गोदामों में सड़ता अनाज

गोदामों में सड़ता अनाज
सरकार आखिर किसके लिये अनाज का भंडारण कर रही है? एक तरफ देश की एक अरब बीस करोड़ की आबादी में कम से कम आधी आबादी भूखी, नंगी और छतविहीन है। वहीं सरकार किसानों से अनाज खरीद- खरीदकर ऐसे गोदामों और खुले स्थान में ठूंस ठूंसकर भर रही है। जहां खाद्यान्न को या तो चूहे और कीड़े- मकोड़े खा जाते हैं या फिर खुले में पड़े रहकर बरसात में भीगकर बरबाद हो जाते हैं। इतनी बड़ी लापरवाही को रोक पाने में विफलता के बाद भी सरकार और अनाज को गोदाम में भरने और विस्तार करने में लगी है। खाद्य संरक्षण क्षमता को बढ़ाने में निजी कंपनियों की मदद लेने का भी विचार कर रही है। भारतीय खाद्य निगम या एफसीआई के गोदामों में किसानों से खरीदा गया अनाज भरा जाता है। वर्ष 2008 और 09 के दोरान तेरह करोड़ तीन लाख टन अनाज सड़कर नष्ट हो गया। यह आंकड़ा सडऩे का है-हकीकत क्या है? क्या वास्तव में सड़ गया ? या इसे सड़ा हुआ बताकर अनाज को बाजार में बेचकर कतिपय लोग पैसा खा गये? असल कहानी यह भी है कि अनाज सड़ता जरूर है किन्तु सड़ा हुआ बताने के लिये जो अच्छा अनाज है। उसे भी इसके साथ मिलाकर पूरा खेल कर दिया जाता है। खाद्य निगम के गोदामों में एक- एक बोरा गिनने की किसकी हिम्मत? अनाज सडऩे या सड़ाने अथवा घोटाला करने का यह सिलसिला कई वर्षाे से चल रहा है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2006,7,8 के दौरान क्रमशरू 16.43, 22.33 करोड़ रूपये का अनाज इंसानों के खाने योग्य नहीं रह गया। 2009 10 के दौरान अनाज को खराब करने के लिये जिम्मेदार अट्ठाईस छोटे कर्मचारियो के खिलाफ कार्रवाई कर मामले को रफा दफा कर दिया गया। किसी बड़े अधिकारी को इसके लिये जिम्मेदार ठहराया गया या नहीं यह पता नहीं। सरकार देश में करोड़ों टन अनाज को यूं ही सडऩे के लिये किसे दोष देती है? यह उसकी छ़ुटपुट होने वाली कार्रवाइयों से साफ झलकता है, किन्तु उसने कभी यह नहीं सोचा कि बढ़ती मंहगाई का एक ही हल है कि गोदामों में सडऩे की स्थिति में पहुंच रहे लेकिन इंसान के खाने योग्य स्थिति में ही उसे व्यापारियों को कम दाम में बेचा जाये और यह जनता को बांटा जाये। ताकि अनाज के भावों में कमी आये। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया , उसने न केवल अनाज के सडऩे पर चिंता जताई। वरना यह भी कहा कि अतिरिक्त अनाज तुरन्त आम लोगों में बांटा जायें। सरकार ने अब तक सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं की। बरसात के मौसम में अनाज सडऩे का क्रम जारी है। चूहे और गोदामों में तैनात कर्मचारी दोनों मोटे होते जा रहे हैं। यह सिलसिला शायद चलता ही रहेगा। आखिर हम लालफीताशाही और नौकरशाही के जाल में जो फंसे हुए हैं।

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