाने के बाद जांच कमेेेटी बैठा दी जाती है यह सब कुछ दिन बाद लोग भूल जाते हैं। रोज नये- नये घोटाले, गंभीर सामाजिक, मानवीय अपराध ने शहीद भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, महात्मागांधी जैसी महान अस्थियों के सपनों को चकनाचूर कर दिया। आम आदमी को न जीने दिया जा रहा है न मरने। पीडित को न्याय देरी से मिलता है वह भी नाप तौल कर। एक अरब बीस करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस देश मे
हम परंपरागत गुलामी से आज भी आजाद नहीं हो पा रहे हैं। बा मुलाहिजा होशियार की जगह लालबत्ती और उससे निकलने वाली सायरन की आवाज आज भी गुलामी की याद दिला देती है। हमारे बीच से निकले लोग ही हम पर शासन करने लगे- यह शासन उन राजाओं से भी कठोर है जो सड़कों पर चलने वालों को उनके निकलते ही एक ओर ढकेल देते हैं जो नहीं हटा उसे अपनी गाड़ी के नीचे कुचल डालते हैं जैसा कि बुधवार को तब हुआ जब विधानसभा जा रहे आधुनिक राज ा के काफिले ने एक परिवार की बिटिया को कुचलकर मार डाला। दुष्टता की हद तो तब हो गई जब उस घायल को अस्पताल पहुंचाने तक की जहमत इन अहम में डूबे लोगों ने नहीं उठाई। आखिर हम प्रजातंत्र में जी रहे हैं...या राजतंत्र में। वीआईपी, वीवीआईपी आखिर हैं कौन? जनता की सेवा के लिये निकले लोगों में इतना अहम क्यों आ गया? क्यों उन्हें इतनी सुरक्षा दी जा रही है?अगर ये इतने असुरक्षित हैं तो क्यों समाज सेवा के लिये निकले?एक वीआईपी, वीवीआईपी सड़क से निकलता है तो सारे रास्तों को जाम कर दिया जाता है। सड़क पर जरूरी काम से निकलने वालोंं को इधर उधर ढकेल दिया जाता है। इस बंदोबस्त में कई बीमार लोग तक फंस जाते हैं जिन्हें