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देश में घरेलू हिंसा बढी,चिंताजनक स्थिति

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  देश में घरेलू हिंसा बढी , चिंताजनक स्थिति राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के मुताबिक ,  पांच राज्यों की  30  फीसदी से अधिक महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार हुई हैं. सर्वे बताता है कि   महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे बुरा हाल कर्नाटक ,  असम ,  मिजोरम ,  तेलंगाना और बिहार में है. सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने कोविड- 19  महामारी के मद्देनजर ऐसी घटनाओं में वृद्धि की आशंका जताई है.इस शोध के लिये   देश भर के  6.1  लाख घरों को शामिल किया गया ,  इसमें साक्षात्कार के जरिए आबादी ,  स्वास्थ्य ,  परिवार नियोजन और पोषण संबंधी मानकों के संबंध में सूचनाएं इकठ्ठा की गईं एनएफएचएस- 5  सर्वेक्षण के मुताबिक ,  कर्नाटक में  18  से  49  आयु वर्ग की करीब  44.4  फीसदी महिलाओं को अपने पति द्वारा घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है जबकि  2015-2016  के सर्वेक्षण के दौरान राज्य में ऐसी महिलाओं की संख्या करीब  20.6  फीसदी थी:आंकड़ों के मुताबिक ,  बिहार में तकरीबन  40  फीसदी महिलाओं को उनके पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा झेलनी पड़ी ,  वह

राजनीति में पैर रखने से पहले ही क्‍येां फिसले रजनीकांत?

राजनीति में पैर रखने से पहले ही क्‍येां फिसले रजनीकांत? यह जरूरी नहीं कि फिल्‍म जगत से राजनीति में प्रवेश करने वालों में से प्राय: सभी सफल रहे हैं अगर तामिलनाडू के राजनीति की बात करें तो यहां कुछ चुने हुए स्‍टार सफलता की मंजिल तक पहुंच पाये है लेकिन वालीवुड के कई सुपर स्‍टार जिसमें अमिताभ बच्‍चन, राजेश खन्‍ना धर्मेन्द कुछ ऐसे नाम है जिन्‍हेोनें राजनीति में तो कदम रखा लेकिन पीछे हट गये: कुछ टिके जरूर किन्तु बाद में उन्‍हें भी राजनीति छोडने या दरकिनार रहना पडा: सत्‍तारूढ भारतीय जनता पार्टी बिहार में मिलजुलकर अपनी सरकार बनाने के बाद से गदगद है वह आगे आने वाले चुनावों में तामिलनाडू, पश्चिम बंगाल जैसे कठिन राज्‍यो में जोर आजमाइश करने में लगी हैं:इस कडी में उसे तामिलनाडू में एक अच्‍चछी उम्‍मीद वहां के सुपरस्‍टार रजनीकांत के राजनीति में प्रवेश्‍ से लगी लेकिन इससे पहले कि वह अपनी पार्टी खडी कर सके उन्‍होंने स्‍वास्‍थय का कारण बताते हुए पार्टी बनाने की बात को तिलांजलि दे दी: एक तरह से उनका यह निर्णय सही लगता है चूंकि इतनी लोकप्रियता पाने के बाद ढलती उमर में जाकर अपनी किरकिरी करना किसे पसंद हो

बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्‍य

बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्‍य तारीख पर तारीख के बाद अब मीटिंग पर मीटिंग का दौर चल रहा है , सरकार और किसानों के बीच 8वें दौर की बातचीत में भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया. दिल्‍ली के विज्ञान भवन में सोमवार को करीब 4 घंटे चली बैठक के बाद किसानों ने कहा कि हमने केंद्र के सामने कृषि कानूनों की वापसी की ही बात रखी. 30 दिसंबर को किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ सातवें दौर की बैठक हुई थी. बैठक के बाद दोनों पक्षों की ओर से कहा गया था कि आधी बात बन गई है.किसानों ने अब साफ कह दिया है कि कानून वापसी नहीं तो घर वापसी भी नहीं. इधर, लगातार मीटिंगों में नतीजा न निकलने पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ताली तो दोनों हाथ से बजती है, आठवें दौर की मीटिंग के बाद भी एमएसपी को कानूनी रूप देने के मुद्दे पर भी सहमति नहीं बन पाई, हालांकि, सरकार और किसान 8 जनवरी को फिर बातचीत करने पर राजी हो गए है अर्थात मीटिंग का दौर अब और भी चलेगा: कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है. सोमवार को हुई बैठक से पहले पंजाब के बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उगर

एक लीटर पानी से मंहगा तेल, कर के बोझ तले दबा इंसान

जीएसटी, सीएसटी को विशेषज्ञ चाहे किसी भी तरह से लोगों को समझाये लेकिन आम लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उन्‍हें सरकार ने जो एक देश एक टैक्‍स का वादा किया था वह कहां है? हम पैदा होते हैं तबसे लेकर मरते दम तक एक नहीं तरह तरह के टैक्‍स के बोझ तले दब रहे हैं और सरकार है कि हमारे हर नित्‍य कार्य पर जबर्दस्‍त कर थोपे जा रही हैं. पेट्रोल डीजल, गैस, घासलेट का भाव जब चाहे तब बढा दिया जाता है. वैश्विक मूल्‍य कम होने के बाद भी उसे कम करने में कई नखरे दिखाये जाते हैं वहीं आम जरूरतो को पूरा करने के लिये अपनी कमाई का एक बडा हिस्‍सा विकास और अन्‍य जनोपयोगी काम के नाम पर सरकार अपने थैले में डलवाती है.इसमे इंकम टैक्‍स भी शामिल है: पूरे देश में एक कर की बात कही गई थी लेकिन केन्‍द्र और राज्‍य दोनों के नाम पर जीएसटी लागू कर दो टैक्स के अलावा रोजमर्रा के कामों में कई टैक्‍स एक साथ वसूला जा रहा है: खास बात यह कि जीएसटी के दोनों टैक्‍स में कोई अंतर भी नहीं हैं: लोग पूछते हैं जब राज्‍य केन्‍द्र से भी अपने उत्‍पादों का पैसा वसूलता है तो उसका टैक्‍स कम क्‍यों नहीं और केन्‍द् तो राज्‍यों से इसके अलावा भी अन्‍

अब हर व्‍यक्ति हाईफाय,चाय, पान की दुकान में भी वायफाई!

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  अब हर व्‍यक्ति हाईफाय , चाय , पान की दुकान में भी वायफाई ! एक समय था जब पब्लिक टेलीफोन बूथ का जमाना था: उस समय मोबाइल नहीं हुआ करते थे और लोगों के यहां लैण्‍ड लाइन फोन भी बहुत कम हुआ करते थे ऐसे में पब्लिक टेलीफोन बूथ बहुत कारगर हुआ करते थे:सडकों पर दो चार कदम चलों तो वहां संचार का सबसे सुलभ और सस्‍ता साघन टेलीफोन उपलब्‍घ हो जाया करता था: अब मोबाइल का युग है इसमें वायफाइ का अपना अलग महत्‍व है: कई लोगो के फोन मे यह उपलब्‍ध नहीं है ऐसे लोगो के लिेये यह खुशखबरी है कि उन्‍हें जल्द ही देशभर में पब्लिक टेलीफोन बूथ की तरह पब्लिक वाई-फाई बूथ मिलने लगेंगे. इस काम के लिए पीएम वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (पीएम-वानी) नामक ईको सिस्टम तैयार किया जाएगा. इस बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ने पीएम-वानी को अपनी मंजूरी दे दी है.सरकार के इस फैसले से 4 जी नेटवर्क से वंचित इलाकों के उपभोक्ता भी हाई-स्पीड इंटरनेट की सुविधा ले सकेंगे , वहीं , ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों के लोगों को इंटरनेट के माध्यम से स्वास्थ्य , शिक्षा एवं सामान की खरीद-फरोख्त जैसी सुविधाएं मिल जाए

“चाकूबाजी” का खूनी खेल,कौन जिम्‍मेदार?

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  “ चाकूबाजी ” का खूनी खेल , कौन जिम्‍मेदार ? छत्तीसगढ की राजधानी रायपुर मे चाकूबाजी की बढती घटनाएं चिंता का विषय है: एक के बाद एक हो रही चाकू मारकर हत्‍या की घटनाओं में एक बात यह भी सामने आई कि इन घटनाओं के पीछे एक हथियारो के सौदागर का भी हाथ है: गुढियारी थाना पुलिस ने हथियारों के उस सौदागर को गिरफ्तार किया है जो ई-कॉमर्स साइट से प्रतिबंधित हथियार मंगवाकर उसे दोगुने दामों में बेचता था: गिरफतारी के बाद उसकी निशानदेही पर काफी संख्‍या में हथियार बरामद किए हैं:‍पुलिस की कस्‍टडी में आने के बाद सौदागर की पोल खुली कि वह रायपुर के झंडा चौक का निवासी है जिसकी उमर मात्र बीस साल है अर्थात बालिग हुए भी उसकों ज्‍यादा समय नहीं हुआ और जिस समय उसे पढलिखकर आगे बढना था तब वह खून करने के अस्‍त्र की सौदागिरी में लग गया: यह एक अकेला युवक नही है जो नाबालिग से बालिग होने के साथ ऐसे गैर कानूनी धंधें में लिप्‍त होते जा रहे हैं: समाज की बात छोडियें स्‍वंय इनके माता पिता भी यह सब जानते हुए भी अपने बच्‍चों को बेलगाम छोड रहे हैं: जिसका पछतावा तब शुरू होता है जब वह कोई बडा गैरकानूनी कार्य कर अपने व अपने समाज क

जंगल में जवानों की मौत का ताण्‍डव कब तक? How long till death of jawans in jungle?കാട്ടിൽ ജവാൻ മരിക്കുന്നതുവരെ എത്ര കാലം?

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  जंगल में जवानों की मौत का ताण्‍डव कब तक ? सवाल यही है कि हमारे जंगलों में हमारे जवानों का खून बहने का सिलसिला आखिर कब खत्‍म होगा ? नक्‍सली समस्‍या शुरू होने के बाद से जवानो और कई बडे नेताओं सहित कितने ही लोगों का खून बह चुका है कि यह अगर सूख नहीं जाता तो एक नदी का रूप ले सकता था: यह सब जानते हुए भी खून बहने का सिलसिला जारी है और हम सिर्फ संवेदना व्‍यक्‍त कर रहे हैं , मुआवजा बाटकर पीडित परिवारों को खुशिया बांटने की कोशिश कर रहे हैं: इस गंभीर समस्‍या का ध्‍यान किसी और का गया हो या न गया हो लेकिन फिल्‍म इंण्‍डस्‍ट्रीज ने जरूर इसका बखान अच्‍छे ढंग से किया है: मलयालम फिल्‍म { उण्‍डा } ने यहां की वास्‍तविक स्थिति को बखूबी प्रदर्शित किया : बस्‍तर में फिल्‍माये गये   इस फिल्‍म के मुख्‍य अदाकार दक्षिण के सुपर स्‍टार मामूटी हैं नक्‍सल समस्‍या को लेकर जवानों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडता है ऐसा पहली बार इस फिल्‍म में देखने को मिला है एक अहिन्‍दी भाषी क्षेत्र से आये जवानों को घने   जंगलों से भरे इलाके में पहुंचने के बाद कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडता है यह इस फिल्‍म में दिखाया

वन नेशन वन इलेक्‍शन की लहर फिर चली

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  वन नेशन वन इलेक्‍शन की लहर फिर चली इलेक्शन कमीशन के मुताबिक , देश में सन 1952 में जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे , तब 10.52 करोड़ रुपए खर्च हुए थे , उसके बाद 1957 और 1962 के चुनाव में सरकार का खर्च कम हुआ था: लेकिन 1967 के चुनाव से हर साल केंद्र सरकार का खर्च बढ़ता ही गया: फिलहाल 2014 के लोकसभा चुनाव तक के ही खर्च का ब्यौरा है: 2014 में 3,870 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए थे:प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी चुनाव के दौरान व चुनाव जीतने के बाद से लगातार यह कह रहे हैं कि   देश में एक चुनाव की जरूरत है: सवाल यह उठता है कि क्‍या ऐसा हो सकता है ? यह सवाल उस समय से सभी की जुबान पर था और समय के साथ इस बात पर किसी ने न ज्‍यादा ध्‍यान दिया और न ही उसपर कोई ज्‍यादा चर्चा हुई लेकिन नरेन्‍द्र मोदी ने इस बात पर पुन: बल देकर इस महत्‍वपूर्ण मु्द्वे को एक बार फिर बहस का विषय बना दिया है:इस बारे में   मोदी का यह तर्क सही लगता है कि लोकसभा- विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने से खर्च कम होगा तथा विकास कार्य भी नहीं रूकेंगे: जबकि विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है उनका कहना है कि इससे वोटर स्‍थानीय मुददो के बजाय