गेंगरेप

अब भी मौजूद हैं रायपुर में जिस्म
को नोंच खाने वाले दरिन्दे

रायपुर शनिवार 8 मई 2010

छै दरिन्दो ने क्रूरता से एक युवती की इज्जत रौंदकर उसे मौत के घाट उतार दिया और रायपुर पुलिस सोती रही। एक महीने बाद उसका सुराग लगा तो अब बताया जा रहा है कि उसके साथ गैंग रेप हुआ। इस मामले में न मानव अधिकार के प्रणेताओ ने कुछ बोलना उचित समझा और न ही हर छोटे मोटे मामले में बढ चढ़कर बोलने वाली महिलाओं की हित रक्षक संस्था ने। अब इस युवती को विक्षिप्त बताकर सारे मामले को रफा दफा करने का प्रयास किया जा रहा है। घटना पर एक नजर डाले तो इस मामले की वीभत्सता और रायपुर में मौजूद दरिन्दों की दरिन्दगी का खुलासा होता है-घटना कम से कम एक माह पुरानी है जैसा पुलिस का अनुमान है- युवती धमतरी से रायपुर के मोतीबाग क्षेत्र में आयोजित एक धार्मिक कार्यक्रम में भाग लेने अपने किसी साथी युवक के साथ आई थी। उसने तो उसके साथ रेप किया ही साथ ही उसके और पांच साथियों ने भी उसको नहीं छोड़ा। गैंग रेप की असहनीय पीड़ा से इस युवती ने थोड़ी ही देर में प्राण त्याग दिये। नौ अप्रैल को पुलिस ने लावारिस हालत में उसकी लाश को बरमद किया। एक दूसरा पक्ष यह बताता है कि युवती अपनी कुछ सहेलियों के साथ आई थी और दरिन्दों का शिकार हो गई। एक तीसरा पक्ष भी है कि वह विक्षिप्त थी और मोतीबाग क्षेत्र में भटक रही थी तथा दरिन्दों के हाथ पड़ गई। क्या सही है यह अब अन्वेषण का विषय है। भले ही युवती की हत्या के कोई चिन्ह नहीं हैं लेकिन रेप के दौरान हुई क्रूरता से उसकी मौत को हत्या माना जा सकता है। युवती की लाश के पोस्टमार्टम और पता ठिकाने के बाद पुलिस अब दरिन्दों की खोज में हैं। खबर है कि एक को पकड़ लिया और बाकी की खोज की जा रही है किन्तु रायपुर को शर्मसार कर देने वाली इन घटनाओं ने सभ्य समाज को सोचने के लिये मजबूर कर दिया है कि ऐसेे दरिन्दों के लिये समाज में क्या स्थान होना चाहिये। रायपुर के बैरन बाजार में वर्षाे पूर्व श्वेता शर्मा बलात्कार हत्याकांड से शुरू हुआ यह सिलसिला अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। आये दिन महिलाओ ंकी लावारिस लाश मिलना और खानापूर्ति कर उसका खात्मा डाल देना पुलिस की नियति बन गई है। अभी कम से कम दो साल पहले नंदनवन मार्ग पर अटारी के पास दुर्ग जा रही एक दंपत्ति से भी इसी तरह छै लोगो ने मारपीट कर पत्नी से बलात्कार किया था। इसके जख्म को ताजा करने वाली इस नई घटना को अब तक मामूली तौर पर लेना यही दर्शा रहा है कि हमारी संवेदनाएं मर चुकी है। नंदनवन की घटना में गिरफतार युवक सजा पाकर जेल में हैं-इन दरिन्दो को पुलिस ने जनता के बीच घुमाकर दूसरे अपराधियों को भी सबक सिखाया था किन्तु मोतीबाग की घटना में जिस ढंग से कार्रवाई धीरे धीरे हो रही है और आम लोगों की इस मामले में जो शांत प्रतिक्रिया है वह अपराधियों की हौसला अफजाई ही कर रही है। क्यों नहीं समाज ऐसे मामलों मे आगे बढ़ता? इस ढंग का घृणित और अमानवीय अपराध करने वालें को कठोर से कठोर दंड देने के लिये प्रयास करना चाहिये।

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