नियमों के पालन में प्रशासन की

नियमों के पालन में प्रशासन की
निष्क्रियता से होते हैं हादसे!
यह इस शहर का दुर्भाग्य है कि यहां किसी बात को गंभीरता से नहीं लिया जाता। पूर्व में हम प्रशासन को कई बार आगाह कर चुके हैं कि सड़क पर रिक्शे, आटो से लेकर मिनी बस तक सब ओवरलोड़ का खूनी खेल रहे हैं , लेकिन कभी इस ओर ध्यान देने का प्रयास नहीं किया। शुक्रवार को नगर निगम के डम्पर से आटों की टक्कर और उसमें बैठे तीन बच्चों की मौत दिल दहला देेने वाली है। इस हादसे को टाला जा सकता था, अगर प्रशासन सख्त होता तो। जिस ढंग से हम वर्षाे से रिक्शे और आटो में बच्चों को ले जाते देखते रहे हैं, उस हिसाब से यह घटना कोई चैेका देने वाली नहीं है। रिक्शे व आटो में बच्चों को जानवरों की तरह ठंूस ठूंस कर भरा जाता है। वहां उनका दम घुटता रहता है, तो वे बाहर झांकते हैं। यह झांकना भी खतरनाक होता है, जो कभी भी दुर्घटना को जन्म दे सकता है। शहर में मनमानी पूर्वक आटो चल रहे हैं और उसमें जैसी मनमाने ढंग से सवारी बिठाई जाती है। प्रशासन ने इससे निपटने के लिये हाल ही एक बैठक बुलाई तो प्रशासन के लोग आटो वालों के आगे झुक गये। प्रशासन की बात को कम उनकी बात को ज्यादा स्वीकार किया गया। ज्यादा बच्चों को बिठाने की बात तो छोडिय़े ज्यादा से ज्यादा आटो में कितनी सवारी होनी चाहिये तथा उसका किराया क्या होना चाहिये? यह तक तय नहीं किया गया। मीटर लगाने तक की चर्चा नहीं हुई। रिंग रोड़ पर शुक्रवार को डम्पर और आटों के बीच जबर्दस्त टक्कर एक हादसा था, मगर ऐसे हादसों के लिये प्रशासन मौका क्यों देता है। आटो हो या अन्य यात्रियों के लिये सुविधा देने के नाम पर चलने वाले दूसरे वाहन, अगर इन पर कड़ाई से हर नियमों का पालन कराया जाये तो ऐसी बहुत सी दुर्घटनाओं को टाला जा सकता है। रिंग रोड़ वैसे भी खतरनाक हो चुका है-रिंग रोड़ ही क्या रायपुर के सारे मार्ग खतरनाक बने हुए हैं। कहां कब मौत आ जाये कोई कह नहीं सकता। रायपुर की ट्रेफिक का हाल बताने की जरूरत नहीं किन्तु इसका एहसास इसी से हो जाता ा है कि दुर्घटना पीड़ित बच्ची में से एक ने अपने पिता को फोन कर घटना की जानकारी दी तो उन्हें ट्रेफिक के चलते घटनास्थल पर पहुंचने में कम से कम आधा घंटे का समय लगा। ट्रेफिक की समस्या अक्सर लेागों के लिये सिरर्दद बनती है।

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