षडय़ंत्र, शांति प्रस्ताव और कानून

रायपुर, शुक्रवार, दिनांक 13 अगस्त 2010

षडयंत्र, शांति प्रस्ताव और कानून में
बदलाव- मौजूद है हर जगह खोट!
अंडरवल्ड डॉन छोटा शकील की नक्सलियों से रिश्ता कायम करने की कोशिश, दूसरी खबर पुलिस को अब किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने या न करने के लिये इसकी वजह बतानी होगी तथा स्वामी अग्रिवेश नक्सलियों को नेताओं से मिलाने की प्रक्रिया में बहुत हद तक कामयाब हो गये। इन तीनों खबरों में कहीं आशा है तो कहीं भय तो कहीं खुशी। जहां तक अडंरवल्ड डॉन का सवाल है,ऐसा लगता है इस व्यक्ति ने देश को तबाह करने का बीड़ा उठा लिया है। हाल ही कर्नाटक,आंध्रप्रदेश में पकड़े गये छह नक्सलियों ने रहस्योद्धाटन किया है कि उन्हें अंडरवल्ड की तरफ से भारत में अशांति फैलाने के लिये पच्चीस लाख रूपये दिये गये थे। यह नक्सली दुबई में अडंरवल्ड के लोगों से मुलाकात करने जाने से पहले ही हवाई अड्डे पर धर लिये गये। इसे भारतीय खुफ़िया एजेंसी की सफलता ही कहा जाना चाहिये कि उसने समय रहते इन्हें दबोच लिया वरना क्या होता... इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है। इस गिरफ्तारी से नक्सलियों की आतंकवादी संगठनों से सांठगांठ के अंदाज़ की एक तरह से पुष्टि हो गई। अब सरकार को नक्सलियों से बातचीत के स्वामी अग्रिवेश के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। नक्सली सिर्फ एक ही शर्त पर सरकार से बातचीत के लिये तैयार हो रहे हैं। उनकी शर्त है कि माओवादी नेता चेरूकुरी राजकुमार उर्फ़ आज़ाद की मुठभेड़ में मौत की न्यायिक जांच कराई जाये। माओवादियों का कहना है कि आज़ाद को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मारा गया। बातचीत के बाद अगर सरकार न्यायिक जांच को मान भी जाती है तो नक्सलियों पर कैसे भरोसा किया जा ये कि वे इसके बाद हिंसा छोड़ देंगे-क्या शेर कभी माँस खाना छोड़ सकता है? नक्सलियों के मुंह में इंसान का खून लग चुका है। वे शायद इसके स्वाद को अब कभी नहीं छोड़ पायेगें, फिर भी सरकार को कोशिश करने में क्या हर्ज है। इधर भारतीय संसद में ध्वनि मत से पारित एक प्रस्ताव ने उन निर्दाष लोगों को जरूर राहत दिलाई है जो ज़बरदस्ती संदेह के दायरे में आकर गिरफ़्तार कर लिये जाते हैं-अब सरकार को इसका कारण बताना पड़ेगा कि उसे क्यों गिरफ़्तार किया जा रहा है लेकिन इससे पुलिस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वह संदेह में अगर असल मुल्जिम को भी पकड़े गी तो उसे इसके लिये भी मशक्कत करनी पड़ेगी। नये बनने वाले नियम के अनुसार पुलिस को अब अज्ञेय अपराधों में संदिग्ध किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने या न करने की वजह बतानी होगी। इसके लिये सीआरपीसी की धारा 141 में संशोधन किया जा रहा है। नये नियम की अनिवार्यता सिर्फ उन अज्ञेय अपराधियों के लिये तय की गई है जिसमे दोषी को कम से कम सात साल की सजा दी जाती है।

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