राजनीतिक चाल का बदलता रूप,

रायपुर रविवार दिनांक 11 जुलाई 2010

राजनीतिक चाल का बदलता रूप,
बयानबाजी में घायल कर रहे हैं नेता
जब देहरादून की आम सभा ने कांगे्रस से नितिन गड़करी ने सवाल किया कि क्या अफजल गुरू आपका दामाद है? तो कांग्रेस ने त्वरित प्रतिक्रिया दी कि गडकरी अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं तथा उनका इलाज किसी मनोचिकित्सक से कराना चाहिये। कांग्रेस ने उनसे अपने बयान के लिये माफी मांगने को कहा। उसके बाद कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी का बयान आया कि गडकरी को थूककर चाटने की आदत है, इस बयान से भाजपा बौखला गई और उसने कांगे्रस पर पलटवार किया कि वह माफी मांगे। गड़करी के बयान पर एक प्रतिक्रिया पंजाब कांग्रेस से आई कि भाजपा बताये कि कंधार अपहरणकर्ता क्या उसके दामाद थे जो उन्हें लेकर उनका विदेश मंत्री कंधार तक ले गया। नितिन गडकरी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इससे पूर्व भी उनके एक बयान पर बवाल मचा था। इस बयान पर उन्होंने माफी भी मांगी थी लेकिन इस बार वे अपने बयान पर काबिज है और माफी मांगने को कतई तैयार नहीं हैं। बड़े राजनीतिक नेताओं की इस तरह की भाषा का लुत्फ जनता का एक वर्ग जरूर उठाता है किन्तु इसमें उनके चरित्र का भी भान हो जाता है। गडकरी भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष हैं उनके पूर्व इस कुर्सी पर लालकृष्ण आड़वाणी, कुशाभाऊ ठाकरे जैसी हस्तियां भी विराजमान थी लेकिन उन्होंने आपे से बाहर निकलकर अपने बड़े दुश्मनों के प्रति भी ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं किया जो किसी को आहत करे। कांग्रेस के महानुभावों ने भी जिस ढंग से जवाब दिया वह भारतीय राजनीति के गिरते ग्राफ को ही इंगित करता है। संसद में भी अपशब्दों का प्रयोग अब धडल्ले से होने लगा है जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं रहा। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी और वर्तमान लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार दोनों ही सांसदों के आचरण पर खेद व्यक्त कर चुके हैं। नेताओं, विशेषकर बड़े पदों पर बैठे लोगों को इस बात का ख्याल रखने की जरूरत है कि उनके मुंह से निकलने वाला हर शब्द किसी न किसी को पिंच करता है। देहरादून में गडकरी की सभा में जुटी भीड़ ने उनके बयान पर जरूर तालियां बजाई होंगी लेकिन इसका असर पूरी पार्टी पर पड़ा होगा। इसकी कल्पना शायद उन्होंने भी नहीं की है। हालाकि यह बहुत बड़ी बात नहीं है, उन्होंने जो बात कही उसका पलटवार उन्हें पंजाब कांग्रेस से मिला और दोनों फिर बराबर हो गये मगर बहुत कुछ बातें ऐसी भी हैं, जो मुंह से निकल जाने के बाद वापस नहीं आती। गडकरी अपने मुंह से निक ले शब्द को वापस लेने तैयार नहीं। अफजल गुरू को फांसी होगी या नहीं? यह उतना जरूरी नहीं है जितना देश में बढ़ती मंहगाई से देश की जनता को मुक्ति दिलाना। सरकार की विफलता के बाद जनता की आशा देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा पर है लेकिन वह भी ऐसे ऐसे मामलों को लेकर उलझी हुई है जिसका जनता से सीधा संबन्ध नहीं है। अफजल गुरू देशद्रोही है यह सिद्व हो चुका है। उसे फांसी लगे चाहे न लगे लेकिन वह भारतीय जेल में है जहां उसे फांसी नहीं होगी तो भी जिंदगीभर सड़ता रहेगा। अब उसके पीछे समय बर्बाद करने की जगह कोई ऐसा उपाय हमारे राष्टड्ढ्रीय नेताओं को निकालना चाहिये जिससे देश आर्थिक दृष्टिड्ढ से मजबूत हो जाये। भारत के वित्त मंत्री प्रणब मुकर्जी और अन्य मंत्री लगातार करारोपण कर मंहगाई घटाने की बात कर रहे हैं- इन सबसे हमारे विपक्षी नेताओं को कोई लेना देना नहीं है। उन्हे फिक्र है तो ऐसी बेफजूल बातों की जो जनता के एक वर्ग को प्रभावित कर ऐन केन प्रकारेण सत्ता की कुर्सी तक पहुंच सकें।

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