पहुंच और रसूख के आगे बेबस इंसान!

रायपुर गुरूवार। दिनांक 19 अगस्त 2010 ,
पहुंच और रसूख के आगे बेबस
होता जा रहा आम इंसान!
उत्तर भारत के दो प्रमुख दो शहरों से पिछले दिनों आई दो खबरों ने आम आदमी को उद्वेलित कर यह सोचने के लिये विवश कर दिया कि वह आखिर जिये तो जिये कैसे? पहली खबर थी कि कुछ दबंगों ने, जिसमें कुछ नेता भी शामिल थे एक इंसान को खूब पीटा उसके बाद उसे जीप में बाँधकर घसीटा गया। इस इंसान के खून की स्याही सूखी भी नहीं थी कि एक अन्य खबर आई कि रसूखदार रईसजादियों ने प्रमुख मार्ग पर एक दूसरे से आगे निकलने के लिये कार रेसिंग की और सड़क पर चल रहे एक इंजीनियरिंग छात्र और उसके भाई को कुचल दिया। इंजीनियर तो घटनास्थल पर ही मौत के आगोश में समा गया लेकिन भाई को इस हालत में भर्ती किया गया जो पुलिस को घटना का पूरा बयान दे सकता है। घटना के बाद रईसजादी दुर्घटनाग्रस्त कार को छोड़कर अपनी सहेली की कार से भाग गई। पुलिस ने पता लगाया तो मालूम पड़ा कि यह कार एक कर्नल की थी तथा कार को उसकी लड़की चला रही थी। लड़की को गिरफतार करने की जगह उसको बचाने का सारा खेल शुरू हो गया। क्या कहते हैं आप ऐसी घटनाओं के बारे में? आपका उत्तर भी हम ही दे देते हैं- आप और हम सब बेसहारा हैं। ऐसे मामलों में जहां पहुंच, पैसा और शोहरत मौजूद रहती है। कानून जिसे अपना काम करना रहता है, वह भी इन सबके सामने बेबस हो जाता है। पुलिस तक पीड़ित के पहुंचने से पहले ही रसूखदारों का उन्हें बचाने का खेल शुरू हो जाता है। पहले तो कानूनी प्रक्रिया को इतना टालने का प्रयास किया जाता है कि उस अवधि में आरोपी को अदालत से जमानत मिल सके और वह कानून के चक्कर में न पड़े। संपूर्ण देश इस तरह के खेल से अटा पड़ा है। चाहे वह दिल्ली की सड़क हो चाहे मुम्बई की या महानगर की तरह विकसित होते रायपुर शहर की बात । सभी जगह इस तरह के हरकतबाजों ने आम आदमी की जिंदगी को सस्ता बना दिया है। फिल्म अभिनेता सलमान खान ने सड़क में नशे में धुत्त होकर सड़क पर सो रहे कई लोगों को कुचल दिया वहीं दिल्ली की सड़क पर एक उद्योगपति के रईसजादे पुत्र ने भी कई लोगों को कुचला। हालांकि हर जगह कानून ने अपना काम किया किन्तु इन मामलों में यह देखना महत्वपूर्ण है कि एक आम आदमी जब कहीं भूल से भी इस तरह की गलती करता है, तो उसे कि स तरह की कानूनी पेचीदगियों से गुजरना पड़ता है। वहीं इन रईसजादों के लिये तो जैसे कानून इनकी मुटठी में रहता है, चाहे तो वे किसी आम आदमी को अपनी जीप या अन्य वाहन से खींचकर उसका काम तमाम करें। समाज में आये इस बदलाव ने संपूर्ण कानून व्यवस्था की ईमानदारी और निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि वह एक निष्पक्ष तथा समान कानून व्यवस्था कायम करने के लिये क्यों नहीं प्रयास करता? अमीर और पहुंच वालों के लिये एक कानून और आम आदमी के लिये दूसरा कानून... क्या हम देश के संविधान के भीतर हैं या हमारे ऊ पर जो व्यवस्था है, वह करती कुछ है और दिखाती कुछ?

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