शादी वरूण की, दर्द राहुल का

रायपुर दिनांक 28 सितंबर 2010

शादी वरुण की, दर्द राहुल का, कब
लोग इस सिस्टम से बाहर निकलेंगे?
वरुण गांधी बंगाली बाला या मिनी राय से इस वर्ष शादी करेंगें-आमतौर पर देखा जा ये तो यह खबर आम है किंतु खबर का सिरा कहीं न कहीं सत्ता व हाई प्रो फाइल से जुड़ा हुआ है, तो इसका महत्व भी उतना बढ़ गया। खबर निकालने वालों ने इसे नेहरू-गांधी परिवार की पुरानी परंपरा से जोड़कर बता दिया कि चौरानवे साल बाद इस खान दान में ब्राह्मण वधु आयेगी। इसमें भी दिलचस्प बात यह कि राजनीति से जुड़े लोगों ने इसमें अपना मकसद साधने का प्रयास किया। कुछ ने कहा कि इससे यूपी में जातिगत समीकरण में बदलाव आयेगा। कांग्रेस के लोगों ने गोटी बिठानी शुरू कर दी कि राहुल गांधी को भी अब शादी कर लेना चाहिये। राहुल अगर ब्राह्मण वधु लाते हैं तो उत्तर प्रदेश में सवर्ण वोट बैंक में इज़ाफा होगा। आम आदमी के बीच में जब इस शादी और इसमें राजनीतिक घुसपैठ की चर्चा हुई तो कई लोगों के मुंह से यही बात निकली कि आप शादी की बात करते हैं। यह राजनीति से जुड़े लोगों में से तो कई ऐसे भी है जो किसी की मौत पर भी शतरंज की बिसात बिछा कर गोटियां सरकाते हैं। वरुण गांधी भाजपा के फायरब्रांड नेता हैं। उनकी शादी भी लव मेरीज है। ग्राफिक डिज़ाइनर या मिनी राय से उनकी मुलाकात अमरीका के न्यूयार्क शहर में हुई थी। बाद में वे लंदन में मिले और प्यार परवान चढ़ता रहा तथा बात वरुण की मां मेनका गांधी तक पहुंची और मामला शादी तक पहुंच गया। प्यार अंधा होता है। अगर इस अंधे प्यार में वरूण को कोई गैर जातीय अथवा दूसरे धर्म की लड़की मिल जाती, तो हम कल्पना कर सकते हैं कि जो लोग आज गठजोड़ का समीकरण कर रहे हैं। उनकी प्रतिक्रिया कुछ और ही होती। नेहरू-गांधी परिवार ने देश में वर्षो तक शासन किया है। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कमला कौल से विवाह किया था, जो एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उनकी पुत्री पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पारसी फिरोज गांधी से विवाह किया। जबकि श्रीमती गांधी के पुत्र राजीव गांधी ने इटेलियन सोनिया गांधी से और संजय गांधी ने सिख मेनका गांधी को पसंद किया। राजीव गांधी की बेटी प्रियंका गांधी का विवाह पंजाबी क्रिश्चियन राबर्ट वाढेरा से हुआ। इन सबको एक संयोग ही मानना चाहिये कि ऊपर से जो लिख दिया, उसे नीचे वालों ने बांध दिया। अब मैं पूछना चाहता हूं उन नेताओं से, जो हर ऐसे मामले को राजनीति और जाति से जोड़कर देखते हैं? क्यों वे सामाजिक बंधन और सामाजिक रीतिरिवाजों को राजनीति के गंदे माहौल में मिलाकर उसे अपवित्र करना चाहते हैं? असल में हम परिवारवाद के आगोश में इतने ज्यादा समा गये हैं कि उससे उबर नहीं पा रहे हैं। उनका बेटा, उनकी पत्नी, उनकी बहू के जाल में से निकलकर राष्ट्र में मौजूद प्रतिभाओं को सामने लाने का प्रयास कोई नही करता। हम कब तक बेगानी खुशी में अपनी खुशी बिखेरते रहेंगे। साठ- बासठ साल नेहरू गांधी परिवार का रहा, इसका हमें गर्व भी है गिला भी कि दूसरे को भी मौका मिलना चाहिये था। यह अब देश की जनता पर है कि वह एक अरब बीस करोड़ की आबादी में से ऐसे हीरे को ढूंढ निकाले। जो देश को परिवारवाद, सामंतवाद, ढकोसलावाद और न जाने क्या- क्या से हटकर देश को एक नई राह दिखाने वाले को ढूंढ निकालें!

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