जहां मां बहनें सुरक्षित नहीं हैं वह देश है ..

रायपुर, दिनांक 8 सितंबर 2010
जहां मां बहने सुरक्षित नहीं हैं वह देश है
मेरा..नर पिशाचों पर कौन कसें फंदा?
जहां सोने की चिडिय़ा बसेरा करती है वह देश है मेरा....नहीं... अब यह नहीं रहा क्योंकि यहां एक नब्बे साल की दादी मां, दो दस और चौदह साल की बच्चियां युवकों के हवस का शिकार हो जाती हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है- वह देश है मेरा... इसके भी आगे है कि जिस देश की राष्ट्रपति महिला है, जिस देश की लोकसभा अध्यक्ष महिला है, जिस देश की प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष महिला है और जिस देश में प्रति पक्ष की नेता तथा विदेश सचिव महिला है। उस देश में महिलाओं के साथ वह सब कुछ हो रहा है। जो उसकी अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक पैनेपन को शर्मसार कर रही है। हम अपने आप यह कहते नहीं थकते कि यह देश कृष्ण और राधा की धरती है। यहां महिलाओं की पूजा होती है-सड़कों पर से लोगों को हटने के लिये राधे-राधे पुकारते हुए आगे बढ़ते हैं- नारी को दुर्गा और महाकाली तथा अन्य देवी के नाम से संबोधित किया जाता है। बच्ची पैदा होती है, तो उसे लक्ष्मी का रूप देकर गर्व करते हैं। उसी देश में एक असहाय नब्बे साल की खाट से उठ न सकने वाली वृद्ध महिला को ऐसे युवा यह एहसास दिलाते हैं कि नारी तू सिर्फ भोग की वस्तु है। जिसे जब चाहे जिस पड़ाव पर पुरुष नोच सकता है? हरदोई उत्तर प्रदेश में यह शर्मनाक घटना हुई। जहां एक झोपड़ी में अकेली रहने वाली नब्बे साल की बूढ़ी मां को दो युवा दरिन्दों ने अपनी हवस का शिकार बनाकर मरा हुआ समझकर छोड़ दिया। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के मुरैना, उत्तर पूर्व के राज्य गंगटोक और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ। जहां क्रमश: कार में सवार युवकों ने एक चौदह साल की बच्ची को यौवन पर पहुंचने के पूर्व ही तार-तार कर दिया। दूसरे मामले में एक दस साल की बच्ची के साथ बयालीस साल के व्यक्ति ने अपना मुंह काला किया और उस उत्तर प्रदेश में जहां भक्ति और विश्वास कूट कूट कर भरा है तथा जहां एक महिला शक्तिशाली मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता पर आसीन है। वहां एक युवती को सामूहिक रेप के बाद सातवीं मंज़िल से नीचे फेंक दिया गया। यह तो वे घटनाएँ हैं जो पिछले बहत्तर घंटों के अंदर प्रमुख रूप से सुर्खियों में आई। रोज ऐसी कितनी ही बच्च्चियां,अबलाएं ,वृद्वा, माँएं पैशाचिक हाथों में पड़कर अपने जन्म को कोस रही हैं। फिर भी हमारी सरकार को शर्म नहीं हैं। इंसानियत को शर्मसार करने वाली एक घटना होती है, तो फिर दूसरी और फिर तीसरी- ऐसी पूरी श्रंखला तैयार हो जाती है। लेकिन सरकार ऐसे किसी कानून को पारित करना नहीं चाहती। जो ऐसे दरिन्दों को सरे आम आम आदमी के सुपुर्द कर दे या पत्थरों से मार- मार कर समाज को यह बता दे कि यह इंसान नहीं पागल कुत्ते से भी बदतर है। इसे समाज में जिंदा रहने का कोई अधिकार नहीं। इंसानियत को कलंकित करने वाले एक दरिन्दे को ही ऐसी सजा मिल जाये तो हम समझते हैं कि बाकी छुपे पिशाचों को भी एक उदाहरण मिल जायेगा। कहां हैं देश में महिलाओं की सुरक्षा की दुहाई देकर घूमने वाली महिला अधिकार संगठन? क्या उसकी आंखों में भी पट्टी बांध दी गई है? देश की सत्ता पर इतनी पावरफुल महिलाओं के काबिज होने का इस देश को क्या फायदा मिल रहा है-यही न कि रोज कोई न कोई महिला दुष्टों के हाथ में पड़ कर अपने जीवन पर कोस रही हैं। वह चाहे रेप हो,घर पर होने वाले अत्याचार अथ्वा ऑनर किलिंग अथवा दहेज की बलि वेदी- हर जगह महिला सू ली पर चढ़ाई जा रही है। देश को महिला आरक्षण नहीं ,महिला सुरक्षा कानून की जरूरत है। जो किसी बच्ची, किसी युवती , किसी महिला अथवा वृद्ध महिला के अस्मत की रक्षा कर सके।
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