संदेश

सितंबर, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

राज्यपाल सीएम को नहीं बुलाया गया?

रायपुर दिनांक 30 सितंबर 2010 एक्ट की बात सही, किंतु कौन से कारण थे जो राज्यपाल सी एम को नहीं बुलाया गया? राज्यपाल, मुख्यमंत्री और प्रदेश के नेताओं को एन आईटी के कार्यक्रम में क्यों नहीं बुलाया गया? कौन से ऐसे कारण थे जिसके चलते एन आईटी प्रबंधन ने केन्द्रीय विधि मंत्री को तो कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया लेकिन प्रदेश के राज्यपाल जो कुलाधिपति भी हैं, मुख्य मंत्री तथा शिक्षा मंत्री को दीक्षांत समारोह में बुलाना उचित नहीं समझा। संदर्भ था प्रदेश के सबसे बड़े प्रोद्योगिकी महाविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह का जिसके आयोजन की तैयारी पिछले कुछ दिनों से चल रही थी। इस चर्चित दीक्षांत समारोह में न राज्य के राज्यपाल शामिल हुए न मुख्यमंत्री और न ही प्रदेश के शिक्षा मंत्री। क्यों हुआ ऐसा? क्या इन बड़ी हस्तियों को बुलाना उचित नहीं समझा गया? और ऐसा समझा गया तो क्या कारण थे? इस विवाद से बचने के लिये विधि मंत्री वीरप्पा मो इली को एक्ट का सहारा क्यों लेना पडा? क्या यह पहले से तय था या किसी का निर्देश था कि राज्यपाल या कुलाधिपति सहित प्रदेश सरकार के किसी भी व्यक्ति को इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया जा ये?

कब तक दुष्टों को झेलती रहेंगी हमारी जेलें?

रायपुर, दिनांक 29 सितंबर कब तक दुष्टों को झेलती रहेंगी हमारी जेलें? क्यों नहीं निपटाते इन्हें? एक दुष्ट सुरेंद्र कोली का नाम और जुड़ गया भारतीय जेल के सींखचों के पीछे, जिसे देश के कानून के मुताबिक फाँसी के फंदे पर लटका ना है-इसके पूर्व भारतीय संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु, मुम्बई में अंधाधुंध हमला कर कई निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारने वाला आमिर अजमल कसाब जैसा आंतकवादी भी जेल में पड़ा- पड़ा भारतीय रोटी खा रहा है.... और तो और कसाब ने मंगलवार को सुरक्षा प्रहरी पर हमला भी कर दिया। हम कब तक ऐसे दुष्टों को सहते रहेंगे? क्यों नहीं हमारे कानून को इतना कड़ा कर दिया जाता कि अपराध करने वाले घिनौने व्यक्तियों को तमाम दूसरे कानूनों से हटकर ऐसी सजा दी जाये कि और कोई दूसरा ऐसा करने की हिम्मत ही न कर सके। सुरेन्द्र कोली हो या कसाब एक ही चट्टे बट्टे के लोग हैं जिन्हें समाज व न्याय पालिका दोनों ही उनसे जीने का अधिकार छीन चुकी है। फिर उन्हें जेल में रख कर और रोटी खिलाने का औचित्य क्या? आज कानपुर से एक खबर आई कि कक्षा छठवीं में पडऩे वाली एक बारह साल की बच्ची से स्कूल में ही किन्हीं दरिन्दों ने रेप क

फैसला होकर ही रहेगा!

रायपुर, दिनांक 28 सितंबर फैसला होकर ही रहेगा! फैसला जो भी हो इसे टाला नहीं जाना चाहिये- सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार को अयोध्या विवाद पर सुलह की अर्जी को खारिज करते वक्त दिये गये फैसले का सार कुछ यही था। इस महीने की चौबीस तारीख को इलाहाबाद उच्च न्यायालय को देश के सबसे पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाना था। लेकिन रमेश चंद त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए याचिका लगाई कि मामले का हल आपसी समझौते से निकालने के लिये फैसले को टाला जाना चाहिये। किंतु सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और हाइर्कोर्र्ट की बैंच से कहा कि- वह एक- दो दिन में इस मामले पर फैसला सुनाए। हाईकोर्ट का निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट के बदले लखनऊ हाई कोर्ट की बैच में सुनाया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने के बाद इस विवादास्पद मसले पर फैसला शुक्रवार तीस सितंबर को आने की संभावना है। हाई कोर्ट के एक जज अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं। इसलिये भी यह जरूरी है कि फैसला तीस सितंबर से पहले हो जाए। अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर है? क्या होगा फैसला? निर्णय हिंदुओं के पक्ष मे

शादी वरूण की, दर्द राहुल का

रायपुर दिनांक 28 सितंबर 2010 शादी वरुण की, दर्द राहुल का, कब लोग इस सिस्टम से बाहर निकलेंगे? वरुण गांधी बंगाली बाला या मिनी राय से इस वर्ष शादी करेंगें-आमतौर पर देखा जा ये तो यह खबर आम है किंतु खबर का सिरा कहीं न कहीं सत्ता व हाई प्रो फाइल से जुड़ा हुआ है, तो इसका महत्व भी उतना बढ़ गया। खबर निकालने वालों ने इसे नेहरू-गांधी परिवार की पुरानी परंपरा से जोड़कर बता दिया कि चौरानवे साल बाद इस खान दान में ब्राह्मण वधु आयेगी। इसमें भी दिलचस्प बात यह कि राजनीति से जुड़े लोगों ने इसमें अपना मकसद साधने का प्रयास किया। कुछ ने कहा कि इससे यूपी में जातिगत समीकरण में बदलाव आयेगा। कांग्रेस के लोगों ने गोटी बिठानी शुरू कर दी कि राहुल गांधी को भी अब शादी कर लेना चाहिये। राहुल अगर ब्राह्मण वधु लाते हैं तो उत्तर प्रदेश में सवर्ण वोट बैंक में इज़ाफा होगा। आम आदमी के बीच में जब इस शादी और इसमें राजनीतिक घुसपैठ की चर्चा हुई तो कई लोगों के मुंह से यही बात निकली कि आप शादी की बात करते हैं। यह राजनीति से जुड़े लोगों में से तो कई ऐसे भी है जो किसी की मौत पर भी शतरंज की बिसात बिछा कर गोटियां सरकाते हैं। वरुण

थल,वायु,जल सबसे तो ले ली दुश्मनी

रायपुर दिनांक 27 सितंबर 2010 थल,वायु,जल सबसे तो ले ली दुश्मनी, अब तैयार रहो परिणाम भुगतने..! जाने-अनजाने में हम धरती को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं और जल वायु को कितना दूषित कर रहे हैं -क्या कभी इसकी कल्पना की है? हमने कल्पना की भी होगी तो हम अपने लोगों के सामने ही इस मामले में बे बस हैं। चूंकि जानते हुए भी लोगों को इसकी चिंता नहीं हैं। हम आमने- सामने होने वाले रोज़मर्रा कामों पर एक नजर डालें तो यह बात अपने आप स्पष्ट हो जाती है कि हम जिस धरती में सोना उगाते हैं। उसी धरती पर कई जगह बुरी तरह गंदगी फैला प्रदूषित कर उसका अपमान कर रहे है। अपनी धरती को हम मां कहकर पुकारते हैं और उसी मां के सीने पर गंदगी फैला कर यातना दे रहे हैं। क्या यही हाल हमारी नदियों व तालाबों का नहीं है? जहां हर साल अपने धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर वह सब कुछ उस मां रूपी नदियों के साथ करते हैं, जो नहीं करना चाहिये। हाल ही संपन्न मूर्ति विसर्जन के बाद किये गये एक आकलन में कहा गया है कि मूर्तियों के विसर्जन से नदी के पानी में इतना रसायन घुल मिल गया है कि वह न पीने लायक रहा और न ही नहाने लायक। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो न

अब खेल तो होकर रहेगा,चाहे कोई कुछ भी कहे!

रायपुर दिनांक 26 सितंबर 2010 कलमाडी झु़के, शर्मा दहाड़ें, अब खेल तो होकर रहेगा,चाहे कोई कुछ भी कहे! अगर कोई अपनी गलती स्वीकार कर ले तो उसका आधा गुनाह यूं ही माफ हो जाता है। कलमाडी अगर अपनी ग़लतियों को पहले ही स्वीकार कर लेते तो शायद राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन की इतनी फ़ज़ीहत नहीं होती। कलमाडी ने आयोजन में ग़लतियों की सारी जवाबदारी अपने ऊपर ले ली है तथा यह भी कहा है कि स्टेडियम पहले मिल जाता तो ऐसी स्थिति पैदा नहीं होती। विश्व में देश की छवि को बिगाड़ने में विदेशी मीडिया ने भी अहम भूमिका अदा की, इसमें चीन समर्थक कई राष्ट्र भी शामिल हो गये जो यह चाहते थे कि राष्ट्रमंडल खेल आयोजन में भारत की कथित नाकामी के चलते आयोजन स्थल नई दिल्ली से हटाकर चीन में कर दिया जायें चूंकि चीन ने इस दौरान यह ऐलान कर दिया कि उसने अगले एशियाड की तैयारी अभी से पूरी कर ली है। यह ऐसे समय विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करवाने की एक चाल थी जो शायद भारत सरकार ने समय रहते भाप ली और राष्ट्रमंडल खेल के सारे विवाद को दरकिनार रखते हुए इसे देश की प्रतिष्ठा का सवाल मान लिया तथा फुट ओवर ब्रिज गिरने और स्टेडियम कक्ष की फाल्स स

हर चार दिन में वस्तुओं के दाममें वृद्वि !

रायपुर दिनांक 25 सितंबर 2010 हर चार दिन में वस्तुओं के दाम में वृद्धि,कैसे महँगाई कम करने की बात करते हैं! चार दिन पहले शरीर में लगाने की एक दवा चौंसठ रूपये में खरीदी। दो दिन बाद यही दवा सत्तर रूपये की हो गई। पैक की हुई वस्तुओं पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। कंपनियां जब मर्ज़ी आती है तब भाव बढ़ा देती हैं जिसका असर अन्य उपभोक्ता वस्तुओं पर पड़ता है। सरकार की कोई पकड़ पैक वस्तुएँ बेचने वाली कंपनियों पर नहीं हैं। चूंकि कंपनियों से सरकार या पार्टियों को चंदा मिलता है। उपभोक्ताओं का एक बहुत बड़ा वर्ग खुली वस्तुओं की जगह पैक- सील बंद वस्तुओं को लेने में ही अपना व अपने परिवार की भलाई समझता है। उपभोक्तओं की इस मानसिकता का पूरा फायदा कंपनियां उठा रही हैं। आम उपभोक्ता के इस बदले रू ख का फायदा चिल्हर दुकानदारों ने भी उठाना शुरू कर दिया है। वे हल्दी, मिर्च, धनिया जैसी रोजमर्रा उपयोग में आने वाली वस्तुओं को अपने पैक में डालकर बाजार में अनाप- शनाप भावों पर उतार रही है- इसमें पैक वस्तु अधिनियम का पालन नहीं होता। उपभोक्ताओं को इस लूट से बचाने का प्रयास आज तक किसी स्तर पर नहीं हुआ। सरकार बढ़ी महँगाई

बाढ-सूखा, कब तक यह हमारी नियति बनी रहेगी?

रायपुर दिनांक 24 सितंबर 2010 बाढ-सूखा, कब तक यह हमारी नियति बनी रहेगी? यहां बैठे -बैठे यह सुन बड़ा अजीब सा लगता है कि दिल्ली में बाढ़ आई है यूपी अथवा बिहार में बाढ़ ने कहर ढा दिया है। चूंकि हमारा नगर या हमारा प्रदेश तो सूखा है। दिल्ली यूपी को बाढ़ कैसे बहाकर ले गई? यह सिलसिला आज से नहीं वर्षो से चला आ रहा है। प्रकृति के इस अजीब करिश्मे को जानने का प्रयास आज तक हमारे लोगों ने कभी नहीं किया और न ही इस स्थिति से निपटने की कोई बड़ी योजना योजना कारों ने तैयार की। देश में प्रकृतिजन्य कहर से हर साल करोड़ों रूपये की फसल और संपत्ति यूं ही बर्बाद हो जाती है। आज़ादी के बासठ साल बाद भी देश बाढ़ और सूखे की मार को झेल रहा है। हर साल बाढ़-सूखे पर करोड़ों रूपये का ख़र्चा... हर साल यही सिलसिला चलता है, लेकिन अब तक कभी ऐसी योजना तैयार नहीं हुई, जिससे इसका स्थाई हल निकाला जा सके । संसद में छोटे से छोटे मुद्दे पर लंबी बहस कर हंगामा करने वाले हमारे माननी यों ने भी कभी आम जनता से जुड़ी इन समस्याओं पर गौर नहीं किया। इसकी जरूरत भी उन्होंने महसूस नहीं की, चूंकि ऐसी समस्याओं से उनका कोई लेना- देना नहीं। बाढ़ आत

वरना आज भाटापारा कल छत्तीसगढ़ पटरी पर दिखेगा!

रायपुर दिनांक 22 सितंबर रेलवे वक्त के साथ चले वरना आज भाटापारा कल छत्तीसगढ़ पटरी पर दिखेगा! जन सुविधाओं की उपेक्षा सरकार के साथ- साथ देश को भी महंगी पड़ सकती है। यह बात भाटापारा में सर्वदलीय मंच के रेले रो को आंदोलन ने सिद्ध कर दिया है। पखवाड़े भर पहले भाटापारा सर्वदलीय मंच ने रेलवे को आगाह कर दिया था कि अगर भाटापारा में सुविधा बढ़ाने के मामले में उनकी मांगों को अन देखा किया गया तो उसका परिणाम बुरा होगा। रेलवे ने जनता की बातों को गंभीरता से नहीं लिया और लोग पटरी पर उतर आये। इस छोटे से आंदोलन ने थोड़ी ही देर में जहां हावड़ा-मुम्बई ट्रेन सेवा को अस्त व्यस्त कर दिया वहीं रेलवे को इससे भारी नुकसान हुआ। देश की महत्वपूर्ण यात्री ट्रेनें इसी मार्ग से चलती है। जबकि हावड़ा-मुम्बई के बीच का यह महत्वपूर्ण ट्रेक है। हजारों यात्री इस रेल मार्ग से निकलने वाली लम्बी दूरी की ट्रेनों में सफर करते हैं। भाटापारा में हुए आंदोलन से इस रूट के यात्रियों को जहां अपनी यात्रा में और घंटे जोड़ने पड़े वहीं कई मालगाडिय़ों को भी घंटों इस रूट पर रूकना पड़ा। आंदोलन से एक बात यह साफ हुई कि सरकार आंदोलन या तोडफ़ोड की भाष

इतना तो मत चिल्लाओं कि सियार भी शरमा जायें!

रायपुर, दिनांक 21 सितंबर 2010 इतना तो मत चिल्लाओं कि सियार भी शरमा जायें! हम कितने स्वतंत्र हैं? क्या आप महसूस नहीं करते कि हमारे संवैधानिक अधिकारों और हमारी स्वतंत्रता पर कोई न कोई खलल डाल रहा है? कोई हमारे घर के सामने जोर-जोर से लाउड स्पीकर बजा रहा है तो कोई हमारे घर के ठीक सामने कचरों का ढेर लगा रहा है। कोई सड़क पर बेतुके हॉर्न से हमारी एकाग्रता को भंग कर रहा है या फिर सड़कों को घेरकर अपना कब्जा जमा ये बैठा है। मुम्बई में सुपर स्टार अमिताभ बच्चन या लता मंगेशकर जैसी हस्तियां भी अपनी स्वतंत्रता के हनन से दुखी हैं। हम अपनी बात करें- कहने को हमें संविधान ने स्वतंत्रता से लाद दिया है, लेकिन हकीक़त क्या यही है कि हम संविधान प्रदत्त अधिकारों का उपयोग कर रहे हैं या हमें वह स्वतंत्रता मिल रही है। जो हमने अंग्रेज़ों से छीन कर हासिल की। क्या हमारी व्यवस्था ऐसी है कि वह हमारी स्वतंत्रता पर खलल डालने वालों से निपट सके? कानून यह कहता है कि कोई अगर सार्वजनिक नल पर नहाये या सार्वजनिक जगह पर थूक दे तो उसपर भी कार्यवाही की जा ये। लेकिन हम स्वतंत्रता का इस हद तक दुरुपयोग कर रहे हैं कि सार्वजनिक स्थल प

राज आस्था या सहानुभूति में से कौन सी लहर में बहेगा भटगांव!

रायपुर, 20 सितंबर। राज आस्था या सहानुभूति में से कौन सी लहर में बहेगा भटगांव! राज आस्था और सहानुभूति के तराजू पर बैठी है इस समय भटगांव की जनता। भावना या सहानुभूति लहर में बहकर भाजपा को जिता ये या राजभवन की आस्था में डूब कर राज परिवार से खड़े हुए योद्धा को विजय दिला ये। यूं तो भटगांव के समर में कई योध्दा कूद पड़े हैं किंतु एक अक्टूबर को भटगांव की जनता को यह तय करना है कि उनका असली खेवनहार कौन होगा? कांग्रेस और भाजपा इस सीट के प्रबल दावेदार है। कांग्रेस को भरोसा है कि राज घराने से चुनाव मैदान में उतरे यूएस सिंह देव जीतेगें जबकि भाजपा का भरोसा रजनी त्रिपाठी पर है। पूर्व विधायक स्व. रविशंकर त्रिपाठी भटगांव में लोकप्रिय थे। यदि उनकी असमय मृत्यु से उपजी सहानुभूति लहर चली तो भटगांव सीट पर उनकी पत्नी रजनी त्रिपाठी विजयी होंगी। भावना, आस्था यह सब पहले होता था। आज का मतदाता बहुत समझदार और चालाक हो गया है। समय के साथ उसे जहां भूलने की आदत है वहीं उसने समय के साथ बदलना भी सीख लिया है। इसलिये यह कहना कि मतदाता को भावना की लहरें अपने साथ खींच ले जायेंगी या राजभवन की आस्था अपने साथ मिला लेगी, कहना ठी

खरगोश प्रजाति के मानव, जोजीने के लिये सब करते हैं...!

रायपुर दिनांक 19 सितंबर खरगोश प्रजाति के मानव, जो जीने के लिये सब करते हैं...! जानवरों में खरगोश एक ऐसा मूक् प्राणी है जो कोई प्रतिक्रिया नहीं करता। आप कुछ भी कर लो वह आपके हाथ में चुपचाप बैठा रहेगा। उसे नोचों, दुखाओं तो भी उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकलती। सरकारी महकमे में भी खरगेश की तरह के कुछ मानव हैं, जो उनकी भांति चुप रहते हैं। इन मानवों को जो काम सौपा जाता है। उसे बिना किसी विरोध के कर डालते हैं। होम गार्ड नाम का यह मानव सरकार के हर मर्ज की दवा है- साहब के घर सुरक्षा गार्ड से लेकर घर के प्राय: कामों में तो यह भागीदार होते ही हैं, इन्हें महत्वपूर्ण ड्यूटियों में भी पुलिस के साथ लगाया जाता है, लेकिन इन बे चारों को तनख्वाह सबसे कम मिलती है। गांव से कम पढ़े लिखे बेरोजगारों को ढूंढकर इस काम में लगाया जाता है। दिखने में यह पुलिस वालों से कम नहीं है लेकिन काम इनसे जो करा लो। बेचारे उफ तक नहीं करते। कई को सुरक्षा ड्यूटी के अलावा ट्रैफिक सम्हालने,पुलिस वालों की मदद करने व साहबों की चाक री के लिये लगाया जाता है। कुछ दफ्तर में तो, कुछ घरों पर। ऐसे ही इनकी पूरी नौकरी कट जाती है। फलाने साहब के

पाक से चौथे पूर्ण युद्व के बादल मंडराने लगे!

रायपुर दिनांक 18 सितंबर 2010 पाक से चौथे पूर्ण युद्घ के बादल मंडराने लगे! उन तीस- ग्यारह जैसा हमला, भगवान न करें -अब भारत के किसी शहर में हो, अगर हुआ तो इसके भयंकर परिणाम निकल सकते हैं, शायद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्घ ही छिड़ जायें। पाक में आतंकवादियों की तैयारियाँ और भारत को मिल रहे गुप्त संदेश इस संभावना को बल दे रहे हैं। कश्मीर में लगातार हिंसक गतिविधियाँ और चीन की पाक अधिकृत कश्मीर में हलचल तथा श्रीलंका में बंदरगाह बनाने की योजना ने भारत को बाध्य कर दिया है कि वह किसी भी मुकाबले के लिये तैयार रहे। पाक जहां आंतकी चाल से भारत को अशांत करने में लगा है वहीं चीन ने भारत के सारे पड़ोसी देशों नेपाल, पाकिस्तान, बंग्लादेश, श्रीलंका,म्यामार को किसी न किसी प्रकार से मदद पहुँचाकर अपनी मुट्ठी में कर लिया है। उसकी सबसे खतरनाक पहल पाक अधिकृत कश्मीर में निर्माण कार्यो के नाम पर घुसपैठ है। पाक के हौसले चीन की मदद के कारण बुलंदी पर हैं और पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी शिविर पाक की शह पर चल रहे हैं। इन परिस्थितियों में अब भारत उन तीस- ग्यारह जैसे किसी भी हमले को सहन करने की स्थिति में नहीं होगा।

सुरक्षा सुपरवाइजर की हत्या,परदे के पीछे आखिर क्या हुआ था ?

रायपुर दिनांक 15 sept सुरक्षा सुपरवाइजर की हत्या,परदे के पीछे आखिर क्या हुआ था ? किसके इशारे पर पुलिस कर्मियों ने बिलासपुर में सुरक्षा सुपरवाइजर पर हमला किया था? क्या यह स्वस्फूर्र्त एक आकस्मिक आवेश में हुआ हमला था या किसी के निर्देश पर इसे अंजाम दिया गया? हांलाकि बिलासपुर में पुलिस कर्मियों द्वारा सुरक्षा सुपरवाइजर की हत्या मामले की दंडाधिकारी जांच का आदेश हुआ है लेकिन कई तथ्य ऐसे हैं जिसका भेद कभी न खुले। यह हत्याकांड हमें बताता है कि हम कानून के आगे कैसे बे बस हैं? यह दर्शाने के लिये यूं तो कई उदाहरण है लेकिन रविवार को फिल्म दबंग देखने पहुंचे पुलिस अधिकारी के लोगों ने एक सुरक्षा सुपरवाइजर को सिर्फ इसलिये पीट- पीट कर मार डाला चूंकि उसने साहब को पहचाना नहीं और उनसे कथित रूप से बदसलूकी कर डाली। बदसलूकी के बाद पुलिस अधीक्षक तो अपने रास्ते चल दिये लेकिन अचानक पुलिस कर्मियों में अपने अफ़सर पर इतना प्रेम कैसे उमड़ पड़ा कि उन्होंने उस व्यक्ति को पीट- पीट कर मार डाला। क्या यह आदेश पुलिस अफ़सर के जाने के बाद पीछे से वायरलेस या मोबाइल से आया था कि जिसने हमारे एसपी के साथ बदसलूकी की है,उसे अच्छ

At the same time becomes instant decision- mosque standoff!

Date September 10, 2010 At the same time becomes instant decision The temple - mosque standoff! Justice delayed is how horrible the outcome - it is a live example Ayodhya Ram Temple - Babri Masjid dispute. If 64 years ago settled disputes arising at the same time little is made correctly. So maybe such a big crisis and the troubles of the country are turning round. Ram Temple - Babri Masjid dispute is currently in the High Court. Court probably his decision this month to date Sunayaega round. Before the decision is creating the conditions. He is saying that this decision after the case probably not going Slttene so easily. Related parties may take refuge in the Supreme Court. Meanwhile, demand is also being raised within the Parliament to settle the case or be living it. The historical background of the case 22 to 23 December, 1949 Take a look at the controversy began at that time. When allegedly began to keep idols inside the mosque and prayers began at the Ram platform. Hindus claim

पर्यावरण पर ध्यान दो वरना नये नयेरोग मानवता का खात्मा कर देंगे!

रायपुर दिनांक 13 सितंबर पर्यावरण पर ध्यान दो वरना नये नये रोग मानवता का खात्मा कर देंगे! हम बचपन से सुनते आ रहे हैं कि मच्छर और मलेरिया के खिलाफ सरकार का अभियान चल रहा है। करोड़ों रूपये मच्छरों को मारने के लिये अब तक तक खर्च किये जा चुके हैं लेकिन न मच्छर मरे और न मलेरिया का उन्मूलन हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट यह बता रही है कि दुनिया में सालाना 10 लाख से ज्यादा लोग मच्छर जनित रोग से मरते हैं। इसके अलावा दूसरे अन्य रोग भी फिर इस धरती पर लौट आये हैं जिसमें काला आजार, चिकनगुनिया,डेंगू, दस्त, टायफाइड़, स्वाइन फलू शामिल है। दिल्ली जहां कुछ ही समय में राष्ट्रमंडल खेल होना है। वहां डेंगू महामारी का रूप ले चुका है। देश के अनेक भागों में भारी वर्षा और बाढ़ की स्थिति है। विदेश की बात करें तो वहां भी कतिपय रोग जानलेवा बनकर कहर ढा रहे हैं। ऐसे रोगों ने लोगों में दहशत की स्थिति पैदा कर दी है। सुपरबग नामक बीमारी एंटीबायोटिक के दुरुपयोग की वजह से शुरू हुई। जबकि साबिया वायरस, एल्टीचिया बैक्टीरिया, रिट वैली वायरस आदि सूक्ष्मजीवी तो अभी तक रहस्य ही बने हुए हैं। एक जानलेवा वायरस ऐसा है, जिसे अब

Disease will make an end to humanity!

Raipur, dated September 13 Focus on the environment or be newly Disease will make an end to humanity! We have been hearing since childhood that the government's campaign against mosquitoes and malaria is on. To kill millions of mosquitoes money has been spent so far but not far and not die of malaria mosquito eradication happened. World Health Organization reports telling the world annually, 10 million people die from mosquito borne disease. Also other other disease returned again on this earth containing Kala-azar, chikungunya, dengue, diarrhea, Tayafaer, including swine Afloo. Delhi Commonwealth Games to be where there in no time. Dengue epidemic has evolved there. Heavy rains and flooding in many parts of the country situation. Talking about the foreign victims as there are also certain fatal diseases. Such disease conditions has created panic among the people. Shuparbgh called misuse of antibiotics due to illness began. While Asabia virus, Cltichia bacteria, viruses, etc. micro

भटगांव पर टिकी छत्तीसगढ़ की नजर!

रायपुर रविवार। दिनांक 12 सितंबर 2010 रजनी-यूएस में कौन? भटगांव पर टिकी छत्तीसगढ़ की नजर! रजनी या यूएस? इन दोनों में से कौन? भटगांव के लोगों का मन किस पर लगेगा यह तय होने में अभी वक्त लगेगा। यहां उप चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर की स्थिति बनती नजर आ रही है। भाजपा ने रजनी त्रिपाठी पर विश्वास किया है तो कांग्रेस ने सरगुजा राज परिवार के यूएस सिंह देव को मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में भटगांव सीट भाजपा ने जीती थी-उप चुनाव की नौबत यहां के विधायक रविशंकर त्रिपाठी की मृत्यु के बाद आई। रजनी रविशंकर त्रिपाठी की पत्नी तथा इस वक्त जिला सहकारी बैठक की उपाध्यक्ष है। कांग्रेस इस सीट को भाजपा से छीन ने के लिये एडी चोटी एक कर सकती है जबकि भाजपा ने अपनी सीट को बचाने के लिये अभी से यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। सत्तारूढ पार्टी के कम से कम दो मंत्री, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष व छत्तीसगढ़ प्रभारी की पूरी टीम भटगांव पर फिर एक बार कब्जा करने गोटी बिछाने में लगे हैं। मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह की दिलचस्पी भी इस सीट पर है। भाजपा को उम्मीद है कि उसके प्रत्याशी को मतदाताओं का पूर्व की भांति प्रेम म

वरना देश आलसी हो जायेगा!

रायपुर दिनांक 11 सितंबर 2010 पहले गरीब छाटों फिर सुविधाओं से लादों, वरना देश आलसी हो जायेगा! इसमें दो राय नहीं कि समाज के गरीब तबके के उत्थान हेतु सरकार को प्रयास करना चाहिये लेकिन इस मामले में अति उत्साह या वोट की राजनीति दोनों ही घातक हो रही है। दो रूपये किलो चावल हो या मुफ़्त में गैस वितरण अथवा मुफ़्त में बिजली बांटने का काम। इन सब योजनाओं में उत्पन्न ख़ामियाँ अब परेशानी का सबब बनती जा रही हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि हर आदमी को कोई न कोई काम करते रहना चाहिये, लेकिन अभी की सरकारें क्या कर रही हैं। इंसान को एक साथ घर बैठे सारी सुविधाओं से लाद कर शराबी,जुआरी और अन्य सामाजिक बुराइयों का एडिक्ट बनाया जा रहा है। असली गरीब असहाय और अन्न के एक- एक दाने के लिये मोह ताज हैं तो दूसरी तरफ ऐसे लोग सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाकर ऐश कर रहे हैं। जो किसी समय तक कोई भी सुविधा नहीं मिलने से मेहनत कर अपना व अपने परिवार का भरण- पोषण करते थे। सरकार ने गरीबों की मदद के नाम से अपना ख़ज़ाना खोलकर वास्तव में गरीब और मध्यम वर्ग के बीच खाई पैदा कर दी है। गरीब वर्ग का व्यक्ति सरकार की ढेर सारी सुविधाओ

तो मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं होता!

दिनांक 10 सितंबर 2010 उसी समय त्वरित फैसला हो जाता तो मंदिर-मस्जिद विवाद नहीं होता! न्याय में देरी का नतीजा कितना भयानक होता है- इसका जीता जागता उदाहरण है अयोध्या राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद। अगर चौंसठ साल पहले उपजे छोटे से विवाद का निपटारा उसी समय सही ढंग से कर दिया जाता। तो शायद आज देश इतने बड़े संकट व परेशानियों के दौर से नहीं गुजरता। राम मंदिर- बाबरी मस्जिद विवाद इस समय हाईकोर्ट में हैं। कोर्ट संभवत: इस महीने की चौबीस तारीख को अपना फैसला सुनायेगा। फैसले से पूर्व जो स्थितियाँ पैदा हो रही हैं। वह यही कह रही है कि यह मामला शायद फैसले के बाद भी इतनी आसानी से सलटने वाला नहीं। हो सकता है संबंधित पक्ष सर्वोच्च न्यायालय की शरण लें। इस बीच यह मांग भी उठ रही है कि संसदीय दायरे में रहकर इस मामले को निपटा या जा ये। इस पूरे मामले की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर एक नजर डालें तो विवाद 22-23 दिसंबर 1949 को उस समय शुरू हुआ था। जब कथित तौर पर मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखनी शुरू हुई और राम चबूतरे पर पूजा अर्चना शुरू हुई। हिंदुओं का दावा है कि यहां पूर्व में जो मंदिर था उसे तोड़कर मस्जिद बनाया। जबकि यह विवा

हर मोड़ पर भ्रष्ट तंत्र,

दिनांक 9 सितंबर 2010 हर मोड़ पर भ्रष्ट तंत्र, किसे दोष दे जब लगाम लगाने वाले ही मजबूर हों! यह स्टेटस सिंबल बन चुका है कि आज जिसके पास जितना धन है वह समाज में उतना ही सम्मानित व्यक्ति है, लेकिन कोई यह नहीं जान पा रहा कि यह पैसा उसने कैसे और किन गलत तरीकों से कमाया है। भ्रष्टाचार के चरम को हर कोई जानता है-हमारा सरकारी तंत्र भी इससे वाक़िफ़ है। मगर सवाल उठता है कि वह असहाय क्यों? कई ऐसे व्यक्ति आज सम्माननीय हैं,चूंकि वह करोड़पति है। उसके कपड़े सफेद हैं किंतु उस सफेदी के पीछे किसी गरीब के आँसू और गले से कटा हुआ खून भी मिला हुआ है। यह सब जानते हुए भी ऐसा क्यों हैं? चूंकि हमारी संपूर्ण व्यवस्था आज भ्रष्ट हो चुकी है। अब तक केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पद पर रहे प्रत्यूष सिन्हा भी यह जानते थे कि देश में हर तीसरा व्यक्ति पूरी तरह भ्रष्ट है। जबकि हर दूसरा व्यक्ति इसकी कगार पर है। उनकी राय में भ्रष्टाचार की समस्या के कारण ही मुख्यत: लोगों की धन- संपदा बढ़ रही है। वे क्यों अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के इस चक्र को देखते रहें क्यों उन्होनें अपने मिले अधिकारों का उपयोग नहीं किया? पद पर से हटने के बाद क

जहां मां बहनें सुरक्षित नहीं हैं वह देश है ..

रायपुर, दिनांक 8 सितंबर 2010 जहां मां बहने सुरक्षित नहीं हैं वह देश है मेरा..नर पिशाचों पर कौन कसें फंदा? जहां सोने की चिडिय़ा बसेरा करती है वह देश है मेरा....नहीं... अब यह नहीं रहा क्योंकि यहां एक नब्बे साल की दादी मां, दो दस और चौदह साल की बच्चियां युवकों के हवस का शिकार हो जाती हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है- वह देश है मेरा... इसके भी आगे है कि जिस देश की राष्ट्रपति महिला है, जिस देश की लोकसभा अध्यक्ष महिला है, जिस देश की प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष महिला है और जिस देश में प्रति पक्ष की नेता तथा विदेश सचिव महिला है। उस देश में महिलाओं के साथ वह सब कुछ हो रहा है। जो उसकी अपनी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक पैनेपन को शर्मसार कर रही है। हम अपने आप यह कहते नहीं थकते कि यह देश कृष्ण और राधा की धरती है। यहां महिलाओं की पूजा होती है-सड़कों पर से लोगों को हटने के लिये राधे-राधे पुकारते हुए आगे बढ़ते हैं- नारी को दुर्गा और महाकाली तथा अन्य देवी के नाम से संबोधित किया जाता है। बच्ची पैदा होती है, तो उसे लक्ष्मी का रूप देकर गर्व करते हैं। उसी देश में एक असहाय नब्बे साल की खाट से उठ न सकन

आखिर कब हटेगा रहस्यों से पर्दा

\ रायपुर, दिनांक 7 सितंबर 2010 एक धमाका ..और सब कुछ खत्म आखिर कब हटेगा रहस्यों से पर्दा ...इन आकाशीय घटनाओं पर गौर की जिये.....एक स्कूली बच्चा मैदान में खड़ा था, आसमान से बिजली गिरी और वह मारा गया! छत्तीसगढ़ के जांजगीर में स्कूली बच्चे रेसेस के समय स्कूल परिसर में थे और क्लास रूम की तरफ जा रहे थे, कि अचानक तेज बारिश से कुछ बच्चे गुलमोहर झाड़ के नीचे भीगने से बचने के लिये खड़े हो गये। तभी आकाश में एक धमाका हुआ-पेड़ झुलस गया तथा तीन बच्चे वहीं खत्म हो गये तथा चार बुरी तरह झुलस गये। वैसे ही जैसा करेंट लगने या आग लगने के बाद होता है। आकाशीय घटनाएँ अब भी इंसान के लिये रहस्य है। जम्मू कश्मीर सीमा के लेह में आकाश से जो कहर बरपा उसमें सैकड़ों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। किसी ने इसे बादल फटना कहा तो किसी ने बर्फ के गोलों का गिर ना तो किसी ने उल्का पिण्ड से बादल का टकरा ना । किसी ने इसे पड़ोसी देश चीन की चाल निरूपित किया। लेकिन इस बादल फटने की घटना से चीन भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। यहां भी आसमान से टपकी भारी बूदों ने भारी तबाही मचाई। हमारे वैज्ञानिक धरती पर बैठकर यह खोज रहे हैं कि सृ

हड़ताल या जनता को तकलीफ

रायपुर, दिनांक 6 सितंबर 2010 हड़ताल या जनता को तकलीफ़ सरकार क्यों नहीं होती सख्त? जब कम वेतन पाने वाले और अधिक वेतन की मांग को लेकर आंदोलन करें तो बात समझ में आती है, लेकिन जब ज्यादा वेतन और सारी सुख- सुविधा भोग रहे लोग वेतन की मांग को लेकर काम बंद करें, तो ऐसा लगता है कि यह आम लोगों के साथ अति कर रहे हैं। हड़तालों का मौसम फिर शुरू हो गया है। इसी मद्देनज़र हम उन बातों को फिर दो हराने के लिये मजबूर हो गये जो हम सदैव से कहते आ रहे हैं कि- सरकार को उसी हड़ताल या आंदोलन की अनुमति देनी चाहिये जिनका आम उपभोक्ता के रोजमर्रे की आवश्यकताओं से कोई ताल्लुक न रखता हो। अब अगर देश के पेट्रोल पंप वाले हड़ताल करने लगे तो आम जनता क्या करेगी? बैंक वाले हड़ताल पर चले जाते हैं, तो देश की सारी आर्थिक लाइन गड़बड़ा जाती है। नगर निकाय के सफाई, फायर ब्रिगेड , पानी वितरण करने वाले हड़ताल पर बैठ जाये तो आम जनता का बुरा हाल हो जाता है। मंगलवार को प्रदेश के सरकारी कर्मचारी मंहगाई को लेकर हड़ताल पर जा रहे हैं। ठीक है मंहगाई आज सभी की समस्या है, लेकिन क्या हड़ताल से मंहगाई दूर हो जायेगी? यह तो ऐसा लग रहा है कि मंहगा

यह कैसा रोना?

रायपुर सोमवार। दिनांक 6 सितंबर 2010 यह कैसा रोना? हर बार की तरह इस बार भी शिक्षक दिवस आया और चला गया। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन को सन् 1962 के बाद से लगातार शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान कुछ शिक्षकों का सम्मान व पुरस्कार बांट कर सरकार अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। इसके बाद शिक्षकों, छात्रों या स्कूल की तरफ झांकने का प्रयास भी नहीं किया जाता। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल पिछले एक साल से कह रहे हैं कि- देश में शिक्षकों की कमी है। इस महत्वपूर्ण पद पर बैठकर जनता से यह कहना कि शिक्षकों की कमी है- बड़ा बेतुका लगता है। शिक्षकों की कमी को क्या जनता पूरा करेगी? लाखों- करोड़ों नौजवान शिक्षक बन सेवा करने के लिये तैयार बैठै हैं। क्यों नहीं सरकार ऐसी कोई योजना बनाती कि वह शिक्षकों की कमी को तत्काल पूरा किया जा सके। पूरे वर्ष भर यह कहते हुए हमें थका दिया कि शिक्षकों की कमी है, लेकिन न शिक्षकों की भर्ती हुई और न ही प्रशिक्षण केन्द्र खोले गये। शिक्षकों के वेतन में अभी कुछ वर्षो में वृद्धि हुई है। नहीं तो फटे हाल रहने वाले शिक्षकों को देख इस नौक

सिंहासन का लक्ष्य! गडकरी ने भाजपाइयों को सूत्र में पिरोया!

रायपुर, दिनांक 5 सितंबर 2010 सिंहासन का लक्ष्य! गडकरी ने भाजपाइयों को सूत्र में पिरोया! तीसरी बार छत्तीसगढ़ में सरकार बनाना तथा दिल्ली की केन्द्रीय गद्दी पर कब्ज़ा जमाना - भाजपा का इस समय प्रमुख लक्ष्य माना जा सकता है, अगर नितिन गडकरी की छत्तीसगढ़ यात्रा के दो दिन की गतिविधियों का विश£ेषण किया जा ये तो बात कुछ यूं ही समझ ली जानी चाहिये। कार्यकर्ताओं, विधायकों, सांसदों और सरकार को उन्होंने जो नसीहत दी उसका यही निचोड़ निकलता है, कि पार्टी अपनी स्थिति को छत्तीसगढ़ सहित केन्द्र में और मजबूत करने की फिराक में है। इससे छत्तीसगढ़ का पावर तीसरी बार भी भाजपा के हाथ में हो। साथ ही यह प्रयास भी हो कि केन्द्र में भाजपा की सरकार बने। भाजपा के नये अध्यक्ष की छत्तीसगढ़ में यह पहली यात्रा थी जिसमें उन्होंने अपने लोगों को साफ- साफ कह दिया कि वे काम करें तभी कुछ बात बनेगी। निष्क्रिय पड़े विधायकों को भी सचेत कर दिया है कि वे सक्रिय हो जायें। वरना अगले विधानसभा चुनाव में टिकट उन्हें मिलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं। सांसदों को भी सक्रिय करने के लिये उन्होने दिल्ली में उनकी सक्रियता का मंत्र फूका है। यह आने वाल

खाकी का कत्ल हो गया बिहार सरकार की आंखो के सामने!

रायपुर, दिनांक 3 सितंबर 2010 खाखी का कत्ल हो गया बिहार सरकार की आँखो के सामने! बिहार को फ्लैश बैक में ले जाया जा ये तो दिल्ली में मुख्य मंत्रियों की बैठक में नीतिश कुमार ही ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्होने नक्सलियंो के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने का विरोध किया था। उन्होंने नक्सलियों से बातचीत कर समस्या का हल निकालने की सलाह दी थी। आज मुख्यमंत्री बिहार की जनता को अपना चेहरा कैसे दिखायेंगे जब उनके अपने राज्य में नक्सलियों ने मुठभेड़ में कई जवानों को मौत के घाट उतार दिया और चार को बंधक बनाकर सरकार से कहा कि वे पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर रखे गये उनके साथियों को छोड़े। वरना उनके द्वारा बंधक बनाकर रखे गये लोगों को मार दिया जायेगा। अड़तालीस घंटे से ज्यादा समय तक बंधक बना ये रखने के बाद दो को नक्सलियों द्वारा मारे जाने की खबर है। उन्होंने यह बता दिया कि वे अपनी धमकी को अंजाम देने में पीछे नहीं हटेंगे। नक्सलियों की हिमायत करने वाले मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने यह जरूरी भी नहीं समझा कि इस मुद्दे पर नक्सलियों से बातचीत कर ऐसा कोई रास्ता निकाले जिससे नक्सली बंधकों की जान न ले सकें। नक्सलियों की मांग थी कि स

तालमेल का अभाव!

रायपुर गुरूवार।दिनांक 2 सितंबर 2010 तालमेल का अभाव! लोग कहने लगे हैं कांग्रेस को यह क्या हो गया? उसके नेताओं के बयान एक दूसरे से मेल नहीं खाते। एक मंत्री कुछ कहता है तो दूसरा कुछ। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की इन मामलों में चुप्पी के संबंध में भी लोग यही कहते हैं कि या तो ऐसे मामलों में वे या तो मजा लेते रहते हैं या चुप्पी साधे रहना ही उचित समझते हैं। यह नहीं कि कांग्रेस ही इस रोग से पीड़ित है, विपक्ष विशेष कर भाजपा को भी यही बीमारी लगी है। अरूण जेटली और सुषमा स्वराज के बीच भी मतभेद अक्सर उभरकर सामने आ जाते हैं। भाजपा के बीच जो मतभेद पैदा होते हैं, उसे कई हद तक सार्वजनिक होने के पहले ही दबा दिया जाता है। जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं है। उसके नेताओं के वक्तव्य एक मुंह से निकलने के बाद गली- कूचों में घूमने लगता है। केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच ऐसी कौन सी टसल है कि चिदंबरम का कोई बयान आया नहीं कि दिग्विजय सिह अपना आपा खो बैठते हैं। भगवा आतंकवाद के मामले में चिंदबरम के वक्तव्य का पहले दिग्विजय सिंह ने

जनता से बड़ा राजनीतिज्ञ कौन,

रायपुर, दिनांक 2 सितंबर 2010 जनता से बड़ा राजनीतिज्ञ कौन, उसे भीड़ तंत्र डि गा नहीं सकता! वर्षो तक छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस की छाया रही, अब ऐसा लगने लगा है कि कांग्रेस सत्ता व संगठन दोनों के परिवेश से दूर हो गया है। लगातार सत्ता भाजपा के हाथ में जाने के बाद जहां कांग्रेस की गतिविधियाँ शून्य हो गई है वहीं भाजपा ने इसका पूरा फायदा उठाते हुए आम जनों को अपने साथ जोड़कर अपनी सत्ता को अगले कुछ वर्षो तक और कायम रखने का भरपूर इंतज़ाम कर लिया है। साथ ही उसका पूरा प्रयास है कि वह इस दौर में अपने संगठन को भी इस अंचल में मजबूत करे। देश की सत्ता में काबिज होने में असफल भाजपा का पूरा प्रयास अभी अपने द्वारा शासित राज्यों में अपनी साख को कायम रखना है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी का छत्तीसगढ़ दौरा भी लगता है कुछ इसी परिप्रेक्ष्य में है। वे अधिकांश ऐसे राज्यों का दौरा कर वहां अपनी स्थिति को मजबूत करने के प्रयास में लगे हैं, जहां उनका पहले से बोलबाला है। दूसरी ओर कांग्रेस की अगर देशव्यापी स्थिति का विश£ेषण किया जा ये तो उसके नेता विशेष कर राहुल गांधी की राजनीति उत्तर प्रदेश और उसके आस

घर में लगी है आग, पड़ोसी की खबर लेने चले..!

रायपुर, दिनांक 1 सितंबर 2010 घर में लगी है आग, पड़ोसी की खबर लेने चले..! गेहूं,चावल, चीनी की कीमत बढऩे के कारण अब बच्चों के लिये बिस्किट खरीदना मंहगा होगा। बिस्किट ही क्यों, बच्चे तो आजकल महँगा दूध भी तो पी रहे हैं। कुछ बच्चे तो ऐसे हैं जिन्हें दूध तो क्या रोटी भी नसीब नहीं होती। भारत की आबादी का कम से कम बयालीस प्रतिशत गरीब भूखा और नंगा हैं। यह हम नहीं कह रहे, सरकार द्वारा पेश आंकड़े बता रहे हें। हमारे माननीय सांसदों की तनखाह हाल ही तीन सौ गुना बढ़ा दी गई। वे अब हर महीने सब मिलाकर कम से कम एक लाख साठ हजार के आसपास सरकारी खज़ाने से पैसा निकालेंगे। यह पैसा आम आदमी की जेब से निकला हुआ टैक्स है। सासंद हमारे लिये क्या करते हैं ? इसका आकलन जनता खुद करे लेकिन हम बता दे कि लोकसभा में उनके हंगामें के कारण एक दिन की कार्यवाही स्थगित होने पर करीब एक करोड़ पैसठ लाख रूपये का नुकसान होता है। यह पैसा भी सरकार हमारे और आपके जेब से टैक्स के रूप में वसूल करती है। इस मानसून सत्र में संसद में माननी यों ने न केवल अपना वेतन बढ़ाने के लिये हंगामा किया बल्कि, अन्य अनेक मुद्दे जिससे आम जनता का कोई लेना- देना