दुष्कर्माे का बढता दायरा-क्या

दुष्कर्माे का बढता दायरा-क्या
वर्तमान कानून पर्याप्त हैं?
तुर्कीभाठा की घटना ने फिर छत्तीसगढ़ को शर्मसार कर दिया। बिलासपुर जिले के बिल्हा रेलवे स्टेशन के समीप स्थित तुर्कीभाठा में आधा दर्जन युवकों ने एक दंपत्ति को कहीं का नहीं रखा। पति को बंधक बनाकर पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार किया और एक युवक उसकी बहन को ले उड़ा। रायपुर के नंदनवन मार्ग में आज से कम से कम तीन साल पहले भी एक हादसे ने राजधानी सहित संपूर्ण छत्तीसगढ़ को शर्मसार किया था। इन युवकों को पुलिस ने न केवल पूरे गांव में घुमाया वरन सबके सामने खूब धुनाई भी की। इस घटना के आरोपी अभी भी सजा भुगत रह रहें हैं। अदालत ने इन्हें बलात्कार की धारा 376 और अन्य अनेक धाराओं के तहत सात साल की सजा दी है। क्या यह सजा पर्याप्त हैं? इस पर हम बाद में आते हैं- पहले तुर्कीभाठा का विवरण एक दंपत्ति, जिसमें उनकी ममेरी बहन भी थी, ग्राम पलासी-आमगांव-महाराष्ट्र से पहुंचे थे। तुर्कीभाठा पहुंचने के बाद इन्हें युवकों ने घेर लिया। पति की पिटाई की पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और ममेरी बहन को युवक ले भागा। पुलिस ने सामूहिक बलात्कार के आरोपी पांच व्यक्ति यों को गिरफतार कर लिया। अब मामला कोर्ट में जायेगा वहां से अगर मामला सिद्व होता है तो सजा वरना आरोपी बाइज्जत बरी! बस हमारा कानून यहां तक है। फिर अपील पर अपील और वर्षाे इस मामले के फैसले में लग जायेगें। कानून की कमजोरी का नतीजा है कि आज छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरा देश ऐसे मामलों से अटा पटा पड़ा हैं। कहीं कार में रेप तो कहीं घर के अदंर घुसकर रेप और अन्य ऐसे ही मामलों का ढेर और हमारा कानून इतना कमजोर कि पीड़ित परिवार को पर्याप्त न्याय मिलने का कोई विश्वास नहीं। अगर अपराधी के पास पर्याप्त पैसा है तो वह एक दिन भी जेल में न रहे। अपराधी अगर दबंग है तो भी न्याय की गुंजाइश कम ही रहती है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात कि किसी की इज्जत को तार तार करने के बाद उसका क्या हश्र होता है, यह सब जानते हैं। हमारा समाज ऐसी महिला को स्वीकार नहीं करता। पति पत्नी के बीच जो भावनात्मक रिश्ता होता है वह बलात्कार जैसी घटनाओं के बाद तार तार हो जाता है। ऐसे बिरले ही लोग होते हैं जो ऐसी घटनाओं के बाद भी जीवन की गाड़ी खींच ले जाते हैं। कानूनी प्रावधान के अनुसार सिर्फ सात साल की सजा क्या पर्याप्त है? हम अगर कठोर कानून जिसमें ऐसे लोगों के सर्जिकल आपरेशन की बात करें तो मानवअधिकारियों को बुरा लग जायेगा किन्तु क्या वर्तमान कानून को इस प्रकार की बढ़ती घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में उमर कैद जैसी सजा में नहीं बदला जा सकता। रायपुर के नंदनवन-अटारी मामले का अगर जिक्र करे तो यह मामला तुर्क ीभाठा की तरह इतना संगीन था कि इसमें अपराधियों को सात साल की सजा काफी नहीं थी। यह दिन हंसते- खेलते निकल गये। लोग घटना को भूल भी नहीं पायें हैं कि अपराधी कुछ दिनों में बाहर भी आ जायेगें और अपने गांव में सीना तानकर घूमेंगे। कानूनविदों को यह सोचने का समय है कि ऐसे बढ़ते अपराधों के परिप्रेक्ष्य में क्या वर्तमान कानून से ही काम चलता रहेगा ?

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